मेरे द्वारा शुक्रवार यानी 09 अक्टूबर को एक रचना पोस्ट की गई थी जिसका शीर्षक था कभी-कभी। "From the Depths of the Heart."❣️ जिस का लिंक 👉CLICK HERE हैं। उस रचना को पढ़ने के बाद एवं मेरे व्यक्तिगत जीवन को समझने के उपरांत मेरे महाविद्यालय के H.O.D Sir श्री बालदेव प्रसाद ने उस कविता में सुझाव देते हुए मुझे कुछ पंक्तियो में बदलाव करने के लिए कहा था। उनका कहना था कि Labour Never Goes Invain (परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता) जैसे आपने लिखा है:- हो जाती है मेरी कोशिशे, बेअसर कभी-कभी। इस पंक्ति में कुछ ज्यादा नकारात्मकता दिख रही है। इसे आप यूं लिखिए:- ना होती है मेरी कोशिशे, बेअसर कभी-कभी। उनके इसी सुझाव पर मैंने इस कविता को पुनः लिखने का प्रयास किया है और आप सभी के साथ साझा कर रहा हूं। उम्मीद है यह रचना आपको पसंद आएगी।
ना होती है मेरी कोशिशे,
बेअसर कभी-कभी।
मिलते रहते हैं राहों में रहबर,
मगर कभी-कभी।
ना होती है मेरी कोशिशे.........
प्रेरणा प्राप्त होती है मुझे,
उनके कटाक्षों से।
लिख लेता हूं कुछ रचनाएं,
मगर कभी-कभी।
ना होती है मेरी.........
कार्यों की हो जब, लंबी फेहरिस्त।
लगने लगे जब, सब नामुमकिन।
ढूंढने लगती है नजरे उनकी,
भूल-चूक मेरी कभी-कभी।
ना होती है मेरी.........
इतना भी आसान नहीं होता है,
सभी से हंस कर बात कर लेना।
इस नामुमकिन कार्य को भी कर लेता हूं,
मुमकिन कभी-कभी।
ना होती है मेरी कोशिशे,
बेअसर कभी-कभी।
मिलते रहते हैं राहों में रहबर,
मगर कभी-कभी।
ना होती है मेरी कोशिश.........
बिश्वजीत कुमार
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