बुधवार, 10 अप्रैल 2024

उसके बारे में... (About that...)



चाय 🍵पियोगी?

मैंने पूछा...। 

नहीं!!!

उसने एक घंटे बाद जवाब दिया

        मुझे इस बात का मलाल नहीं कि उसने ना!!! कहा, इस बात का जरूर है कि कॉफी टेबल पर जब भी उसका ध्यान दूसरी तरफ होता, मैं उसे देखता था जी भर के। चाय पीने का अवसर मेरे लिए उसे देखने का मौका था, करीब से। उसने मुझसे यह अधिकार भी छीन लिए, जो मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत थे। अब वह मेरे संदेशों का जवाब नहीं देती। क्या पता कि उसको लगता हो कि उससे प्रेम करके मैंने अपनी हदें पार कर दी है और हद पार करने वालों को कौन ही चाहता है?

      आज तीसरी बार है जब उसके लिए लिख रहा हूं और तब तक लिखता रहूंगा जब तक अपने आत्मा को निचोड़ ना दूँ। क्या हुआ अगर वह बात नहीं करना चाहती। यह उसका चुनाव है। मैंने अपना चुनाव कर लिया है और शायद इसपे टिका रहूंगा। मेरे अनुभव ने मुझे सिखाए थे कि 'जो दिखता है वह बिकता है वाली दुनिया में' संवेदनाओं का कोई मोल नहीं। मुझे भ्रम था कि गलत हो सकते हैं मेरे अनुभव, कई बार। उसने मुझे सिखाया कि अनुभव झूठ नहीं बोलते क्योंकि वे वक्त नहीं परिस्थितियों के आईना हैं। आज जब उससे बात नहीं होती, मुझे स्मरण है उससे घंटो बात किए गए वह क्षण जिसमें मैं समय देखना भूल जाता था। सिवाय इसके कि वह सोए वक्त पर। जब दिन की शुरुआत और अंत होते थे उसके मैसेज से।


मुझे उससे कोई शिकायत नहीं है। रिश्तो के दबाव ने उसे मजबूर किया होगा शायद। हम सभी, कई रिश्तों का बोझ ढोते हैं जीवन भर और अपनी नजरिया बदलते हैं उसके प्रभाव में। मुझे ईर्ष्या है उस लड़के से, जिसने जीता है उसका प्रेम। और कर पाता है उसके बालों का स्पर्श। छोटे बाल हैं उसके, लेकिन जब भी खोलती है प्यारी लगती है। मेरा कलेजा फटता है जब देखता हूं उसे बात करते हैं अपने प्रेमी से दिन रात। वो अलग बात है कि उसे मुस्कुराते देख खुश हूं। 


'खाली दिमाग शैतान का घर होता है' उसने कहा था। लेकिन वह झूठ बोल रही थी शायद! खाली दिमाग होता है 'उसका' जिसमें सोचता हूं उसके बारे में....🤔


    सुबह हो चुकी थी, नए वर्ष का आगाज़ का दिन था। आज का दिन लोग विशेष रूप से मनाते थे, मान्यता है कि अगर साल की शुरुआत अच्छी हो तो पूरा साल अच्छा गुजरता है। इसके अलावा नया वर्ष लाता है नई उम्मीदें और पुराने वर्षों का तजुर्बा, इस तरह हम हर वर्ष एक साल परिपक्व हो रहे होते हैं। ....ना उम्मीदि से शुरू हुई वर्ष में, महत्वाकांक्षाओं और उम्मीदों का गठरी उठाने से पहले कुछ वक्त इनसे दूर बिताना चाहता था। फिर, उस अवस्था में जा पहुंचा जहाँ वक्त ठहर सा जाता है। हरिवंश बच्चन जी के शब्दों में....

“बैर कराते मन्दिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला” 

.....कितना सटीक बैठता है न!!! कभी भी सामाजिक नहीं रहा, शायद इसलिए उन लोगों को शुभकामनाएं दे रहा था जिससे कभी परिचय ना हो सका। फोन का पहला नोटिफिकेशन बजते ही मैंने देखा, एक प्यारी सी लड़की जो आज तक अजनबी थी, ने मेरे संदेशो का प्रतिउत्तर दिया था, सबसे पहले।

हैप्पी न्यू ईयर टू यू टू

उसने कहा

और कैसे हो? क्या कर रहे हो?

उसके प्रश्न थे।


उत्तर का प्रति उत्तर समझना ठीक लगा पर एक अजनबी का मेरे बारे में जिज्ञासा नया था।

वह पूछती गई और मैं बताता गया…

वह सुनाती गई और मैं सुनता रहा…


वक्त दोपहर का हो चला था। शायद चार घंटे बीत चुके थे। मेरे जीवन मे आई वह पहली व्यक्ति थी जिसने मेरे ‘जख्मों’ को ‘जख्म’ माना। इस दुनिया के भीड़ में अपने जख्मों का इलाज स्वयं ही ढूंढना पड़ता है मालूम था मुझे। लेकिन कितना सुखद होता है उन गिने-चुने लोगो का साथ होना, जो आपके जख्मों को समझें और आपकी लड़ाई को मान्यता दे।


किसी से मिलकर खुशी हुई पहली बार। हम अपने अनुभवो से सीखते हैं दूसरे का अनुभव समझने का हूनर, क्योंकि अनुभव हमारे तराजू होते हैं जिससे नापते हैं हम दूसरों के ज़ख्म। उसके अनुभवों ने मुझे एहसास दिलाया कि मैं अकेला नहीं हूं इस जहां में, मेरे जैसे और भी यहां रहते हैं लोग, प्रकृति का एक जैसा आशीर्वाद पाए। मित्रता समानताओं से होती है और अनुभव से बड़ा कोई समानताएं नही होतीं हैं?


यह दोस्ती के लिए पर्याप्त था…

Sudhakar Singh✍️

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