शनिवार, 28 दिसंबर 2019

No Caption

Watch.


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      Watch. . I have clicked this photograph from Sonepur Fair Sonepur district of Bihar state.  In this photograph, the Birdseye  view of watch shop is visible.


Typography Work.


Typography work. . I have clicked this photograph from Sonepur Fair Sonepur district of Bihar state.  In this photograph, a amazing typography work is visible. 





       https://www.instagram.com/p/B6mpx71lDdV/?igshid=1uph0ibkg5sbu



      https://bishwajeetverma.wordpress.com/2019/12/28/typography-work/

मंगलवार, 5 नवंबर 2019

गोधूलि बेला (Duskiness)

गोधूली बेला के आगोश में खोया...

Pic.- ii

गोधूली बेला के आगोश में खोया,
वह एक परिन्दा था।
ना मालूम उसे उस का सुरलोक,
इस वसुन्धरा में कहाँ खोया था। 

अगम की इस छांव में बैठा,
दरिया के किनारों पर।
वर्णों के इस खेल से अन्जान उसे तो बस,
एक शबीह का सहारा था।

गोधूली बेला के आगोश में खोया.....

 -विश्वजीत कुमार✍️

कविता में प्रयुक्त कुछ शब्दों का अर्थ मैं यहां  बता देता हूं।

गोधूलि बेला:-  शाम का समय
सुरलोक:- स्वर्ग
वसुंधरा:- धरती, पृथ्वी
अगम:- पेड़, वृक्ष
दरिया:- नदी
वर्ण:- रंग
शबीह:- यह एक उर्दू शब्द है इसका अर्थ होता है, व्यक्ति चित्र (Portrait).

   इस कविता का निर्माण मैंने पहले Pic.- i पर की थी जो कि इस post में संलग्न है। लेकिन इस Pic.- ii को देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि यह कविता बस इसी  के लिए  ही निर्मित हुई हो।  
कविता का  शीर्षक है:- गोधूलि बेला के आगोश में खोया....
पढ़ कर अपना सुझाव जरुर दीजियेगा 🙏

Pic.- i

बुधवार, 23 अक्तूबर 2019

इस दिवाली एक अपील🙏🏻


इस कविता को लिखने का कार्य सुधाकर सिंह के द्वारा किया गया है ।  Edit, Modified and Photography Assistant Professor विश्वजीत कुमार के द्वारा संपन्न हुआ है।







LOGO Design

Smart City Patna LOGO Design.

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

जिंदगी में वह मुकाम चाहिए !!!


पहली बार मैंने कोई कविता अपने स्वयं 👨‍🎨 के परिदृश्य में लिखी है। इस कविता को लिखने का विचार इस फोटोग्राफ को देखने के बाद मेरे ज़ेहन में आया।


जिन्दगी में वह मुकाम चाहिए।


जिन्दगी में वह मुकाम चाहिए !!!

जब प्रत्येक कैमरा एक आकृती,
'क्लिक' करने को बेताब हो।
उसे भी ना हो खबर,
और मेरा ये मुकाम हो।

जिन्दगी में वह मुकाम...........

यूँ ही फिरदौसी सी हो मेरी कहानीयाँ,
मेरा भी एक शाहनामा तैयार हो।
भले ही तुम गजनवी बन जाओ,
मुझे तो बस शाहनामा का चित्र ही रहने दो।

जिन्दगी में वह मुकाम...........

हर एक कारवाँ मेरे साथ शुरू हो,
समाप्ती की भी कोई उम्मिद नहीं हो।
यूँ ही बढ़ते रहे प्रगती के राहो पर,
असफलताओ का कही नामोनिशान न हो।

जिन्दगी में वह मुकाम..........

मेरे हर एक कार्यों की हो लम्बी फेहरिस्त,
कला की दुनिया से बेखबर मेरा एक अलग जहाँ हो।
जिस में हो सिर्फ तुम-ही-तुम,
ना कोई दूसरा हमारे पास हो।

जिन्दगी में वह मुकाम.....

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

बिहार की मोनालिसा (यक्षिणी) (Bihar ki Monalisha "YakSHANI")

           आज 18/10/2019 बिहार कला दिवस है। इसीलिए आप सभी कलाकारों एवं कला प्रेमियों को बिहार कला दिवस की बहुत सारी बधाइयां।💐 यदि हम इसके इतिहास की बात करें तो इसकी शुरुआत 18 अक्टूबर 2016 को की गई थी एवं उस वर्ष को बिहार कला वर्ष के रूप में भी मनाया गया था। जब बिहार की मोनालिसा के नाम से पहचाने जाने वाली दीदारगंज से प्राप्त चामर धारिणी यक्षिणी को प्राप्त हुए 100 साल हुआ था। यह कविता जिसका शीर्षक है-

बिहार की मोनालिसा (यक्षिणी) 

       इसको लिखने✍️ का कार्य Anjali Yadav के द्वारा किया गया हैं एवं Edit & Modified का कार्य Bishwajeet Verma के द्वारा संपन्न हुआ है।






बिहार की मोनालिसा (यक्षिणी)

थी सदियों से कैद मैं,
एक चुनार के चट्टान में।
मेरी खामोश आवाज की गूंज,
सुन ली, एक दिन शिल्पकार ने।

और फिर चट्टानो पर उसकी,
जादुई उंगलियाँ थिरकने लगी।
रुप-यौवन की बेमिसाल कृति बन,
मैं दिन-ब-दिन निखरने लगी।

कई आभूषण और अलंकारो से युक्त,
मैं स्वयं पर इतराने लगीं।
शूरवीर मौर्य साम्राज्य की धड़कन बन,
सबके दिलो में, मैं समाने लगी।

मेरी ग्रीवा, त्रिवाली और कत्यावली पर,
स्त्रियाँ ईर्ष्या करती थी।
उनके इस रुप को देख,
मैं मंद-मंद मुस्कुराती थी।

शिल्पी ने मुझे कंधो, कमर और घुटनो से झुक,
विनीत होना सिखाया था।
दायी भुजा में चामर थमा,
सेवा भाव का पाठ पढ़ाया था।

सदियाँ गुजरी, साम्राज्य ढले,
कई उत्थान और पतन की गवाह बनी मैं।
कई आक्रमण और उत्पादों की,
लगातार भुक्तभोगी भी बनती रही मैं।

इसी उत्पाद में किसी दिन,
गवाँ बैठी मैं, अपनी बाँयी भुजा।
शोक से बिहल हो मैने खुद को,
दे डाली निर्वासन की सजा।

सो गई धरा पर, माँ का आँचल ओढ़े,
कैसे सह पाऊँगी उन नजरों का तिरस्कार !!!
जिनमें कभी पाया था मैने,
अत्यधिक प्रशंसा और अथाह प्यार।

एक दिन माता ने नींद से जगाया मुझे,
कहाँ, पुत्री शोक न कर,
जो नहीं है, उसका।
जो है, उस पर गर्व कर।

बहुत खूबियाँ हैं तुझमें,
जिसे तूनें नहीं पहचाना है।
समय आया है उत्सव का,
अभी तो तेरा गृह-निर्माण हुआ है।

जा, फिर एक बार तू,
जी ले अपने गौरव को।
सबकी आँखों का तारा बन,
भूल जाना अपने अतीत को।

आया है वो वक्त जब तू,
शिल्पी के ऋण को चुकाएगी।
उसकी अद्भुत कलाकृती को देख,
दुनिया शीश नवाएगी।

भीगी आँखो से माता ने, 
मुझे ऊपर लाया,
दीदारगंज गंगा के किनारे।
गुलाम रसूल ने मुझे पहचाना, 
एच.एस. वाल्स ने मुझे फिर नए गृह तक पहुंचाया।

पटना संग्रहालय के भव्य कक्ष में, 
एक सदी तक अवस्थित रही मैं। 
सबके आकर्षण का केन्द्र बनी, 
अपनी अक्ष को पहचानती थी मैं।

भाव-विभोर हूँ मैं अपने,
इस नए जन्म-शती के उत्सव में। आभारी हूँ सबके प्यार और स्नेह की, 
जो पाया मैने हर एक कलाप्रेमियो में।

फिर मुझे मिला मेरा नया घर,
मैं जा पहुंची बिहार म्यूजियम।
बिहार संग्रहालय की शोभा बढ़ा,
मैं फुले नहीं समाती हूँ, अपने दर्शकों को भी मैं नित्य नयी पाठ पढ़ाती हूँ।

मेरी जन्म सदी से ही शुरू हुआ, 
बिहार कला दिवस।
इस उपलब्धि को पा,
मेरा जीवन तो हो गया सफल। 

धन्यवाद के पात्र हैं आप सभी,
जो करते हैं मुझे स्मरण।
आपके इस भाव को मैं करती हूँ, सदैव नमन🙏🏻

आपके इस भाव को मैं करती हूँ सदैव नमन🙏🏻

-अंजलि✍️

Edit & Modified -विश्वजीत कुमार

कविता में प्रयुक्त कुछ शब्दों के अर्थ -

ग्रीवा (स्त्रीलिंग) - गरदन, गला।

त्रिवाली - स्त्रियों के पेट पर नाभि के कुछ ऊपर दिखाई पड़ने वाली तीन रेखाएँ।

सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

गोधूलि बेला के आगोश में खोया... (Godhuli bela ke aagosh me khoya...)




          इस कविता का निर्माण मैंने इस फोटोग्राफ के ऊपर किया है। ऐसे यह एक प्रतियोगिता है, जिसमें आप सभी भी participate  कर सकते हैं। आपको बस  करना यह है कि  इस फोटो के ऊपर एक कविता लिखनी है ।  मैंने इसमें भाग भी लिया है आप लोग भी इस link 👇 पर click करके इस प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। धन्यवाद.🙏



गोधूली बेला के आगोश में खोया

 

गोधूली बेला के आगोश में खोया,

वह एक परिन्दा था।

 

ना मालूम उसे उस का सुरलोक,

इस वसुन्धरा में कहाँ खोया था। अगम की इस छांव में बैठा,

दरिया के किनारों पर।

वर्णों के इस खेल से अन्जान,

उसे तो बस!!!

एक शबीह का सहारा था।

गोधुली बेला के आगोश में खोया.........


इस कविता में प्रयुक्त कुछ शब्दों का अर्थ मैं यहां  बता देता हूं।


गोधूलि बेला:-  शाम का समय

सुरलोक:- स्वर्ग

वसुंधरा:- धरती,पृथ्वी

अगम:-  पेड़, वृक्ष

दरिया:- नदी

वर्ण:- रंग

शबीह:- यह एक उर्दू शब्द है इसका अर्थ होता है, व्यक्ति चित्र (Portrait)।

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

मोनालिसा (Monalisha)

   
      अभी तक आप मेरी जितनी भी कविताएं पढ़ते थे वह सब कहीं ना कहीं मेरे मन की भावनाओं से उत्पन्न शब्दों के द्वारा मैंने लिखने का प्रयास किया था। लेकिन आज जो मैंने कविता लिखी है। उसका शीर्षक है मोनालिसा और इस कविता को लिखने का सारा श्रेय संदीप कुमार के द्वारा निर्मित पेंटिंग से मुझे प्रेरणा मिली इस पेंटिंग की खासियत है कि इस चित्र की खूबसूरती को देखने के लिए वहां एक मेंढक भी आ पहुंचा। इसी परिदृश्य के ऊपर मेरी पूरी कविता निर्मित है।






मोनालिसा


थी अनजान एक परी सी, 
जलधारा के बीच डटी सी। 
एक लोचन उसे देख, 
हो रहा था विमोचन। 
था उसे भी पता, 
नयनों की इस दुरी का नही खत्म होता कभी रास्ता, 
फिर भी आलिंगन करने की हो रही थी उसे लालसा।

क्या थी कमी उसमे और मुझमें ? 
हम दोनो ही तो थें, जलचर 
फिर एक दिन ऐसा क्या आया, 
तुमको ये जल नही भाया। 
जा रही हो तो जाओ,
लेकिन एक गगरी नीर भी लेते जाओ। 
देख लेना मेरी परछाई उस भरे गागर में, 
जो तुमने थाम रखा है अपने बाँहों के आम्बर में।

लेकिन मैं कभी भुल नही पाऊँगा उन सुलोचनाओं को, 
जो बसे थे कभी मेरे इन लोचनों में। 
तुम्हारी इस बीह को मैं तो कभी भुल नही पाया, 
इन्ही भुलभुलैया में भुल, 
फिर स्वयं को ही मै भुलता पाया।

फिर एक दिन अचानक तुम दिख गयी कैनवास में, 
शायद यही जगह भी उचित है, 
तुम्हारे किस्सों के लिए। 
तुम मोनालिसा बन भी जाओ, 
लेकिन मै तो विन्ची भी नही बन पाया। 

इसी उम्मिद के साथ मै तुम्हे छोड़े जाता हुँ, 
मेरा क्या ? मै तो गुमनाम, गुमसुम, गुमराह हो जाऊँगा लेकिन, 
तुम मोनालिसा जरूर बनना।
तुम मोनालिसा जरूर बनना ।

-विश्वजीत कुमार

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

"स्वच्छता पर कविता"

"स्वच्छता पर कविता"


 इस कविता का निर्माण मैंने शेखपुरा जिले के लिए किया है। क्योंकि शेखपुरा जिला को पूरे बिहार में ODF में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है । यह कविता पूरी तरह से शेखपुरा जिले के समस्त वासियों को समर्पित है।  एवं  इसमें एक अपील भी की गई है जिसे आप सभी लोग पूरा कीजिएगा । 

धन्यबाद




शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

दिल में छुपे अरमाँ जगा लिया मैंने (Dil me Chupe Aarman jagaa liya maine)



दिल में छुपे अरमाँ जगा लिया मैने


दिल में छुपे अरमाँ जगा लिया मैने! 
रोज कटती दिन रातों को भी खुशी-खुशी बिता लिया मैंने!!

पूरी दुनिया को बतानी थी, 
अपनी ये कहानीयाँ। 
इसीलिए अपने चित्रो के संग्रह में, 
तुम्हारी शबीह को भी बना लिया मैंने।

 समंदर को भी बड़ा गुमान था, 
रेत पर उकेरी तुम्हारी छबियों को मिटाने का। 
इसीलिए शिलाखंडों पर ही,
तुम्हारा अंकन करा लिया मैने

दिल में छुपे अरमाँ जगा लिया मैने! 
रोज कटती दिन रातों को भी खुशी-खुशी बिता लिया मैंने!!

इन हवाओ ने भी बड़ी बेरुखी की मेरे साथ,
अक्सर मेरे खतो को उड़ाकर तुमसे दूर ले गई। 
इन समीर मण्डल को भी मजा चखाना था, 
इसीलिए WhatsApp पर खाता खुलवा लिया मैने।

दिल में छुपे अरमाँ जगा लिया मैने! 
रोज कटती दिन रातों को भी खुशी-खुशी बिता लिया मैंने!!

अपने दिल को सुकून देने का यह भी एक अच्छा तरीका था,
कुछ गीत-गजलें लिख फिर उन्हे गुनगुना लिया मैने।

दिल में छुपे अरमाँ जगा लिया मैने ! 
रोज कटती दिन रातों को भी खुशी-खुशी बिता लिया मैने!!

दर्पण से कोई शिकायत मुझे तो नहीं, 
लेकिन उसे जरूर है। 
वो मुझे ढूंढता फिरे अपने अंदर,
और स्वं को तुझमे छुपा लिया मैने।

दिल में छुपे अरमाँ जगा लिया मैने!
रोज कटती दिन रातों को भी खुशी-खुशी बिता लिया मैने !!

वो मुझसे बोलते है, 
आप बहुत मुस्कुराते हो। 
ओढ़कर तबस्सुम लबों पर,
अपने आँसुओ को कहाँ छुपाते हो। 

मैंने भी अपना हाल-ए-दिल प्रस्तुत कर ही दिया,
नामुमकिन लगने वाला कार्य भी मुमकिन कर ही लिया।

दिल को बड़ी सुकून मिली उनके इस गुफ्तगु से, 
इक परिन्दा जो कैद था दिल के किसी कोने में... 
उसे भी आज आजादी मिली उनके एक छुअन से। 
दिल के कारवों को हवा में उछाल दिया मैंने...
दिल में छुपे अरमाँ जगा लिया मैने ! 
रोज कटती दिन रातों को भी खुशी-खुशी बिता लिया मैने!!


विश्वजीत कुमार ✍️

गुरुवार, 5 सितंबर 2019

शिक्षक दिवस पर कविता (Teacher's Day par Kavita)


शिक्षक दिवस पर कविता

कोई आशिष ले रहा है,
कोई गिफ़्ट भी दें रहा है।
आज शिक्षक दिवस हैं इसको,
हर कोई सेलिब्रेट कर रहा है।

आप को मैने पढ़ाया है, पेंटिंग बनाना भी सीखाया है। 
बड़ी उम्मिद आप से है। 
ऐसा मैने भी पाया है।

आज आप से आप के कला गुरु की एक ही इच्छा है। 
बन जाओ शिक्षक तुम, सीटेट का फॉर्म  आया है। 
बन जाओ शिक्षक तुम नया ये दौर आया है।

शिक्षक बन कर, शिक्षित करना, यही उत्तम रवानी है। 
कभी कबीरा थें आदर्श, आज राधाकृष्णन की बारी है। 
शिक्षा ही सर्वोतम हैं। आज ये जान लो सभी, 
बिना शिक्षित किये रहना ये तो बेमानी है।

ये किताबे ये पाठ्याक्रम समन्दर जैसे है लेकिन, 
इसमे छुपे मोतियो को निकाल सकता है अब कौन। 
मेरी बात मान ले या फिर तु समझ ले, 
एक शिक्षक के बिना यें कार्य, अब कर सकता हैं कौन?

एक शिक्षक का दायित्व क्या होता है, अब तु यें लें जान, 
हर आँखो के ख्याबों को सच करना हैं तेरा काम। 
अभी तक तु शांत क्यो बैठा है,अब तो तू जाग। 
 
अपने दायित्व को पहचान! 
अपने दायित्व को पहचान!

-विश्वजीत कुमार

बुधवार, 14 अगस्त 2019

साईं कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग ओनामा में धूमधाम से मनाया गया 73 वां स्वतंत्रता दिवस



"साईं कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग ओनामा में धूमधाम से मनाया गया 73 वां स्वतंत्रता दिवस"

         

              शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान साईं कॉलेज ऑफ़ टीचर्स ट्रेनिंग ओनामा में बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया 73वा स्वतंत्रता दिवस समारोह। इस अवसर पर कालेज के प्रभारी प्राचार्य के द्वारा झंडोत्तोलन किया गया।

     
          झंडोत्तोलन के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया  जिसमें सभी प्रशिक्षुओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अपनी मनमोहक प्रस्तुति से सभी दर्शकों का मन मोह लिया । इस अवसर पर  महाविद्यालय के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष क्रमशः अंजेश कुमार एवं रमेश कुमार  ने उपस्थित प्रशिक्षु शिक्षक,सभी शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक कर्मीयो के अलावे जिले वासियों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी।

       
           इस अवसर पर  चेयरमैन अंजेश कुमार ने कहा कि यह राष्ट्रीय पर्व सभी के मन में सदभावना की लहर उत्पन्न करता है। हालांकि आज रक्षाबंधन का भी त्यौहार है तो इस रक्षाबंधन पर हम शपथ ले की  देश की रक्षा में भी भरपूर सहयोग करेंगे। क्योंकि  आजादी  बहुत से वीरों की कुर्बानी के बाद हमें प्राप्त हुई है तो हमारा कर्तव्य भी बनता है कि हम इस आजादी को हमेशा सम्भाल कर रखे। इस अवसर पर महाविद्यालय में प्राचार्य डॉ० प्रवेश कुमार सहायक प्राचार्य सर्वेश कुमार राय प्राध्यापक रविंद्र कुमार, राकेश गिरी, विश्वजीत कुमार, उदय भान, पुस्तकालय अध्यक्ष प्रियंका कुमारी, निभा शर्मा, खुशबू कुमारी, राजाराम, रघुवीर शंकर, आसित अमन, रवि रंजन, एवं सीताराम सिंह की उपस्थिति रही।


सोमवार, 12 अगस्त 2019

शिव


सावन की अंतिम सोमवारी पर प्रस्तुत है - शिव श्रृंखला  की एक और painting.                                            

About this Painting:-

      इस को clip art बोला जाता है।  ऐसे मैं इस चित्र  के साथ इस कला को बनाने की विधि का video भी आप सभी के साथ share कर रहा हूं। उम्मीद है कि आप इस से लाभान्वित होंगे।     

                            धन्यवाद🙏


Video link part 1

https://youtu.be/HyXvSL1JXt8


Video link part 2 :-

https://youtu.be/EWJIYPQNY2E



https://youtu.be/HyXvSL1JXt8   


https://youtu.be/EWJIYPQNY2E


बुधवार, 7 अगस्त 2019

मैं तुमको समझ नहीं पाया (Mai Tumko samajh nahi paya)



मै तुमको समझ नही पाया


तुम्हारा कभी यु मुस्कुराना, कभी हँस कर छुप जाना,
कभी-कभी गुस्से में पुरा आसमान सिर पर उठा लेना,
तुम्हारी ये अदा मै समझ नही पाया। 

मै तुमको समझ नहीं पाया -२

तुम हो क्या चिज,
या फिर हो मेरे ख्वाबो की कोई तस्वीर,
मै तुम्हारा चित्रण आज तक कर नही पाया।

मै तुमको समझ नही पाया -२

माना की तुम हो बड़ी हसीन,
लेकिन मेरे सपनो की बस हो एक लकीर।
उस लकीर में मै,
अपने ख्वाबो के रंग भर नही पाया। 

मै तुमको समझ नही पाया -२

रोज मै तुमसे मिलता हूँ,
घंटो बाते करता हूँ, फिर भी -२
हृदय की बाते हृदय मे रखकर पुनः वापस लौट आता हूँ।
तुम्हारे मन की बातो को मै भी पढ़ नही पाया,

मै तुमको समझ नही पाया -२

कहती हो तुम की, तुम हमेशा कहाँ खोये रहते हो?
मिलते हो नही की, जाने की जिद करने लगते हो।
उसने कई बार मुझे इशारों में बताया,
लेकिन मै ही ऐसा खोया रहा की।

मै तुमको समझ नही पाया -२

सुबह जब मेरी आँख खुली,
सुरज की किरणे खिड़की से झाँक रही थी।
मानो ये कह रही हो, उठ जा!!! अपना मार्ग प्रशस्त कर।
लेकीन मै रात के सपनो से निकल नही पाया,

मै तुमको समझ नही पाया -२

ये बात भी सही है।
मैने बहुत कुछ सीखा हूँ तुमसे, 
लेकिन बस कमी यह रह गई की, 
तुम्हारे सुलोचना में उत्पन्न भावो को मैं पढ़ नहीं पाया।

मैं तुमको समझ नही पाया -२

 विश्वजीत कुमार ✍️

रविवार, 4 अगस्त 2019

"शिव-गणेश" (Shiv and Ganesh)

         सावन की तृतीय सोमवारी पर आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत हैं- मेरी एक नई चित्रकला "शिव-गणेश" इस चित्रकला को भारतीय कला के प्रारंभिक  एवं अति महत्वपूर्ण आधुनिकता वादी कलाकार जैमिनी राय के द्वारा बनाया गया है । उनकी इस बनाई गई  कलाकृति को मैंने बनाने का प्रयास किया है, रंग संयोजन में थोड़ी सी स्वतंत्रता ली है। इस चित्र को बनाने में मैंने Poster color का प्रयोग किया है .। जैसा कि आपको ज्ञात होगा जैमिनी राय Tempera विधि में कार्य करते थे तो इस चित्र को बनाने में मैंने भी Poster color & Tempera विधि का प्रयोग किया है।

               About Tempera Painting:- A method of painting with pigments dispersed in an emulsion miscible with water, typically egg yolk. The method was used in Europe for fine painting, mainly on wood panels, from the 12th or early 13th century until the 15th, when it began to give way to oils.



      Presenting to you on the third Monday of Sawan - A new painting of mine "Shiv-Ganesh". This painting has been made by Jaimini Roy, an early and very important modernist artist of Indian art. I have tried to recreate this artwork of his, taking a little liberty in the color combination. I have used Poster color to make this picture. As you would know that Jaimini Roy used to work in Tempera method, so I have also used Poster color & Tempera method in making this picture.


       About Tempera Painting:- A method of painting with pigments dispersed in an emulsion miscible with water, typically egg yolk. The method was used in Europe for fine painting, mainly on wood panels, from the 12th or early 13th century until the 15th, when it began to give way to oils.


हां, मैं बदलाव के साथ बदलने वाला हूं। (Haa, Mai badlaw ke sath badalane wala hun.)



हाँ, मैं बदलाव के साथ बदलने वाला हूँ।


हर परिस्थिती में मैं अपने आप को सिद्ध करने वाला हूँ।
हाँ, मैं बदलाव के साथ बदलने वाला हूँ।

तुम लाख विपत्तियां खड़ी कर दो, मेरे सामने!!!
मैं उन सब से हँसकर निकलने वाला हूँ।

हाँ, मैं बदलाव के साथ बदलने वाला हूँ।

एक कार्य मे प्रसिद्धी मिली तो क्या, 
मैं अपने प्रत्येक कार्य में प्रसिद्धी पाने वाला हूँ।
तुम्हारे द्वारा बिछाये इन अंतराजाल को 
तोड़कर आगे बढ़ने वाला हूँ।

हाँ, मैं बदलाव के साथ बदलने वाला हूँ।

तुम्हारे हर एक अदा की मैंने तारिफे की,
अब मैं तुमसे अपनी तारिफ कराने वाला हूँ।
छायाकंन, चित्रकला और कलमकारी के बाद 
और किसी कार्य में भी सिद्धहस्त होने वाला हूँ।

हाँ, में बदलाव के साथ बदलने वाला हूँ।

कला, कम्प्युटर और ड्रामा के साथ सम्प्रेषण का Study कराता हूँ। 
"स्वम की समझ” विषय के अलावा बाकि पेपरों को भी 
मैं तुम्हे समझाने वाला हूँ।

हाँ, मैं बदलाव के साथ बदलने वाला हूँ।

मैंने देखा एक सपना जब में स्नातक में था, 
साथ में मेरे भी हो Ph.D. की उपाधी। 
RET (रेट) तो मैंने Qualified कर लिया, 
और उसके बाद Ph.D. की उपाधी भी धारण करने वाला हूँ।

हाँ, मैं बदलाव के साथ बदलने वाला हूँ।


-विश्वजीत कुमार