सोमवार, 29 अगस्त 2022

अच्छा बोलो !!! कैसे तुमसे प्यार न होता....



अच्छा बोलो !!! कैसे तुमसे प्यार न होता...


तुम इतनी भोली-भाली हो, 

कैसे मन का अभिसार न होता।

तुम जैसा कहाँ है कोई, 

कैसे तुमसे प्यार न होता !!!


सुरभी-सुगन्धे, पद्मिनी-गंधे, 

मधुर-मनोहर बोल तिहारे।

अमृत-जीवन, मधुरित-जीवन, 

बरसे-सुमन-अनमोल-तिहारे।


बरबस ही बाँधा करते हैं, 

नयनों के ये डोर तुम्हारे।

तुमसे है सुषमा यौवन की, 

तुमसे है भुजबंध ये सारे।


तेरे रहते मम-जीवन में, 

कैसे सुख का संचार न होता।

अरी केशिनी !!! रूप सलोनी !!!  

कैसे तुमसे प्यार न होता !!!


तुमसे हर्षित धरा-गगन है, 

तुमसे सारा वन-उपवन है।

तुमसे सजती प्रांत-रस्मियाँ, 

तुमसे मण्डित नील-गगन है।


तुमसे है पंछी का कलरव, 

तुमसे गुंजित भ्रमरी-रव है।

तुमसे है पर्वत की आभा, 

तुमसे नदियों में जल-रव है।


तेरे दर्शन में सुख-पाकर, 

कैसे प्रणय-साकार न होता।

अरी मोहिनी !!! रूप-शालिनी !!! 

कैसे तुमसे प्यार न होता !!!


तुम हो झरनों की सुर-लहरी, 

मानस-सागर-मंथन-गहरी।

मेरे मधु-मान-सरोवर में, 

केवल एक विम्ब तुम ठहरी।


सुघर साँचा देह तुम्हारा, 

जैसे कोई लवंग-वृक्ष हो।

अमिय-उजास रूप तुम्हारा, 

मेरे मन का सुन्दर पहरी।


तुम ना होती तो रचना में, 

नवरस का झंकार न होता।

अरे रूपिणी !!!  रूप-विजयिनी !!! 

कैसे तुमसे प्यार न होता !!!


साभार - सोशल मीडिया

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