मंगलवार, 12 जुलाई 2022

गुरु पूर्णिमा पर आदरणीय डॉ० कुमार विश्वास जी के विचार...

 


    भारतीय संस्कृति में गुरू का पद देवताओं के समतुल्य रखा गया है। सैल्यूकस और सम्राट चन्द्रगुप्त के बीच हुए ऐतिहासिक युद्ध में केवल दोनों राजा और इनकी सेनायें नहीं लड़ीं, उस रणभूमि में लड़े थे दो महान गुरुओं के अस्तित्व ! भारतीय युवा-गुरु, तक्षशिला-स्नातक चाणक्य और यूनान के कुल-गुरु, 'अरस्तू' के अस्तित्व के टकराव का परिणाम पूरे संसार के सामने था! यहीं वह समय था जब पूरे पश्चिम के मन में भारतीय गुरु-परंपरा को लेकर एक अज्ञात भय व्याप्त हो गया!


       मैकाले के मानस-पुत्रों ने भारत को जो भीषण कष्ट दिए हैं उन में से एक यह भी है कि उन्होंने हमारी पूरी शिक्षा-पद्धति से षड्यंत्र-पूर्वक 'गुरु' को हटा कर उस की जगह 'शिक्षक' को बिठा दिया! जीवन में सर्वप्रथम अक्षर ज्ञान देने वाली माँ से लेकर आजतक जिन्होंने भी ज़रा भी कुछ सिखाया उन सब "गुरु-चरणों" में मेरा शीश सादर विनत है ! आज 'गुरु-पूर्णिमा' के अवसर पर, चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने, समय-असमय, आज तक के जीवन में प्रथम-गुरु 'माँ' से लेकर हर उस गुरु के चरणों में सादर-साष्टांग प्रणाम, जिन की कृपा से मनुष्यता की यात्रा सहज-सुगम हो सकी ! संसार के समस्त 'गुरुओं' के सतत् आशीष की अपेक्षा में ...


"तुम्हारे होने से किस-किस को आस क्या-क्या है ?

तुम्हारी  आम  सी  बातों  में  ख़ास  क्या-क्या है ?

ये  तुम  ने  हम  को  सिखाया  है  अपने  होने  से,

भले  वो  कोई  हो  इन्सा  के  पास  क्या-क्या है..? "❤️🙏🏻


डॉ० कुमार विश्वास ✍️

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