मंगलवार, 22 अक्टूबर 2019

जिंदगी में वह मुकाम चाहिए !!!


पहली बार मैंने कोई कविता अपने स्वयं 👨‍🎨 के परिदृश्य में लिखी है। इस कविता को लिखने का विचार इस फोटोग्राफ को देखने के बाद मेरे ज़ेहन में आया।


जिन्दगी में वह मुकाम चाहिए।


जिन्दगी में वह मुकाम चाहिए !!!

जब प्रत्येक कैमरा एक आकृती,
'क्लिक' करने को बेताब हो।
उसे भी ना हो खबर,
और मेरा ये मुकाम हो।

जिन्दगी में वह मुकाम...........

यूँ ही फिरदौसी सी हो मेरी कहानीयाँ,
मेरा भी एक शाहनामा तैयार हो।
भले ही तुम गजनवी बन जाओ,
मुझे तो बस शाहनामा का चित्र ही रहने दो।

जिन्दगी में वह मुकाम...........

हर एक कारवाँ मेरे साथ शुरू हो,
समाप्ती की भी कोई उम्मिद नहीं हो।
यूँ ही बढ़ते रहे प्रगती के राहो पर,
असफलताओ का कही नामोनिशान न हो।

जिन्दगी में वह मुकाम..........

मेरे हर एक कार्यों की हो लम्बी फेहरिस्त,
कला की दुनिया से बेखबर मेरा एक अलग जहाँ हो।
जिस में हो सिर्फ तुम-ही-तुम,
ना कोई दूसरा हमारे पास हो।

जिन्दगी में वह मुकाम.....

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