मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

अंग गरिमा

अंग देश रो हृदय छै चंपा, 

अंगिका छै प्राण।

गंगा, कोशी, चंपा गावै,

हिनको कथा महान...


अंग देश रो हृदय छै चंपा, 

अंगिका छै प्राण।


दैत्यराज बलि राजा रो, 

जेठो बेटा अंग। 

महादेव रो क्रोध सऽ, 

ऐं ठऽ मदनो बनै अनंग।


श्रृंगी शांता रोमपाद रो महिमा अपरंपार,

पुत्रेष्ठि जग रो प्रभाव सऽ राम धरै अवतार।

दानवीर राधेय कर्ण पर चंपा करे गुमान......


गिरिवरनाथ शंखकूट पर जहनु अजगबधारी 

विक्रमशिला तंत्र विद्या रो छै महिमा बलिहारी 

सती बिहुला चांदो सौदागर अंग देश रो शान 

रेशमनगरी नाम सऽ जग मऽ छै हिनको पहचान 

बुद्ध विशाखा आरो मंजूषा, खूब बढ़ावै मान....... 


अष्टावक्र कहोल दीपंकर छै हिनको संतान 

मुगदल जहनु चंदनवाला कर्ण रो चंडी थान 

तिलकामांझी मातृभूमि लऽ झूली गेलै फांसी 

सरहदपाद कजंगला में ही अंगदेश रो वासी 

राहुल सांस्कृत्ययान देलकै अंगिका कऽ नाम.......


मंदार मुकुटधारी ई भूमि, 

छै गंगा हियहार 

पुरबैया हलपै छै आरू पछिया बहै बयार 

कतरनी रो खुशबू आरो छै जरदालू आम

 

जैन धर्म रो पंचकल्याणक,

 चंपापुरी धाम।

वासुपुज्य महावीर सुधर्मा, 

आलोक करै परनाम....🙏🏻


आलोक कुमार ✍🏻 

भारतीय रेल की जनरल बोगी...

 

भारतीय रेल की जनरल बोगी!!!

पता नहीं, आपने भोगी कि नहीं भोगी।


एक बार हम भी कर रहे थे यात्रा,

प्लेटफार्म पर देखकर सवारियों की मात्रा।

हमारे पसीने छूटने लगे,

हम झोला उठाकर घर की ओर फूटने लगे।


तभी एक कुली आया,

मुस्कुरा कर बोला - 'अन्दर जाओगे ?'

हमने कहा - 'तुम पहुँचाओगे !'

वो बोला - बड़े-बड़े पार्सल पहुँचाए हैं आपको भी पहुँचा दूंगा,

मगर रुपये पूरे पचास लूँगा।

हमने कहा - पचास रुपैया ?

वो बोला - हाँ भैया!!!

दो रुपये आपके बाकी सामान के...


हमने कहा - सामान नहीं है, अकेले हम हैं

वो बोला - बाबूजी, आप किस सामान से कम हैं!!!

भीड़ देख रहे हैं, कंधे पर उठाना पड़ेगा,

धक्का देकर अन्दर पहुँचाना पड़ेगा।


वैसे तो हमारे लिए बाएँ हाथ का खेल है,

मगर आपके लिए दाँया हाथ भी लगाना पड़ेगा।

मंजूर हो तो बताओ...

हमने कहा - देखा जायेगा, 

तुम उठाओ।


कुली ने बजरंगबली का नारा लगाया,

और पूरी ताकत लगाकर हमें जैसे ही उठाया

कि खुद बैठ गया।

दूसरी बार कोशिश की तो लेट गया

बोला - बाबूजी पचास रुपये तो कम हैं

हमें क्या मालूम था कि आप आदमी नहीं, बम हैं

भगवान ही आपको उठा सकता है

हम क्या खाक उठाएंगे

आपको उठाते-उठाते खुद दुनिया से उठ जायेंगे !


तभी गाड़ी ने सीटी दे दी

हम झोला उठाकर भागे

बड़ी मुश्किल से डिब्बे के अन्दर घुस पाए

डिब्बे के अन्दर का दृश्य घमासान था

पूरा डिब्बा अपने आप में हल्दी घाटी का मैदान था

लोग लेटे थे, बैठे थे, खड़े थे

जिनको कहीं जगह नहीं मिली, वो बर्थ के नीचे पड़े थे।


हमने गंजे यात्री से कहा - भाई साहब

थोडी सी जगह हमारे लिए भी बनाइये

वो सिर झुका के बोला - आइये हमारी खोपड़ी पे बैठ जाइये

आप ही के लिए साफ़ की हैं।

केवल दो रूपए देना, लेकिन फिसल जाओ तो हमसे मत कहना।


तभी एक भरा हुआ बोरा खिड़की के रास्ते चढ़ा 

आगे बढा और गंजे के सिर पर गिर पड़ा।

गंजा चिल्लाया - किसका बोरा है ?

बोरा फौरन खडा हो गया

और उसमें से एक लड़का निकल कर बोला

बोरा नहीं है बोरे के भीतर बारह साल का छोरा है।

अन्दर आने का यही एक तरीका है

हमने आपने माँ-बाप से सीखा है

आप तो एक बोरे में ही घबरा रहे हैं

जरा ठहर तो जाओ अभी गददे में लिपट कर

हमारे बाप जी अन्दर आ रहे हैं

उनको आप कैसे समझायेंगे

हम तो खड़े भी हैं वो तो आपकी गोद में ही लेट जाएँगे


एक अखंड सोऊ चादर ओढ़ कर सो रहा था 

एकदम कुम्भकरण का बाप हो रहा था 

हमने जैसे ही उसे हिलाया 

उसकी बगल वाला चिल्लाया - 

ख़बरदार हाथ मत लगाना वरना पछताओगे 

हत्या के जुर्म में अन्दर हो जाओगे 

हमने पुछा- भाई साहब क्या लफड़ा है ? 

वो बोला - बेचारा आठ घंटे से एक टाँग पर खड़ा 

और खड़े खड़े इस हालत मैं पहुँच गया कि अब पड़ा है 

आपके हाथ लगते ही ऊपर पहुँच जायेगा 

इस भीड़ में ज़मानत करने क्या तुम्हारा बाप आयेगा ?


एक नौजवान खिड़की से अन्दर आने लगा

तो पूरे डिब्बा मिल कर उसे बाहर धकियाने लगा

नौजवान बोला - भाइयों, भाइयों

सिर्फ खड़े रहने की जगह चाहिए

एक अन्दर वाला बोला - क्या ?

खड़े रहने की जगह चाहिए तो प्लेटफोर्म पर खड़े हो जाइये

जिंदगी भर खड़े रहिये कोई हटाये तो कहिये

जिसे देखो घुसा चला आ रहा है

रेल का डिब्बा साला जेल हुआ जा रहा है !

इतना सुनते ही एक अपराधी चिल्लाया -

रेल को जेल मत कहो मेरी आत्मा रोती है

यार जेल के अन्दर कम से कम

चलने-फिरने की जगह तो होती है।


एक सज्जन फर्श पर बैठे हुए थे आँखें मूँदे 

उनके सर पर अचानक गिरीं पानी की गरम-गरम बूँदें 

तो वे सर उठा कर चिल्लाये - कौन है, कौन है 

साला पानी गिरा कर मौन है 

दिखता नहीं नीचे तुम्हारा बाप बैठा है ! 

क्षमा करना बड़े भाई पानी नहीं है 

हमारा छः महीने का बच्चा लेटा है कृपया माफ़ कर दीजिये 

और अपना मुँह भी नीचे कर लीजिये 

वरना बच्चे का क्या भरोसा ! 

क्या मालूम अगली बार उसने आपको क्या परोसा !!


अचानक डिब्बे में बड़ी जोर का हल्ला हुआ 

एक सज्जन दहाड़ मार कर चिल्लाये - 

पकड़ो-पकड़ो जाने न पाए 

हमने पुछा क्या हुआ, क्या हुआ ? 

वे बोले - हाय-हाय, मेरा बटुआ किसी ने भीड़ में मार दिया 

पूरे तीन सौ रुपये से उतार दिया टिकट भी उसी में था ! 

कोई बोला - रहने दो यार भूमिका मत बनाओ 

टिकट न लिया हो तो हाथ मिलाओ 

हमने भी नहीं लिया है गर आप इस तरह चिल्लायेंगे 

तो आपके साथ क्या हम नहीं पकड़ लिए जायेंगे?

वे सज्जन रोकर बोले - नहीं भाई साहब 

मैं झूठ नहीं बोलता मैं एक टीचर हूँ

कोई बोला - तभी तो झूठ है टीचर के पास और बटुआ ? 

इससे अच्छा मजाक इतिहास मैं आज तक नहीं हुआ ! 

टीचर बोला - कैसा इतिहास मेरा विषय तो भूगोल है 

तभी एक विद्यार्थी चिल्लाया - बेटा इसलिए तुम्हारा बटुआ गोल है !


बाहर से आवाज आई - 'गरम समोसे वाला' 

अन्दर से फ़ौरन बोले एक लाला - दो हमको भी देना भाई 

सुनते ही ललाइन ने डाँट लगायी - बड़े चटोरे हो ! 

क्या पाँच साल के छोरे हो ? 

इतनी गर्मी में खाओगे ? 

फिर पानी को तो नहीं चिल्लाओगे ? 

अभी मुँह में आ रहा है समोसे खाते ही आँखों में आ जायेगा 

इस भीड़ में पानी क्या रेल मंत्री दे जायेगा ?


तभी डिब्बे में हुआ हल्का उजाला 

किसी ने जुमला उछाला ये किसने बीड़ी जलाई है ? 

कोई बोला - बीड़ी नहीं है स्वागत करो 

डिब्बे में पहली बार बिजली आई है 

दूसरा बोला - पंखे कहाँ हैं ? 

उत्तर मिला - जहाँ नहीं होने चाहिए वहाँ हैं 

पंखों पर आपको क्या आपत्ति है ? 

जानते नहीं रेल हमारी राष्ट्रीय संपत्ति है 

कोई राष्ट्रीय चोर हमें घिस्सा दे गया है 

संपत्ति में से अपना हिस्सा ले गया है 

आपको लेना हो आप भी ले जाओ 

मगर जेब में जो बल्ब रख लिए हैं 

उनमें से एकाध तो हमको दे जाओ !


अचानक डिब्बे में एक विस्फोट हुआ 

हालाँकि यह बम नहीं था 

मगर किसी बम से कम भी नहीं था 

यह हमारा पेट था उसका हमारे लिए संकेत था 

कि जाओ बहुत भारी हो रहे हो हलके हो जाओ 

हमने सोचा डिब्बे की भीड़ को देखते हुए 

बाथरूम कम से कम दो किलोमीटर दूर है 

ऐसे में कुछ हो जाये तो किसी का क्या कसूर है 

इसीलिये रिस्क नहीं लेना चाहिए 

अपना पडोसी उठे उससे पहले अपने को चल देना चाहिए 

सो हमने भीड़ में रेंगना शुरू किया 

पूरे दो घंटे में पहुँच पाए 

बाथरूम का दरवाजा खटखटाया तो भीतर से एक सिर बाहर आया 

बोला - क्या चाहिए ? 

हमने कहा - बाहर तो आजा भैये हमें जाना है 

वो बोला - किस किस को निकालोगे ? अन्दर बारह खड़े हैं 

हमने कहा - भाई साहब हम बहुत मुश्किल में पड़े हैं 

मामला बिगड़ गया तो बंदा कहाँ जायेगा ? 

वो बला - क्यूँ आपके कंधे 

पे जो झोला टँगा है 

वो किस दिन काम में आयेगा ... 

इतने में लाइट चली गयी 

बाथरूम वाला वापस अन्दर जा चुका था 

हमारा झोला कंधे से गायब हो चुका था 

कोई अँधेरे का लाभ उठाकर अपने काम में ला चुका था |


अचानक गाड़ी बड़ी जोर से हिली 

एक यात्री ख़ुशी के मारे चिल्लाया - 'अरे चली, चली' 

कोई बोला - जय बजरंग बली, कोई बोला - या अली 

हमने कहा - काहे के अली और काहे के बली ! 

गाड़ी तो बगल वाली जा रही है 

और तुमको अपनी चलती नजर आ रही है ? 

प्यारे ! सब नज़र का धोखा है 

दरअसल ये रेलगाडी नहीं हमारी ज़िन्दगी है 

और ज़िन्दगी में धोखे के अलावा और क्या होता है ?


 प्रदीप चौबे✍🏻

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

वो गुलाब🌹 नहीं, भरोसा लाया था।


वो गुलाब🌹 नहीं,

भरोसा लाया था...

महक गई रूह मेरी।


वो झुमके नहीं,

ताल्लुक लाया था...

हार गई मेरे जीवन की

परेशानियां-दुश्वारियां सारी।


वो बिंदिया नहीं,

संपूर्ण ब्रह्मांड लाया था...

सुधर गई मेरे ग्रह-नक्षत्रों की 

बिगड़ी चाल सारी।


वो लौंग-लतिका नहीं,

प्रेम कविता लिख लाया था।

खुमारी में डूब गई 

मेरी देह पर लिखी कहानियां सारी।


वो पायल नहीं,

हौसला लाया था।

जिसे पग बांधे‌

ब्रह्मांड की परिक्रमा लगाती मैं 

उसकी बलैयां ले नजर उतारती

उसपर जाती वारी-बलिहारी।


वो स्वयं नहीं,

उसका अहसास आया था।

जिसमें उसे खोजती मैं

ईश्वर का पता पा गई।

 

सुजाता✍🏻

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

केवल दो गीत लिखे मैंने...


 शहरो शहरों गलियों-गलियों

केवल दो गीत लिखे मैंने

इक गीत तुम्हारे मिलने का

इक गीत तुम्हारे खोने का।


सड़कों-सड़कों, शहरों-शहरों

नदियों-नदियों, लहरों-लहरों

विश्वास किए जो टूट गए

कितने ही साथी छूट गए


पर्वत रोए-सागर रोए

नयनों ने भी मोती खोए

सौगन्ध गुँथी-सी अलकों में

गंगा-जमुना-सी पलकों में।


केवल दो स्वप्न बुने मैंने

इक स्वप्न तुम्हारे जगने का

इक स्वप्न तुम्हारे सोने का।


बचपन-बचपन, यौवन-यौवन

बन्धन-बन्धन, क्रन्दन-क्रन्दन

नीला अम्बर, श्यामल मेघा

किसने धरती का मन देखा

सबकी अपनी है मज़बूरी

चाहत के भाग्य लिखी दूरी


मरुथल-मरुथल, जीवन-जीवन

पतझर-पतझर, सावन-सावन

केवल दो गीत लिखे मैंने

इक गीत तुम्हारे मिलने का

इक गीत तुम्हारे खोने का।


Rajendra Rajan✍️


मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

केवल दो रंग चुने हमने...



केवल दो रंग चुने हमने...


एक रंग तुम्हारे हंसने का, 

क रंग तुम्हारे रोने का।


केवल दो रंग चुने हमने...


 एक रंग तुम्हारे मिलने का, 

इक रंग तुम्हारे बिछड़ने का।


केवल दो रंग चुने हमने...


एक रंग तुम्हारे यौवन का,

एक रंग तुम्हारे बुढ़ापे का।


केवल दो रंग चुने हमने...


एक रंग तुम्हारे खिलखिलाने का,

एक रंग तुम्हारे गुस्साने का।


केवल दो रंग चुने हमने...


एक रंग तुम्हारे ख़ुशी का,

एक रंग तुम्हारे गम का।


केवल दो रंग चुने हमने...


एक रंग तुम्हारे पाने का,

एक रंग तुम्हारे खोने का।


केवल दो रंग चुने हमने...


एक रंग तुम्हारी सादगी का,

एक रंग तुम्हारी जटिलता का।


केवल दो रंग चुने हमने...


एक रंग तुम्हारी उन्नति का,

एक रंग तुम्हारी अवनती का।


केवल दो रंग चुने हमने...


एक रंग तुम्हारी सफलता का,

एक रंग तुम्हारी असफलता का।


केवल दो रंग चुने हमने...


एक रंग तुम्हारी जीत का,

एक रंग मेरी हार का।


केवल दो रंग चुने हमने...


एक रंग तुम्हारे आने का,

एक रंग तुम्हारे जाने का।


केवल दो रंग चुने हमने...


Bishwajeet Kumar✍️
Inspired by - Late Rajendra Rajan