शनिवार, 20 अप्रैल 2024

आज के लिए बस इतना ही रहने दो....


कुछ लिख नहीं पा रहा, कुछ गा नहीं पा रहा।

कुछ सुन नहीं पा रहा, कुछ सुना नहीं पा रहा।


माफ करना मुझे मेरे अपनों तुम,

कुछेक फर्ज मैं निभा नहीं पा रहा।।


***


जानबूझकर किया गया कारनामा है यह, नहीं इत्तेफाक है।

प्रोफाइल लॉक करके फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना, लेटेस्ट मजाक है।।

तंदुरुस्ती  का  अनुभव  करता  है  पाकर, इसे  हर  एक आदमी।

इस दौर में लाइक, कमेंट, शेयर सज्जनों, बड़ी पौष्टिक खुराक है।।


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कुछ लोग जो हमारे पीछे पड़े हैं,

कमबख्त जबरदस्ती जिद पर अड़े हैं।

कह दो उनसे कि साहिल पर पहुंचने से पहले,

 हमने तूफानों से भयंकर लड़े हैं।।


***

       

सौमित्र संग कुटिया में, जब पहुँचे अवधेश।

भाग्य जगे तब शबरी के, मिट गये सकल क्लेश।

खिलाकर मीठे बेर वह, जीत लिया प्रभु हृदय,

पा लिया नवधा भक्ति का, सुर दुर्लभ उपदेश।।


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वैसे तो भीड़ बहुत है, खुदा तेरी खुदाई में।

हम चल रहे अकेले मगर, राहे सच्चाई में।

न कोई साथी, न मददगार, न कोई उस्ताद ही,

यह कठिन सफर तय हो रहा, खुद की रहनुमाई में।।


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कभी अजब कभी गजब खेला हो जाता है।

 शहद  भी नीम और  करेला  हो  जाता  है।

आ जाती  है नियत में जब बदनीयती तो,

 अपना सगा भी सौतेला हो जाता  है।।


***


कभी इस बाबत कभी उस बाबत सफर होता ही है।

जगह कोई भी हो आबो हवा का असर होता ही है।

जब भी बदलता है मौसम छेड़ जाता है तबीयत को,

आपका आप जानो मेरे साथ अक्सर होता ही है।।


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कभी  चाल  तो  कभी  कुचाल  चलता  है।

इस  तरह   जाने   कितनों  को  छलता  है।

आप   भी   रखोगे   मुझसे  इत्तफाक  की ,

 गिरगिट से अधिक  इंसान रंग बदलता है।


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सुबह शाम ठंड बड़ी  हल्की तपती दुपहरी है।

मधुमास की आहट से धरती सजी सुनहरी है।

अब  आ  भी  जाओ  कि  तुम्हारे  स्वागत में,

सरसों  का  फूल  लेकर  आ गया फरवरी है।


***


जो निभा जाऊं तो समझना नेक इरादा रहा,

और निभा न सकूं तो समझना चुनावी वादा रहा।

आज के लिए बस इतना ही रहने दो,

फिर मिलेंगे तब सोचेंगे क्या कम क्या ज्यादा रहा।


                    कवि बिजेन्द्र अहीर✍️

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