मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

तुम्हारे बारे में...✍️ Introductory.



    तुम्हारा मेरे इस जीवन में प्रवेश पतझड़ के मौसम में बसंत की अनुभूति है। परिचय देर से होना मुझे सदैव अपने बदनसीबी का याद दिलाता रहेगा और तुमसे मिलना मेरे अच्छे किस्मत की।🫠


.....औरों की तरह अभ्यस्त नहीं हूं तो कृपया लिखने✍️ में हुई छोटी-मोटी भूल को नजरअंदाज🤗 करना।


     पहली बार तुमसे बात करने का हौसला मुझे शराब की मादकता🍺 ने दिया और शायद यह शराब द्वारा किसी को सर्वश्रेष्ठ उपहार है। आज जब एक दूसरे को जानते हुए महीनो हो चुके हैं, मुझे ज्ञात है कि हम कितने अलग हैं, शायद बहुत अलग। हमारी मित्रता की परिभाषा, दुनिया को देखने का नजरिया कितना भिन्न है न? फिर भी न जाने क्यों मैं समानताएं ढूंढ लेता हूं। मेरी मां के अलावा तुम वह पहली स्त्री हो जिसके सामने अपनी आत्मा और हृदय को पूरी तरह से खोल दिया था, बिना किसी हिचकिचाहट और भ्रम के। मुझे ना जाने क्यों ये मालूम था कि इस दुनिया की तमाम लोगों से घिरा मैं, तुम पर भरोसा कर सकता हूं। तुम्हारी ‘उस’ बात से मेरे हृदय पर गहरा आघात पहुंचा। उस दिन मैं खूब रोया, एक बच्चे की भाती, जैसे रोता है वह अपने माता-पिता से बिछड़ जाने पर।


      इन सब के बावजूद में तुम्हें खोना नहीं चाहता, शायद इसलिए क्योंकि तुम वो पहली स्त्री हो जिसके सामने मैंने संतोष के आंसू गिराए थे। आज जब मैं यह पत्र लिख रहा हूं तो सोच रहा हूं कि तुम कहां और कैसी होगी??? तुम्हारे बार-बार इग्नोर करने के बाद भी मेरा संदेश भेजना इस बात का प्रमाण है कि तुम मेरे लिए मेरे आत्म-सम्मान से भी बढ़कर हो। मुझे नहीं पता यह क्या है पर मुझे तुम्हारी कमी खलने लगी है। तुमसे बात ना हो पाना मुझे बोझ सा लगता है और तुम्हारे साथ होना एक सुखद अनुभूती। मुझे पता है की इसपर तुम्हारी प्रतिक्रिया क्या होने वाली है और वह जायज भी है। शायद तुम्हारी जगह पर कोई और स्त्री होती तो वो भी ऐसा ही करती। फिर? फिर मैं यह क्यों लिख रहा हूं? क्या मनसा है मेरी? मैं जानता हूं कि इसके पढ़ने के बाद शायद तुम हमारे बीच की समान्य दोस्ती भी समाप्त कर दो। लेकिन केवल इसलिए, मैं अपने हृदय पर एक भारी बोझ रखूं यह मुझे स्वीकार्य नहीं।


      .....बड़े ख्वाब नहीं है तुम्हें लेकर। मैं बस इतना चाहता हूं कि जब नींद आए तो तुम्हारे कंधे पर सर रखकर सो सकूं। और तुम भी ऐसा कर सको। तुम्हारे साथ किसी कॉफी शॉप पर बैठकर घंटो तुम्हारी ओर देखता रहूं और तुम्हारी मुस्कान पर अपनी जान छिड़क दूँ।


       अपनी यादों के गुलदस्ते में जब भी मैं पीछे की ओर झाकुंगा तो मुझे तुम्हारे लिए लिखे गए ये शब्द, चमकते मोती की तरह दिखाई देंगे। संभव है की आज का मेरा भविष्य इसे देखकर खूब हँसे या झेप जाए। शायद इसलिए यह दर्ज करना जरूरी है। क्या इतना आसान और सहज है यह 'शब्द' कि मैं उसे कागज पर उतार सकूं? अगर इतनी क्षमता होती, तुम्हारे लिए एक उपन्यास लिखता और पहले पन्ने पर बिना तुम्हारा नाम लिखे खाली छोड़ देता। शब्दों की सीमित समझ में, मैं तुमसे ऐसी बातचीत करना चाहता हूं जो शायद तुम्हारे साथ घंटों बैठकर ना कर पाऊं। दरअसल यह अनुभव बिल्कुल अलग है। इसमें थोड़ी सी असुरक्षा भाव, अत्यधिक ईर्ष्या, भय और बेचैनी का समिश्रण है। पर सच कहूं तो असहज और निराश होकर भी यह एक सुखद अनुभूति....




     अगर कभी उम्मीदों और आकांक्षाओं का बोझ संभाले कोई मनुष्य देखना हो तो मेरी तरफ देखना क्योंकि तब तुम्हें महसूस होगा की बोझ के तले दब कर भी इंसान खुश😊 रह सकता है। शायद मेरी नजर में यही उस ‘शब्द’ की सटीक परिभाषा है। अब मुझे पता चला कि परिभाषाओं से घिरा मनुष्य कितना असहाय हो जाता है। 


    फिर, अब ये बोझ कैसे हल्का करुं? मुझे पुराने हिंदी के गीत बहुत पसंद है पर गा नहीं पाता, शायद मेरे पास लिखना ही एकमात्र साधन है और बिना तुम्हारी बातें किए तुम्हारे लिए लिखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। तो फिर, अब क्या लिखूँ ये भी महत्वपुर्ण प्रश्न है। तुम बहते पानी के बहाव की तरह हो जो निर्भीक सागर की तरफ बढ़ते जाती है। तुम्हारे होने मात्र से वक़्त के बहाव का अंदाजा नही होता और इतने शोर के बावजूद एक अलौकिक शांति की अनुभूती होती है। मुझे मालूम है की गहरे सागर में मेरे टपकते चंद बूँदों का कोई मोल नहीं, फिर भी मैं इन्हें गिरने से नहीं रोक पाता। मुझे तुम्हारे झुमके से बड़ा लगाव है वह मुझे अपनेपन का एहसास दिलाता है। बिल्कुल मेरी ही तरह वो भी तुम्हारे जीवन का हिस्सा ना होकर भी तुमसे जुड़ाव महसूस करता है। उम्मीद है की वक़्त का मलहम सब ठीक कर दे, पर मैं इस घाव को थोड़े और वक़्त तक जीना चाहता हूँ, थोड़ा स्वार्थी हूँ, ये दर्द भरा संतोष खोना नहीं चाहता। 


शेष… फिर कभी.!


अब तो बातों का यह सिलसिला यूं ही जारी रहेगा।


     .....पता है यह मुमकिन नहीं है। तुम्हारा जीवन रंगों से भरा हुआ है। फूलों सा खिला हुआ है। प्रकृति तुम्हारे जीवन की इस वसंत को अमर कर दे।  मेरा क्या है? मैं तो तुम्हें दूर से देख कर ही खुश😊 हूं।


Sudhakar Singh✍️

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें