मै तुमको समझ नही पाया
तुम्हारा कभी यु मुस्कुराना, कभी हँस कर छुप जाना,
कभी-कभी गुस्से में पुरा आसमान सिर पर उठा लेना,
तुम्हारी ये अदा मै समझ नही पाया।
मै तुमको समझ नहीं पाया -२
तुम हो क्या चिज,
या फिर हो मेरे ख्वाबो की कोई तस्वीर,
मै तुम्हारा चित्रण आज तक कर नही पाया।
मै तुमको समझ नही पाया -२
माना की तुम हो बड़ी हसीन,
लेकिन मेरे सपनो की बस हो एक लकीर।
उस लकीर में मै,
अपने ख्वाबो के रंग भर नही पाया।
मै तुमको समझ नही पाया -२
रोज मै तुमसे मिलता हूँ,
घंटो बाते करता हूँ, फिर भी -२
हृदय की बाते हृदय मे रखकर पुनः वापस लौट आता हूँ।
तुम्हारे मन की बातो को मै भी पढ़ नही पाया,
मै तुमको समझ नही पाया -२
कहती हो तुम की, तुम हमेशा कहाँ खोये रहते हो?
मिलते हो नही की, जाने की जिद करने लगते हो।
उसने कई बार मुझे इशारों में बताया,
लेकिन मै ही ऐसा खोया रहा की।
मै तुमको समझ नही पाया -२
सुबह जब मेरी आँख खुली,
सुरज की किरणे खिड़की से झाँक रही थी।
मानो ये कह रही हो, उठ जा!!! अपना मार्ग प्रशस्त कर।
लेकीन मै रात के सपनो से निकल नही पाया,
मै तुमको समझ नही पाया -२
ये बात भी सही है।
मैने बहुत कुछ सीखा हूँ तुमसे,
लेकिन बस कमी यह रह गई की,
तुम्हारे सुलोचना में उत्पन्न भावो को मैं पढ़ नहीं पाया।
मैं तुमको समझ नही पाया -२
विश्वजीत कुमार ✍️
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