संस्कृत को पढ़ना खेल प्रिये।
तेरा-मेरा हो मेल प्रिये।।
संस्कृत को पढ़ना खेल प्रिये।
तेरा-मेरा हो मेल प्रिये।।
जब आए परीक्षा सिर पर तो,
मचती है ठेलम-ठेल प्रिये।
संस्कृत को पढ़ना खेल प्रिये।
तेरा-मेरा हो मेल प्रिये।।
मैं अभिज्ञान का दुष्यंत हूं,
तुम हो शकुंतला प्राण प्रिये।
मैं भवभूति का राम बनूं,
तो तुम सीता हो प्राण प्रिये।
जो मैं किरात का अर्जुन हूं,
तो तुम द्रोपदी होना सजनी।
जो मैं शुद्रक का चारुदत्त,
तो तुम वसंतसेना अपनी।
मैं रघुवंशम का हूं दिलीप,
तो तुम सुदक्षिणा हो जाना।
मैं स्वप्नवास का उदयन हूं,
तुम वासव दत्ता बन जाना।
उदयन की रानी कुपित हुई तो,
रत्नावली को जेल प्रिये।
संस्कृत को पढ़ना खेल प्रिये।
तेरा-मेरा हो मेल प्रिये।।
मैं शिशुपाल का कृष्ण बनूँ,
तो तुम सतभामा हो जाना।
मैं हूं कुमारसंभव का शिव,
तो पार्वती तुम बन जाना।
मैं नैषधिय नायक नल हूं,
तुम दमयंती नायिका मेरी।
वेणीसंहार का भीम हूं मैं,
तो तुम द्रोपदी/पंचाली मेरी।
मैं मालविका का अग्निमित्र,
तुम विक्रम की उर्वशी प्रिय।
मैं नागानन्द जीमूत बनूँ,
तुम मलयवती हो प्राणप्रिय।
पाणनि की अष्टाध्याई में,
सूत्रों की रेलम-रेल प्रिये।
संस्कृत को पढ़ना खेल प्रिये।
तेरा मेरा हो मेल प्रिये।।
मैं मेघदूत का हूं विरही,
तुम अलका की यक्षणी प्रिये।
मैं रत्नावली का उदयन हूं।
तुम सागरिका हो प्राणप्रिये।
मैं मालती का हूं माधव,
तुम भवभुति की करुणा हो।
मैं हूं काशी का विश्वनाथ,
तुम वाराणसी की वरुणा हो।
मैं महावीर का राम बनूँ,
तुम जनक दुलारी सीता हो।
मैं हूं चाणक्य का चंद्रगुप्त,
जिसने राक्षस को जीता हो।
हर प्रेमी❤️ अपनी वाली से,
करता है झेलम-झेल प्रिये।
संस्कृत को पढ़ना खेल प्रिये।
तेरा-मेरा हो मेल प्रिये।।
मैं रामायण की गाथा हूँ,
तुम महाभारत की कथा प्रिये।
मैं कालिदास का हूं नाटक,
तुम भवभूति की व्यथा प्रिये।
मैं हूं शुद्रक का शर्मिलक,
मदमस्त मंदिकना बनो मेरी।
मैं बाणभट्ट का चंद्रापीड,
तुम कादंबरी हो मदिरा मेरी।
मैं यक्ष हेममाली जैसा,
तुम विशालाक्षी हो प्राणप्रिये।
मैं कालिदास सा अज विरही,
तुम इंदुमती हो प्राण प्रिये।
तुम संस्कृत की सुंदरता हो,
पढ़ने को मुझे ढकेल प्रिये।
संस्कृत को पढ़ना खेल प्रिये।
तेरा-मेरा हो मेल प्रिये।।
संस्कृत को पढ़ना खेल प्रिये।
तेरा-मेरा हो मेल प्रिये।।
तेरा-मेरा हो मेल प्रिये।।
साभार :- सोशल मीडिया
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