मंगलवार, 31 अगस्त 2021

Dr. Maria Montessori (डॉ० मारिया मांटेसरी)

 


       "We cannot teach a person to be an Artist but we can help him develop an eye that sees, a hand that obeys, and a soul that feels."

 - Maria Montessori (31 Aug 1870-06 May 1952)


         31 अगस्त 1870 को इटली में जन्मी डॉ० मारिया मांटेसरी बच्चों को शिक्षा देने की पद्धति में क्रान्तिकारी बदलाव लाने वाली शिक्षाशास्त्री और चिकित्सक थी। रोम विश्वविद्यालय में मंदबुद्धि बालकों की चिकित्सा का कार्य करते हुए उनका ध्यान उन बच्चो की शिक्षा की ओर गया और उन्होंने मांटेसरी पद्धति का विकास किया जो बाद में सामान्य बुद्धि बच्चो के शिक्षा के लिये भी उपयोगी पाया गया। 

      बाल विकास के लिए सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक मोंटेसरी प्रणाली में बच्चों को एक साथ काम करने, खेलने, अनुशासन और स्वतंत्रता पर महत्व दिया जाता है। मोंटेसरी पद्धति में कलात्मक अभिव्यक्ति से जुड़े कौशल पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते है और बच्चे की अपनी मूल और अनूठी कला को प्रोत्साहन देते है। मांटेसरी शिक्षण पद्धति में बच्चों को रंगने के लिए आयु क्षमता के अनुरूप कार्य दिया जाता है इससे बच्चे को न केवल एक बहुत अच्छी आत्म छवि मिलती है, बल्कि अवलोकन और कलात्मक प्रतिभा दोनों का कौशल होता है। 

      डॉ० मारिया मांटेसरी का विश्वास था कि बाल शिक्षा का मूल उद्धेश्य बच्चों के नैसर्गिक विकास (Natural development) में सहायक होना और बच्चों का सर्वांगीण विकास होना चाहिए। चिकित्साशास्त्र से सम्बंधित होने के कारण वे यह भी मानती थीं कि शिक्षा को बच्चों के साधारण मानसिक एवं ऐंद्रिक दोषों जैसे:- भीरुता (Cowardice), वाणीदोष, आदि। के सुधार में भी सहायक होना चाहिए। इस पद्धति पर चलाया जानेवाला पहला स्कूल श्रमिक बच्चो के लिये सेन लोरेंजो में 6 जनवरी 1907 को खुला था और 1913 में आयोजित प्रथम अन्तरराष्ट्रीय मांटेसरी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में अमरीका, अफ्रीका, भारत तथा कई यूरोपीय देशों के लोग सम्मिलित हुए थे।

       डॉ० मांटेसरी अपने दत्तक पुत्र मारिओ मांटेसरी के साथ 1939 में भारत आई थी और दस वर्ष तक यहां रह कर “शांति के लिए शिक्षा" जैसे विषयों पर कार्य किया। डॉक्टर मारिया मोंटेसरी को विश्वास था कि आप एक बच्चे को एक कलाकार बनने के लिए नहीं "सिखा" सकते हैं, हालांकि, वह बच्चों की रचनात्मक क्षमताओं का पोषण करने और उन्हें एक आंख जो देखती है, एक हाथ जो पालन करती है, और एक आत्मा जो महसूस करती है" विकसित करना सिखाती है।

उनका कहना था-

"We cannot teach a person to be an Artist but we can help him develop an eye that sees, a hand that obeys, and a soul that feels."

 -Maria Montessori.


"हम किसी व्यक्ति को कलाकार बनना नहीं सिखा सकते हैं, लेकिन हम उसे देखने वाली आंख, आज्ञा मानने वाले हाथ और महसूस करने वाली आत्मा विकसित करने में मदद कर सकते हैं।"  

-मारिया मोंटेसरी

        प्रत्येक बच्चा दुनिया के साथ अलग तरह से बातचीत करता है और कलात्मक अभिव्यक्ति बच्चों के रचनात्मक, दृश्य, संवेदी और भावनात्मक विकास के लिए आवश्यक है। व्यावहारिक शिक्षा को ज्यादा महत्त्व देने वाली डॉ० मारिया का विचार था कि वही शिक्षा पद्धति श्रेष्ठ है जो शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, नैतिक, संवेगात्मक दृष्टि से बालक का विकास करे। इसलिए उन्होंने संगीत, नृत्य, खेल-कूद, कला तथा रोचक गतिविधियों का समावेश किया।

        मोंटेसरी वातावरण में बच्चों को कला गतिविधियां उनकी रचनात्मकता का पता लगाने और उनका उपयोग करने में मदद करती हैं। इसमें बच्चों के लिए महत्वपूर्ण कला एक प्रक्रिया है न कि उत्पाद, जबकि वयस्कों के लिए कला का लक्ष्य एक उत्पाद का उत्पादन करना होता है। दुनिया में पढ़ाने के तरीक़ों की तस्वीर बदल के रख देने वाली डॉ० मारिया मांटेसरी का निधन 06 मई 1952 को हॉलैंड में हुआ।

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सोमवार, 30 अगस्त 2021

Stippling (सटिप्पलिंग) बिंदी-बिंदी से बनाया गया चित्र।

         Stippling एक पैटर्न का सृजन है जो कि छोटी-छोटी बिंदी का उपयोग करके अलग-अलग कोणों एवं छायांकन का अनुकरण करता हैं। यह पैटर्न प्रकृति में भी हो सकता है। इस तरह के कार्य का अनुकरण हमेशा कलाकारों द्वारा किया जाता है।

     stippling is a creation of a pattern simulating Varying degrees of solidity or shading by using small dots. Such a pattern may occur in nature and these effects are frequently emulated by artists.

          In a drawing or painting, the dots are made of pigment (रंगना) of a single colour, Applied with a pen or brush, The denser (घना) the dots, the darker the Apparent shade or lighter, If the pigment is lighter than the surface. This is similar to but distinct from  pointillism (बिंदु चित्रण), which uses dots of different colours to simulated (अनुरूपता बनाना) blended colours.

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रविवार, 29 अगस्त 2021

कला के षडंग या अंग (Shadang or Parts of Art.) हिंदी एवं English Notes.

         वात्स्यायन रचित कामसूत्र के तृतीय अध्याय की टीका जयमंगला में यशोधर पंडित ने आलेख्य (चित्रकला) के छः भेद किये हैं। 

(1) रूपभेद 

(2) प्रमाण 

(3) भाव 

(4) लावण्य योजना 

(5) सादृश्य 

(6) वर्णिका भंग। 


         ये छः भेद ही षडंग के नाम से जाने जाते हैं। 


रूपभेदा प्रमाणानि भाव लावण्ययोजनम्। 

सादृश्य वर्णिकाभंगः इति चित्र षडंगकम् ॥ 

-यशोधर पंडित✍️

 

(1) रूपभेद:- रूपभेद के द्वारा चित्र की भिन्नता प्रकट होती है। 

(2) प्रमाण:- इसके द्वारा चित्र की लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई तथा दूरी का पता चलता है। प्रमाण के द्वारा हम चित्र को सही स्थान देते हैं। 

(3) भाव:- भाव के द्वारा भावनाओं की अभिव्यक्ति की जाती है। इसके द्वारा रस की अभिव्यक्ति भी की जाती है क्योंकि रस आनन्द प्रदान करते हैं। 

(4) लावण्य योजना:- लावण्य योजना के द्वारा बाह्य सौन्दर्य की अभिव्यक्ति की जाती है। 

(5) सादृश्य:- सादृश्य के द्वारा आकृति की समानता प्रकट की जाती है अर्थात् जो चीज जैसी दिख रही है वैसी ही होनी चाहिए। 

(6) वर्णिका भंग:- भावों के अनुकूल रंग योजना से चित्र का निर्माण करना वर्णिका भंग कहलाता है। 


अतः चित्रकार वही श्रेष्ठ होता है जो अपने चित्रों में इन छः अंगों का भली प्रकार प्रयोग करता है।


            In the commentary Jayamangala of the third chapter of Kamasutra composed by Vatsyayana, Yashodhara Pandit has made six distinctions of aalekhyya (painting).


 (1) Variation


 (2) Proof


 (3) Expressions


 (4) Lavanya Yojana


 (5) Analogy


 (6) Varnika bhank.


 These six distinctions are known as Shadanga.



 Rupbheda Pramani Bhava Lavanyayojanam.


 Sadrishy Varnika bhank: Iti Chitra Shadangakam.


 Yashodhar Pandit✍️



 (1) Variation:- The difference of the picture is manifested through the variation.


 (2) Proof: - By this the length, width, thickness and distance of the picture are known.  By proof we give the correct position of the picture.


 (3) Bhava:- Emotions are expressed through expressions.  Rasa is also expressed through this because rasa gives pleasure.


 (4) Lavanya Yojana: - The external beauty is expressed through the Lavanya scheme.


 (5) Analogy:- By analogy, the similarity of the shape is revealed, that is, the thing which is visible should be as it is.


 (6) Color break:- Creating a picture with a color scheme suited to the expressions is called color fracture.



 Therefore, the best painter is the one who makes good use of these six parts in his paintings.

गुरुवार, 26 अगस्त 2021

कला का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definitions of Art) हिंदी एवं English Notes.


 कला का अर्थ 

     किसी भी कार्य को पूरी कुशलता या निपुणता से सम्पन्न करना कला कहलाता है। जैसे:- मूर्ति बनाना, चित्र बनाना, भवन या मंदिर बनाना, गीत गाना, काव्य रचना, आदि। 

     गीत गाना कला तभी कही जायेगी जब गीत सुमधुर और लय-ताल के साथ गाया जाये। इसी प्रकार काव्य, नाटक, चित्र, मूर्ति, आदि। कला की परिधि में तभी आयेगी जब उसमें अर्थ, रस, भाव और रूप की सुन्दर निष्पति हो। 

        कला शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम ऋग्वेद में हुआ है। कला संस्कृत भाषा का शब्द है। इसकी व्युत्पत्ति कल धातु से हुई है जिसका अर्थ होता है:- प्रेरित करना। लेकिन कुछ विद्वान इसकी उत्पति कड़ धातु से मानते हैं जिसका अर्थ होता है:- प्रसन्न करना 

कला की परिभाषा 

रविन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार, “कला में मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति करता है।" 

जयशंकर प्रसाद के अनुसार, “ईश्वर की कर्तव्यशक्ति का संकुचित रूप जो हमको बोध के लिए मिलता है, वही कला है।" 

मैथलीशरण गुप्त के अनुसार, “अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति ही तो कला है, जो अपूर्ण कला की पूर्ति है।" 

नीत्शे के अनुसार, “कला जीवन के कड़वे अनुभवों से मुक्ति का माध्यम है।

Note:- फ्रेडरिक नीत्शे जर्मनी के दार्शनिक थे। मनोविश्लेषणवाद, अस्तित्ववाद एवं परिघटनामूलक चिंतन के विकास में नीत्शे की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। व्यक्तिवादी तथा राज्यवादी दोनों प्रकार के विचारकों ने उनसे प्रेरणा भी ली है।

प्लेटो के अनुसार, "कला सत्य की अनुकृति है।" 

Note:- प्लेटो, या अफ़्लातून, यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वह सुकरात के शिष्य तथा अरस्तू के गुरू थे। यूरोप में ध्वनियों के वर्गीकरण का श्रेय प्लेटो को ही जाता है।

अरस्तू के अनुसार, "कला प्रकृति का अनुकरण हैं।" 

Note:- अरस्तु यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था। अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया।

फ्रायडं के अनुसार, "कला दमित वासनाओं का उभरा हुआ रूप है।" 

Note:- सिग्मंड फ्रायड आस्ट्रिया हंगरी के तंत्रिकाविज्ञानी तथा मनोविश्लेषण के संस्थापक थे।

क्रोचे के अनुसार, "हर एक महान कला ईश्वरीय कृति के प्रति मानव अहलाद की अभिव्यक्ति है।"

Note:- बेनेदितो क्रोचे इटली का आत्मवादी दार्शनिक था। उसने अनेकानेक विषयों पर लिखा जिनमें दर्शन, इतिहास, सौन्दर्य शास्त्र आदि प्रमुख हैं। वह उदारवादी विचारक था किन्तु उसने मुक्त व्यापार का विरोध किया।

टाल्सटॉय के अनुसार, "कला भावों को क्रिया, रेखा, रंग, ध्वनि या शब्दो द्वारा इस प्रकार अभिव्यक्त करना है जिसे देखने या सुनने वाले के मन में वही भाव उत्पन्न हो जाये।

हीगेल के अनुसार, "कला आदि भौतिक सत्ता को व्यक्त करने का माध्यम है।" 

रस्किन के अनुसार, "कला में मनुष्य अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति प्रस्तुत करता है।

Note:- रस्किन बॉण्ड अंग्रेजी भाषा के एक विश्वप्रसिद्ध भारतीय लेखक हैं।

Meaning of art

        To complete any work with full skill is called art. Such as:- Making Sculpture, making Painting, making buildings or temples, singing a songs, composing poetry, etc.

      singing a songs art will be called then should be song with melody and rhythm.  Similarly poetry, drama, pictures, idols, etc.  The net will come under the periphery of art, only then there should be beautiful results of artha, rasa, emotion and form.

         The word Kala is first used in Rigveda.  Art is a Sanskrit word.  It is derived from the root kal which means:- To inspire.  But some scholars consider its origin from the kadh, which means: - Happiness.

 Definition of Art 

According to Rabindranath Tagore, “Man expresses himself in art.”

 According to Jaishankar Prasad, "The narrow form of the power of God's duty which we get for realization, that is art."

 According to Maithilisharan Gupta, "Art is the skillful power of expression, which is the fulfillment of imperfect art."

 According to Nietzsche, “Art is a means of liberation from the bitter experiences of life.

 Note:- Friedrich Nietzsche was a German philosopher.  Nietzsche has played an important role in the development of psychoanalysis, existentialism and phenomenological thinking.  Both individualist and stateist thinkers have also taken inspiration from him.

 According to Plato, "Art is the imitation of truth."

Note:- Plato, or Aflatun, was a famous Greek philosopher. He was a disciple of Socrates and a teacher of Aristotle. Plato is credited with classifying sounds in Europe.

 According to Aristotle, "Art is the imitation of nature.

Note:- Aristotle was a Greek philosopher. He was a disciple of Plato and a teacher of Alexander. He was born in a town called Stegeria. Aristotle composed on many subjects including physics, spirituality, poetry, drama, music, logic, political science, ethics, biology. Aristotle carried forward the work of his mentor Plato.

 According to Freud, "Art is the embodiment of repressed desires."

 Note:- Sigmund Freud was an Austrian Hungarian neuroscientist and the founder of psychoanalysis.


 According to Kroche, "Every great art is an expression of the human spirit towards a divine creation."

 According to Tolstoy, "Art is the expression of emotion by action, line, colour, sound or words in such a way that the same emotion arises in the mind of the one who sees or hears it."

 According to Hegel, "Art etc. is a means of expressing material existence."

 According to Ruskin, "In art man presents the expression of his feelings.

 Note:- Ruskin Bond is a world famous Indian writer of English language.

मंगलवार, 24 अगस्त 2021

मैं आज़ाद भारत १९४८ से लेकर २०१९ तक की बड़ी घटनाएं

1948 महात्मा गांधी की हत्या 

1948 कश्मीर के विवादित इलाके को लेकर पाकिस्तान के साथ युद्ध 

1951-52 कांग्रेस ने पहले आम चुनाव जीते, जवाहरलाल नेहरू पीएम 

1962 चीन के साथ युद्ध 

1965 कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ भारत की दूसरी जंग 

1966 नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं 

1971 पाकिस्तान के साथ तीसरी जंग, बांग्लादेश अलग मुल्क बना 

1974 भारत ने पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया 

1975 इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की 

1984 सिख चरमपंथियों को स्वर्णमंदिर से बाहर निकालने के लिए सैन्य अभियान 

1984 इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या की 

1984 भोपाल में यूनियन कार्बाइड के कारखाने से गैस लीक, हज़ारों की मौत

1991 पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या, आत्मघाती हमलावरों का हाथ

1991  प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू किए

1992 हिंदू कट्टरपंथियों ने अयोध्या में मस्जिद को गिराया, कई जगह दंगे हुए 

1996 आम चुनावों में कांग्रेस की हार, बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी 

1998 अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी ने गठबंधन सरकार बनाई

1998 भारत ने परमाणु परीक्षण किए 

1999 वाजपेयी ऐतिहासिक यात्रा पर बस से पाकिस्तान के शहर लाहौर गए 

1999 भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध 

2000 भारत की आबादी ने एक अरब का आंकड़ा छुआ 

2002 गोधरा में 59 हिंदू श्रद्धालुओं की ट्रेन की बोगी में आग से मौत, दंगे भड़के 

2004 कांग्रेस सत्ता में लौटी, मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने 

2006 भारत की सबसे बड़ी रोजगारी गारंटी योजना मनरेगा शुरू 

2006 भारत और अमेरिका के बीच परमाणु समझौता 

2007 प्रतिभा पाटिल भारत की पहली महिला राष्ट्रपति बनी 

2008 चांद पर पहला अभियान, चंद्रयान-1 भेजा गया 

2008 आर्थिक राजधानी मुंबई पर चरमपंथी हमला 

2010 अयोध्या मुद्दे पर ज़मीन का हिंदू-मुसलमानों के बीच बंटवारे का फैसला 

2014 बीजेपी सत्ता में लौटी, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने 

2016 नरेंद्र मोदी सरकार का नोटबंदी का फैसला 

2018 सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में कहा- समलैंगिक संबंध अपराध नहीं है 

2019 जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर चरमपंथी हमला 

2019 जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म, विशेष राज्य का दर्जा भी छिना

2019 अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला


Sabhar:- BBC Hindi

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सोमवार, 23 अगस्त 2021

लोगों को नजर-अंदाज करना सीखें तभी आप ऊंची उड़ान भर सकते हैं।


           "लोगों को नजर-अंदाज करना सीखें तभी आप ऊंची उड़ान भर सकते हैं।" इस वाक्य की सर्तकता को हम एक कहानी के माध्यम से समझते हैं। कौआ एकमात्र ऐसा पक्षी है जो बाज़ पर चोंच मारने की हिम्मत करता है अन्यथा ऐसी साहस दूसरे किसी पक्षी में नहीं है। वह बाज़ की पीठ पर जा बैठता है और उसकी गर्दन को काटने का प्रयास करता है लेकिन बाज़ जवाब नहीं देता और न ही उस कौआ से लड़ता है क्योंकि उसे पता है की इस तुच्छ प्राणी पर समय देना निरर्थक है।

           वह तो बस अपने पंख खोलता है और आसमान में ऊँचा उठना शुरू कर देता है। उड़ान जितनी ऊँची होती है, उतना ही मुश्किल होता है ऊपर साँस लेना और फिर आक्सीजन की कमी के कारण कौआ नीचे गिर जाता हैं अंतत: उसकी मृत्यु हो जाती है।

           हम सभी के जीवन में भी ऐसे ही कौवे रूपी लोगों की उपस्थिति रहती है जो वक्त-बेवक्त हमें परेशान किया करते हैं। मनुष्य रूपी कौओं के साथ हमे अपना समय बर्बाद नही करना चाहिए। बस खुद ऊंचाइयों पर चले जाना चाहिए। हमे अपने कार्य मे सतत लगे रहना चाहिए वे सभी स्वत: ही मिट जाएंगे......

#ignore😎🤗

सोमवार, 16 अगस्त 2021

भारत और विश्व के प्रसिद्ध एवं श्रेष्ठतम जलरंग चित्रकार समीर मण्डल।


          यह पेंटिंग तो आपको याद ही होगा यदि आपने आमिर खान की सुपरहिट फिल्म तारें जमीं पर देखी होगी। इस चित्र को बनाने वाले चित्रकार का नाम है समीर मण्डल आज के इस लेख में हम उसी अद्भुत चित्रकार के बारे में चर्चा करेंगे।

          भारत और विश्व के प्रसिद्ध और श्रेष्ठतम जलरंग चित्रकारों में गिने जाने वाले समीर मण्डल मूल रूप से कोलकाता, पश्चिम बंगाल के है। इनका जन्म 1952 में हुआ था और इनकी कला शिक्षा भी गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एन्ड क्राफ्ट, कोलकाता में ही हुई थी, वर्तमान में यह मुंबई में रहते हैं। इन्होंने जल रंग (Water Colour) चित्रण के क्षेत्र में किए गए अपने नए सफल अद्भुत प्रयोगों के लिए अपार ख्याति अर्जित की है।

          समीर मण्डल ने अपने जल रंग चित्रों को तैल चित्रों (Oil Colour) की विशेषताओं के साथ संपन्न किया, जिसकी इससे पहले किसी के द्वारा कल्पना भी नहीं की गई थी। उन्होंने तेल चित्रों का गहन अध्ययन किया एवं तैल चित्रों की विशेषताओं, उनमे निहित गुणवत्ता, चित्रों में उनकी प्रचुरता ओर उनके तत्वों को अपने जल रंग चित्रों में सफलतापूर्वक उतारा।
   
         तैल रंग के चित्रों की विशेषताओं को आत्मसात करते हुए भी इनके जलरंग चित्रों ने कभी अपनी मौलिकता नहीं खोई। इन्होंने आमिर खान की प्रसिद्ध फिल्म तारें जमीं पर के लिए दो चित्र भी बनाए थे और उसमें छोटा सा अभिनय भी किया था।

 

रविवार, 15 अगस्त 2021

साई ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन ओनामा के प्रांगण में 75वां स्वतंत्रता दिवस को अमृत महोत्सव के रूप में मनाया गया।

साई ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन ओनामा के प्रांगण में 75वां स्वतंत्रता दिवस को अमृत महोत्सव के रूप में मनाया गया। 

कार्यक्रम के वीडियो को प्राप्त करने के लिए यहां क्लिक करें।

         साई ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन, ओनामा के परिसर में आज 75वां स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अमृत महोत्सव के रूप में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के शिक्षकगण, कर्मचारीगण एवं सभी प्रशिक्षुओं की उपस्थिति रही। झंडोत्तोलन का कार्य महाविद्यालय के अध्यक्ष अँजेश कुमार के द्वारा किया गया।


           इस कार्यक्रम की शुरुआत गोपाल माहेश्वरी द्वारा रचित रचना "नवयुग की नव गति नवलय हम"  का मंचन महाविद्यालय की प्रशिक्षु अक्षिता आनन्द, निभा, सीमा एवं वंदना के द्वारा किया गया।

नवयुग की नव गति नवलय हम ,
साध रहे होकर निर्भय।
मुक्तकंठ से  दसों -  दिशा में ,
गूँजे भारत माँ की जय।।

स्वतंत्रता का अमृत उत्सव ,
जनगणमन का पर्व महान।
याद आ रहे वीर सभी वे  ,
हुए देशहित जो बलिदान।।
उनका कृतज्ञ वंदन करने का
महापर्व है यह निश्चय।।
मुक्तकंठ से  दसों -  दिशा में 
गूँजे भारत माँ की जय।।

बड़ी विकट थी कालरात्रि वह
पराधीनता लदी हुई।
कितने कष्ट सहे माता ने
युग समान वे सदी गईं।।
पंद्रह अगस्त सन सैंतालिस
स्वातंत्र्य सूर्य था पुनः उदय।।
मुक्तकंठ से  दसों -  दिशा में 
गूँजे भारत माँ की जय।।

सजग सपूत समर्थ बनें हम
कभी सूर्य यह अस्त न हो।
अमृत पुत्रों के रहते फिर
भारत माता त्रस्त न हो।।
यह स्वातंत्र्य फले और फूले
सदा रहे अमृत अक्षय।।
मुक्तकंठ से  दसों -  दिशा  में 
गूँजे भारत माँ की जय।।


गोपाल माहेश्वरी✍️

वीडियो के लिए यहां क्लिक करें।

           उक्त कार्यक्रम को संबोधित करते हुए महाविद्यालय के अध्यक्ष ने कहां की समाज में फैले कुरीतियों को शिक्षक के द्वारा ही दूर किया जा सकता है एवं इस कार्य मे आप सभी का सहयोग अपेक्षित होना चाहिए। इस स्वतंत्रता दिवस को अमृत महोत्सव के रूप में मनाने के लिए उन्होंने सभी को शुभकामनाएं दी। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष बालदेव प्रसाद सहायक प्राध्यापक सर्वेश कुमार राय, राकेश गिरी, रविंद्र कुमार, विश्वजीत कुमार एवं उमाशंकर विद्यार्थी प्रशाखा पदाधिकारी के रूप में राजाराम एवं रघुवीर शंकर पुस्तकालय अध्यक्ष अदीबा आजमी कंप्यूटर संकाय के आसित अमन, हर्षवर्धन, मनीष शंकर और सीताराम सिंह की उपस्थिति रही।




मंगलवार, 10 अगस्त 2021

कई वर्षों तक ज्वालामुखी की राख एवं मलबों में दबा रहा दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप।

कई वर्षों तक ज्वालामुखी की राख एवं मलबों में दबा रहा दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप।

             शायद आपको शीर्षक पढ़ कर आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन यह सत्य है। दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप जो की इंडोनेशिया के जावा में स्थित है। कई वर्षों तक ज्वालामुखी की राख और जंगलों के बीच ढका रहा था। बोरोबुदुर के नाम से प्रसिद्ध यह स्तूप 9वीं शताब्दी में बनाया गया था और इसका निर्माण शैलेन्द्र राजवंश ने करवाया था। यह एक महायान बौद्ध मंदिर है, जो ऊंची पहाड़ियों पर बना हुआ है। 

             इस स्तूप को 1970 ई. के दशक में यूनेस्को की मदद से पुनः निर्मित किया गया। यह स्तूप तीर्थयात्रियों और Adventure lovers (अडवेंचर लवर्स) के बीच एक-समान रूप से लोकप्रिय है। इंडोनेशिया में प्राचीन मंदिरों को चण्डी के नाम से पुकारा जाता है इसलिए बोरोबुदुर स्तूप को भी कई बार चण्डी बोरोबुदुर भी कहा जाता है। इस स्तूप को विश्व का सबसे बड़ा और महानतम बौद्ध स्तूप माना गया है।

              रैफल्स ने डच इंजिनियर एचसी कॉर्नेलियस को इस मंदिर को जमीन से बाहर निकालने का काम सौंपा था। कॉर्नेलियस के बाद डच प्रशासक हार्टमान ने उनके कार्य को आगे बढ़ाया और साल 1834 ई. में इस स्तूप को पूरी तरह से जमीन से बाहर निकाल लिया गया और साल 1842 ई. में इसके प्रमुख स्तूप को खोजा गया था।

           स्तूप में कुल 2672 पैनल और बुद्ध की 504 मूर्तियां मौजूद हैं। इस प्रमुख स्तूप की ऊंचाई 115 फीट है। बोरोबुदुर स्तूप के निर्माण में लगभग 20 लाख क्यूबिक फीट ग्रे ज्वालामुखी पत्थर का उपयोग किया गया था। साल 1973 ई.  में इस स्तूप के रिस्टोरेशन में यूनेस्को ने मदद की। यूनेस्को ने मंदिर के रिस्टोरेशन में वित्तीय मदद भी की थी, जिसके बाद बोरोबुदुर मंदिर का फिर से पूजा स्थल और तीर्थस्थल के रूप में उपयोग किया जाने लगा।




गुरुवार, 5 अगस्त 2021

हुनर के हीरो क्विज़ प्रतियोगिता के विजेता विश्वजीत कुमार।



           कला तो उनमें भरपूर है बस जरूरत है आपके सपोर्ट की। जिस तरह का सपोर्ट हिरोमोटो कॉर्प हमेशा से कलाकारों एवं हुनरबाजो के लिए करता आया है इसीलिए हीरो ने प्रस्तुत किया हुनर के हीरो कंपटीशन को तो आइए देखते हैं हमारे क्विज़ के विनर हैं। जिनका नाम हम आपके समक्ष रख रहे हैं जिन्होंने धमाकेदार जवाब देकर हमारे क्विज़ सेक्शन का विनर हुए हैं उनको हम गिफ्ट हैम्पर पहुंचाएंगे हीरो मोटोकॉर्प के तरफ से।

तो हमारे क्विज़ सेंगमेंट के विनर हैं:- 


 विश्वजीत कुमार जी आपके लिए जोरदार तालियां👏🏻👏🏻👏🏻


 

बुधवार, 4 अगस्त 2021

कार्टून किरदारों में ’प्राण’ भर देने वाले जादूगर, सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट प्राण कुमार शर्मा जी को सादर नमन🙏

 

 "यदि मैं लोगों के चेहरे पर एक मुस्कान ला सका तो मैं अपने जीवन को सफल मानूंगा।’’

            यह कहना था सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट प्राण कुमार शर्मा जी का आज ही के दिन यानी 05 अगस्त 2014 को चाचा चौधरी, साबू, बिल्लू, पिंकी, रमन और श्रीमती जी जैसे मशहूर कार्टून किरदारों के रचयिता प्राण ने 76 साल की उम्र में अंतिम सांस ली थी। गैर-विभाजित भारत में लाहौर के पास कासूर में 15 अगस्त 1938 को जन्मे प्राण का पूरा नाम प्राण कुमार शर्मा था। बंटवारे के बाद उनका परिवार भारत आ गया और उन्होंने राजनीति विज्ञान में परास्नातक की डिग्री के बाद मुम्बई के सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स से फाइन आर्ट्स में चार वर्षीय डिग्री ली।

        प्राण ने कार्टून बनाने की शुरूआत 1960 में दिल्ली के दैनिक समाचारपत्र ‘मिलाप’ की कॉमिक स्ट्रिप ‘दब्बू’ से की। वर्ष 1969 में प्राण ने बाल पत्रिका ‘लोटपोट’ के लिए चाचा चौधरी का स्केच बनाया, जिसने उन्हें लोकप्रिय बना दिया। उन दिनों हमारे देश में विदेशी कॉमिक्स का ही प्रचलन था, ऐसे में प्राण ने भारतीय पात्रों की रचना करके स्थानीय विषयों पर कॉमिक बनाना शुरू किया। पांच दशक के लंबे कॅरियर में हिन्दी व अन्य भाषाओं के समाचार पत्र-पत्रिकाओं में उनके रचे बिल्लू, पिन्की, तोषी, गब्दू, बजरंगी पहलवान, छक्कन, जोजी, ताऊजी, गोबर गणेश, चम्पू, भीखू, शान्तू आदि अनेक पात्र धूम मचाते रहे। हास्य और रोमांच से भरे ये कॉमिक बच्चों और बड़ों का भरपूर मनोरंजन करते और वह भारतीय कॉमिक के सबसे लोकप्रिय कार्टूनिस्ट बन गये। लगातार सफलता के क्रम में 1983 में देश की एकता को लेकर उनके द्वारा बनाई गयी कॉमिक ‘रमन- हम एक हैं’ का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी जी ने किया था।

        कार्टूनिस्ट प्राण ने 500 से ज्यादा शीषर्क प्रकाशित किए और उनके 25000 से ज्यादा कॉमिक्स 10 भाषाओं में छपे। कई कृतियों पर कार्टून फिल्में भी बनाई गई एवं 2009 में एक फिल्म में रघुबीर यादव ने चाचा चौधरी का किरदार निभाया था। अमेरिका के इंटरनेशनल म्यूज़ियम ऑफ कार्टून आर्ट में उनकी बनाई कार्टून स्ट्रिप ‘चाचा चौधरी’ को स्थाई रूप से रखा गया है। भारतीय कॉमिक जगत के सबसे सफल कार्टूनिस्टों के रूप में उनके पात्र जनमानस में हमेशा लोकप्रिय रहेंगे।

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सोमवार, 2 अगस्त 2021

भारत के राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइनर (Designer of National Flag of India)

Remembering valorous freedom fighter & Designer of the Indian National Flag Pingali Venkaiah Jee on his Birth Anniversary.

        In 1916, he published a booklet titled "A National Flag For India" describing flags of different countries & also gave his ideas towards Indian National Flag.




रविवार, 1 अगस्त 2021

लक्ष्मण रेखा और चीटियां🐜

 


चीटियों के आक्रमण एवं उनकी गतिविधियों से तंग आकर किसी के सलाह से मैंने लक्ष्मण रेखा लाया ताकि इसके प्रयोग से चीटियां नहीं आ सके लेकिन


 लक्ष्मण रेखा के आते ही सबसे पहले चीटियों के द्वारा ही उसका स्वागत किया गया। हम क्या करे।🤔

कर्मों का फल सभी को भोगना पड़ता है चाहे वह भगवान हो या फिर इंसान। एक छोटी सी कहानी से समझते हैं, कैसे ?

       दुराचारी राजा कंस को मारने के बाद श्री कृष्ण अपने माता-पिता वासुदेव और देवकी "जो कि कंस की जेल में बंद थे" को मुक्त कराने के लिए गए।

तब माता देवकी ने श्री कृष्ण से पूछा:-

हे कृष्ण, मेरे प्रिय पुत्र!!! तुम स्वयं नारायण हो। भगवान विष्णु के अवतार हो फिर भी कंस को मारने और हमें मुक्त कराने के लिए आपने चौदह वर्षों तक प्रतीक्षा क्यों की ? हमें इतना कष्ट क्यों दिया ?

 तब श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया:-

आदरणीय माँ🙏 आपने मुझे हमारे पिछले जन्म में चौदह वर्षों के लिए वन में क्यों भेजा ? किस कारण से ? हमसे क्या त्रुटि हुई थी ?

माता देवकी ने हैरान होते हुए कहा:- तुम ऐसा क्यों कहते हो कि मैंने तुम्हें वन भेजा है। यह असंभव है। यह सत्य नहीं है।

तब श्री कृष्ण ने कहा:- माता शायद आप आप भूल गए हो कि पिछले जन्म में आप कैकेयी और पिता वासुदेव दशरथ थे।

देवकी अवाक़ रह गई और फिर जिज्ञासावश पूछा:- इस जीवन में माता कौशल्या कौन है ?

 कृष्ण ने उत्तर दिया:-  माता यशोदा।

कर्म का प्रभाव किसी को नहीं छोड़ता स्वमं भगवान भी इससे बच नहीं सकते। हम अपने जीवन में क्या प्राप्त किए यह महत्वपूर्ण नहीं है। हमारे कर्म कैसे हैं, यह महत्वपूर्ण है। प्रत्येक इंसान को अपने कर्मों के हिसाब से ही फल की प्राप्ति होती हैं।

देखिए कर्म का नियम कितना बेदाग है  नित्य मुक्ति ही उपाय है।

साभार:- सोशल मीडिया

राजा रवि वर्मा के द्वारा निर्मित चित्र भगवान श्री कृष्ण अपने माता पिता को दुराचारी राजा कृष्ण की जेल से छुड़ाते हुए।




शिक्षक वृत्तिक विकास की आवश्यकता (Need for teacher professional development.) हिंदी एवं English Notes.

 शिक्षक वृत्तिक विकास की आवश्यकता

             एक शिक्षक को अपनी भूमिका की बेहतर तरीके से निर्वहन के लिए वृत्तिक विकास की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही सफलतापूर्वक कार्य करने के लिए शिक्षकों को विभिन्न भूमिकाओं का भी निर्वहन करना पड़ता है जिसके लिए उन्हें वृत्तिक विकास की आवश्यकता महसूस होती है। 

      कक्षा-कक्ष में एक शिक्षक की भूमिकाएं निम्नलिखित होती हैं:-

 1. कक्षा-कक्ष में भूमिका का निर्वहन (Discharge of the role in the classroom):- वर्ग का संचालन ही शिक्षक की वास्तविक कार्यशाला है। वर्ग-कक्ष में अपने Learning Plan के आधार पर शिक्षक अपने विषयगत समझ को प्रस्तुत करता है। वह शैक्षणिक कौशलों, TLMs, Micro Teaching के आधार पर बच्चों में समझ को विकसित करने का प्रयास करता है। इसके साथ ही, शिक्षक में आवश्यक जानकारी के साथ-साथ साकारात्मक अभिवृत्ति तथा मूल्यांकन तकनीकी ज्ञान का होना आवश्यक है। इन गुणों को समाहित कर शिक्षक अपनी वृत्तिक के साथ न्याय सकता है। 

2. चेतना सत्र एवं अन्य गतिविधियों का आयोजन (Organizing consciousness sessions and other activities):- कक्षा प्रबंधन के अलावा शिक्षक सुबह की सभा में चेतना-सत्र का आयोजन कराता है। वह मीना-मंच तथा बाल-संसद के माध्यम से चेतना सत्र में समाचारवाचन का प्रस्तुतीकरण, भाषण, Thought of the day, व्यायाम, योग, ध्यान, शारीरिक प्रशिक्षण आदि कराता है जिससे की छात्रों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित हो पाता हैं।

         इसके अलावा विद्यालय में विभिन्न तरह के गतिविधियों यथा खेल-कूद, प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता, चित्रकला, समूहगान, गीत-संगीत, विचारगोष्ठी इत्यादि का आयोजन करता है। ये सभी आयोजन सफलतापूर्वक किए जा सके इसके लिए भी शिक्षक को वृत्तिक विकास को आवश्यकता पड़ती है। इसके माध्यम से संगठन एवं प्रबन्धन क्षमता का विकास होता है। 

3. विद्यालय से बाहर आयोजित शैक्षिक क्रियाकलाप  (Educational activities organized outside the school):- ये सभी क्रियाकलाप विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है। क्षेत्रिय भ्रमण, शैक्षिक यात्रा का आयोजन, समुदाय में उपलब्ध संसाधन की पहचान एवं शैक्षिक प्रक्रिया में उपयोग, समुदाय के साथ बेहतर सम्बन्ध कायम रखने का प्रयास, इत्यादि। कार्य भी शिक्षक प्रशिक्षक कार्यक्रमों में इन कार्यों में बच्चों के विकास में महत्त्व एवं उपयुक्त तकनीक की चर्चा नहीं होगी तो इन कार्यों के निष्पादन में शिक्षकों को काफी परेशानी होगी। अतएव वृत्तिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षकों में उपरोक्त कार्यों के बेहतर निष्पादन की क्षमता विकसित हो। 

4. अभिभावकों/समुदाय से सम्बन्ध (Relationship with parents/community):- शिक्षक के ऊपर यह भी जबावदेही होती है कि उनका अभिभावकों के साथ बेहतर सम्बन्ध स्थापित हो ताकि वे छात्रों को अधिगम के क्रम में आनेवाली कठिनाईयों तथा बच्चों के शैक्षिक स्तरों से अवगत करते हुए स्तरोन्नयन  (upgradation) की योजना बना सकें। साथ ही अपव्यय एवं अवरोधन की समस्या के बिना 'अभिभावकों' के सहयोग के हल नहीं की जा सकती। छात्रों के सर्वांगीण विकास हेतु नियमित रूप से अध्यापक अभिभावक गोष्ठी का आयोजन भी आवश्यक है। अतएव वृत्तिक विकास के क्रम में इसकी जानकारी शिक्षक के लिए अनिवार्य है। बेहतर समुदायिक सम्बन्ध कैसे विकसित हो सकते हैं, इसके लिए भी वृत्तिक विकास की आवश्यकता पड़ती हैं। 

     स्पष्ट है कि शिक्षक अपने कार्य द्वारा समाज में बेहतर स्थान बना सके। बच्चों के सृजनशीलता विकसित करने की प्रक्रिया अपनाने के साथ-साथ ज्ञान-सृजन की प्रक्रिया अपना सके। अभिभावकों एवं समुदाय के साथ बेहतर समन्वय स्थापित कर बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु प्रयास करने के लिए आवश्यक वांछित दक्षताओं एवं कौशलों की संप्राप्ति कर सके इसके लिए भी वृत्तिक विकास की आवश्यकता पड़ती है। 


Need for teacher professional development


          A teacher needs professional development to discharge his role in a better way.  Also, in order to work successfully, teachers also have to perform various roles for which they feel the need for professional development.


 Following are the roles of a teacher in the classroom:-


 1. Discharge of the role in the classroom:- The operation of the class is the real workshop of the teacher.  On the basis of his learning plan in the classroom, the teacher presents his thematic understanding.  He tries to develop understanding in children based on pedagogical skills, TLMs, Micro Teaching.  Along with this, it is necessary to have positive attitude and evaluation technical knowledge along with necessary information in the teacher.  By incorporating these qualities, the teacher can do justice to his professional.


 2. Organizing consciousness sessions and other activities:- Apart from class management, the teacher organizes consciousness-session in the morning meeting.  Through Meena-Manch and Bal-Sansad, he provides presentation of news reading, speech, Thought of the Day, exercise, yoga, meditation, physical training etc. in the consciousness session through which all-round development of the students is ensured.


 Apart from this, various activities like sports, competition, debate competition, painting, group song, song-music, seminar etc. are organized in the school.  For all these events to be conducted successfully, the teacher also needs professional development.  Through this organization and management ability is developed.


 3. Educational activities organized outside the school:- All these activities are necessary for the all round development of the students.  Field visits, organizing educational trips, identifying resources available in the community and utilizing them in the educational process, trying to maintain a better relationship with the community, etc.  In teacher-training programs, if there is no discussion of the importance and appropriate techniques in the development of children in these tasks, then teachers will have a lot of trouble in performing these tasks.  Therefore, for professional development, it is necessary that teachers should develop the ability to perform the above tasks better.


 4. Relation with parents/community:- It is also the responsibility of the teacher to establish a better relationship with the parents so that they are aware of the difficulties faced by the students in the course of learning and the educational levels of the children.  Make a plan for upgradation while doing it.  Also, the problem of wastage and stagnation cannot be solved without the co-operation of the 'parents'.  For the all-round development of the students, it is also necessary to organize teacher-parent meetings regularly.  Therefore, in the course of professional development, it is essential for the teacher to know about it.  How better community relations can be developed also requires professional development.


          It is clear that the teacher can make a better place in the society through his work.  To adopt the process of developing the creativity of children as well as adopt the process of knowledge-creation.  Professional development is also required for achieving the desired competencies and skills required to make efforts for the all-round development of the children by establishing better coordination with the parents and the community.

शिक्षक वृत्तिक विकास (Teacher Professional Development) Hindi & English Notes.

 विद्यालय संस्कृति, परिवर्तन और शिक्षक विकास 

 शिक्षक वृत्तिक विकास के आयाम 

            जीवनयापन और भरण-पोषण हेतु आय के स्रोत की जरूरत होती है। इसके लिए व्यक्ति को किसी कार्य से जुड़ना पड़ता है। आमतौर पर व्यक्ति किसी कार्य से जुड़कर ही आय अर्जित कर पाता है। जब वह इसी कार्य को लगातार या दिन-प्रतिदिन करता है तो वह उस कार्य में अभ्यस्त हो जाता है। उस कार्य से उसका तादात्मय (identification) कायम हो जाता है। यह कार्य उसका पेशा कहा जाने लगता है। समाज उसे उसी पेशे से जुड़ा हुआ मानता है और व्यक्ति भी उसी पेशे के साथ अपनी आय अर्जित करता जाता है। यही उसको 'वृत्ति' कहलाती है। 

            व्यक्ति अपनी वृत्ति के अनुकूल स्वयं को ढाल लेता है ताकि वह अपनी वृत्ति को स्थायी कर सके और उसमें आनन्द का अनुभव करें। वर्तमान समय में शिक्षा के क्षेत्र में कई नवाचारी परिवर्तन हुए हैं जिसके कारण शिक्षक में कई कौशलों की अनिवार्यता हो गई है। उदाहरणस्वरूप, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का विद्यालय में उपयोग को देखा जा सकता है। आवश्यकता है कि वर्तमान को आवश्यकता एवं भविष्य की चुनौतियों को समझकर शिक्षक स्वयं में वांछित कौशलों को विकसित करता रहे ताकि वह अपनी वृहत्त के साथ पूर्ण आनन्द लेते हुए न्याय कर सके और गर्व कर सके। नए उपागम में, शिक्षक वृत्तिक विकास को एक चिंतनशील प्रतिमान के रूप में स्वीकारा जा रहा है। इस तरह, नए सिद्धांतों के अनुरूप शिक्षक वृत्तिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक शिक्षक अपने कार्यों को निरन्तर विश्लेषित करता रहता है और इससे प्राप्त अनुभवों से स्वज्ञान का संवर्धन भी करता है। इस संदर्भ में यह मान्यता है कि चिंतनशील प्रक्रिया को अपनाने से ही एक शिक्षक स्वदृष्टिकोण को वास्तविक रूप से विकसित कर सकता है। इस प्रकार शिक्षक वृत्तिक विकास की संकल्पना में आए नव परिवर्तनों ने शिक्षक के अधिगम एवं कार्यों की एक नई छवि प्रस्तुत की जिसमें इसे एक सीमित व लघु प्रक्रिया से परे एक सतत् एवं दीर्घकालिक प्रक्रिया माना गया है। वृत्तिक विकास की इस संकल्पना में शिक्षण कौशलों के साथ-साथ एक शिक्षक के वैयक्तिक एवं सामाजिक पहलुओं को भी उसके विकास के लिए महत्त्वपूर्ण माना गया है।

        शिक्षकों की वृत्तिक क्रियाएँ उनके सैद्धांतिक ज्ञान का प्रतिफल है। शिक्षकों का यही सैद्धान्तिक ज्ञान उनके शिक्षण की वृत्ति में प्रकट होता है। वृत्तिक विकास के अन्तर्गत यह जानना जरूरी है कि स्वयं से वृत्तिक उद्भव प्रक्रिया से सहभागी बनते है  तथा उनके कार्यों की अपनी जटिलता और विशेषता है। वे अपने कार्यकाल के कई चरणों से गुजरते हुए विविध अनुभव प्राप्त करते हैं। इस दौरान वे अपने वृत्तिक कार्य को अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखते हैं। उदाहरणत: पाठ्यचर्या, पुस्तकें, शिक्षणशास्त्र कक्षागत प्रक्रियाए अधिगमकर्ता की प्रकृति समाज आदि के विषय में उनकी धारणाएं एवं समझ प्राप्त अनुभव के आधार पर निरंतर विकसित और संवर्धित होती रही है जो उनके वृत्तिक विकास के स्थाई घटक हैं।

शिक्षक वृत्तिक विकास शिक्षण की पेशागत संवर्धन में सहायक:- शिक्षक की कार्य संस्कृति और सामाजिक परिदृश्य भी उसके वृत्तिक विकास का महत्वपूर्ण अंग है। सामाजिक, सांस्कृतिक अथवा वैचारिक संदर्भो का एक शिक्षक के कार्य करने पर विशेष प्रभाव होता है जिनसे वह जुड़ा हुआ है। साथ ही, उसके अपने मूल्य तथा कार्य संस्कृति की मान्यताओं के मध्य होनेवाले जटिल अन्तसम्बन्धों का भी उसके कार्य प्रणाली पर असर पड़ता है। एक सामाजिक व्यवस्था में शिक्षक अपने कार्यों को निष्पादित करता है, उत्पन्न होनेवाले समस्याओं एवं द्वन्दों का सामना करता है तथा संगठनात्मक एवं प्रशासनिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है। 

        यहाँ वृत्तिक विकास को शिक्षक के समाजीकरण से भी जोड़कर देखा गया है। ऐसी मान्यता है कि विद्यालयी व्यवस्था एक विशेष प्रकार के वातावरण का कार्य करती है जिसमें सामाजिक सत्ता, अन्तर्निहित होती है तथा जो एक शिक्षक के वृत्ति को सूक्ष्मता से प्रभावित करती है तथा उसके वृत्रिक विकास को पुष्ट करती हैं। शिक्षक के कार्य का व्यक्तिगत आयाम जिसमें भावनात्मक व नैतिक पक्ष भी शामिल है, उसके 'वृत्तिक विकास' को संवर्धित करते हैं। अपने विद्यार्थियों, सहकर्मियों तथा समुदाय के साथ प्रभावी सम्बन्ध स्थापित करने में उसके व्यक्तिगत की विशेष भूमिका होती है। सम्बन्धित शोधों में शिक्षक के वृत्तिक विकास को उसके व्यक्तिगत एवं सामाजिक अस्मिता से जोड़कर देखा जाता है तथा यह विश्लेषित किया जाता है कि शिक्षक के विद्यालयी कार्यकलापों पर उसके अस्मितामूलक अनुभवों का विशेष प्रभाव होता है।

          शिक्षक के व्यक्तिगत संदर्भो को वृत्तिक विकास से जोड़कर देखने पर भी बल दिया जाता है। सामान्यतः वृत्तिक विकास के दृष्टिकोण से एक शिक्षक का व्यक्तिगत पक्ष अपेक्षित रह जाता है । अध्यापकों का कार्य उनकी पूर्वमान्यताओं, मूल्यों और पूर्वानुभवों से निरन्तर प्रभावित होता रहता है। इनके आधार पर वे सिद्धांतों को गढ़ते हैं।


 School Culture, Change and Teacher Development


 Dimensions of Teacher Professional Development


          A source of income is needed for living and sustenance.  For this a person has to be involved in some work.  Usually a person can earn income only by joining some work.  When he does this work continuously or day to day, he gets used to that work.  His identity is established by that work.  This work starts to be called his profession.  Society considers him to be associated with the same profession and the person also earns his income with the same profession.  This is what is called 'Vritti'.


         A person molds himself according to his profession so that he can make his profession permanent and feel joy in it.  In the present time, many innovative changes have taken place in the field of education, due to which many skills have become essential in the teacher.  For example, the use of information and communication technology in the school can be seen.  It is necessary that by understanding the need of the present and the challenges of the future, the teacher should keep developing the desired skills in himself so that he can do justice and take pride in taking full joy with his greatness.  In the new approach, teacher professional development is being accepted as a reflective model.  Thus, teacher professional development is a process in which a teacher constantly analyzes his work in accordance with the new principles and also enriches self-knowledge from the experiences gained from it.  In this context it is recognized that it is only by adopting reflective process that a teacher can develop self-attitudes realistically.  Thus, the new changes in the concept of teacher professional development presented a new image of teacher's learning and work, in which it has been considered as a continuous and long-term process beyond a limited and short process.  In this concept of professional development, personal and social aspects of a teacher along with teaching skills have been considered important for his development.


        Professional activities of teachers are the result of their theoretical knowledge.  This theoretical knowledge of teachers is manifested in their teaching profession.  Under professional development, it is important to know that the professionals themselves become participants in the process of evolution and their tasks have their own complexity and speciality.  They gain varied experience as they go through several phases of their tenure.  During this time they look at their professional work from different perspectives.  For example, curriculum, books, pedagogy, classroom processes, nature of the learner, society, etc., their concepts and understandings have been continuously developed and enhanced on the basis of the experience gained which are permanent components of their professional development.


Teacher's professional development is helpful in the professional development of teaching:- The work culture and social scenario of the teacher is also an important part of his professional development.  The social, cultural or ideological contexts to which a teacher is attached have a significant impact on the work of a teacher.  At the same time, the complex interrelationship between his own values ​​and beliefs of work culture also has an impact on his method of work.  In a social system, the teacher performs his functions, faces the problems and conflicts that arise and performs organizational and administrative responsibilities.


       Here, professional development has also been linked to the socialization of the teacher.  It is believed that the school system acts as a special kind of environment in which social authority is inherent and which subtly influences the attitude of a teacher and reinforces his professional development.  The personal dimension of the teacher's work, including the emotional and moral aspects, enhances his/her "professional development".  His individual has a special role in establishing effective relationships with his students, colleagues and community.  In related research, the teacher's professional development is seen by linking his personal and social identity and it is analyzed that his identity-oriented experiences have a special effect on the teacher's school activities.


      There is also an emphasis on linking the personal context of the teacher to the professional development.  Generally, from the point of view of professional development, the personal aspect of a teacher is required.  The work of teachers is constantly influenced by their beliefs, values ​​and past experiences.  On the basis of these, they formulate theories.


केन्द्रीकृत विद्यालय एवं विकेन्द्रीत विद्यालय में क्या अंतर होता हैं ? What is the difference between centralized school and decentralized school? हिन्दी एवं English Notes.

 प्रश्न:- विद्यालय संगठन के दो प्रमुख स्वरूपो के बारे में बताएँ। 

                             Or

विद्यालय संगठन के प्रकारों को बताएँ।

                  Or

केन्द्रीकृत विद्यालय व विकेन्द्रीत विद्यालय में अंतर बताएँ ।

Ans.:- किसी भी विद्यालय संगठन के दो मुख्य स्वरूप होतें हैं जो की निम्न है :- 

(1) केन्द्रीकृत विद्यालय (Centralized Schools)

(2) विकेन्द्रीकृत विद्यालय (Decentralized Schools)

(1) केन्द्रीकृत विद्यालय:- इस विद्यालय का पूरा प्रबंधन प्रधानाध्यापक के हाथ में होता है। विद्यालय में सुव्यवस्था बनाये रखने की पूरी जिम्मेवारी वे स्वयं को मानते हैं। इस कारण विद्यालय के प्रत्येक भाग व कार्यकलाप पर उनका सीधा नियंत्रण होता है ताकि कोई गड़बड़ी न होने पाये। विद्यालय के अन्य कर्मी केवल उनके आदेशों को अमल में लाने का कार्य करते हैं। प्रधानाध्यापक उनके द्वारा किए गए कार्यों का निरंतर निरीक्षण करते हैं और बेहतरी के लिए निर्देश भी देते हैं । 

(2) विकेन्द्रीकृत विद्यालय:- इस विद्यालय में प्रधानाध्यापक के साथ-साथ अन्य सहकर्मियों की भी भागीदारी होती है। प्रधानाध्यापक अपने कई कार्यों को शिक्षकों को दे देते हैं और वे कोई राय लेने से पहले शिक्षकों से सलाह भी करते हैं  सभी कर्मी अपने कार्यों के माध्यम से विद्यालय के दैनिक प्रक्रिया में अपनी भूमिका निभाते हैं। प्रधानाध्यापक को उनकी क्षमताओं पर विश्वास भी होता है। विद्यालय के विद्यार्थीगण भी कई कार्यों में अपने शिक्षकों का हाथ बँटाते हैं। 


Question:- Tell us about the two main forms of school organization.


 Or


 State the types of school organization.


 Or


 Differentiate between centralized school and decentralized school.


 Ans.:- There are two main forms of any school organization which are as follows :-


 (1) Centralized Schools


 (2) Decentralized Schools


 (1)Centralized School:- The entire management of this school is in the hands of the headmaster.  He considers himself the full responsibility of maintaining order in the school.  Because of this they have direct control over every part and activity of the school so that no disturbances happen.  The other staff of the school only work to implement his orders.  The headmaster constantly monitors the work done by them and also gives instructions for betterment.


 (2) Decentralized School:- In this school, along with the headmaster, there is participation of other colleagues as well.  The headmaster entrusts many of his tasks to the teachers and he also consults the teachers before taking any opinion. All the personnel play their part in the daily process of the school through their tasks.  The headmaster also has confidence in their abilities.  School students also help their teachers in many tasks.