राम राम रामा सरयू तट पर राज्य कौसला है नामा,
अयोध्या है जिसकी राजधानी।
जिसके राजा दशरथ कहें नितिन कहानी
रानीयाॅं तीन कोशल्या, कैकेई और सुमित्र
नहीं हुआ तीनों को कोई पुत्र
पुत्र प्राप्ति हेतु वशिष्ट से यज्ञ करवाया
राम लखन भरत और शत्रुघ्न को पाया
चारों अस्त्र शस्त्र और युद्ध में बलवान
विश्वामित्र थे आश्रम में राक्षसों से परेशान
विश्वामित्र के आश्रम गए लखन और रामा
वहाॅं उन्होंने भयंकर-भयंकर राक्षसों को मारा
ऋर्षि ने दिव्य अस्त्र दिए राम किया प्रणामा
विश्वामित्र तब ले पहुंचे राम जनक धामा
धनुष तोड़ सीता को राम वधू बनाया
अयोध्या पहुंच मात पिता को शीश नवाया
राम के राजा बनने का जब समय आया
मंथरा ने कैकेई को तब भड़काया
बोली हे भरत मात कैकेई महोदया
कौशल्या पुत्र न बन जाए राजा अयोध्या
तू वचनों को अपने राजा से मांग ले
भरत को राज्य और राम को वनवास दे
वचनों को कैकेई के सुन दशरथ पर आघात हुआ
भरत को राज्य मिला और राम को वनवास हुआ
राम संग सीता और लखन भी बन को चल दिये
कैकेई और मंथरा के ही मन में जलने लगे दिये
इधर राम लखन सीता सहित बन को चले
उधर दशरथ प्राण तन को छोड़ यम को चले
केवट ने तब सरयू पार कराया
राम चित्रकूट में पर्णकुटी बनाया
लंकापति की बहन सुपनखा वहाॅं आ गई
राम लखन की सुंदर छवि उसे भाग गई
उसने दोनों भाइयों से विवाह को आग्रह किया
उन्होंने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया
क्रोधित हुई राक्षसी ने मात पर हमला कर दिया
लखन ने नाक को भी उसकी अलग कर दिया
नकटी बहन को देख रावण क्रोधित हुआ
उससे सीता का वर्णन सुन मोहित हुआ
मारीच हिरन बन कुटिया के पास जा खड़ा हुआ
सुंदर हिरन को देख सिय हिरन पाने का मन हुआ
लखन सिया को छोड़ राम हिरन लेने गए
राम ने जब मारा मारीच को बान
निकलने लगें उसके तन से प्राण
चिल्लाया बचाओ हे सिय हे लखन भाया
लगा सिय को संकट में है पति प्राणा
दे सौगंध सिय ने लखन को भेजा
तब लखन ने एक रेखा खिंचा
हे मात इससे बाहर न जाए
चाहे कितनी भी मुसीबत आए
साधू रुप धर रावन वहां आया
भिक्षांम देही भिक्षांम देही चिल्लाया
माता के भिक्षा देती ही रावण ने उन्हें उठाया
अपने पुष्पक विमान में जबरन बैठाया
माता के रूदन को जब जटायु ने सुना
तुरंत आ वह रावन से लड़ा
जटायु ने ज्यों रावन पर प्रहार किया
उसने उसके परो को काट दिया
राम लखन ने सिय को कुटी में न पाया
उन्होंने सिय खोजने को कदम बढ़ाया
धरा पर पड़े करहाते हुए जटायु राम पाया
जटायु ने जो घटी उस घटना को बताया
विरह में फिरत फिर राम रिशिमुख आए
जहां पवन पुत्र हनुमान को पाए
हुई यही सुग्रीव से मुलाकात
बनें मित्र दोनों थामा मित्रता का हाथ
देख दुखी राम हनुमाना
चले खोजन सिय करत राम प्रणामा
जब समुद्र मार्ग में बना अवरोध
जामवंत कराया हनुमान शक्ति बोध
पल भर में हनुमत समुद्र सीमा पार की
लंक पहुंच प्रभु मुद्रिका सिय को प्रदान की
क्रोध में वाटिका सारी उजाड़ दी
लेकर हनुमत अपने प्रभु का नामा
लंका को बनाया जलता हुआ शमशाना
लौटकर लंका से माता हाल सुनाया
राम लखन अब कुछ चैन सा पाया
राम, हनुमान और सुग्रीव वानरों की सेना बनाई
उठा धनुष और गदा लंका पर कर दि चढ़ाई
राम अनेक राक्षसों को मारा
फिर कुम्भकरण को संहारा
मेघनाथ और लखन भी टकरा गये
सबके मन डर से दहला गये
मेघनाथ ने लखन पर शक्ति आघात किया
मानों श्रीराम के हृदय पर वज्रपात किया
हनुमत तब संजीवनी लाए
राम लखन को जीवित पाए
पुनः लखन मेघनाथ आपस में भिड़ गए
मानो यमराज स्वयं लखन रूप धर गए
लखन ले प्रभु का नाम ऐसा मारा बाण
जो पल भर में लें आया मेघनाथ के प्राण
अब रावण स्वयं युद्ध में आ गया
चहुं दिशाओं में डर का माहौल छा गया
धरा और अम्बर भी घबरा गया
देवता समुह भी अम्बर में अब आ गया
रावण राम के बाण टकरा गये
रावण के भी काल राम में समा गये
राम शीशन पे काटे शीश रावण की ना मृत्यु होए
मारन का रावण को हर प्रयास विफल होए
तब कान में राम के विभिषण फुसफुसा
भाई की मृत्यु का भाई ने ही राज बताया
राम ने ब्रह्मास्त्र का अनुसंधान किया
नाभि का सोम सुखा रावण को मृत्यु दान दिया
रावण को पता था कि उसका गलत था कामा
वो चिल्लाया हे प्रभु राम राम रामा
राम सिय का मिलन हुआ
विभिषण का राज्याभिषेक हुआ
राम सिय लखन अयोध्या है आए
नगरी ने मिलकर स्वागत गीत है गाए
राम को राजा बनाया गया
सिय पर लांछन लगाया गया
सब छोड़ सिय पुनः वन गई
वाल्मीकि के यहां रूक गई
सिय ने दो पुत्र जाये सब थे बहुत खुश
बड़े का नाम लव छोटे का था कुश
राजा राम ने अश्वमेध यज्ञ करवाया
यज्ञ अश्व चहु ओर घुमवाया
सब ने उसे है बस शीश नवाया
लव कुश ने उसे है बन्दी बनाया
अश्व छुड़ाने सेना आई
लव कुश ने है मार भगाई
भरत, शत्रुघ्न और फिर लखन है आए
पर लव कुश वो हरा ना पाए
जब भाई सभी परास्त हुये
स्वयं राम युद्ध में आ गये
ज्यों लव कुश ने धनुष बाण उठाया
तभी गुरु ने आ धमकाया
क्यों तुमने राजा पर धनुष उठाया
क्या यही है मैंने तुम्हें सिखाया
क्षमा मांग लव कुश ने राजा को प्रणाम किया
भरत, शत्रुघ्न और लखन को जीवनदान दिया
जा मात को सारी कथा सुनाई
हराया भरत, शत्रुघ्न, लखन और आए फिर रघुराई
हमने भी रघुवर पर धनुष तान दिया
हाय तुमने जीते जी मुझे मार दिया
अपने पिता पर ही तुमने धनुष बाण तान दिया
प्रथम मुलाकात में ये कैसा है मान दिया
महल जा लव कुश सम्पूर्ण रामायण सुनाई
फिर सिय की भी है वन व्यथा बताई
स्वयं का नाम लव कुश बताया
राम पिता और सिय को है मात बताया
वाल्मीकि तब सिय को लेकर आए
प्रजा जन क्षमा मांगते दिए दिखाए
सिय ने तभी है धरा को पुकारा
यदि हूं पवित्र मैं अपारा
मुझे गोद में अपनी स्थान दें
मेरा जीवन आप ही अब तार दे
तभी धरा फटी धरा-धरा से प्रकट हुई
सिय गोंद में उनके निज धाम गई
फिर राम ने सरयू में किया स्नाना
निज धाम को किया तब प्रस्थाना
बोलो राम राम रामा
नितिन राघव ✍️
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