सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

गोधूलि बेला के आगोश में खोया... (Godhuli bela ke aagosh me khoya...)




          इस कविता का निर्माण मैंने इस फोटोग्राफ के ऊपर किया है। ऐसे यह एक प्रतियोगिता है, जिसमें आप सभी भी participate  कर सकते हैं। आपको बस  करना यह है कि  इस फोटो के ऊपर एक कविता लिखनी है ।  मैंने इसमें भाग भी लिया है आप लोग भी इस link 👇 पर click करके इस प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। धन्यवाद.🙏



गोधूली बेला के आगोश में खोया

 

गोधूली बेला के आगोश में खोया,

वह एक परिन्दा था।

 

ना मालूम उसे उस का सुरलोक,

इस वसुन्धरा में कहाँ खोया था। अगम की इस छांव में बैठा,

दरिया के किनारों पर।

वर्णों के इस खेल से अन्जान,

उसे तो बस!!!

एक शबीह का सहारा था।

गोधुली बेला के आगोश में खोया.........


इस कविता में प्रयुक्त कुछ शब्दों का अर्थ मैं यहां  बता देता हूं।


गोधूलि बेला:-  शाम का समय

सुरलोक:- स्वर्ग

वसुंधरा:- धरती,पृथ्वी

अगम:-  पेड़, वृक्ष

दरिया:- नदी

वर्ण:- रंग

शबीह:- यह एक उर्दू शब्द है इसका अर्थ होता है, व्यक्ति चित्र (Portrait)।

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