शीर्षक पढ़ कर आप डरिये नहीं, यहां हम आपको कोरोना से कैसे बचना है? और दुर्गा पूजा कैसे मनानी है? इसके बारे में नहीं बताएंगे। यह कार्य तो सरकार ने अपने जिम्मे ले रखा है। वह तो धन्य हो कि बिहार में चुनाव आ गया, नहीं तो क्या पता? कब तक हमें यह मीडिया वाले डराते रहते। वर्तमान में दुर्गा पूजा में भीड़ नहीं लगानी है। मेला नहीं लगेगा। लोकल ट्रेन नहीं चलेगी। क्योंकि कोरोना फैल जायेगा और बसों में जो ठूंस-ठूंस कर लोग यात्रा कर रहे हैं, चुनाव रैलियां हो रही है इससे कोरोना नहीं फैलेगा।
खैर हम अपने विषय पर लौटते हैं। कोरोना पर बात तो हो गई। अब "दुर्गा पूजा और मैं" पर चर्चा करते हैं। ऐसे भी जब शीर्षक में कोरोना है तो इतनी बातें जरूरी भी थी। दुर्गा पूजा से सभी को बहुत लगाव रहता है मेरा कुछ ज्यादा ही था। आप यूं समझ लीजिए कि मेरी कला की यात्रा यहीं से शुरू ही हुई थी। यदि आप प्रत्येक रविवार को मेरी रचना:- "डायरी के पन्नों से" पढ़ते होंगे तो आपको ज्ञात होगा। उसका लिंक यह नीचे दिया गया आप क्लिक करके पढ़ सकते हैं।
“डायरी के पन्नों से” का दशवां (Ten) अंक।
“डायरी के पन्नों से” का ग्यारहवां (Eleventh) अंक।
2020 की दुर्गा पूजा कहां मनाये? इस पर एक महीना पहले से ही विचार चल रहा था। तय यह हुआ कि पटना जाएंगे और राजवर्धन जी के साथ कुछ खरीदारी के उपरांत दशहरा घूमते हुए घर जाएंगे। राजवर्धन जी मेरे कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना के सहपाठी हैं, अभी वर्तमान में सीवान जिले में तक्षशिला में कार्यरत हैं। परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि पटना जाने का निर्णय त्यागना पड़ा और घर जाने का निर्णय हो गया। इसी पर बातें चल ही रही थी कि चुनाव की तिथि आ गई। जिसमें पता चला कि शेखपुरा में चुनाव 28/10/2020 को है और दशहरा का समापन 26/10/2020 को हो रहा है। यदि मैं 27 तारीख को घर से चलता हूं तो यहां आने में परेशानी हो सकती है। यही सब सोचकर मैंने घर जाने का भी निर्णय त्याग दिया। अब घर नहीं गए, पटना नहीं गए लेकिन दुर्गा पूजा को कैसे जाने देते। यही सोचकर शेखपुरा जाने का निर्णय हुआ।
24/10/2020 को शेखपुरा जाने के लिए 10:00 बजे तैयार हो गए। जैसे निकलने वाले थे कि फोन की घंटी बजी। वह कॉल मेरे एक दोस्त का था पता चला कि उसे कुछ पैसों की आवश्यकता है और तुरंत चाहिए। मैंने उससे कहा BHIM का QR (Quick Response) Code भेजो, मैं पैसे भेज देता हूं। उसने मुझे QR Code भेजा लेकिन उससे पैसा नहीं गया। फिर उसने UPI ID दी, वहीं भी फेल हो गया। तब उसने कहा कि उसका बैंक पहले विजया बैंक में था अब बैंक ऑफ बड़ौदा हो गया है। मैंने उसे सलाह दिया कि एक बार बैंक जाकर यू.पी.आई. आई.डी. सही करा लो। तब उसने मुझे बैंक खाता नंबर और आई.एफ.एस.सी. कोड दिया और कहा कि इससे प्रयास कीजिए। मुझे तो गुस्सा आया की एक तो मुझे लेट हो रहा है और यह बंदा है कि पीछा ही नहीं छोड़ रहा है। मैंने समय देखा 10:20 हो चुका था। मैंने अंतिम प्रयास किया लेकिन फिर असफल रहा। पैसा तो नहीं गया लेकिन मेरा 30 मिनट समय चला गया। अब मुझे लगा कि जब इतना समय बीत गया है तो क्यों ना पैसा भेज कर ही यहां से निकले। मैंने उससे कहा:- तुम्हारे पास कोई दूसरा बैंक खाता नहीं है, वह मुझे प्रदान करो उसमें मैं पैसा भेज देता हूं। तब उसने कहा:- एक खाता तो मुझसे संभल नहीं रहा दूसरा कैसे संभालेंगे। मैंने तुरंत फोन काटा और सबसे पहले मोबाइल की बैटरी चेक की 80%. मुझे लगा कि काम चल जाएगा और फटाफट निकले। तभी लगा कि एक Intro Video बना लेते हैं। जैसे ही वीडियो बनाना शुरू किया सामने से 10:30 वाली बस भी निकल गई। वह अपने नियत समय से 5 मिनट लेट थी। वीडियो बनाकर रोड पर पहुंचे तब तक 10:40 हो चुका था। उम्मीद थी कि 11:00 बजे तक कुछ न कुछ मिल जाएगा। 10:55 में एक हवा-हवाई आई। मैं उस में बैठ तो गया लेकिन उसकी स्पीड इतनी थी कि एक साइकिल वाला भी उसको पीछे कर दे रहा था। तभी मेरे महाविद्यालय में कार्य करने वाले एक व्यक्ति दिखे जो कि साइकिल से जा रहे थे उसने जब मुझे हवा-हवाई में देखा तो साइकिल की स्पीड कम की और बोले:- सर जी, घर जा रथिन ? (सर, घर जा रहे हैं क्या?) मैंने उनसे कहां:- यदि घर इससे जाएंगे तो कल भी नहीं पहुंच पाएंगे, फिलहाल बरबीघा पहुंच जाए यही बड़ी बात होगी। तब उसने हंसते हुए कहा:- ठीक हथीन आइथिन (ठीक है आइए) और वो साइकिल का पैडल मारते हुए मेरी आंखों से ओझल हो गए।
अभी कुछ दूर आगे बढ़े ही थे की एक और घटना घटा जो कि मुझे फोटोग्राफी का कार्य, विज्ञापन एजेंसी का कार्य और चित्रकला का कार्य को छोड़कर शिक्षक बनने की राह को चुनने का निर्णय लेना मेरे लिए कितना सही था। यह बताने के लिए काफी था। हुआ यूं कि अचानक से मेरे महाविद्यालय में कुछ दिन ही पढ़ा प्रशिक्षु दिखा। "कुछ दिन" शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उसने महाविद्यालय में नामांकन लिया और उधर उसका बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी लग गई लेकिन वह जितने दिन महाविद्यालय आया वर्ग की समाप्ति के बाद 10 से 20 मिनट मेरे पास जरूर आता। उसे मेरे बारे में जानने की बहुत उत्सुकता रहती। जैसे उसने मुझे हवा-हवाई में देखा तुरंत उसे रुकने का इशारा किया और सबसे पहले तो पैर छूकर प्रणाम किया। ऐसी स्थिति में मैं थोड़ा असहज हो जाता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि अभी मेरी उम्र किसी को पैर पर झुकने की नहीं है। मैं तो सभी को दिल में रखता हूं। कुछ देर वार्तालाप के बाद मैंने उससे जाने को कहा। उसकी इच्छा थी और बात करने की क्योंकि लगभग 2 साल बाद वह मुझसे मिला था। मैंने उससे कहा:- आप महाविद्यालय आइए, फिर वार्तालाप करेंगे। पुनः उसकी इच्छा थी पैर छूने की लेकिन मैंने ही पहले नमस्ते🙏 बोल दिया और हवा-हवाई को चलने का इशारा किया। मेरे सहयात्री मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे ऐसा दृश्य पहली बार देखा हो। मैं उनके चेहरे का भावो को पढ़ लिया। वह सभी सोच रहे थे कि इन दोनों की उम्र तो लगभग एक जैसी है जहां तक उसी की उम्र ज्यादा लग रही थी लेकिन यह दृश्य कैसा था? मैंने उन सभी के शंका का निवारण नहीं किया क्योंकि किसी ने मुझसे कुछ पूछा ही नहीं। भोजपुरी में एक कहावत है:-
गुरु गुड़े रह गइले औरी चेला चीनी हो गइले।
यानी गुरु जी जो थे वह, वहीं रह गए और उनके शिष्य बहुत आगे बढ़ गए। मेरी एक खासियत यह है कि मैं किसी को चेला (शिष्य) बनाता ही नहीं हूं सभी को गुरु ही बनाता हूं क्योंकि गुरु बनाने के उपरांत में उससे ताउम्र सीखता रहता हूं यदि मैं उसे चेला (शिष्य) बना लिया तो मैं उससे सीखना बंद कर दूंगा।
आखिरकार 10 मिनट के सफर को मैंने 30 मिनट में पूरा किया। जब हवा-हवाई वाले ने 10 की जगह 15 किराया मांगा तो मुझे आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि सुबह से मेरे साथ आश्चर्य ही हो रहा था। हवा-हवाई से जैसे उतरे शेखपुरा जाने वाली बस खुल रही थी। बस पूरी तरह से भर गई थी। सीट को तो छोड़ दीजिए खड़े होने की जगह नहीं थी। फिर भी बस का कंडक्टर लगातार मुझे बुलाये जा रहा था और उसके पीछे बस वाला मुझे अपने बस में बैठने के लिए कह रहा था, जो कि बिल्कुल खाली थी। तभी मेरी नजर सामने लगे पोस्टर पर गई। जिस पर लिखा था- 2 गज की दूरी, सुरक्षा जरूरी। मैंने इसका पालन करते हुए बस में विंडो सीट पर बैठ गया और बगल में कैमरा एवं टाइपोर्ट से भरा बैग रख दिया ताकि दूरी बनी रहे। धीरे-धीरे बस भरने लगी और सोशल-डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ने लगी। अक्सर हम लोग बस या ट्रेन में रुमाल या अपना बैग रखकर सीट रिजर्व कर लेते हैं, ताकि कोई उस पर नहीं बैठे। मैंने भी अपनी बगल की सीट पर बैग रखा हुआ था, उसको छोड़ कर जब पूरी सीट भर गई तभी एक सज्जन की नजर मेरे बैग पर पड़ी और उसने मेरे पास आकर कहा:- भैया यहां कोई बैठा है क्या? मैंने कहा:- नहीं। वह तो बस यही सुनना चाह रहे थे। मैंने अपना बैग अपनी गोद में लिया और वह अपना आसान वही जमा लिये। 30 मिनट से ऊपर हो गए थे मुझे बस में बैठे हुए लेकिन बस अभी खुली नहीं थी। बस में लोग ऐसे खड़े थे कि यदि कोरोना बीच में आ जाए तो दबकर वही मर जाए। मैंने खिड़की के पास सीट ले रखा था, इसलिए मुझे राहत थी। खैर बस खुली और वह मुझे गिरिहिंदा चौक उतार दी। ये बस वाला भी मुझ से 15 की जगह 30 किराया लिया। गनीमत यह थी कि उसने 30 का टिकट भी दिया। वह टिकट मैं आप सभी के साथ साझा करने के लिए रखा था, लेकिन कहा जाता है ना की भ्रष्टाचार के कुछ सबूत बचता नहीं है। मेरे साथ भी यही हुआ जब यात्रा समाप्ति के बाद शर्ट को धोने के लिए दिए तो टिकट भी उसमें धुल गया। लेकिन मैंने भी हार नहीं मानी और उस टिकट को सुखाया एवं आयरन करने के उपरांत आप सभी के बीच साझा कर रहा हूं।
गिरिहिंदा चौक के पास ही दुर्गा माता का पंडाल बना हुआ था। उनका दर्शन कर, फिर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ चले यानी गिरिहिंदा पहाड़ी की ओर। कुल 292 सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर पहुंचे। लगभग एक-दो घंटा वहीं पर फोटो एवं वीडियो रिकॉर्ड किए। एक बेहतरीन VLog का निर्माण हो गया, जिसका लिंक नीचे 👇👇है।
#शेखपुरा गिरिहिंडा पहाड़ जिस पर महाभारत काल में भीम की पत्नी राक्षसी हिडिम्भा का निवास स्थान था VLog
गिरिहिंदा पहाड़ी पर चढ़ने के लिए दो रास्ते हैं एक सीढ़ी से और एक सड़क से। पहाड़ी के ऊपर जाने का कार्य तो मैंने सीढ़ी से किया लेकिन उतरने का कार्य सड़क से। जैसे ही पहाड़ से नीचे उतरे मुझे लगा कि कहीं में सिंधु घाटी की सभ्यता में तो नहीं आ गया हूं क्योंकि वहां पर अभी भी वैसे ही मिट्टी के घर दिख रहे थे। शेखपुरा में ऐसा दृश्य मैंने पहले कभी नहीं देखा था। आगे बढ़ता गया ताकि कहीं कोई रास्ता दिख जाये लेकिन रास्ता दिख नहीं रहा था। कहां भी गया है कि जब रास्ता नहीं दिखे तब टॉर्च जला लेना चाहिए। मैंने भी ऐसे ही एक टॉर्च की खोज की, मेरे प्रशिक्षु के रूप में। जिसका घर शेखपुरा में ही है, मैंने उसे कॉल किया, उसने मुझे राह दिखाई और जैसे ही उसे मालूम चला कि मैं शेखपुरा में आया हूं वह मुझसे मिलने की जिद्द करने लगा। मैंने उससे उसका लोकेशन मांगा और उसी का अनुसरण करते हुए पुनः गिरिहिंदा देवी स्थान के पास आ गये। मेरे उस प्रशिक्षु से मेरी व्यक्तिगत बात भी होती है और वह अपनी समस्याओं को मेरे समक्ष खुलकर रखता है। इसलिए मैंने भी अपनी समस्याओं का समाधान उसी से प्राप्त किया। कुछ दिनों पूर्व उसकी जिंदगी में ना भूलने वाले कष्ट आ गए थे मैंने माता रानी से विनती की ऐसे कष्ट या ऐसी परेशानियां पुनः कभी ना आने पाए। हां हम मानते हैं की परेशानियों से आदमी सीखता है, लेकिन अंदर से टूट भी जाता है। उस समय तो और भी ज्यादा जब कोई ढाढस बढ़ाने वाला ना हो। माता रानी से आशीर्वाद ले मैंने कुछ मिठाईयां ली ताकि उसकी जिंदगी में हमेशा मिठास बनी रहे, कड़वाहट कभी ना आने पाए। उससे मुलाकात गिरिहिंदा चौक पर ही हो गई। वह तो बस मेरे आने का इंतजार ही कर रहा था। उसके द्वारा की गई सेवा-सत्कार पुनः मुझे शिक्षक बनने पर गौरवान्वित कर रही थी। वहां से मैं विदा लेकर सीधे चांदनी चौक गया। तब-तक मोबाइल की बैटरी ने साथ छोड़ दिया। अफसोस यह रहा कि पावर बैंक लेकर चले ही नहीं थे। फिर वहां से पुनः हम प्रस्थान कर गए। बस में बैठे-बैठे आज दिन भर के कार्यों की विवेचना करने लगे........
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