गोधूली बेला के आगोश में खोया...
Pic.- ii
गोधूली बेला के आगोश में खोया,
वह एक परिन्दा था।
ना मालूम उसे उस का सुरलोक,
इस वसुन्धरा में कहाँ खोया था।
अगम की इस छांव में बैठा,
दरिया के किनारों पर।
वर्णों के इस खेल से अन्जान उसे तो बस,
एक शबीह का सहारा था।
गोधूली बेला के आगोश में खोया.....
-विश्वजीत कुमार✍️
कविता में प्रयुक्त कुछ शब्दों का अर्थ मैं यहां बता देता हूं।
गोधूलि बेला:- शाम का समय
सुरलोक:- स्वर्ग
वसुंधरा:- धरती, पृथ्वी
अगम:- पेड़, वृक्ष
दरिया:- नदी
वर्ण:- रंग
शबीह:- यह एक उर्दू शब्द है इसका अर्थ होता है, व्यक्ति चित्र (Portrait).
इस कविता का निर्माण मैंने पहले Pic.- i पर की थी जो कि इस post में संलग्न है। लेकिन इस Pic.- ii को देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि यह कविता बस इसी के लिए ही निर्मित हुई हो।
कविता का शीर्षक है:- गोधूलि बेला के आगोश में खोया....
पढ़ कर अपना सुझाव जरुर दीजियेगा 🙏
Pic.- i
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