फूल सा ज़ख्म खिला था मुझ में।
यार का प्यार बसा था मुझ में।
लब पे मुस्कान सजा रक्खी थी।
ग़म का सागर भी छिपा था मुझ में।
मैंने भी साथ दिया है उसका।
जिसने विश्वास रखा था मुझ में।
हार मानी नहीं थी दुश्मन से।
जीत का जज्बा बचा था मुझ में।
दोस्त गर्दिश में नहीं था कोई।
सिर्फ ईमान रहा था मुझ में।
नफ़रतें ख़त्म हुई थीं सारी।
प्रेम का दरिया बहा था मुझ में।
मेरा दिल जिसने चुराया कश्यप।
उसकी उल्फ़त का नशा था मुझ में।
प्रदीप कश्यप✍️
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