शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

मेरी नई रचना, "कभी-कभी" From the Depths of the Heart.❣️

 



कभी-कभी


हो जाती है मेरी कोशिशें,
बेअसर कभी-कभी।
मिल जाते है दुश्मनों में,
रहबर कभी-कभी।

हो जाती हैं...

टुट जाता है दिल मेरा,
उनके संवादों सें।
इसीलिए लिख लेता हुँ गीत-गजलें, 
मगर कभी-कभी।

हो जाती है मेरी कोशिशें,
बेअसर कभी-कभी।
मिल जाते है दुश्मनो में,
रहबर कभी-कभी।

हो जाती हैं...

जब शाम हो सुहानी,
नजर हो उनकी बेमानी।
दिखती है वो भी,
सुरम्य कभी-कभी।

हो जाती है....

पता नही मोहब्बत में,
इतनी ताकत कहाँ से आती है।
विष भी हो जाता है,
बेअसर कभी-कभी।

हो जाती हैं........

इतना भी आसान नही है यहाँ,
कर लेना किसी पे भी यकिन। 
मोहब्बत के राहों में हो जाते है, बेवफा, अक्सर !!! 
दिलबर कभी-कभी।

हो जाती है मेरी कोशिशें,
बेअसर कभी-कभी।
मिल जाते है दुश्मनो में,
रहबर कभी-कभी।

हो जाती हैं...

मेरी परेशानी का आलम न पूछो,
हो जाता हूँ अक्सर।
दुनिया से बेखबर,
उनकी चाहत में कभी-कभी।

मिल जाते है दुश्मनो में,
रहबर कभी-कभी।
हो जाती है मेरी कोशिशे,
बेअसर कभी-कभी।

 -विश्वजीत कुमार✍️

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