शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

माँ



सिल के हमारी सारी ख़ुशियाँ रखती है,

माँ रंग बिरंगे धागों की गट्टियाँ रखती है।


यूँ सहेज कर के अपनी इन हथेलियों से,

बड़े क़रीने से हमारी वर्दियाँ रखती है।


उसके दिए सिक्कों से ख़रीदा है पुरा बाज़ार,

वो पल्लू की गाँठ में अशर्फ़ियाँ रखती है।


मेरी ग़लतीयो पर कभी-कभी,

अपने चेहरे पर झूठी तल्खियाँ रखती है।


जो न मिलती किसी दवाखाने में,

माँ उन ज़ख़्मों की भी पट्टियाँ रखती है।



साभार - सोशल मीडिया

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