भारतीय रेल का यदि आपको असली रसास्वादन करना है तो जनरल डिब्बे में यात्रा कीजिए, यकीन मानिए!!! आपकी यात्रा बहुत ही रोमांचकारी होगी। यदि आप भी मेरी तरह थोड़ा-बहुत कलाकार टाइप के होंगे तब। नहीं तो शिकायत तो लोगों को AC डब्बे से भी होती है। रेल की यात्रा में जहां तक संभव हो मैं प्रयास करता हूं की जनरल डब्बे से ही यात्रा करू। यहां मेरा पैसा बचाना बिल्कुल ही उद्देश्य नही होता उद्देश्य यह रहता है की आप सभी के लिए यात्रा में एक लेख तैयार हो जाता है एवं यात्रा के दरमियांन मुझे बहुत सारे Content प्राप्त हो जाते हैं। आज के लेख✍️ में हम भगवानपुर से सिवान की यात्रा का उल्लेख करेंगे।
ट्रेन छपरा पहुंचने वाली थी एकबार फिर मुझे आंटी जी का आवाज सुनाई दिया। इस बार वह ज्यादा गुस्से में थी। उनका चेहरा पुरा पानी से भींगा हुआ था और आंखे ज्वालामुखी सी लाल थी। था तो गर्मी का मौसम लेकिन इस पानी की ठंडक ने उनके अंदर की ज्वाला🌋 को और भड़का दिया था। सामने वाली आंटी पर वो गुस्से से लाल पिला होते हुए बोली - आपन लईका-फइका के निमन से राखs देखस तs पुरा भें दिहलस। उन दोनों की लड़ाई को यूं ही बीच में छोड़ अंकल जी सीधे उस बच्चे पर झपट करें जो पानी पी रहा था। तोहरा से पानी ठीक से नईखे पियल जात, हेतना बाड़का हो गैलीस। तभी वो छोटा अपना बीच-बचाव करते हुए बोला - पानी मैंने नही गिराया वो तो छोटू ने सु-सु💦 कर दिया है। आगे वहां की स्थिति क्या हुई होगी आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं।
वह तो भला हो की उसी समय TT महोदय टिकट चेक करने 2-4 सीआरपीएफ के जवान के साथ आ गए नही तो ये लड़ाई सिवान तक ही नहीं बल्कि दिल्ली तक चलती रहती।
उन सबकी लड़ाई और बच्चों की हरकतो ने हमारी यात्रा को असहज कर दिया था। तभी अचानक जो गुमसुम सा लड़का बैठा था उसके फोन की घंटी बजी। फोन पर भी वह गुस्से में बात करने लगा। शायद आस-पास के माहौल का असर था। मैंने उसके गुस्से की वजह जानने का प्रयास किया पता चला कि वह जिस ट्रैन से आ रहा था वह 08 घंटे विलम्ब से दानापुर पहुंचाई थी। और दानापुर से पटना आने के क्रम में पटना की बारिश ने उसे परेशान किया। यह सब बाते गुस्सा होने की वजह हो सकती है। हम भी मानते हैं लेकिन मुझे इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि वह इस के लिये गुस्सा नही था इस बात को लेकर गुस्सा था कि उसका हाल-चाल लेने के लिए किसी ने फोन नहीं किया।
अक्सर हम सोचते हैं कि हमेशा सामने से ही कॉल आये। कभी हम भी तो कॉल कर सकते हैं। जैसे ही उसका फोन कटा, सबसे पहले मैंने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाल पूछा - हैलो कैसे हैं आप ? मैं विश्वजीत कुमार और आपका नाम ? उसके लिए ट्रेन में शायद ऐसा पहली बार अनुभव हो रहा था फिर भी उसने हल्की मुस्कान बिखेरी और धीरे से कहा - मैं ठीक हूं और मेरा नाम रितिक दुबे हैं। मैंने कहां - Great👍 फिर मैंने कहा - मैं सिवान में उतरूंगा शायद आप भी सिवान में ही उत्तरेंगे ना!!!! वह बोला - नहीं गोपालगंज। मैंने कहा - यह ट्रैन गोपालगंज नहीं जाती है। आपको सिवान में हीं उतरना पड़ेगा फिर वहां से बस से गोपालगंज जा सकते हैं। फिर वो कहां - ओ... सॉरी। सिवान ही उतरेंगे, जाना गोपालगंज है। मैंने कहा - कोई नहीं। फिर उसके बाद हम लोगों की बातें तब तक चलती रही जब तक हम लोग सिवान स्टेशन ना पहुंच गए हो। इस दरम्यान मैं अपना ब्लॉग्स राइटिंग का कार्य नहीं कर सका। लेकिन मेरे दोस्तों की सूची में एक और नाम जुड़ गया ऋतिक दुबे।
सिवान स्टेशन पर रितिक जी के साथ एक सेल्फी ले लिए ताकि इस पल को हमेशा के लिए कैद कर सके। और दूसरी यह कि आपके साथ यहां पर साझा भी कर सके।
सिवान से बड़हरिया जाने के लिए ऑटो में बैठे ही थे की तभी एक भाइ ऑटो में बैठे और बोले- तनी-सा ओने घुसिकियेगा....। लग गया कि अब अपने घर आ गए हैं क्योंकि अपनी मातृभाषा से साक्षात्कार जो हो गया था।
Bhojpuri bhasa me ego alge mithas hola bhaiya , sahi ba nu
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