सोमवार, 29 अगस्त 2022

छाया कठपुतली नाटक की परंपरा पेपर - 04 कला का इतिहास एवं बिहार की कला परंपरा, जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी के मुख्य परीक्षा का नोट्स। Notes of Main Examination of District Art and Culture Officer.


          भारत में छाया कठपुतलियों से जुड़ी अलग-अलग शैलियों की समृद्ध विरासत रही है। छाया कठपुतलियों का आकार बिल्कुल सपाट होता है। इन्हें चमड़े से तैयार किया जाता है। छाया कठपुतलियों को परदे के पीछे से नियंत्रित किया जाता है और पीछे से तेज रोशनी मुहैया कराई जाती है। परदे और रोशनी के बीच संयोजन से दर्शकों के लिए रंगीन छायाएं तैयार होती हैं।


        छाया कठपुतलियों की परंपरा ओडिशा, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में छाया कठपुतली नाटक से जुड़ी छह शैलियां हैं। इन्हें स्थानीय तौर पर इस तरह जाना जाता है :- 

  1. महाराष्ट्र में चमाद्याचा बाहुल्य 
  2. आंध्र प्रदेश में थोलू बोम्मलाटा 
  3. कर्नाटक में तोगालु गोमबेयाट्टा  
  4. तमिलनाडु में टोलु बोम्मलाट्टम 
  5. केरल में तोलपव कुथु 
  6. ओडिशा में रावणछाया ।


          कर्नाटक में छाया नाटक को तोगालु गोमवेयाट्टा के नाम से जाना जाता है। इन कठपुतलियों का आकार इनकी सामाजिक हैसियत से अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए, राजा और धार्मिक किरदारों से जुड़ी कठपुतलियों का आकार बड़ा होता है, जबकि आम लोगों से जुड़े किरदारों का आकार छोटा होता है।


        आंध्र प्रदेश के इस छाया नाटक की परंपरा बेहद समृद्ध और मजबूत है। थोलू बोम्मलाटा शैली की कठपुतलियों का आकार बड़ा होता है और इसमें जरूरी सामग्री के जरिये कमर, कंधे, कुहनी और घुटने को भी दिखाया जाता है। कठपुतलियों को दोनों तरफ से रंगा जाता है। इस वजह से ये कठपुतलियां परदे पर रंगीन छाया के तौर पर नजर आती हैं। इसमें संबंधित क्षेत्र का शास्त्रीय संगीत भी पेश किया जाता है और कठपुतली नाटक का विषय रामायण, महाभारत और पुराणों पर आधारित होता है।


        ओडिशा की रावण छाया कठपुतली शैली वाले नाटक भी काफी दिलचस्प होते हैं। इस शैली में कठपुतलियों में किसी तरह का 'जोड़' नहीं होता है। इसे तैयार करने में काफी मेहनत लगती है। साथ ही, इसे बनाते समय प्रमुख नाटकीय भंगिमाओं को ध्यान  में रखा जाता है। इंसान और पशुओं से जुड़े किरदारों के अलावा, पेड़, पहाड़, रथ आदि की छवियों का भी इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, रावणछाया कठपुतलियों का आकार छोटा होता है। सबसे बड़ी कठपुतली दो फुट से ज्यादा की नहीं होती। इस शैली में बेहद संवेदनशील और काव्यात्मक अंदाज देखने को मिलता है।


       बेशक इन शैलियों की अपनी अलग-अलग पहचान, भाषाएं और बोलियां हैं, मगर उनकी विषय-वस्तु, सौंदर्य और नजरिया एक जैसा है। इन कठपुतली शैलियों से जुड़ी कहानियां मुख्य तौर पर रामायण और महाभारत, पुराण, लोक कथाओं आदि पर आधारित होती हैं। इन नाटकों में मनोरंजन के अलावा ग्रामीण समुदाय के लोगों के लिए महत्वपूर्ण संदेश भी होता है। नाटकों का प्रदर्शन गांव के किसी सार्वजनिक स्थान या मंदिर के प्रांगण में किया जाता है। कठपुतलियों के किरदार हास्य रस का भी अनुभव कराते हैं। छाया कठपुतली से जुड़ी सभी नाटक परंपराओं में नृत्य और लय भी मौजूद होता है। इन कठपुतलियों को परदे के पीछे से नियंत्रित किया जाता है। छाया पैदा करने के लिए परदे के पीछे से रोशनी भी मुहैया कराई जाती है। कठपुतलियों के नाटक और नृत्य हमारे त्योहारों का हिस्सा रहे हैं।


        ग्रामीण इलाकों में कभी-कभी बुरी चीज़ों को खत्म करने और इंद्र देवता को प्रसन्न करने के लिए ऐसे प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं। भारत में छाया कठपुतलियों की छह परंपराएं देश के अलग-अलग हिस्सों से हैं। देश के पश्चिम हिस्से महाराष्ट्र के अलावा दक्षिण भारतीय राज्यों कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में भी यह परंपरा मौजूद है। इसके अलावा देश के पूर्वी हिस्से ओडिशा में इसकी मौजूदगी है। आंध्र प्रदेश में किलेकायत/अरे कपू समुदाय के लोग इससे जुड़े हैं, जबकि कर्नाटक में किलेकायत/दायत समुदाय इस कला के लिए काम करते हैं। इसी तरह, केरल में नायर समुदाय, महाराष्ट्र में ठक्कर समुदाय के लोग इस कला से जुड़े हैं। ओडिशा में भाट समुदाय के लोग इसका प्रदर्शन करते हैं तमिलनाडु में किलेकायत समुदाय के लोग इससे जुड़े हैं।

एक सुंदर कविता

 एक सुंदर कविता, जिसके एक-एक शब्द को बार-बार पढ़ने को मन करता है।




ख़्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की,

आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।


अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे,

जिसकी जितनी जरूरत थी.. उसने उतना ही पहचाना मुझे।


जिन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है,

शामें कटती नहीं और साल गुजरते चले जा रहे हैं।


एक अजीब सी ‘दौड़' है ये जिन्दगी,

जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं और

हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।


बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर,

मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है।


मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका,

चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।


ऐसा नहीं कि मुझमें कोई ऐब नहीं है,

पर सच कहता हूँ मुझमें कोई फ़रेब नहीं है।


जल जाते हैं मेरे अंदाज से मेरे दुश्मन,

एक मुद्दत से मैंने न तो मोहब्बत बदली और न ही दोस्त बदले हैं।


एक घड़ी खरीदकर हाथ में क्या बाँध ली,

वक्त पीछे ही पड़ गया मेरे।


सोचा था घर बनाकर बैठूँगा सुकून से,

पर घर की जरूरतों ने मुसाफिर बना डाला मुझे।


जीवन की भागदौड़ में क्यों वक्त के साथ रंगत खो जाती है,

हँसती-खेलती जिन्दगी भी आम हो जाती है।


एक सबेरा था....

जब हँसकर उठते थे हम,

और आज कई बार बिना मुस्कुराए ही शाम हो जाती है।


कितने दूर निकल गए रिश्तों को निभाते-निभाते,

खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते-पाते।


लोग कहते हैं हम मुस्कुराते बहुत हैं,

और हम थक गए दर्द छुपाते-छुपाते।


खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,

लापरवाह हूँ ख़ुद के लिए मगर सबकी परवाह करता हूँ।


मालूम है कोई मोल नहीं है मेरा फिर भी,

कुछ अनमोल लोगों से रिश्ते रखता हूँ।

दामाद (Son in Law)



       रेनू की शादी हुयें, पाँच साल हो गयें थें। उसके पति थोड़ा कम बोलतें थे पर बड़े सुशील और संस्कारी थें, माता_पिता जैंसे सास, ससुर और एक छोटी सी ननद, और एक नन्ही सी परी, भरा-पूरा परिवार था, दिन खुशी से बित रहा था।


      आज रेनू बीतें दिनों को लेकर बैठी थी। कैंसे ?? उसके पिताजी नें बिना माँगे 30 लाख रूपयें अपने दामाद के नाम कर दियें, जिससे उसकी बेटी खुश रहे, कैसे उसके माता-पिता ने बड़ी धूमधाम से उसकी शादी की, बहुत ही आनंदमय तरीके से रेनू का विवाह हुआ था।


       खैर !!! बात ये नही थी। बात तो ये थी की रेनू के बड़े भाई ने अपने माता-पिता को घर से निकाल दिया था। क्योंकि पैसें तो उनके पास बचें नही थें, जितने थें उन्होने रेनू की शादी में लगा दियें थें। फिर भला बच्चें माँ बाप को क्यूँ रखने लगें। रेनू के माता-पिता एक मंदिर मे रूके थें।

      रेनू आज उनसे मिल के आयी थी और बड़ी उदास रहने लगी थी। आखिर लड़की थी, अपने माता-पिता के लिए कैसे दुख नही होता। कितने नाजों से पाला था, उसके पिताजी ने बिल्कुल अपनी गुड़िया बनाकर रखा था। आज वही माता-पिता मंदिर के किसी कोने में भूखें प्यासें पड़ें थे।


     रेनू अपने पति से बात करना चाहती थी। वो अपने माता-पिता को घर ले आए, पर वहाँ हिम्मत नही कर पा रही थी, क्योंकि  उनके पति कम बोलते थे, अधिकतर चुप रहते थे। जैंसे-तैंसे रात हुई और  रेनू के पति व पूरा परिवार खाने के टेबल पर बैठा था।

      रेनू की ऑखे सहमी थी, उसने डरते हुये अपने पति से कहा- सुनिये जी- "भाईया-भाभी ने मम्मी पापा को घर से निकाल दिया हैं। वो मंदिर में पड़े है, आप कहें तो उनको घर ले आऊ"।


     रेनू के पति ने कुछ नही कहा, और खाना खत्म कर के अपने कमरें में चला गया, सब लोग अभी तक खाना खा रहें थे, पर रेनू के मुख से एक निवाला भी नही उतरा था। उसे बस यही चिंता सता रही थी अब क्या होगा ? इन्होने भी कुछ नही कहा। रेनू रुहाँसी सी ऑख लिए सबको खाना परोस रही थी।


    .....थोड़ी देर बाद रेनू के पति कमरें से बाहर आए  और रेनू के हाथ में नोटो का बंडल देते हुये कहा, इससे मम्मी-डैडी के लिए एक घर खरीद दो और उनसे कहना, वो किसी बात की फ्रिक ना करें मैं हूं।

रेनू ने बात काटते हुये कहा - आपके पास इतने पैसे कहा से आए जी  ??

रेनू के पति ने कहा - ये तुम्हारे पापा के दिये गये ही पैसे हैं। मेरे नही थे इसलिए मैंने हाथ तक नही लगाए।


      वैसे भी उन्होने ये पैसे मुझे जबरदस्ती दिये थे, शायद उनको पता था एक दिन ऐसा आयेगा....


      रेनू के सास-ससुर अपने बेटे को गर्व भरी नजरों से देखने लगें और उनके बेटे ने भी उनसे पूछा-"अम्मा जी बाबूजी यही ठीक है ना"??


      उसके अम्मा बाबूजी ने कहा - बड़ा नेक ख्याल है, बेटा। हम तुम्हें बचपन से जानते हैं, "तुझे पता है, अगर बहू अपने माता-पिता को घर ले आयी, तो उनके माता-पिता शर्म से सर नही उठा पायेंगे की बेटी के घर में रह रहें हैं और जी नही पाएगें इसलिए तुमने अलग घर दिलाने का फैसला किया हैं और रही बात इस दहेज के पैसे की तो हमें कभी इसकी जरूरत नही पड़ी। क्योंकि तुमने कभी हमें किसी चीज की कमी होने नही दी, खुश रहो बेटा। ये कहकर रेनू और उसके पति को छोड़ सब सोने चले गयें

        रेनू के पति ने फिर कहा, अगर और तुम्हें पैसों की जरूरत हो तो मुझे  बताना, और अपने माता-पिता को बिल्कुल मत बताना घर खरीदने को पैसे कहाँ से आए, कुछ भी बहाना कर देना, वरना वो अपने को दिल ही दिल में कोसते रहेंगें।


     "चलो अच्छा" अब मैं सोने जा रहा हूँ। मुझे सुबह दफ्तर जाना हैं। रेनू का पति कमरें में चला गया और रेनू खुद को कोसने लगी, मन ही मन ना जाने उसने क्या-क्या सोच लिया था, मेरे पति ने दहेज के पैसें लिए है, क्या वो मदद नही करेंगे, करना ही पड़ेगा, वरना मैं भी उनके माँ-बाप की सेवा नही करूगी।


       रेनू सब समझ चुकी थी की उसके पति कम बोलते हैं, पर उससे ज्यादा कही समझतें हैं।


        रेनू उठी और अपने पति के पास गयी, माफी मांगने, उसने अपने पति से सब बता दिया। उसके पति ने कहा- कोई बात नही होता हैं। तुम्हारे जगह मैं भी होता तो यही सोचता। रेनू की खुशी का कोई ठिकाना नही था। एक तरफ उसके माँ-बाप की परेशानी दूर दूसरी तरफ, उसके पति ने माफ कर दिया।


      रेनू ने खुश और शरमाते हुये अपने पति से कहा- मैं आपको गले लगा लूं ?

उसके पति ने हंसते हुये कहा- "मुझे अपने कपड़े गंदे नही करने" और दोनो हंसने लगें 😊😊

शायद रेनू को अपने कम बोलने वालें पति का ज्यादा प्यार समझ आ गया.....

अच्छा बोलो !!! कैसे तुमसे प्यार न होता....



अच्छा बोलो !!! कैसे तुमसे प्यार न होता...


तुम इतनी भोली-भाली हो, 

कैसे मन का अभिसार न होता।

तुम जैसा कहाँ है कोई, 

कैसे तुमसे प्यार न होता !!!


सुरभी-सुगन्धे, पद्मिनी-गंधे, 

मधुर-मनोहर बोल तिहारे।

अमृत-जीवन, मधुरित-जीवन, 

बरसे-सुमन-अनमोल-तिहारे।


बरबस ही बाँधा करते हैं, 

नयनों के ये डोर तुम्हारे।

तुमसे है सुषमा यौवन की, 

तुमसे है भुजबंध ये सारे।


तेरे रहते मम-जीवन में, 

कैसे सुख का संचार न होता।

अरी केशिनी !!! रूप सलोनी !!!  

कैसे तुमसे प्यार न होता !!!


तुमसे हर्षित धरा-गगन है, 

तुमसे सारा वन-उपवन है।

तुमसे सजती प्रांत-रस्मियाँ, 

तुमसे मण्डित नील-गगन है।


तुमसे है पंछी का कलरव, 

तुमसे गुंजित भ्रमरी-रव है।

तुमसे है पर्वत की आभा, 

तुमसे नदियों में जल-रव है।


तेरे दर्शन में सुख-पाकर, 

कैसे प्रणय-साकार न होता।

अरी मोहिनी !!! रूप-शालिनी !!! 

कैसे तुमसे प्यार न होता !!!


तुम हो झरनों की सुर-लहरी, 

मानस-सागर-मंथन-गहरी।

मेरे मधु-मान-सरोवर में, 

केवल एक विम्ब तुम ठहरी।


सुघर साँचा देह तुम्हारा, 

जैसे कोई लवंग-वृक्ष हो।

अमिय-उजास रूप तुम्हारा, 

मेरे मन का सुन्दर पहरी।


तुम ना होती तो रचना में, 

नवरस का झंकार न होता।

अरे रूपिणी !!!  रूप-विजयिनी !!! 

कैसे तुमसे प्यार न होता !!!


साभार - सोशल मीडिया

शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

मोह कुर्सी का जाता नहीं है। Moh Kurshi ka Jata Nhi Hai, Mere Sath Yhi Mushkil Badi hai.





मोह कुर्सी का जाता नहीं है,

मोह कुर्सी का जाता नहीं है,

मेरे साथ यही मुश्किल बड़ी है।


मोह कुर्सी का जाता नहीं है,

मेरे साथ यही मुश्किल बड़ी है।


मोह.. कुर्सी.. का.. जाता.. नहीं.. है,

मेरे.. साथ.. यही.. मुश्किल.. बड़ी.. है।


बेवफा मुझको कहना ना लोगों,

बेवफा मुझको कहना ना लोगों


बेवफा मुझको कहना ना लोगों,

CM रहने की आदत पड़ी है।


बेवफा मुझको कहना ना लोगों,

CM रहने की आदत पड़ी है।


सबका मन रखना पड़ता है,

रिश्तो की भी लाचारी बड़ी है।


बेवफा मुझको कहना ना लोगों,

बेवफा मुझको कहना ना लोगों


बेवफा मुझको कहना ना लोगों,

CM रहने की आदत पड़ी है।


बेवफा मुझको कहना ना लोगों,

CM रहने की आदत पड़ी है।


पलटु राम ही अगर कह दिया है, 

तो कौन-सी आफत पड़ी है


बेवफा मुझको कहना ना लोगों,

बेवफा मुझको कहना ना लोगों


बेवफा मुझको कहना ना लोगों,

CM रहने की आदत पड़ी है।


बेवफा मुझको कहना ना लोगों,

CM रहने की आदत पड़ी है।


चौथेपन का है कुछ असर ये.....

बस थोड़ी सी गड़बड़ी है 


बेवफा मुझको कहना ना लोगों,

बेवफा मुझको कहना ना लोगों


बेवफा मुझको कहना ना लोगों,

CM रहने की आदत पड़ी है।


बेवफा... मुझको... कहना... ना... लोगों...,

CM... रहने... की... आदत... पड़ी... है।


मोह कुर्सी का जाता नहीं है,

मेरे साथ यही मुश्किल बड़ी है।


मोह... कुर्सी... का... जाता... नहीं... है,

मेरे... साथ... यही... मुश्किल... बड़ी... है।

गुरुवार, 25 अगस्त 2022

दूल्हा बिकाऊ है। The groom is for sale.


 दूल्हा बिकाऊ है।


दूल्हों का बाजार लगा है आके दाम लगाओ, 

करो खर्च खज़ाना इनपे अपने मन का पाओ। 

खर्च हुआ बचपन से अबतक खाता-बही पड़ी है, 

देखो उसको जोड़-जाड़ के ज़ेबा दाम लगाओ ।। 


लड़का कौवा जैसा तो क्या लड़की होगी गोरी, 

चाहे जितना जोर लगा लो रकम न होगी थोड़ी । 

मामूली ये बात नहीं है उसको जन्म दिया है, 

पाल-पोश के बड़ा किया है नहीं किया है चोरी ।। 


उम्मीद बाँध के छोटपन से उसको मन से पाला, 

यहाँ तक पहुँचाने में उसको निकल गया दीवाला। 

उसके लालन - पालन में न की है कोई कटौती, 

जो भी उसने हमसे माँगा कभी न उसको टाला ॥ 


लड़के वालों की देख दलीलें बेटी वाला घबराया, 

कितने प्रतिशत छूट मांग ले समझ नहीं वो पाया । 

बचपन से बेटी को उसने भी तो प्यार किया था, 

माथे पर से पोछ पसीना उसने खुद को समझाया। 


मझिया ने फिर आँख मारकर उसको किया इशारा, 

वहाँ से उठकर अलग ले गया करता क्या बेचारा । 

तुमने अबतक जितने देखे उनसे भले है मँहगी, 

पर देखो ये रिश्ता उन सबसे कितना है प्यारा ।। 


मजबूर पिता के आगे देखो कैसी ये मजबूरी थी, 

घर, लड़का सबकुछ अच्छा पर रकम कहाँ पूरी थी । 

बेचे अपना घर बार अगर वो बात तभी बन पाती, 

बहुत फ़िक्र थी उसको बेटी की पर सपनों से दूरी थी ।।


ओम प्रकाश पाण्डेय “सोहम"✍️

बुधवार, 24 अगस्त 2022

दूल्हा बिकाऊ है। The groom is for sale.



       दूल्हा बिकाऊ है नाटक आज के परिदृश्य को ध्यान में रखकर लिखी गई है जिसमें हम यह दिखाने का प्रयत्न करेंगे कि कैसे दहेज के नाम पर हम अपने बेटों को बाजार में बेच रहे हैं। यदि लड़की पक्ष वाले उसे एक वस्तु समझ कर घर ले जाने की चेष्टा करने लगे तब क्या होगा ??? कुछ इसी ताने-बाने पर केंद्रित है हमारा आज का नाटक तो चलिए शुरू करते हैं।


पहला दृश्य


      बाजार पूरी तरह से सजा हुआ है और कई सारे लोग छोटी-छोटी टोकड़ियों में सब्जी बेच रहे हैं। एक सब्जी वाली से दूसरी सब्जी वाली में प्रतियोगिता चल रही है। जैसे कोई कह रहा है आलू ₹5 किलो ₹5 किलो तो दूसरी कह रही है आलू ₹5 में सवा किलो ठीक उसी प्रकार कहीं दूर हमें कोबी के भाव पता चल रहे हैं तो कहीं हरी मिर्च सब्जी के साथ फ्री दी जा रही है। उसी परिदृश्य में पूरा बाजार सजा हुआ है और लोग खरीदारी कर रहे हैं तभी अचानक एक सूट-बूट पहना हुआ व्यक्ति वहां आ आता है और सभी को एकदम से धमकाते हुए कहता है -


सूट-बूट पहना व्यक्ति - आरे!!! ओ..... मुनियां, रानुवां, विनोदवा हटाओ आपन-आपन टोकरी सब यहां से.....


मुनियां - का हुआ साहेब ? काहे हमनी के इहां से हटा रहे हैं।


सूट-बूट पहना व्यक्ति - तोहनी के नईखे मालूम का !!! आज इहां पर एगो बाज़ार लागी।


रानुवां - कौन सा बाजार साहेब ?


सूट-बूट पहना व्यक्ति - दूल्हा बाजार!!! गरूम मार्केट!!!


दुसरा दृश्य

     दूल्हा बाजार पूरी तरह से सज चुका है सामने कुर्सी पर कुछ दूल्हे टाइप लड़के बैठे हैं। सभी के गले में एक तख्ती है जिसपर उनका पद एवं उनका मूल्य लिखा हुआ है। 

जैसे :- प्राइवेट मास्टर - 05 लाख, रेलवे ग्रुप डी - 08 लाख, सरकारी मास्टर - 10 लाख, इंजीनियर - 15 लाख, डॉक्टर - 20 लाख।

      

       सूट-बूट पहना व्यक्ति सभी लोगों को संबोधित करते हुए कहता है - इस मेले में पधारे हुए सभी भाइयों एवं उनकी प्यारी बहनों को मैं खर-पतवार सिंह सभी का इस दूल्हा बाजार जिसे अंग्रेजी में गरूम मार्केट कहते हैं में हार्दिक स्वागत🙏 करता हूं। जैसा कि आप सभी देख रहे हैं इस बाज़ार का सबसे मुख्य आकर्षण हमारे पास है तो चलिए हम इनका परिचय कराने से पूर्व एक कुछ पंक्तियां कहना चाहता हूं।


दूल्हों का बाजार लगा है आके दाम लगाओ, 

करो खर्च खज़ाना इनपे अपने मन का पाओ। 

खर्च हुआ बचपन से अबतक खाता-बही पड़ी है, 

देखो उसको जोड़-जाड़ के ज़ेबा दाम लगाओ ।। 


     इतना बोल कर वह सबसे पहले माइक उस प्राइवेट मास्टर के पास ले जाता है जो एकदम किनारे बैठा होता है।


      प्राइवेट मास्टर जिसकी कीमत 05 लाख रुपये हैं अपनी तख़्ती को ठीक करते हुए उठता है और बोलता है - नमस्कार🙏 मेरा नाम बहादुर महतो है और मैं प्राइवेट मास्टर हूं। इतना बोल वह अपना माइक अपने बगल में बैठे दूल्हे को दे देता है वह माइक लेकर बोलता है कि मैं रेलवे में जॉब करता हूं मेरा नाम खुराफात यादव हैं। इसके बाद माइक सरकारी मास्टर जी के पास आती हैं। वह माइक लेते ही सबसे पहले बोलते हैं आप सभी उपस्थित महात्माओं को चरण स्पर्श मेरा नाम सुरेश कुशवाहा है और मैं सरकारी शिक्षक हूँ। माइक जब इंजीनियर साहेब के पास जाती है तो सबसे पहले वो उसको लेकर दो-चार बार देखते हैं जैसे कि मानो कुछ उसमें कमी निकाल रहे हो। फिर थोड़ी धीमी आवाज में बोलते हैं हमें लग रहा है कि कुछ आवाज में गड़बड़ी है। थोड़ा इसका आवाज़ बढ़ाओ जी। फिर बोलते हैं मैं इंजीनियर हूं और मेरा नाम विनोद हैं जोकि आजकल सब कुछ देख रहा है। अंत में माइक डॉक्टर साहब के पास आती है वो अपना परिचय कुछ यूं देते हैं -

इस दुनिया मे पता नही चलता है, 
किसी का करैक्टर,

आज भी लोगो के लिए, 
दुसरे खुदा है डॉक्टर।

    नमस्कार, प्रणाम, सलाम मेरा नाम है डॉक्टर मशहूर खान।

       जब सभी का परिचय हो जाता है तो एक बार फिर वही सूट-बूट पहना व्यक्ति माइक लेता है और सभी को आमंत्रित करते हुए कहता है कि - आप सभी अपने-अपने आसान से उठिये और एक बार आकर इन दूल्हे को देखिए।

    लोगो के आने से पूर्व 02 लोग मंच पर आते है और सूट-बूट पहने व्यकित से माइक ले लेते हैं औऱ कहना शुरू करते हैं- हम हैं लड़के के पापा जी हमारे तरफ से प्रस्तुत है कुछ शायरी -

लड़का कौवा जैसा तो क्या लड़की होगी गोरी, 

चाहे जितना जोर लगा लो रकम न होगी थोड़ी । 

मामूली ये बात नहीं है इसको जन्म दिया है, 

पाल-पोश के बड़ा किया है नहीं किया है चोरी ।। 

      उसकी शायरी पूरी होती उससे पूर्व दूसरा व्यक्ति माइक लेता है और कहना शुरू करता है -


उम्मीद बाँध के छोटपन से इसको मन से पाला, 

यहाँ तक पहुँचाने में इसको निकल गया मेरा दीवाला। 

इसके लालन - पालन में न की है कोई कटौती, 

जो भी उसने हमसे माँगा कभी न उसको टाला ॥ 

       तब तक स्टेज पर कई सारे लोगों का आगमन होता है और वो सभी दूल्हे को देखने लगते हैं कोई उनकी कान को निहारता हैं तो कोई नाक को देखता है। कोई-कोई तो सर पर कितने बाल बच्चे उसकी गणना करता है। कुछ लोग तो बस उनके तख़्ती को पढ़कर और मूल्य को देखकर आगे निकल जाते है इस तरह पूरा दिन निकल जाता है और किसी को कोई खरीद नहीं पाता।


तीसरा दृश्य


      कल की तरह आज भी दूल्हा बाजार सज चुका है लेकिन कल की तरह आज भीड़ दिखाई नहीं दे रही है। हमें मंच पर वही कल वाले दूल्हे कुछ उदास दिखाई दे रहे है। तभी मंच पर एक औरत अपनी बच्ची को लेकर एक भारी-भरकम बैग के साथ आती है और क्रमवार सभी दूल्हों का मुआवना करती है। जैसे ही वह प्राइवेट मास्टर के पास जाती है तभी उसकी बेटी बोल उठती है मम्मी-मम्मी हमें इसे नही खरीदना। प्राइवेट नौकरी का कुछ भरोसा नहीं होता है कब बाहर निकाल दे। उसके बाद वह दूसरे दूल्हे की तरफ बढ़ी। उसे देखते ही नाक भौ सिकुड़ते हुए बोली - हम्म!!!  ग्रुप-D नहीं चलेगा। सरकारी मास्टर और इंजीनियर का तो बस तख़्ती देख कर के आगे निकल गई लेकिन उससे कदम डॉक्टर के पास जाकर रुक गए। एकदम से चहकते हुए बोली - मम्मी मम्मी सबसे ज्यादा अच्छा तो ये हैं। डॉक्टर का क्या है एकदम बिंदास जिन्दगी हैं। वैसे भी एक बार इन्वेस्टमेंट है फिर लाइफ टाइम रिटर्निंग इससे ज्यादा कहीं नहीं मिल सकता। अरे इसके तो बुढ़े हो जाने पर भी पैसे मिलते रहेंगे। हाथ से भले ही कुछ लिख ना पाए लेकिन दवा दुकान वाले उसपर भी दवा दे देंगे। अभी कल की ही तो बात है शर्मा जी एक कागज पर यह चेक कर रहे थे कि कलम सही से काम कर रहा है या नहीं और गलती से वही कागज मरीज लेकर चला गया और जानती हो दवा दुकान वालों ने यह सोच कर उसको दवा भी दे दिया कि डॉक्टर साहब भेजे हैं तो कोई दवा का ही नाम होगा। अरे!!! मम्मी इसके द्वारा लिखे दवा में भी कमीशन मिलेगा। इतना ज्यादा फायदा और किसी दूल्हे में नहीं। तुम अभी खरीद लो इसे क्या पता कल को इसके फायदे को देखकर इसका मुल्य और बढ़ जाये।


            उसके उपरांत वो सूट-बूट पहने व्यक्ति को बुलाती है और रुपये से भरा बैग देकर कहती है अब यह डॉक्टर मेरा हुआ और उसका हाथ पकड़ कर अपने घर को लेकर चलना शुरू ही करती है तभी मंच पर एक छोटी लड़की का आगमन होता हैं और वह दौड़कर उस डॉक्टर का दूसरा हाथ पकड़ लेती है क्योंकि पहला हाथ उस लड़की ने पकड़ रखा था जो कि उसे खरीद कर ले जा रही थी।

अरे!!! रुको । रुको । मेरे भैया को कहां लेकर जा रही हो ??


      मैंने इसे पूरे 20 लाख में खरीद लिया है अब यह मेरा हुआ हम इसे जहां चाहे वहां लेकर जाएं। फिर वह सामने दर्शकों की ओर मुड़कर प्रश्न पूछने के अंदाज में कहती है। अच्छा आप लोग बताइए यदि कोई बाजार से आप वस्तु खरीदते हैं तो क्या आप उसे अपने घर लेकर जाते हैं ना ?

दर्शक - हां

तो फिर इसे हम लेकर क्यों नहीं जा सकते हैं जबकि हमने इसे 20 लाख में खरीदा है।

      डॉक्टर जिसका एक हाथ उस लड़की ने पकड़ रखा था जिसे उसने खरीदा था और दूसरा हाथ उसकी छोटी बहन ने पकड़ रखा था। दोनों में खींचातानी होने लगती है। तभी डॉक्टर झटके से अपना हाथ दोनों से छुड़ाता है और एकदम गुस्से में बोलता है - 

चुप रहो तुम दोनों

        मैं कोई वस्तु नहीं जिसे कि तुम बेचो और तुम खरीद लो। आज से हम इस दूल्हा बाजार का विरोध करते हैं और दहेज प्रथा का भी विरोध करते हैं।

       उसकी बातें सुनकर पीछे खड़े चार दूल्हे भी खड़े हो जाते हैं और अपने गले से तख़्ती निकालते हुए जमीन पर पटकते हुए कहते हैं की हम सभी भी इस दहेज कुप्रथा का विरोध करते हैं और प्रण लेते हैं कि ना दहेज लेंगे ना कहे किसी को देने देंगे।

     तभी वह सूट-बूट पहना व्यक्ति जोर से ताली बजाता और हंसता हुआ सभी के सामने आता है बोलता है कि तुम पांचों के कहने से क्या होगा ? यह समाज तो निरंतर दहेज लेता और देता आ रहा है और देता रहेगा। तभी सरकारी मास्टर आगे बढ़ता और कहता है महोदय आप सही कह रहे हैं लेकिन यदि शुरुआत की जाए तो उसे पूरा भी किया जा सकता है हमारे समाज में सती प्रथा जैसी कुप्रथा थी और बाल विवाह भी। हमने उसे खत्म किया या नहीं। ठीक उसी प्रकार से यदि हम प्रयास करें तो इस दहेज कुप्रथा को भी समाप्त कर सकते हैं बस हमें जागरूक होने की जरूरत है। यहां पर उपस्थित हम सभी गणमान्य लोगों से निवेदन करते हैं कि कृपया अपनी जगह पर खड़े हो जाए और हमारे साथ एक प्रण लें।




आज हम सभी प्रण लेते हैं कि 
अपने बेटे और बेटियों की शादी में 
ना दहेज लेंगे ना दहेज देंगे 
और समाज में यदि कहीं ऐसा कार्य 
किया जा रहा है तो उसे रोकने का 
हर संभव प्रयास करेंगे।

हम यह भी प्रण लेते हैं कि 
यदि समाज में किसी के द्वारा 
दहेज लिया जा रहा है तो 
उसका सामाजिक बहिष्कार भी करेंगे।

धन्यवाद🙏


शनिवार, 20 अगस्त 2022

ग़ज़ल (Gazal)


तासीर हमने प्यार की चखी है पास से।

पाने को तुम्हें गुजरे हैं हम खुद की लाश से।।


करता रहा सफर मैं समंदर का उम्र भर।

आखिर में दम निकल ही गया मेरा प्यास से।।


रत्तीभर भी न बहका वो लबालब भरा रहा।

कुछ तो सीखिए जनाब!!! जाम के गिलास🍻 से।।


किस तरह दें हम खुद को सजा ये बताइये।

आती है गुनाहों की बू तेरे लिबास से।।


नहीं इत्तेफाक है मेरा करना यूँ शायरी।

मुमकिन हुआ "विश्वजीत" ये उसके प्रयास से।।


ग़ज़ल में प्रयुक्त कुछ शब्दों के अर्थ -


तासीर (स्त्रीलिंग) -

असर करना, प्रभाव, असर।

लिबास  (पुल्लिंग)-

पोशाक, वस्त्र।

गुरुवार, 18 अगस्त 2022

राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, नई दिल्ली में सुरक्षित राजा रवि वर्मा का चित्र "फलधारिणी" (महिला फल लिए हुए) कैनवस पर तैल रंग.

महिला फल लिए हुए राजा रवि वर्मा की पेंटिंग।


          29 अप्रैल, 1848 ई. को केरल के किलिमन्नूर नामक कस्बे में जन्में राजा रवि वर्मा भारत में तैल चित्रण के अगुआ कहलाए। हुसैन के पहले वे अपने न्यूड चित्रों को लेकर सबसे अधिक विवादास्पद कलाकार रहे। उनके सर्वाधिक 43 चित्र केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित 'श्री चित्रा आर्ट गैलरी' में सुरक्षित हैं, जिनमें से "शकुंतला का राजा दुष्यंत को कांटा निकालने के बहाने मुड़कर देखना" सर्वश्रेष्ठ चित्र है। 02 अक्टूबर,1906 ई. को उनका निधन हो गया।


        प्रसिद्ध कला आलोचक 'ज्योति जोशी' के शब्दों में - 

        यह सामान्य बात नहीं है कि राजा रवि वर्मा को भारत का रुबेन्स और एशिया का रेंब्रां कहा जाने लगा था। हालांकि रुबेन्स और रेंब्रां को भी उतनी ख्याति न मिली होगी जितनी कि राजा रवि वर्मा को। .....अमरता तो इस कलाकार की चिरसंगिनी बन गई।


राकेश गोस्वामी ✍️

विश्व छायांकन दिवस / विश्व फोटोग्राफी दिवस १९ अगस्त (World Photography Day) 19th August.



"एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है।" 


          यह कहावत एक तस्वीर/फोटो की महत्ता को अभिव्यक्त करती है एक फोटो में कई भाव छिपे होते हैं। एक फोटो में एक कहानी हो सकती है, जिसमें उत्सव का चरम, युद्ध की विभीषिका और करुणा की सरिता भी हो सकती है। 


• हर वर्ष 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस (World Photography Day) मनाया जाता है 

• यह दिन व्यक्ति के जीवन में कैमरे और फोटोग्राफी के महत्त्व को सम्मान देता है। दुनियाभर में फोटोग्राफी प्रिय व्यक्ति इस मोके पर तस्वीरें खींचने की कला का उत्सव मनाते हैं। 

• फोटोग्राफी कला का एक रूप है जो व्यक्तिगत होने के साथ ही विचारों को सार्वजनिक रूप से सरल तरीके से प्रदर्शित कर सकती है।


इतिहास 


● विश्व फोटोग्राफी दिवस की शुरुआत के संकेत वर्ष 1837 से देखे जा सकते हैं। फ्रांस में जोसेफ नाइसफोर नीप्स और लुई डागुएरे ने पहली बार फोटोग्राफिक प्रक्रिया देग्युरोटाइप का आविष्कार किया था। 

 

           देगयुरोटाइप एक प्रारंभिक फोटोग्राफिक प्रक्रिया हैं जिसमे बनाने वाली तस्वीर/छवि को आयोडीन के प्रति संवेदनशील चांदी की प्लेट पर बनाकर पारा वाष्प में विकसित किया गया था।


• फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज ने आधिकारिक तौर पर वर्ष 1839 में जनता के लिए देग्युरोटाइप के आविष्कार की घोषणा की थी। 

• माना जाता है कि 19 अगस्त, 1839 को फ्रांसीसी सरकार ने इस उपकरण के लिये पेटेंट खरीद लिया और इसे दुनिया के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया। बाद में, इस दिन को विश्व फोटोग्राफी दिवस (World Photography Day) के रूप में मनाया जाने लगा। 

• वर्ष 1861 में पहली स्थायी रंगीन फोटो खींची गई थी। तभी से फोटोग्राफी कला विकसित होती रही। 

• वर्ष 1957 में पहली डिजिटल फोटो बनाई गई थी।




"A Photograph is worth a thousand words."


        This saying expresses the importance of a picture/photo, many feelings are hidden in a photo. A photo can tell a story, the peak of celebration, the horror of war, and the flood of compassion.


 • World Photography Day is celebrated every year on 19th August.


 • The day honors the importance of camera and photography in one's life. Photography enthusiasts around the world celebrate the art of photography on this occasion.


 • Photography is a form of art that can express ideas publicly simply while being personal.


History


 ● The beginning of World Photography Day can be traced back to the year 1837. In France, Joseph Nicephore Niepce and Louis Daguerre invented the first photographic process, the daguerreotype.


    Daguerreotypes are an early photographic process in which the forming photograph/image was developed in mercury vapor by placing it on a silver plate sensitive to iodine.


 • The French Academy of Sciences officially announced the invention of the Daguerreotype to the public in the year 1839.


 • It is believed that on August 19, 1839, the French government bought the patent for this device and made it freely available to the world. Later, this day came to be celebrated as World Photography Day.


 • The first permanent color photograph was taken in the year 1861. Since then the art of photography kept on developing.


 • The first digital photo was made in the year 1957.


Reference :


https://mimirbook.com/hi/390d4ae2ecd


मंगलवार, 16 अगस्त 2022

What is B.F. ??? 🤔

I'm Your ........


एक नन्हें लड़के ने, इक नन्ही लड़की से कहा -

I'm your B.F. !!! 

(मैं तुम्हारा B.F. हूँ)


लड़की ने पूछा -

What is B.F. ?


लड़का हंसा और बोला...

यानी Best Friend. 

(बेहद अच्छा दोस्त।)


कुछ समय बीता, एक प्यारे नौजवान ने सुंदर लड़की से कहा -

I am your B.F. !!!


लड़की शर्माती सी उसके कंधे पर झुकी और आहिस्ता से पूछा -

What is B.F.   ?


लड़का बोला -

यानी पुरुष मित्र Boy Friend.


       कुछ वर्ष बीते उन्होंने शादी कर ली, उनको प्यारे प्यारे बच्चे हुए, पति मुस्कराया और अपनी पत्नी से बोला:

- I am your B.F. !!!


पत्नी मुस्कराकर पति से बोली:

What is B.F. ? 


अब  B.F. यानी क्या


पति पुनः मुस्कराया😊 और बच्चों की ओर निहारकर बोल पड़ा -

पके बच्चों का पिता Baby's father.


      ....समय गुज़रे दोनों बुड्ढे हो गए, वो साथ बैठे, डूबते सूरज की ओर देख रहे थे, आंगन में, बुज़र्ग ने फिर दोहराया-

मेरे प्रिय I am your B.F. !!!


बुज़र्ग महिला हंस पड़ी, अपने झुर्रियों वाले चहरे के साथ:

What is BF? अब BF यानी क्या ?


बुड्ढा ख़ुशी से हँसा और रहस्यमयी आवाज़ में बोल पड़ा -

Be Forever (सदा एक दूजे के लिये)


जब बुजुर्ग जिंदगी की अंतिम सांसे ले रहा था, तब भी बोला:

I am your B.F.


बुढ़िया गम से भरी बोली -

What is BF ??


आंखें बंद करते हुए बुजुर्ग बोला :

यानी Bye Forever! (अलविदा सदा के लिए)


      कुछ दिनों में बुजुर्ग महिला भी पंचतत्वों में विलीन हो गई, दीवार पर दोनों की एक साथ फोटो लगाई गई और एक पहचानी एहसास सुनाई दी।


B. F.

Besides Forever !

तुम्हारे पास हूँ सदा के लिये !!

😥🌹😥🌹😥

सोमवार, 15 अगस्त 2022

ग़ज़ल (Gazal)


 ग़ज़ल


कभी जब हमारी मुलाकात होगी।

नज़ाकत भरी  सुरमई  रात होगी।।


जुबां भी अगर काट दे ये ज़माना।

नज़र से नज़र की मगर बात होगी।।


कभी आसमां से उतर ये चाँद देखो।

तुम्हारी  मेरे चाँद  से  मात  होगी।।


तुम्हारी ये जुल्फें👰🏻‍♀ अगर खुल गईं तो।

गिरेगी कहीं बर्फ☃️ तो कही बरसात🌧️ होगी।।


चुराओ न मुझसे नज़र इस तरह से।

मुहब्बत💗 की बदनाम ये जात होगी।।


लिया चैन उसने मेरे अंश का भी।

ख़ुदा जानता है ये भी कोई ख़ुराफ़ात होगी।।


न उल्फत से आज़ाद रहने की सोचो।

हिकारत की वर्ना हवालात होगी।।


अगर वो हँसी लब पे ला दे हसीं तो।

समझ "विश्वजीत" की वो सौगात होगी।।


गजल में प्रयुक्त कुछ शब्दों के अर्थ -     


नज़ाकत (स्त्रीलिंग)

१. शारीरिक कोमलता, सुकुमारता।

२.अंग चालन की मृदुल एवं मनोहर चेष्टा


सुरमई (विशेषण)


१. सुरमे के रंग का, नीला, सफ़ेदी लिए हलका नीला या काला।

२. सुरमे के रंग में रँगा हुआ।


उलफत  

१. प्यार, स्नेह, परिचित।


हिक़ारत (स्त्रीलिंग)

१. घृणा, नफ़रत।

रविवार, 14 अगस्त 2022

कला प्रबंधन (Art Management) पेपर - 05 के अंतर्गत प्रबंधन में संकट (Crisis in Management) का जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी के मुख्य परीक्षा का नोट्स। Notes of Main Examination of District Art and Culture Officer.

 



प्रबंधन में संकट 
(Crisis in Management) 


प्रबन्ध में संकट का अर्थ 

(Meaning of Crisis in Management) 


       प्रबन्ध में संकट से अभिप्राय है दो पक्षों के मध्य विचारों में भिन्नता और असामंजस्य की स्थिति, अर्थात् जब परस्पर विरोधी विचारधारा के कारण आपस में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता, तब संघर्ष की स्थिति पैदा होती है। इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए, उसका समाधान खोजना प्रबन्ध का कार्य होता है, इसी को प्रबन्ध में संकट कहा जाता है। शैक्षिक प्रबन्ध में विभिन्न स्तरों पर कई संकटों का सामना करना पड़ता है, कई प्रकार के संघर्ष का सामना करना पड़ता है और कई प्रकार की समस्याओं से रू-ब -रू होना पड़ता है। प्रबन्ध संकट के समय निर्णय लेने और मानवीय क्रियाओं पर नियन्त्रण करने की विधि है जिससे पूर्व निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके। 


        मार्टन डेउश (Morton Deutch) महोदय का मत है कि- "संकट एक अतुलनीय प्रयास है। ऐसा प्रतीत होता है कि एक अनोखे लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। इससे जो उपलब्धि होगी वह दूसरों के आधार पर होगी। संकट की स्थिति में विजय वा पराजय कोई भी स्थिति हो सकती है किन्तु प्रयास यही किया जाता है कि पराजय न हो और विजय ही मिले।"

      इस स्थिति में समूहों के मध्य परस्पर प्रतियोगिता हो जाती है। यह प्रतियोगिता संघर्ष को जन्म देती है। इसके फलस्वरूप वैचारिक भिन्नता बढ़ती है और द्वेष भावना प्रारम्भ हो जाती है। इस द्वेष भावना से प्रबन्ध में संकट पैदा होता है। 


(Crisis is the Pursuit of incompatible or at least seemingly incompatible goals, such that gains to one side come out at the expense of the other.) 


     अतः कहा जा सकता है कि शैक्षिक संस्थाओं के अनेक कार्य होते हैं और उन्हें अनेक भूमिकाओं का निर्वहन करना होता है तथा विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों और शैक्षिक कार्यकर्त्ताओं से सम्बन्ध स्थापित करना पड़ता है। भूमिका निर्वाह में आवश्यक नहीं है कि हमेशा सामान्य सम्बन्ध बने रहें, इसमें अनेक संघर्षों का सामना भी करना होता है। संघर्ष से सम्बन्ध प्रभावित होते हैं, समन्वय प्रभावित होता है और फिर संस्था के कार्य प्रभावित होते हैं। कार्य प्रभावित और विवेकपूर्ण भूमिका नहीं निभा पाता है तो प्रबन्ध में संकट पैदा हो जाता है। प्रबन्धन को होने से समस्याएँ पैदा होती हैं। इन समस्याओं के समाधान में यदि प्रधानाध्यापक उचित इस संकट से मुक्ति का मार्ग ढूँढना होता है।


प्रबन्ध में संकट के कारण 

(Causes of Crisis in Management) 


       प्रबन्ध में संकट के कारणों के विषय में कुछ कहना अत्यन्त कठिन है क्योंकि परिस्थितियों में परिवर्तन होता रहता है इसलिए कारण भी बदलते रहते हैं। फिर भी कुछ कारणों के विषय में स्पष्टीकरण निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है - 

(1) नियम विरुद्ध निर्णय लेना - जब प्रधानाचार्य किसी कारणवश नियमों के प्रतिकृत कोई निर्णय ले लेता है तो शिक्षक, छात्र, अभिभावक आदि सम्बन्धित व्यक्ति इसके विरोध में हो जाते हैं। ये उसके विरुद्ध आन्दोलन शुरू कर देते हैं। इस प्रकार गलत निर्णय लेने से प्रबन्ध में संकट पैदा हो जाता है। 

(2) दलबन्दी - विद्यालय में जब कई समूह अलग-अलग संघों के रूप में स्थापित हो जाते हैं, तो विचारधारा में अन्तर आ जाता है। यह विचारधारा व्यक्तियों को अलग-अलग नेताओं के दलों में बाँट देती है जैसे- छात्र संघ, शिक्षक संघ, अभिभावक संघ, आदि। ये संघ रचनात्मक कम होते हैं, आन्दोलनकारी अधिक होते हैं। ये प्रबन्धन की कमजोरियों का पता लगाकर उसके विरुद्ध दल बना लेते हैं। ये दल प्रबन्ध में संकट पैदा करते हैं। 

(3) उद्देश्य और आवश्यकताओं में भिन्नता - विद्यालय के अन्तर्गत क्रियाशील दलों की आवश्यकताएँ और उनके उद्देश्यों में भिन्नता होती है। इसलिए ये एक - दूसरे के विरुद्ध विरोध की भावना से ग्रसित रहते हैं। फलस्वरूप ये विरोध के लिए भी विरोध करते रहते हैं जबकि आपसी प्रेम और समन्वय को ठुकरा देते हैं। यह उद्देश्य भिन्नता प्रबन्ध में संकट का कारण बन जाती है। 

(4) समन्वय का अभाव तथा परिस्थिति को सही रूप में न समझना - मानव की प्रकृति और प्रवृत्ति यह है कि वह स्वयं जैसा सोचता है वैसा ही वह देखना चाहता है। इसलिए वह परिस्थिति को समझने का प्रयास नहीं करता है। यही कारण है कि आपसी समन्वय नहीं हो पाता है और वह अच्छे कार्यों में एवं रचनात्मक कार्यों में सहयोग नहीं करता है। अतः समन्वय के अभाव के कारण प्रबन्ध में संकट पैदा होता है। 

(5) कर्त्तव्य की अपेक्षा अधिकारों की अधिक माँग करना - शिक्षा के क्षेत्र में जागरूकता बढ़ी है। इससे बालक को अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों का ज्ञान हुआ है। किन्तु जब यह ज्ञान केवल अधिकारों तक ही सीमित हो जाता है, अधिकार न मिलने पर आन्दोलन किये जाते हैं तब यह आन्दोलन ही प्रबन्ध के सम्मुख संकट पैदा करते हैं। 

(6) उपलब्ध स्रोतों का अभाव और प्रतियोगिता - विद्यालय में उपलब्ध स्रोतों से सबकी पूर्ति नहीं होती है। इसलिए इन्हें प्राप्त करने के लिए प्रतियोगिता प्रारम्भ हो जाती है। और इस प्रतियोगिता के कारण विद्यालय का एक घटक दूसरे घटक के कार्यों पर अधिकार  जमाने का प्रयास करता है। यह प्रयास ही आपसी द्वेष बढ़ाता है और प्रबन्ध के सम्मुख संकट पैदा कर देता है। 

(7) रचनात्मक कार्यों का अभाव अथवा अधिकता - कभी-कभी रचनात्मक कार्यों का अभाव संकट का कारण बनता है तो कभी रचनात्मक कार्यों की अधिकता। विद्यालयक के सभी घटक किसी एक बात से सहमत न होकर अलग-अलग मत रखते हैं और जो कार्य प्रारम्भ किया जाता है उसका विरोध करते हैं। यदि कोई कार्य प्रारम्भ न किया जाये तो दुसरे घटक विरोध करते हैं। इस प्रकार विद्यालय में किसी भी नवीन परिवर्तन का विरोध करते हैं और विद्यालय के घटक दल एक-दूसरे पर अधिकार जमाना चाहते हैं। इस कारण प्रबन्ध में  संकट पैदा हो जाता है। 


       अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि संस्था में प्रबन्ध में संकट के अनेक कारण है। इन्हें किसी सीमा में बाँधना कठिन है क्योंकि कब किसकी भावात्मक स्थिति,  अथवा मानसिक स्थिति समन्वय करने से इंकार कर दे और संकट पैदा कर दे। यह भी कहना है कि आकस्मिक रूप से कब, कौन, कैसी परिस्थिति पैदा कर दे और प्रबन्ध की कमजोरियों पर प्रहार कर संकट उत्पन्न कर दे। 

प्रबन्ध में संकट के प्रकार 

(Types of Crisis in Management) 


        प्रबन्ध में संकट को किसी एक अवस्था (Stage) या स्तर पर बाँधना कठिन है। संकट के अनेक कारण और परिस्थितियाँ हैं। कहीं दबाव (Stress) है तो कहीं तनाव (Tension) है, कहीं शत्रुता (Hostility) है तो कहीं दुष्चिन्ता (Enxiety) अथवा ईर्ष्या (Jealousy) है और ये सब अवस्थाएँ स्वतन्त्र नहीं हैं बल्कि एक-दूसरे से अन्तः सम्बन्धित है। अतः प्रबन्ध में संकट के विविध प्रकारों के रूप में इन अवस्थाओं (Stages) को निम्नलिखित रूप में व्यक्त  किया जा सकता है - 

(1) आन्तरिक संकट (Latent Crisis) - यह संकट संस्था के अन्दर गुप्त रूप से पनपता है। 

(2) अभिव्यक्ति संकट (Manifest Crisis) - यह संकट व्यक्त रूप में अर्थात् प्रकट रूप में सामने होता है। इसकी अभिव्यक्ति स्पष्ट कर दी जाती है। 

(3) अनुभव (प्रत्यक्षीकरण) संकट (Perceived Crisis) - जब संकट का अनुभव कर लिया जाता है, फिर उसका समाधान खोजा जाता है, वह अनुभव संकट कहलाता है। इसमें संकट का प्रत्यक्षीकरण हो जाता है। 

(4) अनुभूति संकट (Felt Crisis) - जब संकट की अनुभूति हो जाती है अर्थात् उसे महसूस कर लिया जाता है, तब उसका समाधान खोजा जाता है। 

(5) पारस्परिक संकट या अन्तः वैयक्तिक संकट (Inter - personal) - यह संकट व्यक्तियों में आपस में द्वेष, प्रतिस्पर्द्धा, ईर्ष्या आदि के कारण पनपता है। 

(6) संगठन के अन्तर्गत संकट (Intra - organization Crisis) - यह संकट संगठन के अन्तर्गत होता है जो व्यवस्था से सम्बन्धित होता है। 

(7) विद्यालय समुदाय का संकट (School - Community Crisis) - यह संकट विद्यालय और समुदाय के सम्बन्धों से सम्बन्धित होता है। समुदाय विद्यालय से और विद्यालय समुदाय से अपेक्षा रखता है। इनकी पूर्ति में कमी के कारण संकट पैदा होता है। 

(8) व्यक्तिगत-संस्थागत संकट (Individual - Institutional Crisis) - यह संकट व्यक्ति और संस्था के सम्बन्धों में कटूता के कारण उत्पन्न होता है। व्यक्ति की अपनी अपेक्षाएं होती हैं और संस्था के अपने नियम व शर्त होती हैं। अतः अपेक्षापूर्ति में कमी संकट को जन्म देती है। 

(9) सांस्कृतिक संकट (Cultural Crisis) - मार्च एवं साइमन (March and Simon) महोदय ने इस संकट को स्वीकार करते हुए कहा है- "जब निर्णय की प्रक्रिया का स्तर गिर जाता है तब परिस्थितियों में गलत ढंग से विद्यालयों में कार्य करने की प्रवृत्ति होने लगती है। इसके कारण विद्यालय में संकट उत्पन्न होते हैं।" निर्णय प्रक्रिया का स्तर गिरना सांस्कृतिक मूल्यों पर निर्भर करता है। सांस्कृतिक मूल्यों में गिरावट से शिक्षक और छात्रों की रचनात्मक प्रवृत्ति में कमी अर्थात् उनमें सकारात्मक सोच का अभाव और नकारात्मक सोच की अधिकता हो जाती है। इसलिए वे द्वेष, ईर्ष्या, हानि की प्रवृत्ति के कारण संकट पैदा कर देते हैं। सकारात्मक सोच के अभाव में शैक्षिक क्षेत्र में अनेक जटिल समस्याएँ पनप रही हैं और ये नये संकट पैदा कर रही है। 


        अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि प्रबन्ध में संकट विविध प्रकार से उपस्थित हो जाता है। यह संकट चाहे आन्तरिक है या अन्य किसी प्रकार से, सम्पूर्ण व्यवस्था को अव्यवस्थित कर देता है। इसे सांस्कृतिक मूल्यों को उच्चतर बनाकर और सकारात्मक सोच से सुगमता से दूर किया जा सकता है। 


प्रबन्ध में संकट को करने की विधियाँ 

(Methods to Remove Crisis in Management) 


          प्रबन्ध में संकट को दूर करने हेतु विद्वानों ने अनेक विधियाँ और प्रतिमान विकसित किये हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित रूप में व्यक्त किये जा सकते हैं 

(1) सौदाकारी अथवा समझौता विधि (Bargaining Method) - यह विधि मूलतः समझौते पर आधारित है। इसमें संकट समाधान के लिए मोल - भाव किया जाता है और कुछ आदान-प्रदान के आधार पर संकट को दूर किया जाता है। इसके अतिरिक्त विद्यालय के सभी संसाधनों, स्रोतों और सुविधाओं को केन्द्रीकृत कर दिया जाता है। इसमें सभी पक्ष इनका उपयोग करते हैं और इनका उपयोग करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि संस्था को कोई हानि न हो। इस विधि में समस्या समाधान के लिए सभी पक्ष अपनी आवश्यकताओं को कम करके भी समझौता कर सकते हैं। अतः इस विधि में दो पक्षों के मध्य सौदा करके अथवा समझौता करके संकट का समाधान खोजा जाता है। 

(2) अधिकारी तन्त्र (नौकरशाही) विधि (Bureaucratic Method) - यह विधि मुख्यतः अधिकारी वर्ग और कर्मचारी वर्ग के सम्बन्धों में होने वाले वैचारिक मतभेद से सम्बन्धित है। उच्च अधिकारी जब अपने अधीनस्थ कर्मचारी को अधिक नियन्त्रित करने का प्रयास करता है तब यह स्थिति अधीनस्थ को सहन नहीं होती है तो संकट की स्थिति पैदा हो जाती है। इसके अतिरिक्त जब उच्च अधिकारी अपने अधिकारों का दुरूपयोग करने लगता है, तब स्थिति असन्तुलित हो जाती है और संकट की स्थिति पैदा हो जाती है। अतः इसका समाधान तभी सम्भव है जब उच्च अधिकारी निष्पक्ष रूप में हस्तक्षेप करे और अत्यधिक कठोर साधना का प्रयोग न करें। समस्या की जटिलता बढ़ने से पूर्व ही अधिकारी को लिखित आदेशों को आधार मानकर व्यक्तिगत रूप से समस्या का समाधान करना चाहिए। 

(3) प्रणाली विश्लेषण विधि (System Analysis Method) - इस विधि के अन्तर्गत पहल संकट की स्थिति का पता लगाया जाता है, संकट के करण खोज जाते हैं और उसकी प्रकृति तथा आकस्मिक दशाओं का विश्लेषण किया जाता है और यह प्रयत्न किया जाता है। कि प्रधानाचार्य, शिक्षक और छात्रों में मधुर सम्बन्ध बने रहें और प्रत्येक प्रकार के संकट को दूर करने के प्रयास किया जाए। ये संकट चाहे समान्तर स्थिति के हो अथवा लम्बवत् स्थिति के इन्हें दूर करने के लिए एक क्रम बनाया जाता है ताकि कार्य संचालन निर्बाध गति से एक प्रवाह के रूप में होता रहे। अतः इस संकट को दूर करने हेतु एक प्रणाली के रूप में सेवा सुविधाओं की उपलब्धता, नियमों में एकरूपता और सामूहिक कार्यों का वितरण अत्यन्त सावधानीपूर्वक किया जाना आवश्यक है।  

(4) कैनीथ थामस विधि (Kenneth Thomas Method) - इस विधि का प्रतिपादन कैनीथ थामस महोदय ने किया। यह एक व्यावहारिक विधि है। इसमें प्रशासक उस संकट का भागीदार होता है तब वह इस विधि का उपयोग प्रत्यक्ष रूप में कर सकता है। प्रबन्ध में संकट को दूर करने के लिए व्यक्ति स्वेच्छा से तैयार होता है, सकारात्मक अभिवृत्तियों का विकास और परस्पर सहयोग की भावना विकसित की जाती है। इस प्रकार इसमें दो समूह बन जाते हैं। एक समूह वह जो स्वयं की आवश्यकताओं से पूर्ण है और दूसरा वह समूह जो अपनी आवश्यकताओं में कटौती कर सकता है। इस संकट को दूर करने के पाँच आधार थामस महोदय ने बताए हैं, ये पाँच आधार इस प्रकार हैं -

(1) ध्यान न देना (Neglect or Avoid) - इस संकट को दूर करने के लिए उच्च अधिकारी को छोटी - छोटी बातों पर ध्यान न देना अर्थात् किसी प्रकार की प्रतिक्रिया न करना। 

(2) समायोजित करना अथवा उन्हें प्रसन्न करना (Accommodate and Appeasement) - इस विधि का आधार स्वेच्छा है अर्थात् इस आधार पर व्यक्ति स्वेच्छा से के साथ कितना समायोजन कर सकता है अथवा उसे कितना प्रसन्न कर सकता है। अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए, भविष्य के लिए हितकारी मानते हुए और संकट को अधिक लम्बे समय तक उपयोगी न मानते हुए कुछ आदान - प्रदान करके भी संकट को दूर किया जा सकता है और स्वयं को समायोजित किया जा सकता है। 

(3) प्रतियोगिता एवं प्रभुत्व (Competition Domination) - यह एक ऐसी स्थिति है जब व्यक्ति अपनी मांग पूर्ण करने पर अड़ जाता है, किसी प्रकार का कोई सहयोग करने को तैयार नहीं होता है और किसी प्रकार भी सन्तुष्ट नहीं होता है। ऐसी स्थिति में प्रबन्धक प्रतियोगिता की भावना का विकास कर सकता है। प्रतियोगिता से उनमें हार - जीत की भावना का विकास होगा और आवश्यकतानुसार नियम व कानूनों का सहारा भी लिया जा सकता है। इस प्रकार प्रतियोगिता और प्रभुत्व दोनों तरीकों से संकट को दूर करने का प्रयास किया जा सकता है। 

(4) समन्वय अथवा एकीकरण (Collaboration or Integration) - इस स्थिति में प्रत्येक संकट का समाधान चाहता है। सभी सदस्य मिल-जुलकर कार्य करना चाहते हैं। और सभी का लक्ष्य जीतना होता है। यह स्थिति समन्वय की स्थिति होती है। अतः सभी समन्वित रूप में कार्य करके संकट का समाधान करते हैं। वास्तव में इसमें आपसी समझ बूझ से संकट को दूर किया जाता है। 

(5) भागीदारी अथवा समझौता (Sharing or Compromise) - इस स्थिति में भी दोनों पक्ष लाभ की स्थिति में होने से सहयोगी भावना रखते हैं और वे इसलिए प्रसन्न होते हैं यदि किसी को कुछ खोना पड़े तो वह और अधिक शक्तिशाली हो जाएगा। इसमें भी मोल-भाव अथवा समझौते की स्थिति होती है।


     अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि प्रबन्ध में संकट के विविध कारण हैं और उसके समाधान की विविध विधियाँ हैं। थोड़ी सी सावधानी से, सकारात्मक सोच से विविध उपायों को ध्यान में रखकर संकट को दूर किया जा सकता है और संस्था को निर्बाध गति से प्रवाहशील बनाया जा सकता है।


Reference :-


शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबंध (Educational Administration & Management) 

लेखक - डॉक्टर गजेंद्र सिंह तोमर

अध्याय - 18  प्रबंधन में संकट 

(Crisis in Management) 

पृष्ठ संख्या - 233-238.

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