बाप बने बैरी केतनो भलिहे भाई बनीहे केतनो कसाई -२
हित रहे विपरीत भले मन मित बने मन के दु:खदाई।
जो बहिना कहीं ना पूछीहे आ कबो ना अईहे पहुना-पहोनाई,
पुत कपूत बने भलीहे पर माई के मोह कबो ना भुलाई।
गिल गदेली हटा के धरेली नीत सुखल खाट सूतावेली माई -२
काने कपारे लगावेली तेल सुतावेली तऽ लोरी सुनवेली माई।
आपन भूख अगेज के भीतर भोजन रोज करावेली माई,
झाड़ी के धूल धरे ली अंचरा मुंह चुम्मी के गोदी उठावेली माई।
माई के याद भुलाई कहां कइसे ऐतना ममता मिल पाई,
माई के दूध से निक कहां खोजने से मिली दुनिया में मिठाई।
...की प्यार दुलार अपार मिले अंखिये बरसावत घी मलाई,
माई बिना सब सुन जहांन की महान हवी भगवानों से माई।
लागल नींद कबो सांझवे पखुड़ा झकझोरी जगावेली माई,
लाल के गाल चुम्मी छन्हि सब आलस दूर भगावेली माई।
...की आईल बा सियरा दुअरा आऽहुआ कह के डेरावेली माई,
हाथ से सानी के भात उठावेली मामा के कौरे खियावेली माई।
माई कहीं सुख पाई सदा बिनु माई के बाटे दुनिया सब सुना,
माई हवे अनमोल पदार्थ जाई तऽ माई मिली कतहु ना।
...कि माई के याद भुलाई कहां कइसे बिसरी घुघुआं घुनघुना,
आ माई मरे मुदई के तबो देखले से बढे दु:ख आपन दुना।
कवि बादशाह प्रेमी ✍🏻
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें