बची है महज राख सब जल चुका है।
वजूद अब मिरा ख़ाक में मिल चुका है।।
झमेले में दुनिया के हमको न डालो।
जुनूँ अब कहाँ जिस्म भी ढल चुका है।।
जो बंजर ज़मीन-ए-जिगर अब है साक़ी।
कभी इश्क़ का गुल यहाँ खिल चुका है।।
है जिसको भी पहरेज शौक़-ए-जुनूँ से।
वो आदम हर इक राह पे चल चुका है।।
इलाज़ हो मेरा कैसे मुमकिन।
ज़ेहन में ही नासूर जब पल चुका है।।
साभार - सोशल मीडिया
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