My skills and Characteristics are Painting, Fashion Photography, Heritage Photography, Logo Designing, Writing, Blogging and Getting things Done in Creative Way.
बुधवार, 22 दिसंबर 2021
National Institute of Fashion Technology. अनुबंध के आधार पर सहायक प्रोफेसर के पदों पर भर्ती RECRUITMENT TO THE POSTS OF ASSISTANT PROFESSOR ON CONTRACT BASIS
मंगलवार, 21 दिसंबर 2021
ठंडा में ठेठ बिहार का बारात।
बिहार का एगो खास बात है आप चाहे लाख होटल, मैरिज हॉल बनवा लीजिए, बरियाती को ठहराने का जो मजा सरकारी स्कूल में है ऊ दोसर कहीं नहीं।
ठंडा के दिन रहे तो पुअरा बिछा के दरी के ऊपर टेंट हाउस वाला उजरका एवं गुलाब जामुन जैसा तकिया फेंका-फेंकी में अलग लेवल का आनन्द आता है। खिड़की से सन्न-सन्न पछिवां हवा बह रहा हो और खिड़की का एगो पल्ला गायब हो तब प्रेमचंद्र के हल्कू की याद आ जाती है कि कैसे वो रात में फसल की रखवाली करता था। यदि ठंड से बचने के लिए आप दीवार से पीठ लगाकर बैठिए तs दीवार का आधा चूना झड़ के पीछे ऐसे चिपक जाता था जैसे कि अजंता की दीवारों पर पेंटिंग की गई हो। कुछ पढ़ल-लिखल लईका सब वहां पर उपस्थित ब्लैक बोर्ड पर अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने में नहीं चुकते थे और कुछ ही देर में पूरा ब्लैक बोर्ड A+B का होल स्क्वायर से लेकर न्यूटन के सिद्धांत वाले नियम से भर जाता था। उसी बरामदे में बैठे सुदर्शन काका यह दृश्य देखते और कहते थे कि फ़लाना का लईका तs पढ़े में बड़ी तेज है।
स्कूल के बाहर लड़के का फूफा लड़की के चच्चा से अलगे लड़ते रहते की- “बताइए ई कईसन व्यवस्था है यहां का? पैखाना से लेकर पानी तक का कोई बेवस्थे नहीं है, हमारा लड़का सब रात-विरात कहाँ जाएगा सब? लाइटो का भी कोनो ठीक जोगाड़ नहीं रखे है। देख रहे हैं अभिये हम ई घुप्प अन्हार में जरनेटर के अर्थिंगे पर मूत आते। उs तs अच्छा हुआ कि यहां एक लाइट जल गया नही तs बताइए हमार तs जीवने अन्हार हो जाता। अरे!! पैसा का कमी था तो बताते हमही आकर सब बेवस्था कर जाते इहाँ।”
स्कूल के मेन गेट पर रिमझिम बैंड पार्टी का रंगरूट सब फिरंगी वाला आर्मी जैसा ड्रेस पहिने, ढोल-ताशा बजाते-बजाते एकदम से बेहाल हुआ रहता। पिंपनी वाला भी अपना फेफड़ा का पूरा हवा झोंक रहा होता अऊर ऊ स्टार गायक हाथ में आधा घण्टा से माइक लेकर खाली “रेडी वन टू थ्री, वन टू थ्री” कर रहा होता। तब यहां पर फूफा जी का गुस्सा😡 देखने को मिलता था वो गुस्से में बोलते- कारे, तोहरा के खाली यही ला बोलवले बानीs तब वह घबराहट में गाना शुरू करता “अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो, दर पे सुदामा गरीब आ गया है।” उधर से लड़के का बाप गला फाड़ते हुए चिल्लाते आते- “साला ई बंदी में भी अभीये दारू पी लिया है का रास्ता में, अचार चटाओ इसको। अलबला गया है। कल पैसा काटेंगे ना तब बुझाएगा ससुरा के..” तब गायक होश में आता और गाना शुरू करता। “झिमी, झिमी, झिमी, आजा!!! आजा!!! आजा!!!” पंद्रह मिनट तक वह यही गाना गाते रहता तब ऐसा लगता था कि इसका कैसेट💽 अटक गया है। गाने में परिवर्तन तब होता है जब दो चार गो लइका के दोस्त आकर कहता कि- आज हमारे यार की शादी है बजाओ। इन सभी से जब, सब उब जाते तब बारी आता नागिन🐍 डांस का और उस डांस में सब ऐसे नाचते जैसे कि आज नागमणि💠 लेकर ही मानेंगे।
उधर लईका के दोस्त सब ललका ब्लेजर पर गोल्डस्टार का जूता पहीन के विधायक/संसद के तरह भौकाल में टहल रहा होता हैं। ई दोस्त सब के नज़र में जहां ऊ बरियाती आया है ऊ दुनिया का सबसे बेकार😫 गांव है। जहां सुपर मार्केट नहीं है, रेस्टोरेंट नहीं है, एटीएम नहीं है, लैम्बोर्गिनी का शोरूमो नहीं है। क्लासिक मेंथोल का सिगरेट नहीं मिला है तो गोल्ड फ्लेक पीना पड़ रहा है। घरवैया भी सब इनका हीरोपनी समझ रहा है लेकिन आडवाणी लेवल का मौन बन बर्दाश्त किया हुआ है की एक रात का तो बात है जैसे-तैसे काट लों सुबह तो विदा करना ही हैं इनको।
अब बारात दरवाजे की तरफ बढ़ रहा है। बाराती सब में माइकल जैक्सन का भूत🕺 आ चुका है और वह अब नागिन धुन से कमरिया करे लपालप वाले धुन पर आ चुके हैं। गांव में चाची, काकी, दादी सब गाड़ी में एकदम से झांक-झांक के लईका को देख रही हैं। पूरा हंसी-मजाक चल रहा है....
– ऐ चाची, लईका का उमर थोड़ा ज्यादा नहीं बुझा रहा है..!!!
– रे बजरखसुआ, ऊ लईका का बाप है। लईका तs पीछे बैठा है। तु उ बूढ़वा से काहे मजाक करती हो...!
-तले कोई कहता हैं का बाबा आप काहे काजर लगा लिए हैं, बियाह त बेटवा का है ना?
......बाप भी इन सभी बातों को मजाक में उड़ा देता है क्योंकि आज उसके बेटे की शादी जो होने वाली होती है।
मांझी द माउंटेन मैन मूवी के 05 डायलॉग।
Motivational
1. (BPSC pt को) जब तक तोड़ेंगे नहीं, तब तक छोड़ेंगे नहीं, बहुतै बड़ा दंगल चलेगा रे तोहर हमार।
2. पहाड़ तोड़े से भी मुश्किल है का (BPSC pt निकालना)।
3. बहुत अकड़ है (BPSC) तोहरा में, देख कैसे उखाड़ते हैं अकड़ तेरी।
4. कोचिंग/लाइब्रेरी के भरोसे मत बैठिए, का पता कोचिंग/लाइब्रेरी आपके भरोसे बैठा हो।
5. लोग कहता है हम पागल (Crazy) हैं, जिंदगी खराब कर रहे है।
(उ ससुरा, हमरा काबलियत के बारे में कुछऊ जानता ही नहीं है।)
Remind yourself,
कुछ भी हो बनना तो पदाधिकारी हीं है, रोक सको तो रोक लो ।
पढ़ते रहिए 🙌👍
बुधवार, 15 दिसंबर 2021
गांव का बियाह (ठेठ बरात)।
मैंने ये सब देखा तो नही हैं लेकिन घर पर दादा-दादी, नाना-नानी के मुख से सुना जरूर है। इसे आज आपसभी के बीच साझा करने पर खुशी महसूस हो रही हैं।
पहले गाँवो में न टेंट हाऊस होते थे और न ही कैटरिंग की व्यवस्था थी। यदि कुछ थी तो वह थी बस सामाजिकता। गांव में जब किसी के घर कोई शादी-ब्याह का कार्यक्रम होता तो प्रत्येक घर से चारपाई आ जाती थी। हर घर से थरिया, लोटा, कलछुल, कराही, गिलास इकट्ठा हो जाता और गाँव की ही महिलाएं एकत्र हो कर खाना बना देती थीं। औरते ही मिलकर दुल्हन को तैयार करती आज के परिदृश्य जैसा कोई ब्यूटी पार्लर का कॉन्सेप्ट नहीं था और ना ही इतनी मेकअप की आवश्यकता। हर रस्म का गीत-गारी, वगैरह भी महिलाओं के द्वारा ही संभव होता था। आज भी मुझे वह गारी याद है-
लाल मरचा, हरीयर मरिचा!!! मरिचा बड़ा तीत बा।
कवन साले के दीदीयां के अनार बड़ा मीठ बा।
उस समय, DJ ANIL-DJ, ANIL जैसी कोई चीज नही होती थी और न ही कोई ऑर्केस्ट्रा वाले फूहड़ गाने। हर विधि के लिए अलग-अलग गीत एवं गाने जिसे बड़ी तत्परता के साथ महिलाओं की एक टीम के द्वारा गाया जाता था। गीत-संगीत से गाँव का पूरा माहौल संगीतमय रहता। गांव के सभी चौधरी टाइप के लोग पूरे दिन काम करने के लिए इकट्ठे रहते थे उन सभी के बीच हंसी-ठिठोली चलती रहती और समारोह का कामकाज भी। शादी-ब्याह मे गांव के लोग बारातियों के खाने से पहले खाना नहीं खाते थे क्योंकि यह घरातियों की इज्ज़त का सवाल होता था लेकिन आज का परिदृश्य बिल्कुल ही बदल चुका है। गांव की महिलाएं गीत गाती जाती और अपना काम करती रहती। सच कहु तो उस समय गांव मे सामाजिकता के साथ समरसता होती थी।
खाना परोसने के लिए गाँव के लौंडों का गैंग समय पर इज्जत सम्हाल लेता था। यदि कोई बड़े घर की शादी होती तो टेप बजा देते थे जिसमे एक कॉमन गाना बजता था- मैं सेहरा बांध के आऊंगा मेरा वादा है और दूल्हे राजा भी उस दिन खुद को किसी युवराज से कम नही समझते। दूल्हे के आसपास नाऊ हमेशा तैयार रहता, समय-समय पर बाल झारते रहता था और समय-समय पर काजर, पाउडर भी पोत देता था ताकि दूल्हा हमेशा सुन्नर लगता रहे, उसके बाद फिर द्वारा पूजा होता।
द्वार पूजा के बाद जब बराती एवं शराती खा-पीकर निश्चित होते तो एक विधि शुरू होती जिसे गुरहथनी कहां जाता। यह विधि वर पक्ष एवं वधु पक्ष दोनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती क्योंकि वर पक्ष को एक भशुर (एक ऐसा व्यक्ति जो रिस्तेदारों में लड़का का बड़ा भाई लगता हो) और वधू पक्ष को जितना उसने तिलक दिया है उसके अनुसार उसे गहने की प्राप्ति करनी होती थी। लड़का पक्ष को हमेशा लगता कि उसने गुरहथनी में बहुत ज्यादा गहना दे दिया है और लड़की पक्ष को लगता कि उसने कुछ दिया ही नहीं हैं। यहां पर एक गाना अक्सर महिलाओं के द्वारा गाया जाता-
गहना करार कईले लईकी के बाप से,
अगुआं ना देवे देला अपना दिमाग से।
फिर शुरू होती पण्डित जी एवं लोगों की महाभारत जो रातभर चलती। इन सभी विधियों में एक ऐसी विधि होती जिस समय सबकी आंखें एकदम से नम😓 हो जाती। उस विधि को कहते हैं- "कन्यादान" फिर कोहबर होता। ये वो रस्म है जिसमे दूल्हा-दुल्हिन को अकेले में दो मिनट बात करने के लिए छोड़ दिया जाता था लेकिन इतने कम समय में सिर्फ मैग्गी ही बन सकती हैं बाते नहीं। आज-कल का दौड़ तो था नही की शादी के पहले से ही बात-मुलाकात हो चुकी हो। उस समय तो पहली मुलाकात कोहबर घर मे ही होती। सबेरे कलेवा में जमके गारी गाई जाती और यही वो रस्म है जिसमे दूल्हे राजा जेम्स बांड बन जाते कि ना, हम नही खाएंगे कलेवा। फिर उनको मनाने कन्या पक्ष के सब जगलर टाइप के लोग आते।
अक्सर दूल्हा की सेटिंग अपने चाचा या दादा से पहले ही रहती थी और उसी अनुसार आधा घंटा या पौन घंटा खिसियाने/रिसियाने का क्रम चलता और उसी में दूल्हे के छोटे भाई सहबाला की भी भौकाल टाइट रहती। लगे हाथ वो भी कुछ न कुछ और लहा लेता यानी उसे भी दूल्हे के साथ कुछ पैसे प्राप्त हो जाते। फिर एक जयघोष के साथ रसगुल्ले का कण दूल्हे के होठों तक पहुंच जाता और एक विजयी मुस्कान के साथ वर और वधू पक्ष इसका आनंद लेते।
उसके बाद दूल्हे का साक्षात्कार यानी की इंटरव्यू वधू पक्ष की महिलाओं से करवाया जाता और उस दौरान उसे विभिन्न उपहार प्राप्त होते जो नगद और श्रृंगार की वस्तुओं के रूप में होते। इस प्रकिया में कुछ अनुभवी महिलाओं द्वारा काजल और पाउडर लगे दूल्हे का कौशल परिक्षण भी किया जाता और उसकी समीक्षा परिचर्चा विवाह बाद आहूत होती थी और लड़कियां दूल्हा के जूता चुराती और 21₹ से 51₹ में मान जाती। इसे जूता चुराई कहा जाता था।
फिर गिने चुने बुजुर्गों द्वारा माड़ो (विवाह के कर्मकांड हेतु निर्मित अस्थायी छप्पर) हिलाने की प्रक्रिया होती वहां हम लोगों के बचपने का सबसे महत्वपूर्ण आनंद उसमें लगे लकड़ी के सुग्गो (तोता) को उखाड़ कर प्राप्त होता था और विदाई के समय नगद नारायण कड़ी जो कि 10/20 रूपये की नोट जो कहीं 50 रूपये तक होती थी। वो स्वार्गिक अनुभूति होती कि हम कह नहीं सकते हालांकि विवाह में प्राप्त नगद नारायण माता जी द्वारा 2/5 रूपये से बदल दिया जाता था।
आज की पीढ़ी उस वास्तविक आनंद से वंचित हो चुकी है जो आनंद विवाह का हम लोगों ने प्राप्त किया है। लोग बदलते जा रहे हैं, परंपराएं भी बदलते चली जा रही है, आगे चलकर यह सब देखन को मिलेगा की नही अब इ त विधाता जाने लेकिन जो मजा उस समय मे था, वह अब धीरे धीरे विलुप्त हो रहा है।
सोमवार, 13 दिसंबर 2021
मिस यूनिवर्स 2021. हरनाज़ संधू ।
हरनाज़ संधू ने मिस यूनिवर्स 2021 प्रतियोगिता जीत कर हम सभी भारतीयों को गर्व करने का मौक़ा दे दिया है। इजराइल के एलात में आयोजित 70वीं मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में हरनाज़ ने 79 प्रतिभागियों को हराकर ये जीत हासिल की है। TOP-3 राउंड में जगह बनाने के लिए हरनाज़ के सामने ये सवाल रखा गया था-
'जो युवतियां ये देख रही हैं, उन्हें आप चुनौतियों का सामने करने लिए क्या हिदायत देंगी?'
इसके जवाब में हरनाज़ ने कहा, "आज के युवा के सामने सबसे बड़ा दबाव खुद पर यक़ीन करने को लेकर है, ये जानना कि आप सबसे अलग हैं आपको खूबसूरत बनाता है। ख़ुद की लोगों से तुलना करना बंद करें और उन चीज़ों के बारे में बात करें जो दुनिया में हो रही हैं, और ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं। खुद के लिए आवाज़ उठाइए क्योंकि आप ही अपने जीवन के नेतृत्वकर्ता है, आप ही आपकी आवाज़ हैं। मैंने ख़ुद पर यक़ीन किया और आज यहां खड़ी हूं।"
चंडीगढ़ की रहने वाली 21 साल की हरनाज़ मॉडलिंग के साथ-साथ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स कर रही हैं। कई पंजाबी फ़िल्मों में भी काम कर चुकी हरनाज़ को मैक्स इमर्जिंग स्टार 2018, मिस डिवा 2021, फ़ेमिना मिस इंडिया पंजाब 2019 का खिताब जीतने के अलावा फ़ेमिना मिस इंडिया 2019 में उन्होंने टॉप 12 में जगह बनाई थी। इस प्रतियोगिता में फ़र्स्ट और सेकेंड रनर अप पैराग्वे और दक्षिण अफ़्रीका के प्रतियोगी रहे। इस प्रतियोगिता में पूर्व मिस यूनिवर्स एंड्रिया मेजा ने हरनाज़ को ताज पहनाया। 1994 में सुष्मिता सेन और 2000 में लारा दत्ता के बाद अब, पूरे 21 साल बाद मिस यूनिवर्स का खिताब किसी भारतीय ने जीता है।
शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021
बिहार लोक सेवा आयोग के विज्ञापन संख्या 01/2021 जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी के परीक्षा तिथि की हुई घोषणा। ।
विज्ञापन संख्या 01/2021 के अंतर्गत जिला कला एवं संस्कृति पदाधिकारी (बिहार कला एवं संस्कृति) सेवा के रिक्त पदों पर नियुक्ति हेतु प्रारंभिक प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन दिनांक 29/01/2022 शनिवार को संभावित है।
मंगलवार, 30 नवंबर 2021
मेरी विस्मयकारी ट्रैन की यात्रा।
ट्रेन की यात्रायें तो आप सभी ने बहुत की होंगी, मैंने भी की हैं लेकिन कुछ यात्रायें ऐसी होती है जो इंसान के लिए ज्यादा रोमांचक और विस्मयकारी हो जाती है। एक ऐसी ही यात्रा के बारे में हम आज के इस लेख में चर्चा करेंगे।
DSSSB (दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड) की परीक्षा की तिथि आ गई थी उक्त परीक्षा 30 नवंबर को दिल्ली में आयोजित होने वाली थी इसके लिए मैंने अपनी सुविधानुसार सहरसा से न्यू दिल्ली जाने एवं आने का टिकट बनवा लिया था ताकि कही कोई परेशानी ना हो। लेकिन जब परेशानी लिखा होता है तो आप लाख प्रयत्न कर ले आपको उसे झेलना ही पड़ता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ परिस्थिति ऐसी बन गई कि मैं उस समय पटना में था और मैं सोच रहा था कि ट्रेन को यही से पकड़ लूंगा अच्छी बात यह थी कि वह ट्रेन हाजीपुर होकर जा रही थी। जैसा आप सोचते होंगे मैंने भी सोचा कि कोई बात नहीं बोर्डिंग चेंज कर लेंगे और हाजीपुर में बैठ जाएंगे। उक्त बातें सोच कर मैं निश्चिंत हो गया।
ट्रेन पकड़ने से 02-04 दिन पहले सोचा कि अब बोर्डिंग चेंज कर लेता हूं लेकिन जैसे बोर्डिंग चेंज करने गया बार-बार मोबाइल पर यह संदेश प्रज्वल्लित हो रहा था।
रविवार, 28 नवंबर 2021
कर्मफल
एक बार एक किसान जंगल में लकड़ी बीनने गया तो उसने एक अद्भुत बात देखी की एक लोमड़ी के दो पैर नहीं थे, फिर भी वह खुशी-खुशी अपने आप को घसीट कर चल रही थी। यह कैसे ज़िंदा रहती होगी जबकि यह किसी शिकार को पकड़ना तो दुर उसके नजदीक भी नहीं जा सकती है। किसान उक्त बातें सोच रहा था तभी उसने देखा कि एक शेर अपने दांतो में एक शिकार दबाए उसी की तरफ आ रहा है। शेर को देखते ही सभी जानवर भागने लगे, वह किसान भी पेड़ पर चढ़ गया। उसने देखा कि शेर उस लोमड़ी के पास आया। उसे खाने की जगह, प्यार से शिकार का थोड़ा हिस्सा डालकर चला गया।
दूसरे दिन भी उसने देखा कि शेर बड़े प्यार से लोमड़ी को खाना देकर चला गया। किसान ने इस अद्भुत लीला के लिए भगवान को मन में नमन🙏 किया। उसे अहसास हो गया कि भगवान जिसे पैदा करते है उसकी रोटी का भी इंतजाम कर देते हैं।
यह जानकर वह भी एक निर्जन स्थान पर चला गया और वहां पर चुपचाप बैठ कर भोजन का रास्ता देखने लगा। कई दिन गुज़र गए लेकिन कोई नहीं आया। वह मरणासन्न होकर वापस लौटने ही वाला था कि तभी उसे एक विद्वान महात्मा मिले। उन्होंने उसे भोजन-पानी कराया। तब वह किसान उनके चरणों में गिरकर रोने लगा और रोते-रोते वह लोमड़ी की बात बताते हुए बोला- महाराज, भगवान ने तो उस अपंग लोमड़ी पर दया दिखाई पर मैं तो मरते मरते बचा। ऐसा क्यों हुआ कि भगवान् मुझ पर इतने निर्दयी हो गए ?
महात्मा उस किसान के सर पर हाथ फिराकर मुस्कुराकर बोले- तुम इतने नासमझ हो गए कि तुमने भगवान का इशारा भी नहीं समझा इसीलिए तुम्हें इस तरह की मुसीबत उठानी पड़ी। तुम ये क्यों नहीं समझे कि भगवान् तुम्हे उस शेर की तरह मदद करने वाला बनते देखना चाहते थे, निरीह लोमड़ी की तरह नहीं।
हमारे जीवन में भी ऐसा कई बार होता है कि हमें चीजों को जिस तरह समझनी चाहिए उसके विपरीत समझ लेते हैं। ईश्वर ने हम सभी के अंदर कुछ न कुछ ऐसी शक्तियां दी हैं जो हमें महान बना सकती हैं। चुनाव हमें करना है की हमे शेर बनना है या लोमड़ी।
जो प्राप्त है वही पर्याप्त है।
महाभारत की कथा से।
युधिष्ठिर कंक बन गये।
धर्मराज युधिष्ठिर ने विराट के दरबार में पहुँचकर कहा- “हे राजन! मैं व्याघ्रपाद गोत्र में उत्पन्न हुआ हूँ तथा मेरा नाम 'कंक' है। मैं द्यूत विद्या में निपुण हूँ। आपके पास आपकी सेवा करने की कामना लेकर उपस्थित हुआ हूँ।”
द्यूत यानी कि "जुआ" वह खेल जिसमें धर्मराज अपना सर्वस्व हार बैठे थे। कंक बन कर वही खेल वह राजा विराट को सिखाने लगे।
जिस बाहुबली के लिये रसोइये दिन-रात भोजन परोसते रहते थे वह भीम बल्लभ का भेष धारण कर स्वयं रसोइया बन गये।
नकुल और सहदेव पशुओं की देखरेख करने लगे।
दासियों सी घिरी रहने वाली महारानी द्रौपदी स्वयं एक दासी सैरंध्री बन गयी।
और वह धनुर्धर। उस युग का सबसे आकर्षक युवक वह महाबली योद्धा। वह द्रोण का सबसे प्रिय शिष्य। वह पुरूष जिसके धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ते ही युद्ध का निर्णय हो जाता था।
वह अर्जुन पौरुष का प्रतीक अर्जुन। नायकों का महानायक अर्जुन एक नपुंसक बन गया।
एक नपुंसक ?
उस युग में पौरुष को परिभाषित करने वाला अपना पौरुष त्याग कर होठों पर लाली लगा कर, आंखों में काजल लगा कर, एक नपुंसक "बृह्नला" बन गया।
युधिष्ठिर राजा विराट का अपमान सहते रहे। पौरुष के प्रतीक अर्जुन एक नपुंसक सा व्यवहार करते रहे। नकुल और सहदेव पशुओं की देख रेख करते रहे। भीम रसोई में पकवान पकाते रहे और द्रौपदी एक दासी की तरह महारानी की सेवा करती रही।
परिवार पर एक विपदा आयी तो धर्मराज अपने परिवार को बचाने हेतु कंक बन गया। पौरुष का प्रतीक एक नपुंसक बन गया।
एक महाबली साधारण रसोईया बन गया।
पांडवों के लिये वह अज्ञातवास नहीं था, अज्ञातवास का वह काल उनके लिये अपने परिवार के प्रति अपने समर्पण की पराकाष्ठा थी।
वह जिस रूप में रहे, जो अपमान सहते रहे, जिस कठिन दौर से गुज़रे, उसके पीछे उनका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं था। अज्ञातवास का वह काल परिस्थितियों को देखते हुये परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाने का काल था।
आज भी इस राष्ट्र में अज्ञातवास जी रहे ना जाने कितने महायोद्धा दिखाई देते हैं। कोई धन्ना सेठ की नौकरी करते हुये उससे बेवजह गाली खा रहा है क्योंकि उसे अपनी बिटिया की स्कूल की फीस भरनी है।
बेटी के ब्याह के लिये पैसे इक्कठे करता बाप एक सेल्समैन बन कर दर दर धक्के खा कर सामान बेचता दिखाई देता है।
ऐसे-ऐसे उदाहरण गिनवाने लगूं तो शायद ऐसे असँख्य उदाहरणों से लेखों की शृंखला लिख दुं। ऐसे असँख्य पुरुषों के रोज़ के सँघर्ष की सत्यकथाओं से हर रोज़ पाठकों को रूबरू करवा दुं जो अपना सुख दुःख छोड़ कर अपने परिवार के अस्तिव की लड़ाई लड़ रहे हैं।
यदि आपको रोज़मर्रा के जीवन में किसी संघर्षशील व्यक्ति से रूबरू होने का मौका मिले तो उनका आदर कीजिये। उनका सम्मान कीजिये। राह चलता गुब्बारे बेचने वाला आपकी गाड़ी के शीशे पर दस्तक इसलिये दे रहा है क्योंकि उस गुब्बारे के बदले में मिलने वाले चंद रुपयों में उसकी नन्ही सी बिटिया की रोटी छिपी है। फैक्ट्री के बाहर खड़ा गार्ड, होटल में रोटी परोसता वेटर, सेठ की गालियां खाता मुनीम, वास्तव में कंक, बल्लभ और बृह्नला हैं।
वह अज्ञातवास जी रहे हैं।
परंतु वह अपमान के भागी नहीं हैं। वह प्रशंसा के पात्र हैं। यह उनकी हिम्मत है, उनकी ताकत है, उनका समर्पण है की विपरीत परिस्थितियों में भी वह डटे हुये हैं।
वह कमजोर नहीं हैं। उनके हालात कमज़ोर हैं। उनका वक्त कमज़ोर है।
याद रहे,
अज्ञातवास के बाद बृह्नला ने जब पुनः अर्जुन के रूप में आये तो कौरवों का नाश कर दिया। पुनः अपना यश अपनी कीर्ति सारे विश्व में फैला दी।
वक्त बदलते वक्त नहीं लगता इसलिये जिसका वक्त खराब चल रहा हो, उसका उपहास और अनादर ना करें।
उनका सम्मान करें, उनका साथ दें।
क्योंकि एक दिन अवश्य अज्ञातवास समाप्त होगा। समय का चक्र घूमेगा और बृह्नला का छद्म रूप त्याग कर धनुर्धर अर्जुन इतिहास में ऐसे अमर हो जायेंगे के पीढ़ियों तक बच्चों के नाम उनके नाम पर रखे जायेंगे। इतिहास बृह्नला को भूल जायेगा। इतिहास अर्जुन को याद रखेगा।
हर सँघर्षशील व्यक्ति में बृह्नला को मत देखिये। कंक को मत देखिये। भल्लब को मत देखिये। हर सँघर्षशील व्यक्ति में धनुर्धर अर्जुन को देखिये। धर्मराज युधिष्ठिर और महाबली भीम को देखिये।
क्योंकि एक दिन हर संघर्षशील व्यक्ति का अज्ञातवास खत्म होगा।
यही नियति है।
यही समय का चक्र है।
यही महाभारत की सीख है।
शनिवार, 27 नवंबर 2021
नवोदय की वो पहली चाय☕ (Navodaya ki wo pahli chai)
जवाहर नवोदय विद्यालय सुखासन, मधेपुरा (बिहार) में अपना योगदान दिये हुए मुझे एक सप्ताह से ऊपर हो गया था। कमी तो किसी चीज की यहां नहीं थी बस एक ही चीज की तलब महसूस हो रही थी वह थी - चाय☕.
कैलाश सर, जो को यहां पर गणित के शिक्षक के रूप में मेरे साथ ही योगदान दिए थे। उनके साथ एक दिन सिंहेश्वर धाम जाने एवं भगवान शिव के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कोरोना की गाइडलाइन की वजह से मंदिर का गर्भगृह तो बंद था लेकिन मंदिर के बाहर से ही श्रद्धालुओं के द्वारा पूजा-पाठ किया जा रहा था। मंदिर के बारे में विस्तृत विवरण नीचे दिए गए लिंक से आप पढ़ सकते हैं👇
https://biswajeetk1.blogspot.com/2021/09/blog-post_93.html
फिलहाल हम अपने विषय पर लौटते हैं....
मंदिर से दर्शन के उपरांत आते समय अचानक से ध्यान आया कि चाय बनाने की सारी सामग्रियां खरीद लेते हैं। चाय के स्वाद में कही कोई कमी ना रह जायें इसलिए याद कर-करके एक-एक चीजें हम खरीद रहे थे। मेरा मानना है कि जिंदगी और चाय में टेस्ट हमेशा बना रहना चाहिए। अमूमन लोग चाय बनाने के लिए दूध और चायपत्ती की परिकल्पना करते हैं लेकिन मेरी चाय की लिस्ट में सामग्री की सूची लंबी होती जा रही थी, जिसे देख- देखकर कैलाश सर भी आश्चर्यचकित हो रहे थे। अंतिम में मैंने जब 100 ग्राम इलायची की मांग की तो उनसे रहा नहीं गया और बीच मे बोल उठे!!! सर, इतनी इलाइची का क्या कीजिएगा?? ₹05 - ₹10 की ले लीजिए काफी हैं। मैंने उनकी बात को स्वीकार करते हुए 50 ग्राम इलायची ले ली। विद्यालय पहुंचने पर उन्होंने पूरे परिसर में यह बात फैला दी थी आर्ट सर तो चाय के लिए ₹250/- कि केवल इलायची लाये हैं। नवोदय विद्यालय में किसी भी शिक्षक को उसके नाम से कम उसके सब्जेक्ट से ज्यादा जाना जाता है। जैसे मैं आर्ट सब्जेक्ट पढ़ाता आता हूं तो आर्ट सर. कोई रसायन शास्त्र पढ़ाता है तो केमेस्टरी सर... इसकी शुरुआत किसने की इसके बारे में तो मुझे नहीं पता लेकिन सुनकर अच्छा लगता था।
चाय पीने के लिए कप मैंने दो दिन पहले ही Flipkart से ऑनलाइन ऑर्डर कर दिया था, जो कि एक-दो दिनों में पहुंचने वाला था। अब बस इंतजार था की कब कप आए और चाय की पार्टी की जायें।
....इंतजार ज्यादा लंबा नहीं चला और अगले ही दिन शाम में ही 01 दिन पहले Flipkart का कुरियर बॉय आ गया यानी मेरा इंतजार उससे भी नहीं देखा गया शायद! बस!!!, फिर क्या था, फटाफट चाय पार्टी की प्लानिंग बन गई। इवनिंग असेम्बली के बाद मैंने सुदर्शन सर (कंप्यूटर सर), कैलाश सर (मैथ सर), चंदन सर (इंग्लिश सर), सफान सर (इकोनॉमिक्स सर) और सज्जाद सर को आमंत्रण दे दिया। सज्जाद सर को छोड़कर सभी लोग रूम पर आ गए थे। चाय बनाने के लिए जब मैं किचन में गया तो देखा कि पानी ही नहीं है और मैंने दिन में पानी भरा ही नहीं था। मैं सोच ही रहा था की क्या करूं तभी कंप्यूटर सर मेरी मदद करने के लिए किचन में आये। जब उन्होंने देखा कि किचन में पानी नहीं है तो फटाफट वो अपने रूम पर गए और और एक बोतल पानी लेकर आए। सज्जाद सर भी आएंगे यह सोचकर मैंने 06 कप चाय बनने के लिए रख दिया।
चाय अच्छी बने यह सोचकर मैंने 03-04 चम्मच एक्स्ट्रा ही दूध डाल दिया। चूंकि मैं पाउडर वाले दूध से चाय बना रहा था। वो दूध इतना गाढ़ा हो गया कि चाय वाले बर्तन में ही नीचे एक मोटा लेयर बैठ गया और जलने भी लगा। दूध के जलने की महक पूरे किचन में फैल गई। दूध जलने की महक बगल के रूम में बैठे बाकी सर के पास पहुंचे उससे पूर्व ही मैंने दूध को दूसरे बर्तन में खाली करके फिर से दूध घोला और चाय बनाने की प्रक्रिया पूर्ण की।
आखिररकार!!! हमारी मेहनत रंग लाई और चाय बन गई। अब बस उसे कप में निकालना था। कप भी मैंने धो करके तैयार कर लिया। तब-तक कंप्यूटर सर पुनः किचन में आये और बोले कि - सर लेट हो रहा है? मैंने कहा - सर, चाय तैयार हैं बस छान कर ला रहे हैं। तब तक आप ये बिस्किट लेकर चलिए। सुदर्शन सर बिस्किट लेकर चले गए लेकिन मेरे सामने पुन: एक समस्या आ गई और वह यह थी कि चाय की सभी सामग्री खरीदते समय मैंने चाय छानने वाला उपकरण यानी चाय छन्नी खरीदा ही नहीं था। इस समस्या का त्वरित समाधान करना था। मैंने फटाफट एक सफेद सूती का गमछा लाया जिसे कुछ दिनों पूर्व ही खरीदा था उसे लेकर पहले पानी मे अच्छे से धोया फिर उससे चाय छानने का भरसक प्रयास करने लगा क्योंकि मैंने देखा था कि शादी-वगैरह में ऐसे ही सफेद धोती से लोग चाय छानते हैं लेकिन धोती का कपड़ा थोड़ा पतला होता है उससे चाय आसानी से निकल जाती है लेकिन गमछा थोड़ा मोटा था मेरे लाख प्रयत्न के बाद भी चाय गमछे से नहीं निकल पा रहा थी।
सफेद रंग का गमछा चाय के रंग से रंगीन हो गया लेकिन कप में चाय नही आया या थोड़ा-बहुत आया। फिर सुई की मदद से उस गमछे में छेद कर-कर के चाय को निकाला। इस प्रयास में चाय मेरे शरीर, कपड़ों एवं जमीन पर गिर गया।पुरी प्रक्रिया के पश्चात मेरे पास 05 कप चाय ही आया और जब मैंने आदमी को गिना तो मुझको लेकर 06 लोग हो रहे थे। फिर मैंने सोचा कि फिलहाल 05 को ही दे देंगे और स्वयं के बारे में विचार करेंगे लेकिन जैसे ही चाय लेकर गया तो देखा कि अभी तक सज्जाद सर नहीं आये थे यानी मुझको लेकर 05 लोग ही हो रहे थे यानी सब के बीच एक-एक कप बंट गया और नवोदय की वो पहली चाय की पार्टी सेलिब्रेट🎉 हो पाई। चाय पार्टी को और अधिक मजेदार मैंने बनाया और कुछ दिन बाद कंप्यूटर सर का जन्मदिन था मैंने उनके लिए एक तस्वीर बनाई थी जो कि उन्हें भेंट की। इस तरह से चाय पार्टी मेरे साथ-साथ कंप्यूटर सर (सुदर्शन सर) के लिए भी यादगार बन गई।
गुरुवार, 25 नवंबर 2021
हमारा संविधान
आज ही के दिन हमारे देश भारत का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। इसलिये वर्ष 2015 से प्रति वर्ष 26 नवम्बर को भारत में संविधान दिवस या विधि दिवस के तौर पर मनाया जाता है। संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ० भीमराव आंबेडकर के 125वीं जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 को पहली बार भारत सरकार द्वारा संविधान दिवस सम्पूर्ण भारत में मनाया गया तथा 26 नवम्बर 2015 से प्रत्येक वर्ष सम्पूर्ण भारत में संविधान दिवस मनाया जा रहा है। इससे पहले इसे हम राष्ट्रिय कानून दिवस के रूप में मनाते थे। संविधान सभा ने भारत के संविधान को 02 वर्ष 11 माह 18 दिन में 26 नवम्बर 1949 को पूरा कर राष्ट्र को समर्पित किया गया था। गणतंत्र भारत में 26 जनवरी 1950 से संविधान अमल में लाया गया।
भारतीय संविधान की मूल प्रति को पद्म विभूषण से सम्मानित कला गुरू नन्दलाल बोस ने चित्रों से अलंकृत किया था। नन्दलाल बोस की मुलाकात प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू से गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शान्ति निकेतन में हुई और वहीं नेहरू जी ने नन्दलाल बोस को आमंत्रण दिया कि वे भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रकारी से सजाएं।
संविधान की मूल प्रति को प्रेम बिहारी रायजादा ने इटैलिक स्टाइल कैलिग्राफी में खूबसूरती से हाथ से लिखा था। 251 पृष्ठ के इस पांडुलिपि के हर पन्नों पर चित्र बनाना सम्भव नहीं था। अत: नन्दलाल बोस ने संविधान के प्रत्येक भाग की शुरुआत में 8"-13" इंच के चित्र बनाए। नन्दलाल बोस ने व्यौहार राममनोहर सिन्हा और अपने अन्य छात्रों के सहयोग से कुल 22 चित्र बनाए और इतनी ही किनारियों से सजाया। अजन्ता और बाघ से प्रेरित इन चित्रों को बनाने में चार साल लगे और उन्हें इसके लिए उन्हें ₹21,000 पारिश्रमिक दिया गया था। धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र भारत के संविधान की मूल प्रति में शान्ति का उपदेश देते भगवान बुद्ध भी हैं और वैदिक यज्ञ करते ऋषि की यज्ञशाला भी, काल की छाती पर पैर रखकर नृत्य करते नटराज, कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण और स्वर्ग से देव नदी गंगा का धरती पर अवतरण भी, हिन्दू धर्म के प्रतीक शतदल कमल भी संविधान की मूल प्रति पर चित्रित है। ये सब किसी धर्म विशेष नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास की विकास यात्रा को दर्शाने वाले चित्र है।
संविधान के पहले पन्ने पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तम्भ की लाट का चित्र है, जिसे उनके प्रिय शिष्यों में से एक दीनानाथ भार्गव ने बनाया था। हड़प्पा की खुदाई से मिले घोड़े, शेर, हाथी और सांड़ की चित्रों को लेकर सुनहरी किनारी से भारतीय संविधान की प्रस्तावना को सजाया गया है। संविधान में मुगल बादशाह अकबर अपने दरबार में बड़े शान से बैठे हुए दिख रहे हैं, सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह भी वहां मौजूद हैं, मैसूर के सुल्तान टीपू और 1857 की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के चित्र भी संविधान की मूल प्रति पर उकेरे गए हैं। भारत की सांस्कृतिक विविधता को चित्रों मे समेटे संविधान की मूल प्रति संसद के पुस्तकालय में हीलियम से भरे डिब्बों में सुरक्षित रखी है।
The HOPE Experiment by साइंटिस्ट कर्ट रिचट्टर
1950 के दशक में हावर्ड यूनिवर्सिटी के विख्यात साइंटिस्ट कर्ट रिचट्टर ने चूहों पर एक अजीबोगरीब शोध किया था। कर्ट ने एक जार को पानी से भर दिया और उसमें एक जीवित चूहे को डाल दिया। पानी से भरे जार में गिरते ही चूहा हड़बड़ाने लगा औऱ
जार से बाहर निकलने के लिए लगातार ज़ोर लगाने लगा। चंद मिनट फड़फड़ाने के पश्चात चूहे ने जार से बाहर निकलने का अपना प्रयास छोड़ दिया और वह उस जार में डूबकर मर गया।
कर्ट ने फ़िर अपने शोध में थोड़ा सा बदलाव किया।
उन्होंने एक दूसरे चूहे को पानी से भरे जार में पुनः डाला। चूहा जार से बाहर आने के लिये ज़ोर लगाने लगा। जिस समय चूहे ने ज़ोर लगाना बन्द कर दिया और वह डूबने को था......ठीक उसी समय कर्ड ने उस चूहे को मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया।
कर्ट ने चूहे को उसी क्षण जार से बाहर निकाल लिया जब वह डूबने की कगार पर था।
चूहे को बाहर निकाल कर कर्ट ने उसे सहलाया...... कुछ समय तक उसे जार से दूर रखा और फिर एकदम से उसे पुनः जार में फेंक दिया। पानी से भरे जार में दोबारा फेंके गये चूहे ने फिर जार से बाहर निकलने की अपनी जद्दोजेहद शुरू कर दी। लेकिन पानी में पुनः फेंके जाने के पश्चात उस चूहे में कुछ ऐसे बदलाव देखने को मिले जिन्हें देख कर स्वयं कर्ट भी बहुत हैरान रह गये।
कर्ट सोच रहे थे कि चूहा बमुश्किल 15-20 मिनट तक संघर्ष करेगा और फिर उसकी शारीरिक क्षमता जवाब दे देगी और वह जार में डूब जायेगा।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
चूहा जार में तैरता रहा। अपनी जीवन बचाने के लिये लगातार सँघर्ष करता रहा।
60 घँटे.......
जी हाँ..... 60 घँटे तक चूहा पानी के जार में अपने जीवन को बचाने के लिये सँघर्ष करता रहा।
कर्ट यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये।
जो चूहा महज़ 15 मिनट में परिस्थितियों के समक्ष हथियार डाल चुका था........वही चूहा 60 घंटों तक कठिन परिस्थितियों से जूझ रहा था और हार मानने को तैयार नहीं था।
कर्ट ने अपने इस शोध को एक नाम दिया और वह नाम था-
"The HOPE Experiment"
Hope........यानि की आशा।
कर्ट ने शोध का निष्कर्ष बताते हुये कहा कि जब चूहे को पहली बार जार में फेंका गया तो वह डूबने की कगार पर पहुंच गया उसी समय उसे मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया गया। उसे नवजीवन प्रदान किया गया। उस समय चूहे के मन मस्तिष्क में "आशा" का संचार हो गया। उसे महसूस हुआ कि एक हाथ है जो विकटतम परिस्थिति से उसे निकाल सकता है।
जब पुनः उसे जार में फेंका गया तो चूहा 60 घँटे तक सँघर्ष करता रहा.......
वजह था- वह हाथ!!! वह आशा!!! वह उम्मीद!!!
इसलिए हमेशा,
उम्मीद बनाये रखिये, सँघर्षरत रहिये,
सांसे टूटने मत दीजिये, मन को हारने मत दीजिये।
रविवार, 21 नवंबर 2021
Major Dhyan Chand Khel Ratna Award 2021
Name of the Sportsperson Discipline
Neeraj Chopra Athletics
Ravi Kumar Wrestling
Lovlina Borgohain. Boxing
Sreejesh P.R Hockey
Avani Lekhara Para Shooting
Sumit Antil Para Athletics
Pramod Bhagat Para Badminton
Krishna Nagar Para Badminton
Manish Narwal Para Shooting
Mithali Raj Cricket
Sunil Chhetri Football
Manpreet Singh Hockey
शनिवार, 20 नवंबर 2021
जज्बातों के भव सागर से।
जो तुम्हारा हो ना सके,
कभी उसकी चाहत मत करना।
अगर हो सच में वह पत्थर,
तो कभी इबादत मत करना।
आदतों से यूं ही हंस कर
दो-चार बाते कर लेना।
मगर किसी से बात करने की,
आदत मत करना।
जो परिंदे उड़ जाना चाहते है,
उन्हें रोकना मत।
पिजरे खोल देना,
इजाजत-विजाजत मत करना।
अगर हो सफर में तो,
अनवरत चलते रहो।
लक्ष्य को लेकर खुद पर,
राहत मत करना।
मंजिल मिलेगी,
तुम्हें भी एक दिन।
किसी की बातों में आकर,
सपनो को अपने चकनाचूर मत करना।
मंजिल तक पहुंचने में,
लाख रुकावटे आती है।
हंसकर उन सभी को,
आत्मसात करते रहना।
मंजिल पर पहुंच कर,
भूल ना जाना उन ख्वाबों को।
जो तुम्हारे ख्वाब पूरे करने के लिए,
अपने ख्वाबों की बलि देते रहे हैं।
विश्वजीत कुमार✍️
Photographer (छायाकार)
एक फोटोग्राफर ही ऐसा प्राणी है जो मंदिर भी जाता है और मस्जिद भी। वो चर्च भी जाता है और गुरुद्वारे भी। फोटोग्राफर का हर धर्म एवं मजहब से नाता है। वो सुख, दुख, हंसी, उदासी एवं गम हर तरह की यादें बनाता है। फोटोग्राफर का हर इमोशन से नाता है वो कभी लेटकर, कभी उठकर, कभी बैठकर तो कभी-कभी टेढा-मेढा सा होकर विभिन्न एंगल से यादो को कैद करते रहता है।
फोटोग्राफर का हर एंगल से नाता है वो अकेले के लिये भी दौड़ता है और भीड के लिये भी। फोटोग्राफर का हर परिस्थितियों से नाता है।
आप मत पूछिये की एक फोटोग्राफर क्या-क्या संजोता है वो तो हर पल की यादो की छवि आपके हाथो में दे जाता है।
सोमवार, 15 नवंबर 2021
स्वतन्त्र भारत में भाषा-समस्या (Language Problem in Free India) S-1 D.El.Ed. 2nd Year B.S.E.B. Patna.
'कोठारी कमीशन' के शब्दों में , "स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से हमारे देश ने जिन समस्याओं का सामना किया, उनमें भाषा की समस्या सबसे अधिक जटिल रही है और अब भी है।"
स्वतन्त्र भारत में भाषा-समस्या की जटिलता के दो मुख्य कारण रहे हैं और अब भी हैं। पहला कारण यह है कि भारत, बहुभाषी देश है। सन् 1971 की जनगणना के अनुसार भारत में 1,652 मातृभाषाएँ (Mother Tongues) और 380 बोलियाँ (Dialects) हैं, जिनमें से केवल 15 को भारतीय संविधान में स्थान दिया गया है। दूसरा कारण यह है कि देश के शिक्षाविदों एवं राजनीतिज्ञों में किसी सामान्य भाषा के विषय में सदैव मत-विभिन्नता रही है; यथा-
1. महात्मा गाँधी के अनुसार, "जिस राष्ट्र के बच्चे अपनी मातृभाषा के अलावा किसी अन्य भाषा के द्वारा शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे स्वयं अपनी हत्या करते हैं।"
2. रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार, “हमारे विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी भाषा अपने सम्मानपूर्ण स्थान से अपदस्थ नहीं की जा सकती है।"
3. जवाहरलाल नेहरू के अनुसार , "राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी, देश की एकता से अधिक से अधिक से सहायक होगी।"
4. राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार, 'केवल शिक्षा ही नहीं, वरन् प्रशासन में भी प्रान्तीय भाषाओं को अपना स्थान प्राप्त होना चाहिए।"
5. जी. रामनाथन के अनुसार, "अहिन्दी क्षेत्रों के व्यक्ति, हिन्दी के प्रसार के सब प्रयासों का विरोध कर रहे हैं।"
सरकार के द्वारा भाषा-समस्या के समाधान का प्रयास
(Government Efforts To Solve Language Problem)
उपरिलिखित बाधाओं एवं विरोधी विचारों से हतोत्साहित न होकर, भारत सरकार ने भाषा-समस्या का समाधान करने के लिए समय-समय पर जो प्रयास किए हैं, उनका वर्णन अधोलिखित है-
1. भारतीय संविधान (Constitution of India, 1950)- 15 अगस्त, 1947 को जब भारत ने स्वतन्त्रता प्राप्त की, तब उसके समक्ष अनेक समस्याएँ थीं। इनमें से एक समस्या भाषा की थी। सभी स्वतन्त्र राष्ट्रों की अपनी राजभाषा होती है। अतः स्वतन्त्र भारत की भी राजभाषा होनी आवश्यक थी। यह स्थान एवं सम्मान हिन्दी को प्रदान किया गया।
हिन्दी को यह प्रतिष्ठित स्थान अकस्मात् या संयोगवश प्राप्त नहीं हुआ। उसे यह स्थान प्राप्त करने का आधारभूत कारण था- अनेक महान् भारतीयों द्वारा हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार के लिए अथक प्रयास किया जाना। इन भारतीयों में सर्वमहान् थे- लोकमान्य तिलक, स्वामी दयानन्द सरस्वती, सुभाषचन्द्र बोस, श्यामाप्रसाद मुकर्जी, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य और सर्वोपरि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी गाँधीजी ने 27 दिसम्बर, 1917 को कलकत्ता में अपने एक भाषण में कहा था- "सर्वप्रथम और सर्वमहान् सेवा जो हम कर सकते हैं, वह हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में राष्ट्रीय स्थान प्रदान करना है।"
उल्लिखित महान् भारतीयों के कार्यों और महात्मा गाँधी के विचारों से अनुप्राणित होकर, विधानसभा ने 1950 के भारतीय संविधान की धारा 343 को बिना किसी मत-विभिन्नता के स्वीकार किया। इस धारा में अंकित किया गया था। (i) संघ की भाषा, देवनागरी लिपि में हिन्दी होगी। (ii) संविधान के लागू होने के समय से 5 वर्ष तक संघ के सब राजकीय कार्यों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग किया जायेगा।
रविवार, 14 नवंबर 2021
री-रूटिंग ...Re-Routing... पुन: अनुमार्गण
हमें कहीं भी अनजान जगह पर जाना हो तो फटाक से गूगल मैप खोल लेते हैं और उसके सहारे आसानी से अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं। आज का यह लेख✍️ इसी पर आधारित है:-
आपने देखा है कि अगर आप गलत मोड़ लेते हैं तो Google मानचित्र कभी भी चिल्लाता😬 नहीं है, निंदा😠 नहीं करता है या आपको डांटता😫 नहीं है।
यह कभी नहीं कहता है की "आपको आखिरी क्रॉसिंग पर बाएं जाना था, बेवकूफ! अब आपको लंबा रास्ता तय करना होगा और इसमें आपको बहुत अधिक समय लगने वाला है और आपको अपनी बैठक के लिए देर होने वाली है। ध्यान देना सीखो और मेरे निर्देशों को सुनो, ठीक है ???
अगर उसने ऐसा किया तो संभावना है कि हम में से बहुत से लोग इसका इस्तेमाल करना बंद कर सकते हैं। लेकिन Google केवल री-रूट करता है और आपको वहां पहुंचने का अगला सबसे अच्छा तरीका दिखाता है। इसकी प्राथमिक रुचि आपको अपने लक्ष्य तक पहुँचाने में है, न कि आपको गलती करने के लिए बुरा महसूस कराने में।
एक बहुत अच्छा सबक है...
अपनी निराशा और क्रोध को उन लोगों पर उतारना आसान है, जिन्होंने गलती की है। लेकिन सबसे अच्छा विकल्प समस्या को ठीक करने में मदद करना है, दोष देना नहीं।
अपने बच्चों, जीवनसाथी, टीम के साथी और उन सभी लोगों के लिए Google मानचित्र बनें, जो आपके लिए मायने रखते हैं और जिनकी आपको परवाह है।
धन्यवाद🙏
विद्यालय के संगठनात्मक पक्ष, उद्देश्य एवं सिद्धांत. D.El.Ed. 2nd Year S-1 B.S.E.B. Patna.
विद्यालय के संगठनात्मक पक्ष
शनिवार, 13 नवंबर 2021
शिक्षा, विद्यालय तथा समुदाय से अपेक्षाएँ एवं समकालीन बदलाव तथा प्रभाव (Expectations of Education, Schools and Community and Contemporary Changes and Effects) D.El.Ed.2nd Year S-1 Unit-4 B.S.E.B. Patna.
शिक्षा एक पीढ़ी द्वारा अर्जित अनुभव, ज्ञान, कौशल दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने का माध्यम है। शिक्षा सतत् रूप से चलने वाली एक ऐसी प्रक्रिया है जो मनुष्य की जन्मजात शक्तियों के स्वाभाविक और सामंजस्यपूर्ण विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। व्यक्ति की वैयक्तिक का पूर्ण विकास करती है। उसे आस-पास के वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने में मदद प्रदान करती है और सफल जीवन एवं सभ्य नागरिक के कर्त्तव्यों एवं दायित्वों के लिए तैयार करती है। साथ ही उसके व्यवहार विचार और दृष्टिकोण में ऐसा परिवर्तन करती है जो देश, समाज एवं विश्व के लिए हितकर होता है। संक्षेप में, शिक्षा बालकों में अन्तर्निहित शक्तियों के प्रस्फुटन एवं विकसित होने में सहायता करती है। शिक्षा से समाज की निम्नलिखित अपेक्षाएँ हैं-
एक व्यक्ति के रूप में शिक्षा से हमारी यह अपेक्षा होती है कि वह बालक के सर्वांगीण विकास में सहायक हो, व्यक्ति शिक्षित होकर अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम हो सके, बालकों की जन्मजात प्रवृत्तियों का समायोजित विकास हो और व्यक्ति स्वयं अपनी जीविका कमाने हेतु तैयार हो सके । शिक्षा से यह अपेक्षा की जाती है कि इसके द्वारा व्यक्ति का नैतिक विकास एवं उत्तरदायित्व की भावना का विकास हो, व्यक्ति को आत्मनिर्भर एवं आत्मविश्वासी बनाकर उसके उत्तम चरित्र का निर्माण करना, व्यक्ति में व्यावसायिक कुशलता का विकास करना, व्यक्ति के अन्दर यह क्षमता विकसित करना कि वह या तो वातावरण के अनुसार स्वयं को अनुकूलित कर ले या वातावरण को स्वयं के अनुसार परिवर्तित कर दे।
नई पीढ़ी को समाज की संस्कृति का ज्ञान कराना, समाज की शिक्षा से अपेक्षा है। बालकों को सामाजिक नियमों से परिचित कराकर उसका समाजीकरण करना, सामाजिक समस्याओं को दूर करने की भावना उत्पन् करना, समाज के अनेक विश्वासों तथा धर्मों के विषय में उदार दृष्टिकोण का निर्माण करना, समाज के प्रति निष्ठा की भावना का विकास करना। राष्ट्र को शिक्षा से अपेक्षा होती है कि शिक्षा कुशल और निष्ठावान नागरिकों का निर्माण करे, व्यक्तियों में नेतृत्व के गुणों का विकास करना, युवा व्यावसायिक रूप से दक्ष हों, कुशल कार्यकर्ताओं का निर्माण करना, शिक्षित व्यक्ति राष्ट्र की आय में बढ़ोत्तरी करे, व्यक्तियों में राष्ट्रीय एवं भावात्मक एकता का विकास हो, नागरिकों में कर्तव्यों और अधिकारों को समझ विकसित हो तथा वे उन्हें निभाने हेतु तत्पर हो
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय शिक्षा से यह अपेक्षा करता है कि वह व्यक्तियों में मानवीय गुणों/मूल्यों का विकास करें, व्यक्तियों में शांति की भावना विकसित करें जिससे कि वह जहाँ भी रहे वहाँ पर शांति की संस्कृति का निर्माण कर सके, व्यक्तियों में विश्व बंधुत्व की भावना/सह अस्तित्व की भावना का विकास हो, व्यक्तियों में पर्यावरण सम्बन्धी जागरूकता हो तथा वे पर्यावरण मैत्री व्यवहार करें।
वास्तव में शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो न केवल देश के आदर्शों एवं मान्यताओं के अनुकूल हो बल्कि परिवर्तित एवं विकसित परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुकूल भी हो। क्योंकि शिक्षा का कार्य केवल संस्कृति या समाज का रक्षण ही नहीं है। शिक्षा यदि रूढ़िवादी और स्थिर होने से बचना चाहती है तो उसे समाज के संगठनों और संस्थाओं के कार्यों और गतिविधियों की पूरक एवं समाज और संस्कृति के विकास में सहायक भी होना चाहिए। शिक्षा से अपेक्षाओं को निचोड़ रूप में देखा जाए तो इस सम्बन्ध में अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा आयोग 21वीं शताब्दी की रिपोर्ट जो 1996 में प्रकाशित हुई, उसमें शिक्षा के चार स्तम्भ माने गए हैं-
1. जानने के लिए सीखना
वास्तव में ज्ञान शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण भाग है हमारे चारों ओर के परिवेश में बहुत सी वस्तुएँ हैं, जिनको जानना आवश्यक है। इस सबकी जानकारी मनुष्य को सन्तुष्टि भी प्रदान करता है। ज्ञान प्राप्ति एक प्रकार के आन्तरिक आनन्द को जन्म देती है। यही नहीं, यह ज्ञान ही है जो मानव सभ्यता के विकास का आधार है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि सीखा कैसे जाए? शिक्षा का यह स्तम्भ 'Learning to Know' इसी बात से सम्बन्ध रखता है। रिपोर्ट में इसके लिए निम्नलिखित बातों पर बल दिया है-
(1) व्यक्ति में निरीक्षण शक्ति का विकास किया जाए।
(2) व्यक्ति में एकाग्रता विकसित की जाए। ध्यान की एकाग्रता के बिना ज्ञानार्जन असम्भव है।
(3) स्मरण-शक्ति का विकास किया जाए। इसके लिए पुराने चले आ रहे परम्परागत तरीकों को अपनाया जा सकता है।
(4) चिन्तन और तर्क-शक्ति दोनों का विकास किया जाए। तर्क आगमन व निगमन दोनों प्रकार का हो सकता है। लेकिन कब किस तरह के तर्क द्वारा ज्ञान प्राप्त करना है, इनका निर्धारण विषय-वस्तु की प्रकृति के अनुसार किया जाना चाहिए।
जब व्यक्ति में इन योग्यताओं का विकास हो जाता है तो वह यह सीख जाता है कि कैसे सीखा जाए? आयोग ने शिक्षा के इस स्तम्भ में विज्ञान शिक्षा प्राप्त करने के अवसर उपलब्ध करवाने पर भी बल दिया है, क्योंकि इससे व्यक्ति की उपर्युक्त क्षमताओं के विकास में भी सहायता मिलती है।
2. करने के लिए सीखना
शिक्षा के पहले स्तम्भ का सम्बन्ध यदि 'ज्ञान' के साथ है तो इस स्तम्भ का 'क्रिया' के साथ यह व्यक्ति में अनेक कौशलों से जुड़ा है। रिपोर्ट में इस स्तम्भ के अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दुओं पर बल दिया गया है-
(i) शिक्षा द्वारा व्यक्ति में ऐसे कौशलों का विकास किया जाए, जिससे वह निश्चित भविष्य Certain Future के लिए तैयार हो सके।
(ii) शिक्षा व्यक्ति में ऐसी योग्यता विकसित करे, जिससे वह सैद्धान्तिक और व्यावहारिक ज्ञान में समन्वय कर सके।
(iii) शिक्षा उसे सृजनात्मक बनाए।
(iv) यह उसमें समस्या समाधान, निर्णय लेने एवं नवीनतम सामूहिक कौशलों का विकास करे।
(v) यह उसमें ऐसी क्षमता का विकास करे, जिससे वह चाहे कहीं नौकरी कर रहा हो या किसी व्यवसाय से जुड़ा हो, किये जाने वाले कार्य को अधिक दक्षता के साथ कर सके।
(vi) शिक्षा द्वारा उसमें सामाजिक कौशलों का विकास भी किया जाए।
इस तरह यह स्तम्भ विद्यार्थियों में श्रम के प्रति निष्ठा पैदा करने, प्रत्येक कार्य को दक्षता के साथ करने, उसे अनिश्चित भविष्य में सफलतापूर्वक कार्य करने में सक्षम बनाने और उसमें वैयक्तिक व सामाजिक कौशलों का विकास करने के साथ सम्बन्ध रखता है।
3. साथ रहने के लिए सीखना
शिक्षा के इस स्तम्भ के अन्तर्गत आयोग ने यह चर्चा की है कि इस सदी में व्यक्तियों में हिंसक एवं आत्मघाती प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं और सूचना और संचार माध्यम इस प्रकार की घटनाओं को समाज के समक्ष बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं। इससे आपसी संघर्ष बढ़े हैं। शिक्षा का यह स्तम्भ इसी विषय से सम्बन्ध रखता है कि कैसे लोगों को मिल-जुलकर साथ रहना सिखाया जाए? इस सन्दर्भ में रिपोर्ट में निम्न बिन्दुओं पर बल दिया गया है-
(i) आजीवन शिक्षा के अन्तर्गत समान परियोजनाओं में लोगों की संलिप्तता को बढ़ाया जाए। इससे परस्पर झगड़ों को रोकने में सहायता मिलेगी।
(ii) विद्यार्थियों को मानवीय विविधताओं की जानकारी देने के साथ-साथ उन बातों की भी जानकारी दी जाए जो सबमें समान रूप से पाई जाती हैं। उन्हें यह भी समझाया जाए कि हम सभी इस तरह किसी न किसी रूप में एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
(iii) विद्यार्थियों को मानव भूगोल, विदेशी भाषाओं व साहित्य की शिक्षा दी जाए।
(iv) विद्यार्थियों को इस बात के लिए प्रशिक्षित किया जाए कि वे विश्व को दूसरों के नजरिए से देखें। इससे परस्पर सद्भावना को बढ़ावा मिलेगा।
(v) विद्यार्थियों को परस्पर बातचीत और परिचर्चा के लिए उपयुक्त मंच उपलब्ध करवाया जाए।
(vi) उनमें यह बोध उत्पन्न किया जाए कि विभिन्न क्षेत्रों में अधिकतम सफलता प्राप्त करने हेतु मिल-जुलकर काम करना आवश्यक है।
(vii) विद्यार्थियों को प्रारम्भ से ही खेल-कूद तथा सांस्कृतिक एवं सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
(viii) शिक्षा संस्थाओं में अध्यापक एवं विद्यार्थी सभी मिलकर समान परियोजनाओं पर कार्य करें।
इस तरह ये विभिन्न गतिविधियाँ विद्यार्थियों को साथ मिलकर रहना सिखाएगी जो कि वर्तमान शताब्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।
4. अस्तित्व के लिए सीखना
1972 में प्रस्तुत अन्तर्राष्ट्रीय आयोग की प्रस्तावना में कहा गया है कि तकनीकी विकास के कारण विश्व में मानवता की भावना लुप्त हो जाएगी। यदि प्रत्येक व्यक्ति की क्षमताओं का पूर्ण विकास होता है तो इस खतरे से बचा जा सकता है। अतः आयोग के अनुसार शिक्षा को चाहिए कि वह व्यक्ति को अपने अस्तित्व हेतु प्रशिक्षण दे।
दूसरे शब्दों में, उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करे। इस सन्दर्भ में आयोग ने निम्नलिखित बातों पर जोर दिया है-
(i) शिक्षा का आधारभूत सिद्धान्त यह है कि यह व्यक्ति का पूर्ण विकास करे। दूसरे शब्दों में, उसका शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक, सौन्दर्य-बोधात्मक और आध्यात्मिक विकास करे ताकि वह एक पूर्ण मानव बन सके।
(ii) शिक्षा व्यक्ति में स्वतन्त्र एवं आलोचनात्मक तरीके से चिन्तन करने तथा अपने निर्णय स्वयं लेने की योग्यता का विकास करे।
(iii) शिक्षा उसे इस रूप में तैयार करे कि वह एक व्यक्ति, एक परिवार व समाज के सदस्य, एक भविष्य के सृजनशील स्वप्न द्रष्टा एवं नवीन तकनीकों के जन्मदाता के रूप में अपने व्यक्तित्व को विकसित कर सके।
(iv) शिक्षा उसे अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान करने एवं अपनी जिम्मेदारियों का स्वयं निर्वाह करने के योग्य बनाए।
(v) शिक्षा यह भी सुनिश्चित करे कि प्रत्येक व्यक्ति विचारों, भावनाओं, कल्पना एवं निर्णय के सन्दर्भ में स्वतन्त्र हो और अपनी क्षमताओं का पूर्ण विकास कर सके।
उपरोक्त चारों स्तम्भ ही आधुनिक समय में शिक्षा से मूलभूत अपेक्षाएँ हैं।
किसी भी राष्ट्र की प्रगति में विद्यालय का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। विद्यालय को सामाजिक परिवर्तन का आधार व पुनर्निर्माण के अभिकर्ता के रूप में देखा जाता है। पहले विद्यालयों में बच्चों पर ज्ञान थोपा जाता था। वे शिक्षा को जन्मधुट्टी की भाँति रट कर पी जाते थे परंतु आज माहौल बदल गया है। बच्चों की जिज्ञासा, मौलिकता एवं सृजनात्मकता को महत्त्व दिया जा रहा है जिससे बच्चे ज्ञान का सृजन स्वयं कर रहे हैं। विद्यालय बच्चों की स्वतन्त्रता का हनन करने का स्थल न हो बल्कि उसका वातावरण इस प्रकार निर्मित हो कि बच्चे स्वयं खिंचे चले आयें। उन्मुक्त पक्षी की तरह बच्चे स्वतन्त्र विचरण करें। विद्यालय की हर गतिविधि में उनके सीखने एवं ज्ञान को अर्जित करने की जगह हो विद्यालय से समाज की अधिक अपेक्षाएँ होती है वह विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों में मानवीय मूल्यों की झलक देखना चाहता है और उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनाना चाहता है।
समाज द्वारा अपनी भावी पीढ़ी को शिक्षित करने हेतु शिक्षा संस्थाओं/विद्यालयों की स्थापना की जाती है। कुछ संस्थाएँ सरकार द्वारा स्थापित की जाती हैं। कुछ विभिन्न संगठनों, संस्थाओं तथा व्यक्तियों द्वारा स्थापित की जाती हैं। विद्यालय की समुदाय से सबसे बड़ी अपेक्षा यह होती है कि वे अपने बच्चों का विद्यालय में दाखिला करवाएँ एवं उनको नियमित रूप से विद्यालय भेजें। शिक्षक अभिभावक बैठकों में अनिवार्य रूप से शामिल होकर अपने बच्चों की शैक्षिक प्रगति को जानकर आवश्यक सहयोग एवं मार्गदर्शन करें। बाल मेला, विज्ञान मेला तथा गणित मेला आदि अनेक कार्यक्रमों में सहभागिता करें। विद्यालय के वार्षिक समारोह एवं वार्षिक खेलकूद कार्यक्रम में शामिल होकर अपने बालक-बालिकाओं को उत्सावर्द्धन करें। विद्यालय से सम्बन्धित सभी समितियों में शामिल विभिन्न समुदाय के लोगों से यह अपेक्षा होती है कि वह इन समितियों में निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय साझेदारी करते हुए जिम्मेदारियों का निर्वहन सही ढंग से करें। विशेष रूप से माता समिति से जुड़ी महिलाओं को जिम्मेदारी है कि वह भी सक्रिय रूप से विद्यालय जीवन में अपना सहयोग करें। शिक्षा समिति से सम्बन्धित लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह गुणवत्तापूर्ण पौष्टिक भोजन बालक-बालिकाओं हेतु बनवाएँ।
इस बात से आप सहमत होंगे कि शिक्षा से अपेक्षाएँ समय के साथ बदलती रही हैं। समाज ने सदैव अपनी वर्तमान आवश्यकताओं/माँगों एवं जीवन दर्शन के आधार पर शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित किए हैं। प्राचीन काल के वैदिक समाज ने गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के माध्यम से ऐसे लोगों को तैयार करने की जिम्मेदारी शिक्षा को सौंपी थी जिनमें धार्मिकता का समावेश हो। उस समय धर्म पर अत्यधिक बल था। व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थाओं का अभाव था।