भारतीय रेल की जनरल और स्लीपर क्लास में यात्राएं मैंने बहुत की थी आज यूंही मन में ख़्याल आया कि चलो थोड़ा सा AC Class कि भी यात्रा करके देखते हैं। हमेशा ऑनलाइन टिकट लेने की आदत के बावजूद उस दिन पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन गये और टिकट बुकिंग का फॉर्म लिया। राइटिंग तो अच्छी नहीं है फिर भी फार्म को भरकर के काउंटर पर जमा किया। हमे भारतीय रेलवे यह सुविधा देता है कि एक ही फार्म से आप वापसी का भी टिकट करा सकते हैं। मैंने सोचा कि बस AC के सफर का अहसास ही तो करना है आने का मैंने उसी ट्रेन में स्लीपर क्लास (SL) के लिए फॉर्म भर दिया। टिकट काटने वाले महोदय ने यह देखा कि जब जाने का AC Class का है तो आने का भी AC ही होगा। उन्होंने फॉर्म को अच्छे से देखे बिना दोनों टिकट AC में ही Book कर दिया और मुझसे बोले कि 2700 हुआ। मेरा माथा ठनका की रेलवे ने इतना किराया कब से बढ़ा दिया। जब टिकट को देखा तो पता चला दोनों टिकट AC का हुआ है। फिर मैंने बड़े ही विनम्रता से कहां - सर, मैंने रिटर्निंग का स्लीपर के लिए लिखा था। एक बार तो वह मुझे खा जाने वाली नजरो से घुरे और बिना कुछ बोले फॉर्म को गौर से देखने लगे। फर्म में स्पष्ट कैपिटल लेटर में SL लिखा हुआ था। वह बिना कुछ बोले टिकट को कैंसिल किये और मुझे रिटर्निंग के लिए स्लीपर का टिकट दे दिए। मेरा टिकट जाने का तो कंफर्म लेकिन आने का RAC - 90 था। जो उम्मीद थी कि संभवत कंफर्म हो जाएगा क्योंकि ट्रेन मगध थी।
AC Class में बैठने के साथ ही अपने आप अमीरी वाली वाले फीलिंग आने लगती हैं। इसका एहसास मुझे तब हुआ जब मैंने ₹15 वाली पानी की बोतल ₹30 में और ₹100 वाली खाने की थाली ₹200 में लिया। यहां तक तो सब ठीक-ठाक रहा। खाना खाकर जब रात में सोये तब आधी रात को अचानक से नींद खुल गई ऐसा महसूस हो रहा था कि मुझे किसी ने बर्फ के टुकड़ों पर लिटा दिया हो। आस-पास नजर दौड़ाई तो देखा कि सभी लोग कम्बल में लिपटे मस्ती से सो रहे हैं। समय देखा तो ठीक 12:00 बज रहा था यानी आधी रात पूरी बितानी थी लेकिन यहां तो एक मिनट बिताना मुश्किल लग रहा था। अपने सीट से उतर AC Class से बाहर निकले। बाहर निकलते ही गर्म हवा के लपटों ने चेहरे को एकदम से झुलझा🥵 दिया। वापस पुनः अपने स्थान पर आ गए। यहां पर तो शीतलता-ही-शीतलता🥶 थी। मेरे साथ समस्या यह हो रही थी कि अंदर आते तो ठंडक और बाहर निकलते तो प्रचण्ड गर्मी। पूरी रात यूं ही AC Class से बाहर आते एवं जाते ही बीती। मुझे परेशान देख मेरे एक बुजुर्ग सहयात्री ने सहानुभूति जताते हुए कहा - बेटा आपको कम्बल लेकर आनी चाहिए थी ना!!! अब उन्हें कौन समझाए कि हम तो अहसास के चक्कर में AC Class में टिकट करा लिए थे जो की अब महंगा पड़ रहा था। हम तो बस यही सोच रहे थे कि ट्रैन कब दिल्ली पहुंचे ताकी मुझे गर्मी में इस ठंडक से छुटकारा मिले। ट्रैन तो अपने समय से ही दिल्ली पहुंची और जिस अहसास के लिए मैंने टिकट बुक कराया था वह अहसास दरवाजे पर खड़े होकर महसूस किया क्योंकि यहां पर AC की ठंडी हवा और बाहर की गर्म हवा मिलकर माहौल को खुशनुमा बना रहे थे।
दिल्ली ससमय पहुंच गए फिर मेट्रो से अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचे। रूम पर जिनके यहां जाना था वो नही थे। उनके एक दोस्त ने स्वागत-सत्कार किया। जब वह 02-03 घंटे के उपरांत रूम पर आए तो मेरे लिए बाहर से ही फ़्रिज की जमी हुई किसी ब्रांडेड कंपनी की दही लेकर आये। शायद उन्हें लग रहा था कि इस गर्मी में दही की ठंडक जरूरी है। मेरे लिए यह समझाना मुश्किल लग रहा था कि मैं दही तो खाता नहीं हूं और दूसरी बात ठंडक की तो उससे रात भर परेशान होकर की आया हूं। मैंने उन्हें समझाया कि मैं दही नहीं खाता हूं तब वह कोल्ड ड्रिंक लेने जाने लगे मैंने उसके लिए भी उन्हें रोका और नॉर्मल पानी से ही काम चलाया।
Vah kya baat hai ticket collector ji ka ... AC ka maja bhi kuchh alag... thanda thanda cool cool biswajeet bhai garmiyon me to maja a jata hai..wow nice journey.
जवाब देंहटाएंAchha huwa bhaiya kam se kam ab jab v jayenge to kambal le ke to jayenge
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