दुःख अपना किसी को बता न सका।
आँखों से अश्क😢 भी बहा न सका।
खूब कड़वी थी शायद ज़िंदगी उसकी।
ख़्वाब मीठे भी दिखा न सका।
ग़म का सागर वो दिल ❤️ में छिपा कर रखा।
लबों पें मुस्कान भी मैं दिला न सका।
बहुत प्यारी🥰 थी शायद ज़िंदगी उसकी।
मौत के दाँव से वो उसे बचा न सका।
जो पके फल🥭 थें वो टूट के बिखड़ गये।
पेड़🏝️ अफसोस भी जता न सका।
ज़ख्म दिल❤️🩹 को मेरे जो दे गया गहरे।
उम्र भर मैं उसे भुला न सका।
राह जिसकी गलत रही शायद।
अपनी मंज़िल कभी वो पा न सका।
आज कल खफा रहने लगा है मुझसे।
शायद पुरानी खुशियां मैं उसे लौटा ना सका ।
अब कर भी क्या सकते हैं, हम भी।
समय ही ऐसा था, जिसे मैं वश में कर ना सका।
लाख मुश्किलों में रहा वह फिर भी।
मुझसे मिले बिना वह पागल रह ना सका।
दुःख अपना किसी को बता न सका।
आँखों से अश्क😢 भी बहा न सका।
विश्वजीत कुमार ✍️
साभार - सोशल मीडिया।
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