सोमवार, 8 जून 2020

Contemporary Artist नंदलाल बसु (1882-1966) B.Ed. 1st Year, Munger University, Munger.


समकालीन कलाकार (Contemporary Artist) Nandlal Bose B.Ed.1st Year EPC-2 Unit-2. Munger University. Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=FL9zQW4KMhc&list=PL9TVIXFOxWRqATIFwPJ605KEpILBq13Pk&index=53&t=1s

नंदलाल बसु (1882-1966)

       नंदलाल बसु का जन्म बिहार प्रांत के मुंगेर जिले में हवेली खड़कपुर गांव में हुआ था। कला की पहली "शिक्षा" उन्हें अपनी मां से मिली।  वे अपनी मां को घर सजाते, सुंदर कढ़ाई करते,और तरह-तरह की चीजें बनाते देखते थे। जब भी उनको समय मिलता वे अपने गांव के कुम्हारों के घर चले जाते। मिट्टी के सुंदर बर्तन और खिलौने उनका मन मोह लेता था। जब वह 8 वर्ष के थे उसी समय उनकी मां की मृत्यु हो गई।
         नंदलाल अक्सर पढ़ते समय भी  आड़ी-तिरछी (Cross Skew) रेखाएं बनाते रहते।  परिणामस्वरुप इंटर की परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए । घर वालों ने हार कर उनका नामांकन वाणिज्य कॉलेज में करा दिया। किंतु वहां भी वे असफल रहे। अंत में उन्होंने कोलकाता स्कूल ऑफ आर्ट्स में नामांकन के लिए सिफारिश प्रमाण पत्र लेकर गए और वह अपने साथ अपनी तूलिका द्वारा निर्मित एक पेंटिंग भी साथ लाए थे। वहां के प्राचार्य ने चित्र देखते ही उन्हें भावी चित्रकार के गुण देखे और उन्हें प्रवेश दे दिया। उनके गुरु सुप्रसिद्ध चित्रकार अवनींद्र नाथ ठाकुर थे।
            नंदलाल बसु ने अजंता की गुफाओं में निर्मित चित्रों की प्रतिकृति भी बनाई और अवनींद्र नाथ के द्वारा स्थापित संस्था ओरिएंटल स्कूल आफ आर्ट (Oriental School of Art) में वो प्रिंसिपल के पद पर भी रहे और रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित रचना "गीतांजलि" के लिए चित्र भी बनाए।
  • भारतीय संविधान को नंदलाल बसु के चित्रों से ही सजाया गया है।
         नंदलाल अपने कार्य में इतना डूब जाते थे कि उन्हें अपनी सुध-बुध भी ना रहती थी।  लेकिन जब वो चित्र रचना ना कर रहे हो तो खूब गप-शप भी करते थे। छोटे-छोटे बच्चों के साथ खेलने में उनका बड़ा मन लगता था। नन्द बाबू के पास एक झोला था वे जब सुबह घूमने निकलते तो इसमें ढेरों चीजें बटोर लाते थे। ये चीजें होती थी कोई फूल, पत्थर, लकड़ी का टुकड़ा, पत्ती,  चिड़ियों के पंख, इत्यादि। जो भी चीजें उन्हें अच्छी लगती वह उसे अपने झोले में रख लेते। नन्द बाबू अपने झोले को "लाख टाका झूली" कहते यानी लाख रुपए का झोला।  
      नंदलाल बसु एक आदर्श कला शिक्षक थे। वे अपने और विद्यार्थियों के मध्य दूरी लगभग नहीं के बराबर रखते थे। यही कारण था कि वे एक लोकप्रिय कला शिक्षक भी रहे। वे अपने प्रत्येक विद्यार्थी को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए उनको अपने हाथों से निर्मित कलाकृतियों से सम्मानित भी करते थे और अपेक्षा भी करते थे कि वे भी इस परंपरा को आगे निर्वाह करते रहे।   
          नंदलाल बसु गांधीजी से अत्यंत प्रभावित थे। उन्होंने कूची के साथ-साथ आवश्यकता पड़ने पर तिरंगा भी हाथ में लिया। और अनेकों बार कांग्रेस के अधिवेशन के लिए मंच और पंडाल की साज-सज्जा में योगदान भी दिए।
  • शांतिनिकेतन में नंदलाल बसु को "बाबूमोशाय" के नाम से जाना जाता था।
  • शांतिनिकेतन के त्रिमूर्ति थे नंदलाल बसु, विनोद बिहारी मुखर्जी और रामकिंकर बैज।
            नंदलाल बसु की मृत्यु 16 अप्रैल 1966 को 84 वर्ष की आयु में शांतिनिकेतन में हुई। नन्दलाल बसु की जीवन ज्योति आज इस संसार से लुप्त हो गई है। पर वे भारतीय कला को एक ऐसी ज्योति दे गए जो सदा उसका पथ प्रदर्शित करती रहेगी।


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