मंगलवार, 27 अगस्त 2024

हम अंग देश के वासी हैं.....



हम अंग देश के वासी हैं,
अमृत बांचे विष पान करें।
हम सहज भाव से स्वर्ण,
कवच कुंडल का दान करें।

हम अंग देश के.....

हम सृष्टि के निर्माण निमित्त,
सागर मंथन की भूमि हैं।
बसे आदिदेव जहां सतीपति,
पावन मंदार की भूमि हैं।

हम भले उपेक्षा दंस सहें,
पर सदा विश्व कल्याण करें।
हम महाप्रतापी रोमपाद,
सृंगी प्रिया के पालक हैं।

है जगत तारिणी भागीरथी,
हम गंगा के उद्धारक हैं।
शशि कल्पतरू लक्ष्मी धेनु,
रत्न चतुर्दश का निर्माण करें।

हम अंग देश के.....

सभ्यता जहां प्रस्फुटित हुई,
वो इरनभव का तट हैं हम।
जाह्नवी जहां कल-कल बहती,
कोशी का तांडवपथ हैं हम।

जहां अजगबधारी करे प्रवास,
बोलो बम-बम का गान करें।
ऋषि अष्टावक्र विदेहगुरु,
कहवल के पुत्र निराले हैं।

सृंगी अतीश मुगदल सरीक,
संतान सहस्त्रों पाले हैं।
अनंग बने प्रद्युम्न जहां,
कभी प्रलय कभी निर्माण करें।

जो देवशक्ति पर विजय करे,
हम वो बिहुला और बाला हैं।
पूर्ण वर्द्धमान का अट्ठम तप,
हम वसुमति चंदनवाला हैं।

गंधर्व सुधर्मा वासुपुज्य,
चंपा बन पंच कल्याण करें।
नृप प्रियव्रत मालिनी सूर्यव्रत,
प्रकृति पुरातन का अथर्व।

डूबते सूरज का ये संदेश,
दे रहा विश्व को अंगदेश।
सीता युधिष्ठिर अंगराज,
नित छठ महिमा का बखान करें।

हम दैत्यराज बलि दानी,
बामन बनते नारायण हैं।
श्री वाणी का विवाद सुलभ,
हम धर्म और न्याय परायण हैं।

जहां अंधकासुर का हो विनाश,
हम जगत को भय से त्राण करें।
बौद्ध, नाथ और तंत्रशास्त्र,
श्री विक्रमशिला का ज्ञान हैं हम।

मानव को सभ्य बना डाला,
वो वस्त्र वयन विज्ञान हैं हम।
अशोक की जननी को जनकर,
बुद्धम शरणम का गान करें।

बौद्ध व जैन सनातन के,
हम सर्व धर्म के पोषक हैं।
चांदो मनसा की द्वंद कथा,
भक्ति और कर्म के द्योतक हैं।

सती बिहुला का इतिहास अमर,
"आलोक" सदा गुणगान करें।
हम अंग देश के वासी हैं,
अमृत बांचे विष पान करें।




आलोक कुमार✍🏻

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