अच्छा बोलो !!! कैसे तुमसे प्यार न होता...
तुम इतनी भोली-भाली हो,
कैसे मन का अभिसार न होता।
तुम जैसा कहाँ है कोई,
कैसे तुमसे प्यार न होता !!!
सुरभी-सुगन्धे, पद्मिनी-गंधे,
मधुर-मनोहर बोल तिहारे।
अमृत-जीवन, मधुरित-जीवन,
बरसे-सुमन-अनमोल-तिहारे।
बरबस ही बाँधा करते हैं,
नयनों के ये डोर तुम्हारे।
तुमसे है सुषमा यौवन की,
तुमसे है भुजबंध ये सारे।
तेरे रहते मम-जीवन में,
कैसे सुख का संचार न होता।
अरी केशिनी !!! रूप सलोनी !!!
कैसे तुमसे प्यार न होता !!!
तुमसे हर्षित धरा-गगन है,
तुमसे सारा वन-उपवन है।
तुमसे सजती प्रांत-रस्मियाँ,
तुमसे मण्डित नील-गगन है।
तुमसे है पंछी का कलरव,
तुमसे गुंजित भ्रमरी-रव है।
तुमसे है पर्वत की आभा,
तुमसे नदियों में जल-रव है।
तेरे दर्शन में सुख-पाकर,
कैसे प्रणय-साकार न होता।
अरी मोहिनी !!! रूप-शालिनी !!!
कैसे तुमसे प्यार न होता !!!
तुम हो झरनों की सुर-लहरी,
मानस-सागर-मंथन-गहरी।
मेरे मधु-मान-सरोवर में,
केवल एक विम्ब तुम ठहरी।
सुघर साँचा देह तुम्हारा,
जैसे कोई लवंग-वृक्ष हो।
अमिय-उजास रूप तुम्हारा,
मेरे मन का सुन्दर पहरी।
तुम ना होती तो रचना में,
नवरस का झंकार न होता।
अरे रूपिणी !!! रूप-विजयिनी !!!
कैसे तुमसे प्यार न होता !!!
साभार - सोशल मीडिया
💗💗💗❤️🩹
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