कभी-कभी
हो जाती है मेरी कोशिशें,
बेअसर कभी-कभी।
मिल जाते है दुश्मनों में,
रहबर कभी-कभी।
हो जाती हैं...
टुट जाता है दिल मेरा,
उनके संवादों सें।
इसीलिए लिख लेता हुँ गीत-गजलें,
मगर कभी-कभी।
हो जाती है मेरी कोशिशें,
बेअसर कभी-कभी।
मिल जाते है दुश्मनो में,
रहबर कभी-कभी।
हो जाती हैं...
जब शाम हो सुहानी,
नजर हो उनकी बेमानी।
दिखती है वो भी,
सुरम्य कभी-कभी।
हो जाती है....
पता नही मोहब्बत में,
इतनी ताकत कहाँ से आती है।
विष भी हो जाता है,
बेअसर कभी-कभी।
हो जाती हैं........
इतना भी आसान नही है यहाँ,
कर लेना किसी पे भी यकिन।
मोहब्बत के राहों में हो जाते है, बेवफा, अक्सर !!!
दिलबर कभी-कभी।
हो जाती है मेरी कोशिशें,
बेअसर कभी-कभी।
मिल जाते है दुश्मनो में,
रहबर कभी-कभी।
हो जाती हैं...
मेरी परेशानी का आलम न पूछो,
हो जाता हूँ अक्सर।
दुनिया से बेखबर,
उनकी चाहत में कभी-कभी।
मिल जाते है दुश्मनो में,
रहबर कभी-कभी।
हो जाती है मेरी कोशिशे,
बेअसर कभी-कभी।
-विश्वजीत कुमार✍️
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें