नमस्कार 🙏आप सभी का हमारे Blog पर स्वागत है। आज आप सभी के बीच प्रस्तुत हैं “डायरी के पन्नों से” का आठवां (Eight) अंक। इस श्रृंखला को पढ़कर आप मेरे और मेरे कार्य क्षेत्र को और भी बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं। प्रत्येक रविवार को उसी आत्मकथा के छोटे-छोटे अंश को मैं आप सभी के बीच प्रस्तुत करूंगा और मुझे आपकी प्रतिक्रिया (Comment) का इंतजार रहेगा ताकि मैं इसे और बेहतर तरीके से आप सभी के बीच प्रस्तुत करता रहूं।
डायरी के पन्नों के अंतर्गत आप पिछले भाग में जाने थे कि कला महाविद्यालय में मेरे बहुत से दोस्त बने कुछ खास एवं कुछ बहुत खास हुए। एक ख़ास दोस्त की कहानी हमने डायरी के पन्नों के अंतर्गत पांचवे अंक में साझा किया था जिसका लिंक नीचे दिया गया इस पर क्लिक करके आप पढ़ सकते हैं।
अब आगे की कहानी.....
कला एवं शिल्प महाविद्यालय में सबसे पहले मेरी दोस्ती जिससे हुई उनका नाम अविनाश था। लेकिन अफसोस उसने अपनी पढ़ाई प्रथम वर्ष में ही छोड़कर फिर Diploma in Electronics Engineering (D.Ec.E) में नामांकन करा लिये। उनके कला की पढ़ाई अधूरी ही रह गई। लेकिन वर्तमान में वह एक अच्छी कंपनी में कार्यरत है और कला में भी पूर्ण दिलचस्पी रखते है। कभी-कभी उनके द्वारा बनाई गई टेढ़ी-मेढ़ी आकृतियां मेरे पास आती है संशोधन के लिए। उसी का एक नमूना यहाँ आप नीचे 👇👇👇देख सकते हैं।
जब मैं प्रथम वर्ष में था उस समय मेरी दोस्ती उसी से होती थी जो या तो मेरे स्वभाव का हो या मेरे घर यानी कि सिवान के आस-पास का हो या फिर मेरी जाति (Cast) का हो। इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए मेरी दोस्ती दिघवारा के अभिषेक से हुई लेकिन वह द्वितीय वर्ष में महाविद्यालय का त्याग कर दिया और
वर्तमान में कहां है ?
और क्या कर रहा है ?
इसके बारे में मेरे पास कोई जानकारी नहीं है। अभिषेक के द्वारा ही पुनः सोनपुर जिले के उदय कुमार दास से मेरी दोस्ती हुई लेकिन वह कॉलेज तो नहीं छोड़े परंतु कला महाविद्यालय में वह बस प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए आए थे ऐसा मुझे उस समय महसूस हुआ, शायद यह बातें सही भी थी। लेकिन मैं निश्चित तौर पर इसे नहीं कह सकता क्योंकि वह कला महाविद्यालय में बी० एफ० ए० (B.F.A.) के साथ-साथ दूसरे किसी विश्वविद्यालय से M.Sc. की पढ़ाई कर रहे थे वह भी गणित विषय से और उसके साथ-ही-साथ विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी भी करते थे। कभी रेलवे की परीक्षा, कभी BPSC की परीक्षा तो कभी अन्य प्रतियोगिता परीक्षा, इत्यादि।
कला एवं शिल्प महाविद्यालय में सबसे ज्यादा तेज उस विद्यार्थी को माना जाता था जिसका स्केचिंग बहुत ज्यादा अच्छा हो और इस मामले में, मैं हमेशा पीछे ही रहा और शायद आज भी हूं लेकिन काम चल जाता है। उदय भी कुछ इन्हीं में से एक थे। जिसका स्केचिंग बहुत ज्यादा अच्छा नहीं था। कला महाविद्यालय में मुझे नामांकन लिये और अध्ययन करते हुए 07 महीने से ऊपर हो गए थे और वह महीना दिसंबर का था और तारीख थी 25 दिसंबर। जब सभी छात्र एवं छात्राएं अपने-अपने घर जा रहे थे क्योंकि महाविद्यालय 25 दिसम्बर से 01 जनवरी तक बंद होने वाला था और सभी घर जाने से पूर्व नए साल की शुभकामनाएं एक दूसरे को बोल रहे थे, लेकिन मैं नहीं। क्योंकि मेरी दोस्ती या यूं कह लीजिए की पहचान बहुत ज्यादा बच्चों से नहीं हुई थी। इसके लिए मैंने एक नया तरीका ईजाद किया सभी से उसका मोबाइल नंबर लेने लगा क्योंकि मोबाइल नंबर मांगने में तो बहुत ज्यादा परेशानी नहीं थी और सभी से बातचीत भी हो जा रही थी। मैंने सब का नंबर अपने मोबाइल में एक खास तरीके से सेव (Save) करता ताकि उन्हें पहचान सकूं। जैसे:- रवि जी आर्ट, चंदन जी आर्ट आजाद जी आर्ट, इत्यादि। आर्ट का मतलब था कि वह आर्टिस्ट है और आर्ट कॉलेज में पढ़ता है। लगभग अपने क्लास के सभी विद्यार्थियों का नंबर मैंने अपने मोबाइल में सेव कर लिया और साथ-ही-साथ हैप्पी न्यू ईयर भी बोलता गया। घर पर 31 दिसंबर को रात में 11:50 का अलार्म सेट करने के बाद सोया और उठने के बाद 12 बजते ही जितना आर्ट कॉलेज के विद्यार्थियों का नंबर मैंने सेव किया था सभी को कॉल करना शुरू कर दिया कुछ तो जल्दी पहचान गए एवं कुछ देर से। उस समय मेरे पास वोडाफोन का सिम था और आज ही वही है, पर्सनल नंबर के तौर पर। क्योंकि जब मेरे पास मोबाइल आया तब से यही नंबर है और आजकल सोशल नेटवर्किंग साइट पर भी यही नंबर मैंने दे रखा है। उस समय कहीं भी किसी से भी बात करने पर मुख्य बैलेंस से पैसे कटते थे इसीलिए मैंने वोडाफोन से वोडाफोन मुक्त करवा लिया था और दूसरी कंपनी के लिए कम कॉल रेट।
एक जनवरी के दिन लगभग सभी को मैंने नए साल की शुभकामनाएं दी। शेखपुरा जिले के पचना गाँव का एक लड़का जिसका नाम भरत है उनसे बात करने के पश्चात मेरे मोबाइल से पैसा नहीं कटा। मैंने दोबारा फिर प्रयास किया लेकिन उस समय भी पैसा नहीं कटा। बाद में पता चला कि वह भी वोडाफोन का ही यूज़र है। इसी वजह से बात करने के पश्चात पैसे नहीं कट रहे थे। ऐसे भी जहां कोई चीज मुक्त मिले वहां भीड़ बढ़ जाती है। वही मेरे साथ भी हुआ। मोबाइल से बात करने के पश्चात पैसे नहीं कटने की वजह से उनसे लगातार बात होने लगी। जब आप किसी से बहुत ज्यादा बातचीत करने लगते हैं तो आप उसकी बहुत सारी आंतरिक बातें भी जानने लगते हैं। ऐसी ही बहुत सारी बातें मुझे भरत के बारे में जानने को मिली। जैसे कि वह भी मेरी ही जाति के है और कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना आने से पूर्व से ही चित्रों का निर्माण कर रहे है। उसने अपने घर पर भी सीमेंट से कई सारी आकृतियां बना चुके है। ऐसे मेरे लिए अच्छा ही था कि मैं उनसे बहुत कुछ सीख सकूँगा। क्योंकि बी०एफ०ए० प्रथम वर्ष में जब हम स्केचिंग सीख रहे थे उस समय वह पेंसिल शेडिंग एवं वाटर कलर से कार्य कर रहे थे। भरत से दोस्ती इतनी ज्यादा गहरी हो गई थी कि अभी वर्तमान में भी विद्यमान है। ऐसे बी०एफ०ए० कोर्स के दरम्यान दो से तीन बार भरत जी मेरे घर आए कभी किसी कलाकृति के निर्माण को लेकर तो कभी भ्रमण के उद्देश्य से। और वह हमेशा मुझे अपने गांव शेखपुरा पचना चलने की बराबर बात करते । लेकिन समय की कमी कहे या फिर कार्य की व्यवस्था के चलते मैं कभी उनके गांव नहीं आ सका। यहां तक कि जब उनकी शादी 2014 में संपन्न हुई उसमें भी मैं शेखपुरा नहीं आ सका जिसका मुझे अभी भी अफसोस है। 2015 में महाविद्यालय से विदाई के बाद वह बेंगलुरू चले गए। एक बहुत बड़े आर्ट-प्रोजेक्ट को पूरा करने। और वर्तमान में वह वही पर है। और मैं बनारस गया अपना PG (Post Graduation) पूरा करने। 2017 में जब मेरी पढ़ाई पूरी हुई, तब इसे समय का बदलाव कहे या फिर भरत जी की इच्छाओं की पूर्ति। "उनकी हमेशा से इच्छा रही कि मैं एक बार जरूर उनके घर चलूँ लेकिन 2010 से 2015 के दरम्यान जब तक हम कॉलेज में रहे एक बार भी मै उनके घर नहीं आ सका" लेकिन ऐसा हुआ कि मेरी पहली JOB शेखपुरा में ही मिली और वह मुझे यहां का अस्थाई बना दिया। लेकिन अफसोस यहीं है की भरत जी अभी यहाँ नहीं है। जब कभी वह अपने घर आते हैं तो उनसे मिलना होता है और कॉलेज की सारी पुरानी यादें पुनः जीवित हो जाती है।
एक यादगार सेल्फी भरत जी के साथ
2017 से 2020 तक लगभग 3 साल पूरे होने को हैं अभी तक हम शेखपुरा में ही कार्यरत हैं As a Assistant Professor.
Awesome Story Bro
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