मंगलवार, 29 सितंबर 2020

प्रश्न.- पंचतंत्र की रचना क्यों हुई? इसकी कहानियों के पीछे छुपे उद्देश्य का वर्णन करें।

      

पंचतंत्र की रचना क्यों हुई ? इसकी कहानियों के पीछे छुपे उद्देश्य का वर्णन करें। B.Ed.1st Year. EPC-1, Video Link:-  https://www.youtube.com/watch?v=ARprGOy71vw

         संस्कृत नीति कथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में नहीं रह गई है फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास निर्धारित की गई है। इस ग्रंथ के रचयिता पंडित विष्णु शर्मा हैं। कहां जाता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई तब उनकी उम्र लगभग 80 वर्ष थी। विष्णु शर्मा ने जिस कहानी के माध्यम से नीतिपरक बातें बताई हैं उन कहानियों का संग्रह पांच भागों में किया गया है इसीलिए हम इसे पंचतंत्र कहते हैं।

(01) मित्र भेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव) 
(02) मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
(03) संधि- विग्रह/काकोलुकियम (कौवे एवं उल्लूओं की कथा)
(04)लब्ध प्रणाश (हाथ लगी चीज का हाथ से निकल जाना, मृत्यु या विनाश के आने पर क्या समाधान किया जाए)
(05) अपरीक्षित कारक( जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें, हड़बड़ी में कदम ना उठाये ) 
 
        मनोविज्ञान व्यवहारिकता तथा राजकाज के सिद्धांतों से परिचित कराती यह कहानियां सभी विषयों को बड़े ही रोचक तरीके से हमारे सम्मुख प्रस्तुत करती है एवं साथ-ही-साथ सीख देने की कोशिश भी करती है। पंचतंत्र की कहानियों में मनुष्य-पात्रों के अलावा कई बार पशु-पक्षियों को भी कथा का पात्र बनाया गया है तथा उनसे कई शिक्षाप्रद बातें कहलवाने की भी कोशिश की गई है।
       संपूर्ण विश्व के कथा-साहित्य को संस्कृत भाषा की अपूर्व देन है- पंचतंत्र की कहानियां। बाल मनोविज्ञान के आधार पर शिक्षा जगत में किया गया एक ऐसा अनूठा प्रयोग है जिसने यह सिद्ध कर दिया कि कुशल एवं पारंगत शिक्षक एक विवेकहीन छात्र को भी विवेकवान बना सकते हैं। ऐसा ही तो कर दिखाया था इस पुस्तक के मूल लेखक पंडित विष्णु शर्मा ने। उन्होंने राजा अमर शक्ति के मूर्ख राजकुमारों को राजनीति में निपुण बनाकर एक सर्वश्रेष्ठ राजा बनाने का कार्य किये थे।
      "पंचतंत्र" नीतिशास्त्र का प्रतिनिधि (Representative) ग्रंथ है। इसमें कथाओं की ऐसी रुचिकर श्रृंखला है कि पढ़ने वाले अनचाहे ही इससे जुड़ते चले जाते हैं। बाल साहित्य के रूप में भी इसे पूरे विश्व में सराहा गया है। नीति की समझ एवं मूल्यों की जानकारी देने वाली इन कथाओं को अनेक भाषाओं में अनुवाद भी किया गया हैं। 
       पंचतंत्र की ये कथाएं मानव स्वभाव को परखते हुए सावधानीपूर्वक व्यवहार करने की समझ देती है। इसकी प्रत्येक कथा जीवन को एक नए कोण से देखना सिखाती हैं। इन कहानियों को पढ़कर यह ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफल कैसे हो? 
         मूल रूप से संस्कृत में रचित इस ग्रंथ का हिंदी भाषा में अनुवाद एवं प्रकाशन कई विदेशी भाषाओं में प्रकाशन के बाद हुआ यह हैरानी की बात है। इससे हमारी मानसिकता का भी अंदाजा लगा सकते हैं कि हमें हमारी कीमत दूसरे बताते हैं। मुझे लगता है कि इससे पूर्व शायद ही किसी लेखक ने कभी ऐसा प्रयास किया भी हो कि जानवरों एवं पशु-पक्षियों के द्वारा भी ज्ञान और नीति की बातें बताई जा सकती है। इसे हम ज्ञान और मनोरंजन का खजाना भी कह सकते है। 
         कथा-साहित्य के इस महान ग्रंथ की महक विदेशों में कैसे पहुंची? इसकी एक कथा प्रचलित है इसकी सत्यता के बारे में हम सार्थक रूप से तो नहीं कह सकते हैं। लेकिन कथा कुछ इस प्रकार है:- एक बार ईरानी सम्राट के राजवैद्य और मंत्री ने पंचतंत्र को अमृत कहा। ईरानी राजवैद्य ने किसी पुस्तक में यह पढ़ा था कि भारत में एक संजीवनी बूटी होती है। जिससे मूर्ख व्यक्ति को भी नीति में पूर्ण किया जा सकता है। इसी बूटी की तलाश में वह राजवैद्य ईरान से चलकर भारत आया और उसने संजीवनी की खोज शुरू कर दी। उस को जब कहीं संजीवनी नहीं मिली तो वह निराश होकर एक विद्वान के पास पहुंचा और अपनी सारी परेशानी उसे बताई। तब उस विद्वान ने कहा:- देखो मित्र इसमें निराश होने की कोई बात नहीं है। भारत में एक संजीवनी नहीं बल्कि संजीवनीयों के पहाड़ हैं। उनमें आपको अनेक संजीवनीया मिल जाएगी। हमारे पास पंचतंत्र नाम का एक ऐसा ग्रंथ है जिसके द्वारा मूर्ख अज्ञानी (जिसे हम विद्वान मृतप्राय ही समझते हैं) लोग नया जीवन प्राप्त कर सकते हैं। ईरानी राजवैद्य यह सुनकर अति प्रसन्न हुआ और उस विद्वान से पंचतंत्र की एक प्रति लेकर वापस ईरान चला गया। वह इस संस्कृत कृति का अनुवाद उसने अपनी भाषा में करके अपनी प्रजा को एक अमूल्य उपहार दिया। इस तरह से हम देखते हैं कि धीरे-धीरे संपूर्ण विश्व के अनेक भाषाओं में पंचतंत्र का अनुवाद किया गया और इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती चली गई।

सोमवार, 28 सितंबर 2020

प्रश्न.- मुर्दहिया क्या है ? इसके माध्यम से लेखक ने क्या कहने की चेष्टा की है ?


 

मुर्दहिया:-  मुर्दहिया दलित साहित्यकार डॉ० तुलसीराम की आत्मकथा है जिसके माध्यम से लेखक ने कई वर्षों से दलित आत्मकथाओ में साहित्य जगत के बंधे-बताएं मानदंडों को तोड़कर अपने जीवन से जुड़े उस सच्चे और कड़वे यथार्थ को सबके सामने उजागर करने का प्रयास किया है, जिसे उन्होंने स्वयं झेला था। डॉ० तुलसीराम ने अपनी आत्मकथा को सात उप-शिर्षको के माध्यम से अपने जीवन के एक-एक पड़ाव को पाठकों के सामने रखा है। तुलसीराम की यह आत्मकथा दलित समाज को और उस समय की परंपरा को प्रकट करती है। उन्होंने अपने प्रथम खंड भूतही पारिवारिक पृष्ठभूमि के माध्यम से यह दिखाया है कि किस प्रकार समाज में भूत-प्रेत और अंधविश्वास का कड़ा मायाजाल समाज में एक न ठीक होने वाले रोग की तरफ फैला हुआ था और ऐसे ही समय में इसी दलित समाज में उनका जन्म हुआ। कहते हैं कि व्यक्ति जिस परिवेश में पला-बढ़ा होता है उसका असर उस पर अवश्य दिखाई देता है। फिर उस उपर्युक्त कहे हुए मूर्खताजन्य और अंधविश्वास से तुलसीराम कैसे अछूते रह सकते थे। उन्होंने अपने इस प्रथम खंड में ही यह स्पष्ट कर दिया है कि दलित और सवर्ण के भगवान अलग-अलग होते हैं और उनकी पूजा-अर्चना, प्रसाद और हर विधि अलग-अलग होते हैं। वे देवी देवता के साथ-साथ भूतों को भी बहुत मानते हैं और डर से वशीभूत होकर जाने-अनजाने अपना और अपनों की क्षति कर डालते हैं। उन्हें इस बात का बिल्कुल ज्ञान नहीं होता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित। जिसके चलते तुलसीराम को चेचक जैसी भयानक बीमारी से अपनी एक आंख गंवानी पड़ती है। जिसके चलते समाज उन्हें अपशगुन (Bad omen) मानने लगा। तुलसीराम ने इस आत्मकथा के दूसरे अंश "मुर्दहिया तथा स्कूली जीवन" में शिक्षा के लिए किया जा रहा उनका संघर्ष और उसके गांव से थोड़ी दूर स्थित मुर्दहिया की चौंकाने वाली घटनाओं को उदात्त (उत्कृष्ट) रूप में प्रस्तुत किया है, जबकि मुर्दहिया के तीसरे अंश "अकाल में विश्वास" के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों को प्रस्तुत किया है।

        तुलसीराम ने मुर्दहिया आत्मकथा की भूमिका में ही यह स्पष्ट कर दिया है कि यह सही मायनों कि हमारी दलित बस्ती की जिंदगी थी। इसी जिंदगी को आत्मकथा के माध्यम से मैंने बाहर निकाला हैं। उन्होंने बड़े विस्मयकारी ढंग से अपनी स्कूली शिक्षा के बारे में बताया है कि कि किस प्रकार ब्राह्मणों द्वारा किसी की आई चिट्ठी को पढ़ने के दौरान कैसे अपमानजनक बातें उन्हें सुनने को मिलती थी। जिससे उद्गार घर वालों ने उनका नाम प्राइमरी विद्यालय में लिखवाया था ताकि कम-से-कम किसी की चिट्ठी-पत्री को पढ़ने के लिए ब्राह्मणों की गाली-गलौज का सामना तो नहीं करना पड़ेगा। यही से प्रारंभ होती है तुलसीराम की कष्टकारी शिक्षा यात्रा।

       तुलसीराम के गांव के ब्राह्मणों का मानना था कि निम्न जाति के लोग यदि ज्यादा पढ़-लिख ले तो वह पागल हो जाते हैं। यह सब सुनने के बाद तुलसी के घर वाले उनको पढ़ाई से मना भी करने लगे ऐसी परिस्थितियां भी तुलसी के जीवन में बाधा बनी रही। दसवीं की परीक्षा में परीक्षा फार्म भरने के लिए ₹30 की जरूरत थी और उनके घर से भी सहायता बंद कर दी गई थी। उस समय उनके स्कूल के हिंदी के अध्यापक श्री सुग्रीव सिंह ने ₹30 फार्म भरने के लिए दिये। एक ऐसा समय जहां जाती-पाती, ऊंच-नीच का भेदभाव पूरे समाज में फैला हुआ था और ऐसे समय में सुग्रीम सिंह का दलित बालक तुलसी को पैसे से मदद कर उसे ज्ञान के क्षेत्र में आगे भेजने की सोच बहुत ही सम्मानीय है। सुग्रीव जैसे मुर्दहिया के पात्र उस समय के भारतीय समाज में मौजूद थे जो शिक्षा के क्षेत्र में जाति-पाति का भेदभाव नहीं रखते थे और ना ही समाज में। तुलसी का दसवीं की परीक्षा में प्रथम श्रेणी से पास होना पूरे धरमपुर के लिए चौंकाने वाला था। पूरे गांव के मुख से यही आवाज निकल रही थी "चमरा टॉप कर गईल" तुलसी का परिणाम इसलिए और चौंकाने वाला था क्योंकि इससे पहले उस गांव में कोई भी छात्र प्रथम श्रेणी से उत्तीण नहीं हुआ था। आगे की पढ़ाई के लिए सुग्रीम सिंह ने तुलसी को प्रोत्साहित किया और आर्थिक मदद भी की। भारतीय समाज में आज भी ऐसे लोग हैं जो जाति से उच्चा शिक्षा को मानते हैं। अगर किसी को आगे बढ़ने की इच्छा हो तो चाहे वह ठाकुर हो या दलित उसकी सहायता अवश्य करते हैं। सुग्रीम सिंह जैसे इंसानों को ही हमारे भारतीय समाज को जरूरत है।

रविवार, 27 सितंबर 2020

“डायरी के पन्नों से”

नमस्कार 🙏आप सभी का हमारे Blog पर स्वागत है। आज आप सभी के बीच प्रस्तुत हैं “डायरी के पन्नों से” का सातवां  (Seventh) अंश। इस श्रृंखला को पढ़कर आप मेरे और मेरे कार्य क्षेत्र को और भी बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं। प्रत्येक रविवार को उसी आत्मकथा के छोटे-छोटे अंश को मैं आप सभी के बीच प्रस्तुत करूंगा और मुझे आपकी प्रतिक्रिया (Comment) का इंतजार रहेगा ताकि मैं इसे और बेहतर तरीके से आप सभी के बीच प्रस्तुत करता रहूं।

      "डायरी के पन्नों से" के छठे अंश के अंतर्गत आपने पढ़ा था कि कैसे हमारे सीनियर भैया ने हमें आर्ट कॉलेज छोड़ने की नसीहत दी थी अब आगे की कहानी.....

        गोपाल भैया से उसदिन वार्तालाप के बाद मै कई रातों तक  ठीक से सो नहीं पाया, हमेशा यही ख्याल आता कि- अब क्या करना चाहिए?  

        लेकिन फिर भी मन में कहीं-ना-कहीं यह भी चल रहा था कि मैं कला में जरूर कुछ बेहतर करूंगा। ऐसे ही मेरा नामांकन, थोड़े ही आर्ट कॉलेज में हुआ है। उक्त बातें सोच कर मैं फिर अपने कार्य में लग गया। उसके उपरांत गोपाल भैया से मेरी कभी बात नहीं हुई एवं ना ही इस बारे में कभी चर्चा ही हुई और मैं लगातार महाविद्यालय आता-जाता रहा। यह बातें 2010 की है उसके उपरांत गोपाल भैया से फिर मेरी मुलाकात ठीक छ: (06) साल बाद, यानी कि  2016 में, महाविद्यालय के उसी सीढ़ी पर हुई जिस पर बैठकर वो मुझे महाविद्यालय छोड़ने की सलाह दिए थे। लेकिन उस दिन का परिदृश्य थोड़ा उल्टा था मैं सीढ़ी पर बैठा हुआ था और वह बाहर से आ रहे थे।

      मैं थोड़ा सा उनके बारे में आज जिक्र करना चाहता हूं क्योंकि उनका मैं दिल से शुक्रगुजार हूं क्योंकि वह मुझे महाविद्यालय में रहने एवं अपने कार्य को बेहतर करने की सलाह जो दिए थे। भले ही उनका वह तरीका अलग था और मुझे वर्तमान में अच्छा नहीं लगा था लेकिन अब लगता है कि वह सही था। यदि वह उस दिन ऐसी बातें नहीं करते तो शायद मैं अपने कार्य में सुधार नहीं कर पाता। 2010 में ही एक और घटना महाविद्यालय में घटी थी और वह यह थी की परीक्षा के पूर्व असाइनमेंट जमा करने में उनके द्वारा एक पेंटिंग चित्रकला विभाग में जमा की गई थी जो कि मैम के द्वारा आपत्तिजनक करार देकर उन्हें फेल कर दिया गया था। जिसको लेकर महाविद्यालय में बहुत दिनों तक आंदोलन चला। कॉलेज बंद भी रहा। मेरे साथ भले ही वह जो भी व्यवहार किये हो लेकिन मैं उनके पूरे पक्ष में था। सोशल मीडिया से लेकर हर जगह उनका सहयोग किया। मैं क्या पूरा कॉलेज उन को सहयोग कर रहा था लेकिन धीरे-धीरे महाविद्यालय के छात्र दो गुटो में विभक्त हो गए एक गुट उनके पक्ष में था और एक उनके विपक्ष में। धीरे धीरे इनकी समस्या राजनीतिक माहौल लेने लगी और महाविद्यालय परिसर में AISF (All India Students Federation) का आना-जाना शुरू हो गया। मुझे याद है उस समय ही में मैंने AISF ज्वाइन किया था और राजनीति को धीरे-धीरे समझने लगा था। माहौल को बिगड़ता देख महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाते हुए एवं उनके इस कार्य को अनुचित ठहराते हुए उनको महाविद्यालय से निकाल दिया गया। और शायद उन्हें यह भी कहा गया कि आप पटना विश्वविद्यालय के किसी भी महाविद्यालय में पुनः नामांकन नहीं ले सकते हैं। पटना विश्वविद्यालय से निकलने के बाद उन्होंने AISF की मदद से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (JNU) में नामांकन लिया और वहीं से अपना कोर्स संपादित किया एवं AISF के सक्रिय कार्यकर्ता बने रहे।

          2016 में महाविद्यालय में फिर से आंदोलन चल रहा था।

    इस आंदोलन के बारे में हम आगे जिक्र करेंगे। मैं भी उस आंदोलन में सक्रिय रूप से प्रतिभाग लिया था क्योंकि मैंने आप को कहां ही था कि 2010 से AISF ज्वाइन किया था इसलिए महाविद्यालय की सीढ़ियों पर बैठा आगे के आंदोलन को क्या गति देनी हैं इसके बारे में निर्णय कर रहा था। तभी गोपाल भैया का आगमन हुआ वह उस समय AISF के एक सक्रिय कार्यकर्ता बन चुके थे और दिल्ली से यहां के छात्रों को मदद करने के लिए पटना आए हुए थे। मैंने तो उनको आते ही पहचान लिया लेकिन शायद वो नहीं पहचान पाए कुछ देर वार्तालाप करने के बाद वो मेरा नाम पूछे। धीरे-धीरे पिछले सारे घटनाक्रम उनको याद आ गई।

 वह हंसते हुए पूछे-अभी क्या कर रहे हो? 

मैंने कहा- B.F.A. करने के उपरांत मैंने काशी विद्यापीठ, वाराणसी में M.F.A. पाठ्यकर्म में नामांकन ले लिया है और इस वर्ष मेरा द्वितीय सेमेस्टर है। 2017 में मेरा मास्टर भी पूरा हो जाएगा। 

तब उन्होंने वहां उपस्थित सभी लोगों से कहा- मैंने इसको बहुत समझाया था, महाविद्यालय छोड़ने के लिए ये तो महाविद्यालय नहीं छोड़ा लेकिन अफसोस मुझे ही महाविद्यालय छोड़ना पड़ा।

पुनः हम आपको 2010 में लेकर चलते हैं।

एक दिन ख्याल आया कि मुझे अपना रूम अब कला महाविद्यालय के पास ही रखना चाहिए क्योंकि महाविद्यालय की समाप्ति के बाद सभी छात्र पटना जंक्शन जाते थे ह्यूमन लाइफ स्केचिंग (Human Live Sketching) के लिए लेकिन मेरा रूम दूर होने की वजह से मैं जा नहीं पाता था। रूम के लिये मैं अपने महाविद्यालय में कईयों को बोल रखा था। एक दिन एक लड़का जिसका नाम शिव शंकर था वह मुझसे मिला और बोला कि मेरे साथ रहोगे?  मैं मंदिरी में ही रहता हूं और साथ में मेरे एक सीनियर भैया भी रहते हैं जो B.F.A. 2nd Year के हैं। मुझे तो रूम की तलाश थी ही ऐसा प्रस्ताव भला मैं क्यों छोड़ता! लेकिन मन में एक डर यह भी लग रहा था कि एक द्वितीय वर्ष के भैया मिले थे जो मुझे महाविद्यालय छोड़ने कि सलाह दे चुके हैं अब एक और भैया के साथ रहना है पता नहीं वह कैसे होंगे? फिर भी लगा कि एक बार चल कर देखना चाहिए।

उत्तरी मंदिरी की संकरी गलियां होते हुए एक मकान में शिव ने प्रवेश किया मकान तो देखने में बहुत अच्छा था और वह सीढ़ियों से मुझे तीसरी मंजिल पर ले गया। रूम देखने में भी अच्छा था उस मकान की ही तरह। बड़ा सा रूम था जगह इतनी थी कि उसमें आराम दो बेड आ सकता था और सामने खुला छत। आप बस यूं समझ लीजिये की एक कलाकार के लिए बहुत ही अच्छी जगह थी। उस रूम की कमी बस यही थी कि वह छत का नहीं कर्कट का था और पूरी तरह से हवादार, मुझे रूम देखकर जयपुर के हवा-महल की याद आ गई। वह कमरा हवादार इतना था कि कभी-कभी बारिश के मौसम में पानी की बूंदे भी अंदर आ जाती होगी। कमरे में बिखरे पड़े सामानों और पेपर पर पानी के धब्बों से यह बातें साफ जाहिर हो रही थी। इन सब के बावजूद भी मैंने उस हवा-महल में रहना स्वीकार कर लिया क्योंकि उसका रूम रेंट 1500/- था और मैं जहां पहले रहता था उसका रूम रेंट 1000/- था। दो आदमी के रहने की वजह से मुझे वहां 500 लगते थे और यहां भी तीन आदमी की वजह से  मुझे 500/- ही लगेंगे और सबसे बड़ी बात यह कि आर्ट कॉलेज नजदीक था और साथ में सीनियर भैया से भी कला सीखने का मौका मिलता रहेगा।

यह सब बातें मैं सोच ही रहा था कि तभी ओम भैया (इनका नाम राजन कुमार हजारी था जो की बिहार राज्य के जमुई जिले से आते थे) महाविद्यालय से रूम पर आये। उनके आते ही शिव ने बताना शुरू किया कि भैया यह नया लड़का है हम लोग के साथ ही रहना चाहता है। 

उन्होंने मेरी तरफ देखा और बोले- तब छोटू , ठीक लगा ना रूम।

मेरे घर पर मेरे पुकार का नाम छोटू ही था क्योंकि मेरा नाम थोड़ा लंबा होने की वजह से कोई पूरा नाम नहीं पुकारता था तो घर के सभी लोग मुझे छोटू ही बुलाते थे और ऐसे भी मैं घर में सबसे छोटा हूं तो छोटू नाम पड़ गया था। और यहां पर पटना में पहली बार भैया के मुख से मेरा नाम सुनकर मुझे खुशी हुई। 

मैंने उनसे कहां- भैया यह तो मेरे घर का नाम है- छोटू।

उसने कहां:- अच्छा!! और तुम्हारा पूरा नाम क्या है?  

मैंने कहा:- विश्वजीत।

वि..श..व..जी..त.. अरे यार इतना लंबा नाम पुकारने में तो बहुत समय लग जाएगा !!! चलो छोटु आज मैं तुम्हारा एक छोटा नाम ही रख देते हैं। 

भैया अपनी पूरी बात बोलते इससे पहले ही मैं बोल उठा। सोनू, जी भैया!!! मेरा एक और नाम सोनू है। आप मुझे सोनू के नाम से बुला सकते हैं।

उसने कहा:- नहीं, सोनू एक कलाकार का नाम नहीं लग रहा है। तुमने अपना नाम क्या बताया था?

मैंने कहा:- जी, विश्वजीत

उसने कहा:- जीत हां जीतू अच्छा रहेगा। हमारे कॉलेज के एक भैया थे जिनका नाम था- जीतू।  जीतू भैया आज बहुत बड़े कलाकार हैं। चलो आज से हम तुम्हें जीतू के नाम से ही बुलायेंगे और इस तरह मेरा नाम विश्वजीत से जीतू हो गया। 

 तब मैंने शिवशंकर की तरफ देखा और भैया से बोला- भैया शिवशंकर का नाम भी तो बड़ा है इसका भी कुछ बदलाव कर दीजिए 

तो उसने कहा- इसे तो हम शिव के नाम से बुलाते हैं लेकिन तुम कहते हो तो चलो इसके बारे में भी सोच लेते हैं। जैसे कि तुम्हारा है जीतू यानी जीतने वाला और जीत का ही समानार्थी विजय होता है। तो चलो आज से ही हम इसे विजय के नाम से पुकारेंगे। और इस तरह मंदिरी में प्रवेश करते ही मेरा नाम जीतू और शिव शंकर का विजय हो गया।

       सुमित कुमार प्रसाद जिसके साथ मैं पहले रहता था उन से विदा लेकर जगदेव पथ से पटना के मंदिरी में शिफ्ट हो गया और नियमत: कला की तैयारी करने लगा। पटना कला महाविद्यालय के दीवारों पर बनी मधुबनी चित्रकला हमेशा से ही मुझे आकर्षित करती थी। मैंने नामांकन के दिन ही यह निर्णय कर लिया था कि जब मेरा इस महाविद्यालय में नामांकन हो जाएगा तो सबसे पहले मै इसी चित्र को बनाने के लिए सीखूंगा।

    लेकिन यहां पर सभी शिक्षकों एवं हमारे सीनियर भैया एवं दीदी का कहना था कि पहले स्केचिंग सीखो उसके बाद मधुबनी चित्र बनाना। लेकिन मैं अपने आपको बहुत ज्यादा दिनों तक रोक नहीं पाया और प्रथम वर्ष में ही Full Sheet पर पोस्टर कलर के माध्यम से एक मधुबनी चित्र बनाया। मेरी पेंटिंग जब पूरी हो गई तब उत्सुकता इतनी थी कि मैं उसे ग्लास में फ्रेम करवाकर अपने रूम में टांग भी दिया। एवं उसके उपरांत जो भी कोई रूम में आता तो मैं सभी को यह दिखाता कि यह जो पेंटिंग दीवाल पर टंगी है इसे मैंने बनाई है। इसी उत्सुकता के चलते एक और मधुबनी पेंटिंग मैंने बनाई, लेकिन वह Half Sheet पर। इस बार मैंने फैब्रिक कलर का प्रयोग किया और उसे भी फ्रेम करवाकर अपने घर लेकर गया। आर्ट कॉलेज में नामांकन लेने के बाद यह मेरी पहली पेंटिंग थी जिसे मैं अपने घर पर लगाया।


कला एवं शिल्प महाविद्यालय,पटना में मुझे 6 महीनों से ऊपर हो गए थे। यहां पर पढ़ाई करते हुए इस दरम्यान कई सारे मेरे मित्र भी हुए कुछ खास (Special) और कुछ तो बहुत खास (Very Special) भी हुए।


रविवार, 20 सितंबर 2020

“डायरी के पन्नों से”

नमस्कार 🙏आप सभी का हमारे Blog पर स्वागत है। आज आप सभी के बीच प्रस्तुत हैं “डायरी के पन्नों से” का छठा (Six) अंश। इस श्रृंखला को पढ़कर आप मेरे और मेरे कार्य क्षेत्र को और भी बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं। प्रत्येक रविवार को उसी आत्मकथा के छोटे-छोटे अंश को मैं आप सभी के बीच प्रस्तुत करूंगा और मुझे आपकी प्रतिक्रिया (Comment) का इंतजार रहेगा ताकि मैं इसे और बेहतर तरीके से आप सभी के बीच प्रस्तुत करता रहूं।

       डायरी के पन्नों के दुसरे, तीसरे और चौथे अंक में मैंने आपको, अपने महाविद्यालय एवं पटना के बेली रोड में स्थित अपने रूम के बारे में बताया था अब इस श्रृंखला में आगे की कहानी.........

         कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना में एक और नियम यह था कि क्लास के समाप्ति के बाद सभी विद्यार्थियों को पटना जंक्शन जाना होता था, ह्यूमन लाइव स्केचिंग (Human Live Sketching) करने के लिए। पटना जंक्शन पर सभी विद्यार्थी लगभग 3 से 4 घंटा रुकते थे और स्केचिंग का कार्य संपादित करते थे। लेकिन मुझे बेली रोड होते हुए अपने रूम जाना होता था तो इसी कारण पटना जंक्शन लाइव स्केचिंग के लिए नहीं जा पाता था पटना जंक्शन पर किए गए स्केचिंग को रोज आर्ट कॉलेज में दिखाना भी होता था इसलिए प्रत्येक विद्यार्थी कम से कम 50 स्केचिंग जरूर तैयार करते थे। केवल मैं ही ऐसा विद्यार्थी था जो स्केचिंग तैयार नहीं कर पाता था। 

            एक-दो दिन कॉलेज करने के बाद मुझे लगा कि मुझे भी बड़ा पेपर लेकर आना चाहिए क्योंकि सभी विद्यार्थी A-3 साइज के पेपर लाते थे और मैं A-4. मैंने A-3 साइज पेपर खरीदने को अभी सोच ही रहे थे कि उसी दिन अचानक से एक भैया मुझे महाविद्यालय की सीढ़ी पर मिल गये और मुझे बोले कि- अपनी स्केच बुक दिखाओ? उस भैया का नाम गोपाल था जो कि वर्तमान में गोपाल शून्य के नाम से फेसबुक पर मशहूर हैं और बतौर एक न्यूज़ चैनल में कार्टूनिस्ट जॉब कर रहे हैं। लेकिन उस समय वह महाविद्यालय के द्वितीय वर्ष में थे।


        मैंने उन्हें अपनी स्केचिंग की बुक दिखाई और वहीं पर खड़ा हो उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार करता रहा। लगभग एक-दो मिनट के बाद वह बोले इतनी छोटी स्केच बुक में स्केच करते हो कम से कम A-3 साइज के पेपर पर स्केच करो और एक स्केच पैड भी ले लो। मैंने उन्हीं से पूछ लिया कि वह सब कहां मिलेगा? क्योंकि मैं खुद खरीदने के लिए सोच रहा था। तब वह बोले कि- पटना संग्रहालय के पास मिलन नाम का एक दुकान होगा उसमें सब कुछ मिल जाएगा। मैंने उसी दिन वर्ग समाप्ति के बाद कॉलेज से निकला क्योंकि पटना संग्रहालय मेरे कॉलेज के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने ही था और उसमें प्रवेश के लिए दोनों तरफ से रास्ता था मैंने बायें वाले रास्ते का चयन किया और संग्रहालय वाले रोड पर चलने लगा। IBM के ठीक बगल में बायें साइड मुझे एक दुकान दिखा उसका नाम था "मिलेनियम" मैं थोड़ा सा कंफ्यूज हो गया कि भैया ने मिलन बोला था या मिलेनियम फिर मुझे लगा कि हो सकता है कहीं वह मिलेनियम को ही मिलन बोले हो। मैं वहां गया लेकिन वहां भी मुझे A-3 साइज के पेपर और बोर्ड नहीं मिला वहां पर मुझे केवल A-4 साइज का ही पेपर मिला। मैंने पुनः वही वहां से खरीद लिया और रूम चला गया।
       ऐसे मनुष्य की एक प्राकृतिक प्रवृत्ति भी होती है कि जब वह कोई नई चीजों को खरीदता है तो उसका कुछ ज्यादा ही उपयोग करता है मैंने भी वही किया और उस पर खूब सारा स्केचिंग की ताकि अगले दिन मै भैया को दिखा सकूं कि आपके कहे अनुसार मैंने पेपर खरीद लिया और उस पर स्केचिंग भी कर ली। अगले दिन वह कॉलेज में मुझे नहीं दिखे। मैंने दिन भर उन्हें ढूंढा और इत्तेफाक से वही सीढ़ी पर मुझे मिल गए जहां कल मिले थे और समय भी लगभग वही था यानी कि शाम का समय। 

        उन्होंने मुझे देखते ही अपने पास बुलाया और बोले कि- आज बहुत खुश नजर आ रहे हो मैंने कहा- जी भैया😊 आपने जो मुझे दुकान बताया था उसका नाम मिलन नहीं मिलेनियम है और वहां A-3 साइज का पेपर और बोर्ड नहीं मिलता। 
अब वह चौके!!! कि तुम्हें मिलन नहीं मिला। 
मिलन कला के लिए पूरे पटना में एक प्रसिद्ध दुकान है वहां से पूरे पटना के कलाकार कला सामग्री खरीदते हैं और पूरे आर्ट कॉलेज के भी सभी विधार्थी भी वही पर से अपनी कला सामग्री की खरीदारी करते हैं क्योंकि वह कला सामग्री पर कुछ छुट प्रदान करता है। पूरे बिहार के कलाकार एवं पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय में पढ़ने वाला प्रत्येक विद्यार्थी उस मिलन को जानता था, सिवाय मेरे।
उसके बाद उन्होंने मेरी स्केच बुक देखी और बोले- 
तुम आर्ट कॉलेज में क्यों आए हो? 
क्या करने के लिए आए हो? 
तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं?  
क्या तुम उनका पैसा बर्बाद करने के लिए पटना आए हो?
एक साथ इतने सारे प्रश्नों को सुनकर मैं तो घबरा गया। फिर एक-एक करके उनके सारे प्रश्नों का उत्तर दिया और एक प्रश्न मैंने उनसे भी पूछा कि आप यह सब प्रश्न मुझसे क्यों पूछ रहे हैं?
तब उन्होंने कहा कि तुमने जो यह स्केचिंग बनाया है ना इससे कहीं बहुत अच्छा मेरा स्टूडेंट जिसे मैं पढ़ाने जाता हूं वह अभी आठवीं क्लास में है वह बना लेता है और तुम कला महाविद्यालय के छात्र होकर ऐसा स्केच करोगे।
तुम्हारा नामांकन हो कैसे गया?
मैंने उनसे डरते-डरते कहा कि- भैया मैंने प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की हैं। उसके बाद नामांकन लिया है। 
तब वह बोले कि- अच्छा यह बताओ तुमको अपना कोर्स पुरा करने में कितना समय और पैसा खर्च होगा?
चूंकि कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय का कॉलेज है। इसीलिए उसमें फ़ी बहुत कम लगता है मैंने पूरा गणना करके बताया कि 5 साल का लगभग 05 से ₹6000 खर्च होंगे। तब वह जोर से हंसे और बोले कि बस!!! तुमको पटना में रहने और खाने-पीने का पैसा नहीं लगेगा? तब वह मुझसे बोले कि मैं बताता हूं कि तुम्हें कितना पैसा लगेगा पूरे 5 सालों में और यह कोर्स पूरा करने में।
मान लो रहने एवं खाने-पीने में 5000 प्रत्येक महीना। 
मैंने कहां हां। इतना तो लग ही जाएगा और कभी-कभी ज्यादा भी लग सकता है। 
तब उन्होंने कहां- इस हिसाब से साल भर का हुआ 12 x 5,000 = 60,000. और 5 साल का 60,000 x 5 = 300,000. पटना में केवल रहने एवं  खाने-पीने में ही ₹300000 खर्च होंगे। उसके साथ आर्ट मैटेरियल (कला-सामग्री) मान लो 1 महीने में यदि 500 का भी कला सामग्री खरीदते हो तो 5 साल का हुआ 30,000 और पटना रहने में कुछ एक्स्ट्रा खर्च भी होते हैं मान लो यदि हम एक महीने का 200 ही मानकर चलें तो पूरे 5 साल का हुआ 12000 अब हम इसे टोटल करते हैं।
5,000 + 300,000 + 30,000 + 12,000 = 347,000.
      यह राशि अनुमानत: है। इससे ज्यादा भी खर्च हो सकता हैं कम नहीं। अब यह बताओ तुम्हारे घर वाले इतना रुपया तुम्हें देंगे? और तुम क्या सीख पाओगे यहां से कुछ नहीं।
मैं कुछ देर सोचने लगा कि बात भी भैया सही ही कह रहे हैं। मुझे स्केचिंग तो आती नहीं और इतना पैसा खर्च हो रहा है। कहां से इतना पैसा आएगा? क्योंकि घर पर इतने पैसे तो है नहीं।
मुझे सोचता देख वह फिर बोले कि मैं बताता हूं तुम्हारा नामांकन कैसे हुआ? 
मैंने कहां- बताइए कैसे?
फिर वह मुझसे पूछे तुम्हारा कॉलेज रौल नंबर क्या है? 
मैंने कहा- 60 
और महाविद्यालय में सीट कितनी है? 
तब मैंने फिर कहां- 60. 
वही तो, कॉलेज में सीट बच रहा था इसीलिए तुम्हारा नामांकन महाविद्यालय ने ले लिया, कॉलेज का क्या है। उसे तो अपनी सीट फुल करनी होती है वह तो एडमिशन  लेगा ही। 
मेरे मन में उस समय यह बातें चल रही थी कि इस महाविद्यालय में नामांकन के लिए 500 से 600 छात्रों ने फॉर्म भरा था  और उन सभी ने परीक्षा भी दी उनमें से ही 60 का नामांकन हुआ तो मैं कहीं ना कहीं उन 600 छात्रों से बेहतर तो हूं ही। क्योंकि मैंने प्रवेश प्राप्त कर लिया था। लेकिन मैंने उक्त बातें गोपाल भैया को नहीं बताई। मैंने तो बस उनसे इतना ही कहां- जी भैया आप बोल तो सही रहे हैं। इतना सारा पैसा खर्च होगा? और 5 साल का समय भी बर्बाद होगा। 
उन्होंने कहां- वही तो मैं कह रहा हूं। 
तब मैंने उनसे अंतिम सवाल पूछा की- तब भैया मुझे क्या करना चाहिए?
उन्होंने गंभीर नजरों से मुझे देखा और शांत स्वर में बोले- तुम्हें कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना छोड़ देना चाहिए और किसी दूसरे पाठ्यक्रम में नामांकन लेना चाहिए या दूसरा कोर्स करना चाहिए।

क्रमश: .........


शनिवार, 19 सितंबर 2020

एडोब पेजमेकर (Adobe PageMaker)

 



Adobe PageMaker, D.El.Ed. 1st Year. F-12, Unit-3. B.S.E.B. Patna. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=UcrEynEdQIc&t=1s

एडोब पेजमेकर (Adobe PageMaker)

              पेजमेकर डी.टी.पी. का प्रमुख सॉफ्टवेयर है। यह पुस्तकों के प्रकाशन के लिए सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में इसका प्रचलित संस्करण 6.5 है। इसके द्वारा अक्षरों एवं लाइनों के बीच के स्पेश को कम ज्यादा किया जा सकता है तथा पृष्ठों की संख्या एक बार निश्चित करने के पश्चात् स्वत: ही चलती रहती है। इस सॉफ्टवेयर में टाइप मैटर के अलावा चित्रों का प्रयोग एवं उनमें संशोधन भी किया जा सकता है। पेजमेकर 6.5 में 14 टूल्स का प्रयोग किया जाता है। जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है:-

  • Pick Tool- इसके द्वारा किसी भी टाइप मैटर एवं चित्र को सलेक्ट करके उसका स्थान परिवर्तित किया जाता है। 
  • Type Tool- टाइप टूल द्वारा मैटर टाइप करते हैं। इस टूल का चुनाव करने के बाद पेज में जहाँ भी क्लिक करते हैं वहाँ करसर आ जाता है और उस स्थान पर मैटर टाइप कर सकते हैं तथा इस टूल द्वारा मैटर सलेक्ट करते हैं। 
  • Rotation Tool- इस टूल द्वारा मैटर या चित्र पर क्लिक करने पर मैटर के चारों तरफ नोड्स दिखने लगते हैं जिनकी सहायता से मैटर घुमाया जाता है। 
  • Crop Tool- इस टूल द्वारा चित्र के किसी भी भाग को काट सकते हैं तथा आवश्यता पड़ने पर उसे पुन: प्राप्त किया जा सकता है। 
  • Freehand line Tool- इस टूल द्वारा आवश्यकतानुसार रेखा खींच सकते हैं। 
  • Horizontal or Vertical Line Tool- आड़ी और खड़ी रेखा खींचने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
  • Box Tool– बॉक्स टूल द्वारा किसी भी आकार में वर्ग एवं आयत बनाते हैं। 
  • Box Frame Tool- यह टूल ऐसे आयत एवं वर्ग फ्रेम बनाने का कार्य करता है जिसमें अलग से चित्र एवं टेक्स्ट लगाया जाता है। 
  • Ellipse Tool– इस टूल द्वारा किसी भी आकार में गोलाकृति बनायी जा सकती है। 
  • Ellipse Frame Tool- यह टूल गोल फ्रेम बनाता है जिसमें आवश्यकतानुसार चित्र एवं टेक्स्ट को रखा जा सकता है। 
  • Polygons Tool- पोलीगन टूल द्वारा सभी तरह के त्रिभुज, चतुर्भुज, पंचभुज, आदि बनाये जाते हैं। 
  • Polygons Frame Tool– इससे विभिन्न प्रकार के फ्रेम बनाकर उनमें चित्र आदि लगाये जा सकते हैं। 
  • Hand Tool- इस टूल द्वारा डिजाइन को ऊपर-नीचे एवं दायें-बायें किया जाता है। 
  • Zoom Tool- जूम टूल द्वारा डिजाइन के किसी भी भाग को बड़ा करके देखा जाता है। 
            उपर्युक्त टूल्स में अधिकतर टूल्स पर डबल क्लिक करने पर स्क्रीन पर डायलॉग बॉक्स आते हैं जिनमें विभिन्न प्रोग्राम लिखे रहते हैं और आवश्यकतानुसार उनका प्रयोग किया जा सकता है। इनके अतिरिक्त विभिन्न तरह के प्रभाव डालने एवं कार्य करने के मीनू बार में स्थापित  File, Edit, Layout, Type, Element, Utilities, View, Window और Help की सहायता ली जाती है। जैसे- File मीनू में नई फाईल खोलना, सेव करना, बन्द करना, पेज सेटअप, प्रिन्ट, आदि। Edit मीनू में कॉपी करना, कट करना, पेस्ट करना, आदि। Layout मीनू में पेज इन्सर्ट, गो टू पेज, पेज रिमूव एवं कॉलम गाइड, आदि। Type मीनू में फोन्ट, साइज, लीडिंग, टाइप स्टाइल, पैराग्राफ, अलाइनमेंट, आदि की तरह ही प्रत्येक मीनू के अलग-अलग सहायक मीनू होते हैं, जिनका उपयोग अलग-अलग कार्य करने के लिए किया जाता है ।

एडोब फोटोशॉप (Adobe Photoshop) Hindi and English Notes.


Adobe Photoshop, D.El.Ed.1st Year. F-12, Unit-3. B.S.E.B. Patna.



 एडोब फोटोशॉप

                यह सॉफ्टवेयर मुख्यत: इमेज एडिटिंग के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसकी सहायता से डिजाइनर अपनी सृजन क्षमता को अधिक प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर सकता है। इसके द्वारा इमेज एडिटिंग टूल्स की सहायता से जटिल आकारों में भी विभिन्न पेंटिंग टूल्स एवं फिल्टर्स द्वारा विभिन्न प्रभाव डाले जा सकते हैं। फोटोशॉप द्वारा चित्रों के निमार्ण एवं स्कैनर द्वारा स्कैन किये गये फोटो या चित्रों में विभिन्न आकार के ब्रश, एयर ब्रश, पैंसिल, इमेज रोटेशन, रंगों के प्रभाव एवं सन्तुलन, फैदर, इमेज में बैकग्राउण्ड बदलना, आदि।  के द्वारा विभिन्न प्रभाव डाले जाते हैं। इन प्रभावों का उपयोग विभिन्न प्रकार के टेक्स्ट एवं लोगोटाइप आदि में भी किया जा सकता है। इस सॉफ्टवेयर में कार्य करते समय लेयर्स का प्रयोग किया जाता हैं। फोटोशॉप द्वारा इमेज रेडी के सहयोग से वेब ग्राफिक्स में भी विभिन्न प्रभाव डाले जा सकते हैं। वर्तमान में फोटो शॉप CS-6 एवं Photoshop-CC संस्करण उपलब्ध है। 


Photoshop-7.0 के मुख्य टूल एवं उनका उपयोग:-


  •  

    Marquee Tool -
    इस टूल के द्वारा आयताकार, वर्गाकार एवं गोलाई में सलेक्शन किया जाता है। 



  • Lasso Tool - इस टूल द्वारा इमेज या उसके किसी भी भाग को स्वतंत्र रूप से सलेक्ट करते हैं। 


  • Crop Tool - इस टूल का उपयोग इमेज के अनावश्यक भाग को काटने के लिए किया जाता है। 


  • Healing Brush Tool - इस टूल की सहायता से इमेज या उसके किसी भी भाग में ब्रश (एयर ब्रश) आदि के द्वारा रंग भरते हैं। 



  • Clone Stamp Tool - इस टूल की सहायता से इमेज या उसके किसी भी भाग की हू-ब-हू नकल दूसरे स्थान पर बना सकते हैं। 



  • Eraser Tool - इसके द्वारा इमेज को मिटाया जाता है। 



  • Smudge Tool - स्मज टूल के प्रयोग से इमेज के तत्वों में समरूपता (मिलान) लाने का कार्य किया जाता है।



  • Direct Selection Tool- यह टूल इमेज के डायरेक्ट सलेक्शन के लिए प्रयोग किया जाता है। 



  • Path selection Tool - इसके द्वारा इमेज में स्वतंत्र रूप से पाथ लाइनें लगाई जाती हैं।




  • Hand Tool - इस टूल के सहयोग से इमेज को ऊपर-नीचे एवं दायें-बायें खिसकाते हैं। 


  • Move Tool – इस टूल द्वारा इमेज या उसके किसी भाग को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। 



  • Magic Wand Tool – यह टूल इमेज में प्रयुक्त किसी भी एक रंग के पिक्सल्स (Pixels) को सलेक्ट करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  •  


  • Slice Tool- इस टूल द्वारा इमेज को छोटी-छोटी फाइलों में बाँटा जाता है। 



  • Paint Brush Tool - इस टूल द्वारा इमेज में कहीं भी साधारण ब्रश के प्रयोग से रंग भरते हैं। 


  • History Brush Tool- इस ब्रश द्वारा इमेज में विभिन्न प्रभाव डालने के बाद इमेज के किसी भी भाग को दुबारा उसी स्थिति में लाया जा सकता है।
  •  

  • Dodge Tool - यह टूल इमेज में प्रयुक्त रंगों को हल्का (टोनिंग) करने के लिए प्रयोग करते हैं। 



  • Type Tool - इस टूल से लिखने का कार्य करते हैं।
  •  

  • Custom Shape Tool - इस टूल द्वारा विभिन्न आकार आयत, वर्ग, पंचभुज, गोला एवं लाइनें बनायी जाती है।



  • Gradient/Paint Bucket - इस टूल द्वारा इमेज में अनुक्रम (ग्रेडियन्ट) प्रभाव वाले रंग भरे जाते हैं। 



  • Eyedropper Tool - इस टूल द्वारा इमेज में प्रयुक्त रंगों में से किसी भी रंग का चुनाव कर उसे अग्रभूमि (फोरग्राउण्ड) रंग के रूप में प्रयुक्त कर सकते हैं। 



  • Zoom Tool - इस टूल के प्रयोग से इमेज या उसके किसी भी भाग को बड़ा करके देख सकते हैं। 

  • Foreground Color, Background Color, Standard Mode, Quick Mask Mode एवं Screen Mode के प्रयोग के अतिरिक्त प्रत्येक टूल के बाक्स में नीचे दाये कोने में बने (4) तिकोन पर क्लिक करने से उस टूल के प्रतिरूप सामने आते हैं जिनका प्रयोग इमेज में अलग-अलग प्रकार के कार्य करने के लिए किया जाता है। उपर्युक्त टूल पर दो बार क्लिक करने से इनके ऑप्शन दिखाई देते हैं जिनका प्रयोग भी आवश्यकतानुसार किया जाता है।

      फोटो शॉप के मीनू बार में स्थापित विभिन्न मीनू File, Edit, Image, Layer, Select, Filter, View, Window के विभिन्न सहायक मीनू (Sub Menu) जैसे- New File, Open, Save, Save As, Printing, Pasting, Cuting, Image Size, Rotate Canvas, Layers, Proof Setup, Fit on Screen, Print Size आदि एवं विभिन्न प्लेट्स (Color Plate, Navigator Plate, Swatches Plate, Style Plate, History Plate, Layer Plate, Path Plate, Brushes Plate आदि) के विभिन्न ऑप्शनों के प्रयोग द्वारा आसानी से आवश्यकतानुसार कार्य किया जा सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर Help मीनू की सहायता भी ली जा सकती है।


Adobe Photoshop

             This software is mainly used for image editing. With the help of this, the designer can present his creative ability in a more effective way. With the help of image editing tools, various effects can be made by different painting tools and filters even in complex shapes. Creation of images by Photoshop and scanning photos or images by the scanner with different sizes of brushes, airbrushes, pencils, image rotation, color effects, and balance, feathering, changing the background in the image, etc. There are various effects. These effects can also be used in different types of text and logotypes etc. Layers are used while working in this software. Various effects can also be done in web graphics with the help of Image Ready by Photoshop. Currently, Photoshop CS-6 and Photoshop CC versions are available. 

The main tools of Photoshop - 7.0 and their use:-

  • Marquee Tool - With this tool, the selection is made in rectangular, square, and round. 

  • Lasso Tool - This tool allows you to freely select an image or any part of it. 

  • Crop Tool - This tool is used to cut the unnecessary part of the image. 

  • Healing Brush Tool - With the help of this tool, color is filled in the image or any part of it by means of airbrush, etc. 
  • Rubber Stamp Tool - With the help of this tool, you can make an exact copy of the image or any part of it in another place.
  •  
  • Eraser Tool - This is used to erase the image. 

  • Smudge Tool - The Smudge tool is used to bring uniformity to the elements of the image.

  • Direct Selection Tool - This tool is used for direct selection of images. 

  • Path Tool - Through this, path lines are added to the image independently.

  • Hand Tool - With the help of this tool, the image is moved up-down and right-left. 

  • Move Tool - This tool moves the image or any part of it from one place to another. 

  • Magic Wand Tool - This tool is used to select the pixels of any one color used in the image. 

  • Slice Tool - With this tool, the image is divided into small files. 

  • Paint Brush Tool - This tool fills color anywhere in the image with the use of a simple brush. 

  • History Brush Tool - After applying various effects to the image with this brush, any part of the image can be brought back to the same position. 

  • Dodge Tool - This tool is used to lighten the colors used in the image. 

  • Type Tool - Let's work on writing with this tool. 

  • Custom Shape Tool - This tool creates different shapes rectangles, squares, pentagons, spheres, and lines.

  • Gradient / Paint Bucket - This tool fills the image with gradient effect colors. 

  • Eyedropper Tool - With this tool, you can select any of the colors used in the image and use it as a foreground color. 

  • Zoom Tool - Using this tool, you can enlarge the image or any part of it. 
           In addition to the use of Foreground Color, Background Color, Standard Mode, Quick Mask Mode, and Screen Mode, clicking on the (4) tick in the bottom right corner of each toolbox reveals the patterns of the tools that are used to perform different types of tasks in the image. Double-clicking on the above tool shows the options which are also used as per the requirement.


      In the menu bar of the Photoshop, various menus such as File, Edit, Image, Layer, Select, Filter, View, Window, and various sub-menus such as New File, Open, Save, Save As, Printing, Pasting, Cutting, Image Size, Rotate Canvas, Layers, Proof Setup, Fit on Screen, Print Size, etc. and various plates (Color Plate, Navigator Plate, Swatches Plate, Style Plate, History Plate, Layer Plate, Path Plate, Brushes Plate, etc.) can be easily done by using various options.

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

नाटक की अवधारणा एवं बेंजामिन फ्रैंकलीन के विचार


नाटक की अवधारणा एवं बेंजामिन फ्रेंकलिन के विचार B.Ed.1st Year. EPC-2, Unit-1. Munger University. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=qG9WuWpgWqo&t=4s
 

भारतीय दृष्टि से नाटक लोकरंजन की एक विद्या है यह किसी भी विषय जैसे:- राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक क्षेत्रों में अभिनव के द्वारा व्यक्ति के समझ को विकसित करती है। भारत में इस विद्या की शुरुआत प्राचीन काल से ही मानी जाती हैं। 

लोक-कथाओं के अनुसार,

        भारत में इसका जन्म भरत की कथा से होता है उनके अनुसार त्रेतायुग  के समापन के समय व्यक्ति लोक ईर्ष्या, क्रोध, वासना, काम और लाभ से वशीभूत थे। तो उस समय इंद्र आदि देवताओं ने परमपिता ब्रह्मा से कहा:- हम ऐसा मनोरंजन का साधन चाहते हैं जिसे देखा भी जाए और सुना भी। उस समय वेदो का व्यवहार और श्रवण शुद्रो द्वारा नहीं किया जाता था। अतः ऐसे 05वें वेद की रचना कीजिए जो सार्वजनिक हो अथवा जो सभी वर्णों के लिए हो। देवताओं के इस अनुरोध को मानकर ब्रह्मा जी ने चारों वेदों से कुछ अंश लेकर पांचवें वेद अर्थात नाट्य वेद की रचना की। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि नाटक एक ऐसा मनोरंजन का साधन है जो श्रव्य एवं दृश्य हैं। ब्रह्मा जी नाट्य की मनोरंजकता  के विषय में नाट्यशास्त्र के प्रथम अध्याय में ही कहा है:-

विनोदजननं लोके नाट्यमेतदु भविष्यति

अर्थात, नाट्य संसार में विनोद उत्पन्न करने वाला होगा

भरतमुनि के सैकड़ों वर्ष बाद कालिदास के समय इसके गुणों में और अधिक वृद्धि हुई। उस समय नाटक से सामान्य जनता का तो मनोरंजन होता ही रहा देवताओं को प्रिय लगने वाला यज्ञ  का कार्य भी करता रहा। वर्तमान समय में नाटक के स्वरूप में परिवर्तन आया हैं। नाटक अब केवल मनोरंजन की वस्तु नहीं रही बल्कि यह अन्य व्यवस्थाओं में सम्मिलित होकर नए आयामों को स्थापित किया हैं। वर्तमान में राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में नुक्कड़ नाटक के द्वारा समय-समय पर सरकार द्वारा राजनीतिक संदेशों का प्रसार किया जाता रहा है। वहीं दूसरी ओर सामाजिक बुराइयों जैसे:- दहेज प्रथा, बाल-विवाह, भ्रूण हत्या तथा अन्य सामाजिक प्रथाओं को नुक्कड़ नाटक के द्वारा प्रदर्शित करके लोगों को जागरूक करने का काम भी किया जा रहा है। वहीं सांस्कृतिक रूप से भी किसी राज्य की वेशभूषा, रहन-सहन, खान-पान, बोल-व्यवहार एवं संस्कृति का प्रदर्शन का मुख्य विद्या नाटक ही है। इन सभी के अलावा नाटक को शैक्षणिक क्षेत्रो में भी प्रयोग किया गया। शैक्षणिक क्षेत्रों में इनके अनुप्रयोग को देखते हुए बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा है:-

 मुझे कहोगे तो मैं भूल जाऊंगा 

अगर तुम मुझसे सिखाओगे तो मैं याद रखूंगा 

लेकिन अगर तुम मुझे समस्या सुलझाने में शामिल करोगे तो मैं सीख जाऊंगा।


जीवन में दु:खद बात यह है कि हम बहुत जल्दी बड़े हो जाते हैं लेकिन समझदार देर से होते हैं।


बुद्धिमान व्यक्तियों को सलाह की जरूरत नहीं होती और मूर्ख लोग इसे स्वीकार नहीं कर पाते हैं।


मछलियों की तरह मेहमान भी तीन दिन बाद बदबू करने लगते हैं।


कुछ ऐसा लिखो जो पढ़ने लायक हो या कुछ ऐसा करो जो लिखने लायक।


ज्ञान में पूंजी लगाने से सर्वाधिक ब्याज मिलता है।


मित्र बनाने में धीमे रहिए और बदलने में और भी


छोटे-छोटे खर्चों से सावधान रहिए एक छोटा सा छेद बड़े से जहाज को डुबो सकता है।


लेनदारों की याददाश्त देनदारों से अच्छी होती है।


आलसी होना उतनी शर्म की बात नहीं है जितना कि सीखने की इच्छा ना रखना।


संतोष गरीबों को अमीर बनाता है  और असंतोष अमीरों को गरीब।


ईश्वर उसकी सहायता करता है जो खुद अपनी सहायता करें।


थकान सबसे अच्छी तकिया है।


अर्ध सत्य अक्सर एक बड़ा झूठ होता है।


धन से आज तक किसी को खुशी नहीं मिली और ना ही मिलेगा। जितना अधिक व्यक्ति के पास धन होता है वह उससे कहीं अधिक चाहता है। धन रिक्त स्थान को भरने के बजाय शून्यता को पैदा करता है।

रविवार, 13 सितंबर 2020

विद्यालय संस्कृति के संदर्भ में शिक्षको की भूमिका एवं चुनौतीयां


विद्यालय संस्कृति के संदर्भ में शिक्षको की भूमिका एवं चुनौतीयां D.El.Ed.2nd Year. S-4, Unit-2. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=D_jOF8RprXI

 विद्यालय संस्कृति:-  भारतीय संस्कृति हजारों वर्षों के विकास का फल है। यह सदैव विकासशील रही है विश्व के विभिन्न भागों से अनेक जनसमूह भारत में आकर बसे और अपने साथ अपनी संस्कृति परंपराएं भी लेकर आएं। भारतीय संस्कृति के विकास में विदेशी आक्रमणकारियों का भी योगदान रहा है। भारत में एक ऐसी मिली-जुली संस्कृति का विकास हुआ जिसमें अनेक संस्कृतियों का वैभव, श्रेष्ठता तथा तथा विविधता  साकार हो गई है। इसीलिए हम भारतीय संस्कृति को एक समाजिक संस्कृति कहते हैं। वास्तव में संस्कृति का अमूर्त संकल्पना है।जिसका मूर्त रूप मनुष्य के आचार-विचार, रीति-रिवाजों, परंपराओं वेशभूषा एवं रहन-सहन में मूर्तमान होता है।शिक्षण के क्रम में सामाजिक, संस्कृतिक तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। इनके संदर्भ में शिक्षक भूमिका एवं चुनौती पर हम चर्चा करते हैं- आज शिक्षकों की भूमिका में भी काफी बदलाव आया है। पहले जहां शिक्षक को ज्ञान दाता माना जाता था वहीं आज इसकी भूमिका सुगमकर्ता की हो गई है। यह माना जा रहा है कि शिक्षक किसी को सिखा नहीं सकते बल्कि वे वैसी परिस्थितियों के सृजनकर्ता होते हैं जिसमें बच्चा विभिन्न गतिविधियों में भाग लेकर अपने ज्ञान का सृजन करता है। शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षा शिक्षक केंद्रित न होकर बाल केंद्रित हो गई है। 

              शिक्षक निर्देशित करें बच्चों को ज्यादा से ज्यादा सोचने समझने बोलने एवं क्रिया करने का अवसर दिया जा रहा है इससे शिक्षकों की भूमिका में बड़ा बदलाव आया है परीक्षा का स्थान अब सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE- Continuous and Comprehensive Evaluation.) में ले लिया है। परीक्षा तथा सतत व्यापक मूल्यांकन को शिक्षण प्रक्रिया का अभिन्न अंग मानकर उसके अनुसार अपने मानस के निर्माण के लिए शिक्षकों की भूमिका में काफी बदलाव आया है। आज का युग ज्ञान के विस्फोट का युग है। शिक्षा के क्षेत्र में हमेशा नवीन विचारधाराओं का उदय हो रहा है जिसके कारण पूरी शिक्षण प्रक्रिया में बदलाव आया है इन बदलाव को समझकर शिक्षक स्वयं में आवश्यक कुशलताएं विकसित करने की अनिवार्यता समझ रहे हैं और उनकी भूमिका में बदलाव आ रहा है। कई बार शिक्षक अपनी समस्याओं का हल नहीं कर पाते इन समस्याओं के कुछ हद तक हल बताने में शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की भूमिका होती है। जिसके मद्देनजर शिक्षकों की भूमिका में भी बदलाव आ रहे हैं। अनुशासन एवं स्वाधीनता के मध्य समन्वय ने भी शिक्षकों की भूमिका को बदला है विद्यार्थियों को दंड देने की प्रथा में भी बदलाव आया है। 

एक सफल शिक्षक निम्नलिखित कार्यों को संपादित करते हैं:-

  1. एक सफल अध्यापक छात्र प्रेमी होता है तथा विद्यार्थियों के विकास में रुचि लेकर कठिनाइयों को हल करने में तत्पर रहता है छात्रों के हित चिंतक अध्यापक लोकप्रिय होते हैं। 
  2. अध्यापक शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ तथा चरित्रवान होना चाहिए उसमें नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता भी होनी चाहिए।
  3. अध्यापक का व्यक्तित्व प्रभावशाली होना चाहिए अर्थात वह अपने संपर्क में आने वाले छात्रों एवं अन्य व्यक्तियों का आदर और स्नेह  प्राप्त कर सकने में सक्षम हो। 
  4. अध्यापक का समाज के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण होना चाहिए। समाज के कार्यक्रमों में अध्यापकों को समुचित सहयोग प्रदान करना चाहिए। 
  5. उसे मनोविज्ञान का व्यवहारिक ज्ञान आवश्यक है जिससे कि वह बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओ तथा रूचियो, अभिरुचियो प्रेरणाओ, योग्यताओं एवं क्षमताओं को समझकर उचित मार्गदर्शन कर सके।
  6. अध्यापक अध्ययनशील होना चाहिए। शिक्षक में विषय एवं शैक्षिक विधियों में नवीनतम परिवर्तनों से परिचित होते रहने की जिज्ञासा अध्यापक में बनी रहनी चाहिए। 
  7. अध्यापक को अपने विषय पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए अर्थात उसके ज्ञान का स्तर इतना हो कि उसे पुस्तक अथवा नोट्स का दास ना बनना पड़े  अर्थात शिक्षक को अपने विषय में पूर्ण स्वामित्व  (Ownership) होना चाहिए। 
  8. अध्यापक स्वयं अथवा अपने व्यवसाय के प्रति हीनभावना से ग्रसित नहीं होना चाहिए अपने व्यवसाय में पूर्ण निष्ठा होनी चाहिए। 
  9. वह भावना ग्रंथियों एवं आत्मलोचन (Introspection आत्मनिरीक्षण) द्वारा अपने विकास में तत्पर होना चाहिए। 
  10. प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक शिक्षण विधियों बाल मनोविज्ञान एवं समस्या समाधान में दक्ष होता है। अतः अध्यापकों को प्रशिक्षित होना चाहिए तथा समय-समय पर नवीनतम पाठ्यक्रम या रिफ्रेशर कोर्स में भाग लेते रहना चाहिए। 
  11. अध्यापक की रुचियां विविध (Diverse) होनी चाहिए विशेषकर पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं तथा खेलकूद में अध्यापकों को अपना उचित योगदान प्रदान करना चाहिए। 
  12. अध्यापक का दृष्टिकोण प्रयोगात्मक होना चाहिए तभी वह शैक्षिक कार्यक्रमों की उपयोगिता का परीक्षण कर उसमें सुधार ला सकता है। 
  13. एक अध्यापक को सत्यवादी, सहिष्णु, तथा ईमानदार होना चाहिए। इन गुणों से युक्त प्रसन्नचित्त अध्यापक एक आदर्श  होता है एक अच्छे अध्यापक में अनेक गुण होते हैं अध्यापक को आदर्शवादी व्यवहारपरक होना चाहिए। एक शिक्षक को कैसा होना चाहिए यदि इस के बारे में बात की जाए तो वे निम्न बातें हैं जो एक अध्यापक के अंदर होना चाहिए समय का पाबंद हो, आदर्शवादी पहनावा हो, बातचीत करने का ढंग समुचित व नैतिकता का पालन करने वाला हो, आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण हो, सत्यभाषी हो, छात्र-छात्राओं का हितैषी  हो, सामाजिक क्रियाओ में भाग लेने वाला हो, और कल्याणी भावना से ओतप्रोत हो, इत्यादि।

“डायरी के पन्नों से"


नमस्कार 🙏आप सभी का हमारे Blog पर स्वागत है। आज आप सभी के बीच प्रस्तुत हैं “डायरी के पन्नों से” का पांचवा (Fifth) अंश। इस श्रृंखला को पढ़कर आप मेरे और मेरे कार्य क्षेत्र को और भी बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं। प्रत्येक रविवार को उसी आत्मकथा के छोटे-छोटे अंश को मैं आप सभी के बीच प्रस्तुत करूंगा और मुझे आपकी प्रतिक्रिया (Comment) का इंतजार रहेगा ताकि मैं इसे और बेहतर तरीके से आप सभी के बीच प्रस्तुत करता रहूं।


तो चलिए प्रस्तुत है, “डायरी के पन्नों से” का पांचवा (Fifth) अंश

मैं उसका हूं वह इस अहसास से इनकार करता है,
भरी महफिल में भी रुसवां, मुझे हर बार करता है। 
यकीन है सारी दुनिया को खफा है मुझसे वह लेकिन, 
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है।।

आज के डायरी के पन्नों की शुरुआत हम विश्व विख्यात कवि आदरणीय श्री कुमार विश्वास जी के अंदाज में कर रहे हैं। ऐसा हम क्यों कर रहें आपको आगे स्पष्ट समझ में आ जाएगा तो चलिए "डायरी के पन्नों से" की हम शुरूआत करते हैं.....
         मेरे बहुत सारे शौकों में से एक शौक यह भी रहा है- किताबों के संग्रह रखने का। इसीलिए कला महाविद्यालय में आते ही मुझे कला से संबंधित जो भी किताबें अच्छी लगती थी याँ फिर यूं कह लीजिए कि आर्ट कॉलेज की सामग्री एवं किताब बेचने वाले दुकान में कला से संबंधित जो भी नई किताब आती उसे सबसे पहले मैं ही खरीदता था। मैंने तो यहां तक दुकानदार को कह दिया था कि जब भी कोई नई किताब आप लाए सबसे पहले मुझे सूचित करें और वो वैसा करते भी थे। इसीलिए आर्ट कॉलेज के फर्स्ट ईयर में ही मेरे पास कला से संबंधित बहुत सारी किताबों का संग्रह हो गया था। जैसे:- मेमोरी ड्रॉइंग, कला-सैद्धान्तिक, स्केचिंग, ह्यूमन एनाटोमी, भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास, कला इतिहास, इत्यादि। कला महाविद्यालय में लड़कों से ज्यादा लड़कियां ही उपस्थित रहती थी लेकिन मुझे महाविद्यालय में आए हुए 4-5 महीना से ऊपर हो चुका था और आज तक किसी लड़की से बात करना तो दूर उसे अपना नाम तक नहीं बताए थे एक दिन एक लड़की जिसका नाम- "मुझे लगता है कि नाम का जिक्र यहां करना उचित नहीं है तो फिर भी संबोधन के लिए मैं उसे जिस नाम से बुलाता था वही नाम मैं आप सभी को बताता हूं" ""पगली लड़की"" वो पगली लड़की आज भी मेरे फेसबुक के फ्रेंड लिस्ट में है और रहेगी भी। As a Friend.

उसने मेरे पास एक ह्यूमन स्केचिंग की किताब देखी और शायद उसे वह किताब अच्छी भी लगी। वह मेरे पास आई और बोली:- क्या नाम है तुम्हारा?
कला महाविद्यालय की वह पहली लड़की थी यानी मेरे वर्ग की जिसने मेरा नाम पूछा हो। इससे पहले किसी भी लड़की "यानी मेरे वर्ग की" ने मुझसे बात नहीं की थी और ना हीं मेरा नाम पूछा था। हां कुछ सीनियर लोगों से जरूर बात हुई थी उसमें कुछ लड़कियां भी थी लेकिन बस औपचारिक ही। 
मैंने उस पगली लड़की को अपना नाम बताया:- वि...विश्वजीत कुमार।
उसने कहा:-  ऐसा क्यों बोल रहे हो?  
इसका जवाब मैंने कुछ नहीं दिया।
तब फिर उसने कहा:- यह तुम्हारी किताब है?
मैंने कहा:- हां
वह बोली:-  मैं इसे लेकर जा रही हूं और कुछ दिनों के बाद वापस लौटा दूंगी।
मैंने फिर कोई जवाब नहीं दिया। और वह किताब लेकर चली गई।
पर वो कुछ दिन अभी तक नहीं आया और उसने मेरी किताब आज तक नहीं लौटाई हैं। शायद इस छोटी-सी वार्तालाप को वह उस किताब में कैद करके रखना चाहती हो। या फिर कोई और वजह हो यह तो मुझे ज्ञात नहीं लेकिन शायद यह घटना उसे अब याद नहीं लेकिन वह घटनाक्रम मुझे आज भी याद है ऐसे उस पगली लड़की का शैक्षणिक कार्यकाल मेरे समानांतर ही रहा।
        कला महाविद्यालय में दो साल प्रारंभिक कोर्स करने के उपरांत तीसरे साल में एक विशिष्ट विषय का चयन करना होता है और उसके साथ एक वांछित विषय को लेकर तीन साल की पढ़ाई पूरी करनी होती है। द्वितीय वर्ष की परीक्षा के उपरांत हर छात्र इस ऊहापोह में रहता है कि वह कौन से विशिष्ट विषय का चयन करें और कौन से वांछित विषय को ले। मैंने विशिष्ट विषय में व्यावहारिक कला (Applied Art) और वांछित विषय में छायांकन (PHOTOGRAPHY) का चयन किया। कला महाविद्यालय में अधिकतर लड़कियां जो है वह चित्रकला का ही चयन करती है क्योंकि उन्हें चित्र बनाने में ज्यादा रुचि रहती है और लड़के जो होते हैं वह मूर्तिकला का चयन करते हैं। अप्लाइड आर्ट और फोटोग्राफी में कंप्यूटर से संबंधित ज्यादा कार्य होने की वजह से एक चित्रकार या फिर कलाकार इसे कला की श्रेणी में नहीं रखते हैं उन्हें लगता है कि फोटो खींचने का काम तो कैमरा के द्वारा होता है और आकृतियों को बनाने का कार्य कंप्यूटर के द्वारा तो इसे हम कला की श्रेणी में क्यों रखें। शायद यही वजह है कि अधिकतर छात्रों का रुझान चित्रकला और मूर्तिकला की ओर ही रहता है। लेकिन समय के साथ-साथ यह मान्यताएं भी धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही है। लेकिन मैंने जब 2012 में व्यवहारिक कला और छायांकन का चयन किया उस समय ऐसी स्थिति नहीं थी। मुझे तो आश्चर्य उस समय हुआ जब उस पगली लड़की ने फार्म को दिखाने के लिए मेरे पास लाया। एक बात मैं यहाँ कहना चाहूंगा वह कोई भी कार्य करती थी तो हमसे जरूर बात करती थी उसका कहना था कि मैं उसके लिए लकी (Lucky) हूं  मेरे सुझाव से किया गया कोई भी कार्य उसके लिए सफल जरूर होता है। जब मैं उसका फार्म चेक कर रहा था तो मुझे आश्चर्य हुआ कि उसने भी व्यवहारिक कला और छायांकन का ही चयन किया है। मैं तो खुश हो गया 
फिर भी उससे बोला कि उसने यह विषय का चयन क्यों किया है उसे तो चित्रकला लेना चाहिए।
उसने कहा:- मैंने तुम्हारा फार्म पहले ही देख लिया है।
मैंने कहा कि:- अरे पागल!!! मुझे इस विषय में रुचि है इसलिए मैंने इसका चयन किया है तुम इसका चयन क्यों कर रही हो।
तब उसने कहा की मैं अकेली नहीं हूं मेरे साथ दो लड़कियां और है जो इस  विषय का चयन की है।
मुझे लगा कि जब इसने चयन कर ही लिया है तो समझाना व्यर्थ है और इस तरह व्यावहारिक कला और छायांकन में मेरे पूरे बैच में मात्र 3 लड़कियां ही रही। मूर्तिकला विभाग का चयन एक भी लड़की ने नहीं किया सारी लड़कियों ने चित्रकला विभाग का चयन किया था।
         कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना में 2010 से 2015 तक मैंने पढ़ाई की और अपना B.F.A. (Bachelor of Fine Art) का कोर्स पूरा किया। इन 5 सालों के दरम्यान बहुत-सी छोटी-मोटी घटनाएं होती रही जिसे मैं आगे आप सभी के बीच साझा करता रहूंगा। 2015 में जब हम कला महाविद्यालय से पास आउट हुए और काशी विद्यापीठ में नामांकन लेने गए तब उस पगली लड़की का भी नामांकन इत्तेफाक से उसी महाविद्यालय में हो गया और इस तरह उसने और दो साल मेरे साथ M.F.A.(Master of Fine Art) कोर्स पूरा किया। 2017 में कोर्स पूरा होने के उपरांत मैंने शेखपुरा के बरबीघा, ओनामा में स्थित साई कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग, जो कि वर्तमान में मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर के अधीन स्वयं वित्त-पोषित B.Ed. कॉलेज है। वहां ज्वाइन कर लिया और वर्तमान में यही कार्यरत भी हूं। same the way (उसी तरह) उस पगली लड़की ने भी 2017 में झारखंड में एक B.Ed. कॉलेज ज्वाइन करने के लिए आवेदन किया उसमे भी ऑनलाइन फॉर्म भरने से लेकर सर्टिफिकेट पहुंचाने और साक्षात्कार कराने तक में मेरी भूमिका अग्रणी रही। जैसे वह कहती भी थी कि मैं उसके लिये लकी हूं और उस दिन भी लकी (Lucky) ही साबित हुआ और उसका उस कॉलेज में चयन हो गया। आज वह और मै सहायक प्राध्यापक (Assistant Professor) के पद पर कार्यरत हैं।
 वर्तमान में उसमें और मुझमे बस अंतर इतना ही है:- She's Married & I'm Single.


आज के डायरी के पन्नों का समापन मैं कुमार विश्वास की एक कविता के साथ कर रहा हूं। कविता का शीर्षक है:- 

पगली लड़की

मावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं,
जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,
जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है,
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बे-मन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मन करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाने में घबराते हैं,
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

दीदी कहती हैं उस पगली लडकी की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जज़्बात नहीं,
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है,
चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है,
जो पगली लडकी कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
सब कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।