सोमवार, 1 जून 2020

पटना कलम (Patna Kalam) B.Ed. 1st Year. EPC - 2, Unit-2.


पटना कलम, EPC-2, Unit - 2 B.Ed.1st Year. Munger University, Munger. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=cNw72DSmMMU&t=9s


पटना कलम

          पटना कलम जिसे हम "कंपनी शैली" या "पटना शैली" के नाम से भी जानते हैं। पटना कलम एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली हैं। इस शैली की शुरुआत मुगल साम्राज्य के पतन के बाद हुआ जब चित्रकारों ने पटना तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्रों को अपने चित्रकला का विषय बनाया।
         पटना कलम शैली स्वतंत्र रूप से दुनिया की पहली ऐसी कला शैली थी जिसमें आम लोगों (Ordinary People) और उनकी जिंदगी को कैनवास/पेपर पर जगह दी। इस चित्र शैली का निर्माण जल रंग (water color) से अधिकांश होता था।
       मुगल साम्राज्य के पतन की अवस्था में शाही दरबार में कलाकारों को आश्रय मिलना बंद हो गया। इस कारण उनका पलायन अन्य क्षेत्रों में होने लगा था। इसी क्रम में 1760 ई० के लगभग कुछ चित्रकार पाटलिपुत्र आए और इन्हीं के द्वारा एक नई चित्रकला शैली का विकास हुआ।  यह चित्रकला शैली ही पटना कलम या पटना शैली कही जाती है। पटना कलम के चित्र लघु चित्रों (Miniature Painting) की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अधिकांशतः कागज, अभ्रक और कहीं-कहीं  हाथी दांत पर भी बनाया गया है।

Note:- पटना चित्र शैली के अधिकतर चित्रकार पुरुष है। इसीलिए इसे "पुरुषों की चित्र शैली"  भी कहा जाता है।

Fall (पतन):- ब्रिटिश काल के अंत तक यह शैली भी लगभग अंत के करीब पहुंच गई। श्यामलानंद और राधा मोहन प्रसाद इसी शैली के कलाकार थे। राधा मोहन प्रसाद ने हीं बाद में पटना में 1939 ईस्वी में कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना की स्थापना की जो कई दशकों से देश में कला गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र है।  ईश्वरी प्रसाद वर्मा पटना कलम शैली के अंतिम चित्रकार माने जाते हैं। उनके निधन के साथ ही पटना कलम शैली भी समाप्त हो गई। उनके द्वारा निर्मित कलाकृतियां पटना आर्ट कॉलेज एवं निजी संग्रह में आज भी शोभनीय है।

पटना कलम चित्रकला शैली की विशेषता:-

  • लघु चित्र (Miniature Painting):- पटना कलम के चित्र लघु चित्रों की श्रेणी में आते हैं  जिन्हें अधिकतर कागज, अभ्रक और कहीं-कहीं हाथी दांत पर भी बनाया गया।
  • सामान्य जन-जीवन का चित्रांकन (Portraiture of normal life):- पटना कलम शैली में श्रमिक वर्ग, दस्तकारी वर्ग (बढ़ई, लोहार,इत्यादि), आवागमन के साधन, बाजार के दृश्य एवं त्योहारों के चित्र अधिकतर बनाए गए हैं। 
  • बारीकी एवं अलंकरण की विशेषता (Characteristic of closely and decking):- इस चित्र शैली के चित्रकार बारीकी की दृष्टि से काफी सिद्धहस्त (Proven) थे। चित्रों के विभिन्न हिस्से को बड़ी ही बारीकी से चित्रांकन किया जाता था।
  • रंगने की निजी शैली (Personal style of coloring):-  इस शैली में विषय वस्तु को पेंसिल से रेखांकित कर तब इन्हें रंगने की प्रक्रिया को सामान्यतः नहीं अपनाया गया हैं।  बल्कि तूलिका एवं रंग के सहारे सीधे कागज पर चित्रांकन किया गया है। चित्रों को अंकित करने की आधारभूमि सर्वप्रथम कागज पर ही बनाई जाती थी। परंतु विविधता एवं स्थायित्व लाने के लिए चमड़ा, धातु आदि पर भी चित्रों को बनाया जाता था।
  • मुगल शैली से भी भिन्नता (Difference from Mughal style):- मुगल शैली से प्रभावित होते हुए भी कई मामलों जैसे विषय वस्तु, रंगों के उपयोग और छायांकन के तरीकों में यह मुगल शैली से अलग है। मुगल शैली में जहां राजमहल से संबंधित विषय वस्तु है वही पटना कलम में आम जनजीवन को विषय बनाया गया है।







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