कई वर्षों तक ज्वालामुखी की राख एवं मलबों में दबा रहा दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप।
शायद आपको शीर्षक पढ़ कर आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन यह सत्य है। दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप जो की इंडोनेशिया के जावा में स्थित है। कई वर्षों तक ज्वालामुखी की राख और जंगलों के बीच ढका रहा था। बोरोबुदुर के नाम से प्रसिद्ध यह स्तूप 9वीं शताब्दी में बनाया गया था और इसका निर्माण शैलेन्द्र राजवंश ने करवाया था। यह एक महायान बौद्ध मंदिर है, जो ऊंची पहाड़ियों पर बना हुआ है।
इस स्तूप को 1970 ई. के दशक में यूनेस्को की मदद से पुनः निर्मित किया गया। यह स्तूप तीर्थयात्रियों और Adventure lovers (अडवेंचर लवर्स) के बीच एक-समान रूप से लोकप्रिय है। इंडोनेशिया में प्राचीन मंदिरों को चण्डी के नाम से पुकारा जाता है इसलिए बोरोबुदुर स्तूप को भी कई बार चण्डी बोरोबुदुर भी कहा जाता है। इस स्तूप को विश्व का सबसे बड़ा और महानतम बौद्ध स्तूप माना गया है।
रैफल्स ने डच इंजिनियर एचसी कॉर्नेलियस को इस मंदिर को जमीन से बाहर निकालने का काम सौंपा था। कॉर्नेलियस के बाद डच प्रशासक हार्टमान ने उनके कार्य को आगे बढ़ाया और साल 1834 ई. में इस स्तूप को पूरी तरह से जमीन से बाहर निकाल लिया गया और साल 1842 ई. में इसके प्रमुख स्तूप को खोजा गया था।
स्तूप में कुल 2672 पैनल और बुद्ध की 504 मूर्तियां मौजूद हैं। इस प्रमुख स्तूप की ऊंचाई 115 फीट है। बोरोबुदुर स्तूप के निर्माण में लगभग 20 लाख क्यूबिक फीट ग्रे ज्वालामुखी पत्थर का उपयोग किया गया था। साल 1973 ई. में इस स्तूप के रिस्टोरेशन में यूनेस्को ने मदद की। यूनेस्को ने मंदिर के रिस्टोरेशन में वित्तीय मदद भी की थी, जिसके बाद बोरोबुदुर मंदिर का फिर से पूजा स्थल और तीर्थस्थल के रूप में उपयोग किया जाने लगा।
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