गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

माफ करो मुझको देवी, मैं प्यार नहीं दे पाऊंगा !!!

A cartoon depicting a man, looking terrified, with exaggerated expressions to highlight the fear."

 

तू कंप्यूटर युग की छोरी, मन की काली तन की गोरी !

किंतु तुम्हें मैं अपनी बाहों का, गलहार नहीं दे पाऊंगा !

 तू माफ करो मुझको देवी, मैं  प्यार नहीं दे पाऊंगा !!


तुम फैशन टीवी की चैनल, मैं संस्कार का चैनल हूं !

तुम मिनरल वाटर की बोतल, मैं गंगा का पावन जल हूं !!

तुम लक्ज़री कार में चलती हो, मैं पाँव-पाँव चलने वाला !

तुम हाय हेलो  में पली बढ़ी, मैं दीपक  सा जलने वाला !!

वो चमक-दमक वाला तुमको, संसार नहीं दे पाऊंगा !

तू  माफ  करो  मुझको  देवी, मैं प्यार नहीं दे पाऊंगा !!


तुम रैंप पर देह दिखाती हो, मैं संस्कार को जीता  हूं !

जब तुम्हें देखकर सिटी बजता, मैं घुट लहू का पीता हूं !!

तुम सदा स्वप्न में जीती हो, मैं यथार्थ में जीने वाला  !

तुम  बियर  व्हिस्की  पीती हो, मैं हूं मट्ठा पीने वाला !!

तुम्हें  फास्ट  फूड  भी  मैं  हर बार नहीं दे पाऊंगा !

तू माफ करो मुझको देवी, मैं प्यार नहीं दे पाऊंगा !!


तुम क्लॉक अलार्म सी नजरों में, मैं कॉक वार्न से जगता हूं !

तुम डिस्को की धुन पर नाचो, मैं राम नाम ही जपता हूं !!

तुम डैडी को अब डैड कहो, मम्मी को मॉम बताती हो !

तुम करवा चौथ भूल बैठी, डे वेलेंटाइन मनाती हो !!

मैं तुम्हें  तुम्हारे  सपनों का, त्यौहार नहीं दे पाऊंगा !

तू  माफ करो मुझको देवी, मैं  प्यार नहीं दे पाऊंगा !!


तुम पॉप म्यूजिक सुनने वाली, मैं बंसी की धुन की धुनिया !

मैं लैपटॉप भी ना रखता , तुम इंटरनेटी की दुनिया !!

तुम मोबाइल की मैसेज सी, मैं पोस्टकार्ड लिखने वाला !

तुम टेडी बीयर सी लगती, मैं गुब्बारे सा उड़ने वाला !!

मैं भौतिकवादी सुख साधन का, संसार नहीं दे पाऊंगा !

तू माफ करो मुझको देवी,  मैं  प्यार नहीं दे पाऊंगा !! 


नीतीश कुमार✍️

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

जब केहू दिल💕 में उतरs जाला।


मुरझाईल फूलवा🥀, लागे ला महके🌹,

चंचल चिरईया मन के लागे ले चहके🐥

दीया, मन में पिरितिया के जर🪔 जाला,

जब केहू दिल💓 में उतरs जाला।


नीक नहीं लागे ला केहू के बतिया🗣️,

हर जगे लउके बस उहे सुरतिया👱🏻‍♀️

दोसरा में बस जाला, आपन प्राणवाँ🥰

जियरा ना माने ला अपने कहानवाँ,

केतना आस मन के घवद पर फर जाला,

जब केहू दिल💓 में उतरs जाला।


आसान नाही होला, ई नेहिया💕 के काम।

सुख-चैन सब कुछ, हो जाला नीलाम।

लागे ना भूख-प्यास, कौनो भी बेला।

लोग अपने ही घर में, हो जाला अकेला🥲

नैन हँसते-हँसते, लोरवा😢 से भर जाला.

जब केहू दिल💓 में उतरs जाला।


साभार - सोशल मीडिया 

शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

शायद!!!! हर लड़कों की कहानी से जुड़ी कविता....

कन्या एक कुंवारी थी, 

छू लो तो चिंगारी थी 

वैसे तो तेज कटारी थी, 

लेकिन मन की प्यारी🤗 थी। 


सखियों से बतियाती थी, 

लड़को से घबराती थी 

मुझसे कुछ शर्माती थी, 

बस से कॉलेज आती थी।


 अंतर्मन डिस्क्लोज😍 किया, 

एक दिन उसे प्रपोज🥰 किया

पहले वह नाराज हुई तबीयत सी ना-साज हुई, 

फिर बोली - अभी यह ठीक नहीं!!! अपनी ऐसी रीत नहीं।


 लिखने-पढ़ने के दिन है, 

आगे बढ़ने के दिन है 

यह बातें फिर कर लेंगे, 

इश्क-मोहब्बत👩🏻‍❤️‍👨🏼 फिर कर लेंगे


अभी ना मन को हिट करो, 

पहले एम.एफ.ए (M. F.A.) तो कंप्लीट करो।


 उसने यू रिस्पांस किया, 

प्रपोजल को पोस्टपोन किया 

हमने भी हिम्मत नहीं हारी, 

मन में ऊर्जा नई भरी 


रात-रात भर पढ़-पढ़ कर, 

नई इबादत गढ़-गढ़ कर 

ऐसा सबको शॉक्ड दिया, 

मैंने कॉलेज टॉप🏆 किया।


 अब तो मूड🤩 सुहाना था, 

उसने मन भी जाना था 

लेकिन उसका राग पुराना था, 

फिर एक नया बहाना था। 


जॉब करो कोई ढंग की, 

फिर स्टेटस की नौटंकी 

कभी कास्ट का पेंच फंसा, 

कभी बाप को नहीं जंचा।


 थक कर रोज झमेले में, 

सोनपुर के मेले में।

एक दिन जोश में आकर के,

कहां उसे जाकर के।


 जो कह दोगी कर लूंगा

कहो हिमालय चढ़ लूंगा। 

लेकिन क्लियर बात करो, 

ऐसे ना जज्बात हरो।


या तुम हां कह दो, 

या साफ मना कर दो।


सुन कर कन्या मौन हुई,

हर चालाकी गौण हुई।

तभी नया छल कर लाई,

आँख में आशु😢 भर लाई।


हिम्मत को कर ढेर गई,

प्रण पर आशु फेर गई।


पुन: प्रपोजल बिट हुआ,

नखड़ा नया रिपीट हुआ।

थोड़ा सा तो वेट करो,

पहले पतला पेट🫄🏻 करो।


ज्वाइन कोई जिम💪🏻 कर लो,

तोंद ज़रा सी डीम कर लो।

खुश्बू🏵️ सी खिल जाउंगी,

मै तुमको मिल जाउंगी।


तीन साल का वादा कर,

निज क्षमता से ज्यादा कर।

हीरो जैसी बॉडी से,

देंसिंग वाले रौडी से।


बेहतर फिजिक्स बना ना लूँ,

छह:(06), छह:(06)🏋️‍♂️ पैक बना ना लूँ।

सूरत नहीं  दिखाउंगा,

तुझको नहीं सताउंगा।


रात-रात भर श्रम कर के,

खाना-पीना कम कर के।

रुखी सुखी खा कर के,

सरपट दौड़🏃🏻 लगा कर के।


सोने सी काया कर ली,

फिर मन में नई उर्जा भर ली।

 उसे ढूढ़ने निकल पड़ा,

किन्तु फिर प्रेम में खलल💔 पड़ा।


चुन्नी बांध के छल्ले में,

किसी और के गले में।

वह जूही की कली गई,

किसी और की गली गई।


शादी कर के चली गई,

हाय रे!!! किस्मत छली गई।


थका-थका, हारा-हारा,

हाय!!! मै बदकिस्मत बेचारा।

पल में दुनिया घुम लिया,

हर फंदे पर झूल गया।


अपने आशु 😢 पोछूँगा,

कभी मिलेगी तो पूछूँगा।

क्यों मेरा दिल💔 तोड़ गई,

प्यार जता कर छोड़ गई।


कुछ दिन बाद दिखाई दी,

वो आवाज़🌬️ सुनाई दी।


छोड़ा था नवचंडी में 

पाई सब्जी मंडी में।

वो जो एक छड़हरी थी,

कंचन देह सुनहरी थी।


वो कितनी लिजी-लिजी मिली,

बार्गेनिग में बिजी मिली।

वो जो चहका करती थी,

हरदम महका करती थी।


अब दो की महतारी थी,

तीजे की तैयारी थी।


उलझे-उलझे बाल हुए,

बिखड़े-बिखड़े गाल हुए।

दिल के फूटे छालो ने,

इन बेढंगे हालो ने।


सपनो में विष घोला था,

एक हाथ में झोला था।

एक हाथ में मुली थी,

खुद भी फूली-फूली थी।


सब सुंदरता लूली थी,

आशा फाँसी झूली थी।

विधना के ये खेल कड़े,

देख रहा था खड़े-खड़े।


तभी अचानक सधे हुये, 

दो बच्चों से लदे हुये।

चिक-चिक से कुछ थके हुये,

बाल वाल सब पक्के हुये।


एक अंकल जी प्रकट हुये,

दर्शन कितने विकट हुये।

बावन इंची (52") कमरा था,

इसी कली का भंवरा था।


बावन इंची (52") कमरा था,

इसी कली का भंवरा था।



तुफानों ने पाला था,

मुझसे ज्यादा काला🌚 था।

मुझसे अधिक उदास😕 था वो,

केवल दशवी पास था वो।


रानी साथ मदारी के,

फूटे भाग्य बेचारी के।

घूरे मेला लूट गये,

तितली के पर टूट गये।


रचा स्वयंवर वीरो का,

मंडप मांडा जीरो का।

आमलेट तवा पर फैल गई,

किस ख़ुशत के गैल गई।


बिना मिले वापस आया,

कई दिनों तक पछताया।

अब भी अक्सर रातों में,

कुछ गहरे जज्बातो में।


पिछली यादें ढोता हूँ,

सब से छिपकर रोता😭 हूँ।

मुझमें क्या कम था ईश्वर,

किस्मत में गम था ईश्वर।


अब भी आशू😢 बहते हैं,

शायद!!! भाग्य इसी को कहते हैं।


शायद!!! भाग्य इसी को कहते हैं।

शायद!!! भाग्य इसी को कहते हैं।

 

सभार - सोशल मीडिया।

मंगलवार, 26 नवंबर 2024

क्या होगा???


तुम्हे हम भी सताने🤨 पर उतर आए तो क्या होगा,
तुम्हारा दिल❤️ दुखाने पर उतर आए तो क्या होगा।
हमें बदनाम🫨 करते फिर रहे हो अपनी महफिल में - २
अगर हम सच 💯 बताने पर उतर आए तो क्या होगा।

कलुआ के माई।👩🏻‍🍼


          .....जानती हो, कभी-कभी हमार मन करेला कि तोहरा खातिर एगो चिट्ठी ✉️ लिखी✍🏻, लेकिन फिर सोचीला कि साला आपन दर्द उह पेपर पर कैसे लिख पाईब हम।😢

लेकिन खैर!!! छोड़s आज आपन मन के बाद कह ही देतs बानी।


सुनs हो कलुआ के माई,

        जब से हम यहां आए हैं ना हमारा मन बिल्कुल नहीं लग रहा है इह साला शहर ही बड़ा अजीब है कोई किसी से बतियाता ही नहीं है, ससुर के नाती सब के सब दिन भर मोबाइल में घुसलs रहता हैं। काले एगो सवारी बैठा था रिक्शा पे, शायद उ दोनो पति-पत्नी थे, दुनो पूरे रास्ते कुछो ना बात किए पूरे रास्ते बस मोबाइल में देख रहे थे, जानती हो कलुआ की माई, इह शहरी दुनिया बहुते छोटी है जी, हम दिन भर में कम से कम रोज नए 50-100 आदमी से मिलते हैं कोई आदमी के चेहरे पर खुशी नजर नहीं आती है कोई फोन पर अपने मालिक से बतिया रहा होता है तो कोई अपने मेहरारू से कोई अपने दोस्त से बतिया रहा होता है तो कोई अपने काम से लेकिन इन सारे आदमियों में एक चीज सामान्य होती है यह सारे आदमी रो😢 रहे होते हैं।

         तुमको याद है जी, जब हम तुमको पहला बार खिचड़ी के मेला में घुमाने के लिए छपरा ले गए थे उ हम तुमको पैदल लेकर आए थे याद है ना तुमको, पूरा चार मिल का रास्ता था उह, और उह ससुरा चार मिल के रास्ता में हम लोग घंटों बात किए थे,उसी रास्ता में तुम हमको बताई थी कि तुम्हारी सहेली कलावती है ना, (अरे उहे कलावती जिसका शादी त्रिलोकी शाह के नाती से हुआ था जिसकी बनारस में चाय की दुकान है वहीं वाला), उहो खिचड़ी के मेला में छपरा आने वाली है, और तुम हमको एक बात और बताई थी तुमको अनेरिया (अंधेरा) से बहुत डर लगता है, और साला हम तुमको पूरा रास्ता भूत-भूत👻 कहकर चिढ़ाते हुए आ रहे थे तुम गोलगप्पा भी खाई थी याद है ना!!! तुमको साला हम लोग कितना बतियाते हुए गए थे लेकिन जानती हो यहां के लोग बतियाते ही नहीं है।


      इहा साला सब दौड़ रहे है जी, पता नहीं काहे दौड़ रहे हैं लेकिन सब दौड़ रहे हैं काल एगो 15 - 16 साल के लाइका और लाईकी रिक्शा पर आकर बैठे थे, बड़ा गंदा गंदा हरकत कर रहे थे सब, कुछो शर्म लाज नहीं है यहां के लोगों को, पता नहीं इनके माय बाप इनको का सिखाते हैं लेकिन हम इन सब बातों पर ध्यान नहीं देते हैं जानती हो उस सोनहन का रमेश पासवान का लाइका भी यही हमारे साथ ही रिक्शा चलता है कल ही उह एगो मोआबाइल खरीदा है उस पर ना अपनी मेहरारू से बतिया रहा था जी एकदम सामने देख रही थी वह हम उससे कहे हैं वो इतवार को तुमसे बात कराएगा हमारी, इतवार को हम फोनवा से ना वीडियो करेंगे।


ठीक है ना!!! 


       अच्छे से रहना ख्याल रखना अपना हम पैसा दिया करेंगे हर महीना, सुनो ना दुपहरिया हो रहा है थोड़ी देर सो लेते हैं अभी सवारी नहीं मिलती है बाद में विश्वविद्यालय तरफ जाना है, वहां से सवारी बहुत मिलती हैं।

ठीक है अब हम चलतें है।


तोहार 

रामखेलावन✍🏻


साभार - सोशल मीडिया

बुधवार, 13 नवंबर 2024

अगर दुनिया में होता न मुहब्बत का फलसफ़ा...


अगर दुनिया🌎 में होता न मुहब्बत❤️ का फलसफ़ा। 

सच मानिए होता न किसी से कोई खफ़ा😞 ।।


हमें इतना कहां है शऊर जानते हो तुम। 

हमको नहीं पता है क्या होती है ये वफ़ा ।।


नुख्सा हर एक नाकाम है तुमको भुलाने का। 

आजमा के खुद को देखा है हमने कई दफ़ा ।।


हमसे कोई न कीजिए उम्मीद वफ़ा की। 

दुश्मनों के लिए हमें करना है सिर्फ जफ़ा ।।


हमने दुनिया में दिल क्या लगा लिया। 

न जाने कितनी हम पे लगा दी गई दफ़ा ।।



साभार - सोशल मीडिया

कविता में प्रयुक्त कुछ उर्दू के शब्दों के अर्थ -

1. फ़लसफ़ा (पुल्लिंग) - ज्ञान, विद्या, दर्शन शास्त्र, तर्क विद्या, Philosophy.
2. शऊर (पुल्लिंग) - तरीक़ा, ढंग, सामान्य योग्यता, Mannerliness
3. वफ़ा (स्त्रीलिंग) - वचन पालना, निष्ठा, Manners.
4. जफ़ा (स्त्रीलिंग) - अत्याचार, ज़ुल्म, अन्याय पूर्ण कार्य।

मंगलवार, 12 नवंबर 2024

खोइंछा (Khoencha)

खोइंछा

               हमनी के बिहार में एगो विधि बा जवन महिला सशक्तिकरण के दिखावे ला या कह सक तानी की बेजोड़ नमूना बा। जब कवनो शादी भईल मेहरारू चाहे घर (मायके) से ससुराल जाली, चाहे ससुराल से घरे (मायके) जाली तब उनका के खोइंछा दिआला। खोइंचा के यदि परिभाषित कईल जाव तs कह सकत बानी की - चाउर के कुछ दाना, हरिहर दुभी के पत्तई, कुछ पईसा अवरी हल्दी। अब ई सब काहे दिहल जाला ऐकर एगो ना!!! और कई को कारण बतावल जाला। एगो तs ई कारण बा  - जब कभी बेटी चाहे बहू घर से बाहर जाली तब उनका लागी की जवन उनका हाथ में ई जवन गठरी बा उ ओकर परिवार हां औरी उनके साथे जाता अउर ओकरा परिवार के कमी ना खली। ऐहीसे का होई कि उनका लागी की हमार परिवार हमरे साथे बा औरी उनका कबो परिवार के कमी ना महसूस होई।

       दोसर कारण ई बतावल जाला की, ई जेतना चीज़ जैसे  - चाउर के कुछ दाना, हरिहर दुभी, कुछ पईसा अवरी हल्दी इनका के दिआइल बा सबके कवनो ना कवनो मतलब बोला। चावल जवना के ई मतलब होखेला की बेटी के घर में कबो भी अन्न के कमी न होखे। पईसा ई बतावेला की बेटी के घर में कबो लक्ष्मी के कमी न होखे। जवन दुभ के पतई होखेला ऊ संजीवनी के दर्शावेला। संजीवनी यानी की अमृत। अवर जवन ऊ गांठ होखेला जेईमे ऊ सब के बांधल जाला ऊ ई दर्शावेला की जवन ई बेटी होली ऊ इन सब के आपस में जोड़ के रखेली जेकरा से पूरा घर आच्छा से चलेला। अवरी जवन ई काम बातें ऊ बस घर के बहू या बेटी ही कर सकs तारीs ई पूरा ब्यौरा हां, हमनी के यहां खोइंचा के.....

Idioms, phrases, and expressions in English with their Hindi translations:


Love and Relationships

1. "Love at first sight" - पहली नज़र में प्यार (Pehli nazar mein pyaar)

2. "Fall head over heels" - पूरी तरह से प्यार में पड़ना (Puri tarah se pyaar mein padna)

3. "Tie the knot" - शादी करना (Shaadi karna)

4. "Break someone's heart" - किसी का दिल तोड़ना (Kisi ka dil todna)

5. "Lovebirds" - प्रेमी जोड़ा (Premi joda)


Friendship

1. "Best buddies" - सबसे अच्छे दोस्त (Sabse achhe dost)

2. "BFF (Best Friends Forever)" - सबसे अच्छे दोस्त हमेशा के लिए (Sabse achhe dost hamesha ke liye)

3. "Friends forever" - दोस्त हमेशा के लिए (Dost hamesha ke liye)

4. "Lend a helping hand" - मदद करना (Madad karna)

5. "Stab in the back" - पीछे से वार करना (Peechhe se vaar karna)


Success

1. "Reach new heights" - नई ऊंचाइयों को छूना (Nayi unchaiyon ko chhuna)

2. "Make it big" - बड़ा बनना (Bada banana)

3. "Achieve greatness" - महानता हासिल करना (Mahanta haasil karna)

4. "Strike gold" - सोना पाना (Sona paana)

5. "On top of the world" - दुनिया के शीर्ष पर (Duniya ke shirsh par)


Failure



1. "Hit rock bottom" - सबसे निचले स्तर पर पहुंचना (Sabse nichle star par pahunchana)

2. "Fall flat" - पूरी तरह से विफल होना (Puri tarah se viphal hona)

3. "Go bankrupt" - दिवालिया होना (Diwaliya hona)

4. "Lose the battle" - लड़ाई हारना (Ladaai haarna)

5. "Miss the boat" - अवसर चूकना (Avsar chookna)

शनिवार, 9 नवंबर 2024

फिर कब आओगे....😢

 


      अँचरा के कोर से आंखों की आंसू पोछते हुए मां बार-बार अपने बेटों की तरफ एक टक निहार रही थी कुछ बोल नहीं रही थी। दरवाजे पर ऑटो लग चुका था सामान लदा रहा था। दीपावली से लेकर छठ तक जो घर गुलजार था वीरान होने को तैयार था। एक साल के इंतजार के बाद जो बच्चे वापस अपने घर आए थे इतनी जल्दी चले जाएंगे इस बात का तनिक भी आभास मां को नहीं था। पर्व त्यौहार के धूम में अभी तो मन की बात मन ही में रह गई थी 10 साल से जो खेत बेटी के विवाह में बंधक था उसे भी तो छुड़ाना था पर बेटे को फुर्सत नहीं दोनों बेटे कहते थे छठ में आएंगे तो खेत छोडाएंगे पर आते ही जाने की हड़बड़ी है। अब यात्रा पर कैसे मां यह सब बात बोले। दोनों बहू बुदबुदा रही है आने में इतना खर्चा हो गया की तीन-चार महीने घर का बजट बिगड़ा रहेगा चार दिन के लिए कोई इतना खर्च नहीं कर सकता अगले साल से दिल्ली में ही छठ मन जाएगा। मां बेचारी चुपचाप सबकी बातों को सुन रही है बेटे जाने को तैयार है पर कभी अकेले में मां से नहीं पूछा - 

उसका दर्द!!! 

उसकी व्यथा!!! 

उसकी वेदना!!!

     मां सोच रही है कैसे इंसान बदल जाता है शहर की हवा ही खराब है या समय ही बदल गया है। छठी मैया के बहाने भले लोग गांव में लौट रहे हैं पर अब गांव में चार दिन भी रहना उन्हें गवारा नहीं।


      यह कहानी किसी एक परिवार की नहीं बल्कि बिहार की उन लाखों करोड़ों परिवारों की है। नजदीक से दर्द देखने के बाद आत्मा कराह उठती है। जो माता-पिता अपना सब कुछ अपने बच्चों के लिए समर्पित कर देते हैं उनके बच्चों की नजर में मां-बाप गांव घर का कोई मूल्य नहीं सब कुछ बेकार लगता है बात-बात पर बच्चे बोलते हैं कि यहां क्या रखा है चलिए शहर में पर उन्हें कहां पता इस शरीर से आत्मा निकल जाए तो शरीर लाश हो जाती है.......


अनूप✍🏻

बुधवार, 6 नवंबर 2024

छठ पूजा (Chhath Puja)

छठ पूजा

      छठ!!! कइसे बताईं कि का ह कवनो घर के ई केवाड़ी ना ह, कि खोल के देखा दी। ई छुपावे वाला भी ना हऽ कि परदा उठा के देखा दी।


ई त भाव हऽ, माई के प्रति अपना बच्चा के। 

ई त प्रेम अउर श्रद्धा हऽ, आराध्य के प्रति आपन भक्त के। 


    जानतानी!!! जब कार्तिक माह में, छठ के गीत सुनाला, त देहि के एक-एक रोवा हर्षित अउरी पुलकित हो जाला। कबो-कबो तो अनासे आंखों भर जाला। जब पोखरा, ताल, तलईया, नदी सब जगह साफ-सफाई होखे लागेला, त अइसन लागेला कि साक्षात माई लक्ष्मी, छठ माई के दर्शन करे खातीर धरती पर आवतारी।


      जब आंगन में, छत पर, डाढ़ा पर कौवा बोले लागेला, तब बुझा जाला कि माई खातिर दउरत केहू परदेश से आवता। का जाने कइसे ओह घरी मनवाँ में जवन मईल रहे ला नू, उहो धोवा के मन एकदम शुद्ध और पवित्र हो जाला। हरदी, अदरक, केला, सेव, नाशपाती, गागल, नारियल, अनारस, ऊखी (गन्ना), आँवला, शरीफा, अभरक, सब मिलके दउरा में अइसे सजेला जइसे सभे गर्व करत होखे कि, हम माई खातिर माई के साथे मिले जा तानी। लवंग, इलायची, छाक, पान-सोपाड़ी, कचवनिया, ठेकुआ, पूड़ी, चना सब एक दोसरा के सहयोग करत अइसन इतराले कि जइसे आज इहन लोग के ही दिन ह


       छठ माई अइसने किरपा सब जनमानस पर बनवले राखीं कि, सबके मन पवित्र, आत्मा शुद्ध, होत रहो आ सब एक साथ एक घाट पर बइठ के छठी माई अउर सुरूज नारायण स्वामी के ई महापर्व के मनावत रहो।🙏


जय छठी मईया.🙏


साभार - सोशल मीडिया


Chhath Puja


       How can I tell you what Chhath is? It is not the door of a house that will be opened. It is not even going to hide that it will lift the veil. 


It is the feeling, of the mother to her child. 

It is the love and devotion of one's devotee to the adorable.


You know!!!, when in Kartik!!! When Chhath songs are sung, every hairs in the body becomes joyful and ecstatic. Sometimes my eyes are filled with tears. When ponds, lakes, rivers everywhere starts to be cleaned, it feels like Goddess Lakshmi is coming to earth to see Chhath Maai.


      When the crow starts crowing in the courtyard, on the roof, on the tree, it is understood that someone is coming from abroad running for his mother. I don't know how the dirt in the mind at that time is washed away and the mind becomes completely pure and holy. Turmeric, ginger, banana, apple, pear, Gagal, coconut pomegranate, Ookhi (sugarcane), awara, sharifa, abharak, all fruits together decorate the daura as if everyone is proud that, I am going to meet Chhath Maai. Cloves, cardamom, chhak, pan-sopadi, kachwania, Thekua, pudi, gram all cooperate with each other as if today is their day.

     May Chhath Maai keep such grace on all the people that, everyone's minds are holy, souls are pure, and all sit together at one ghat and celebrate this great festival of Chhath Maai and Suruj Narayan Swami.🙏


Jai Chhath Maiya.🙏


Source: Social Media

बुधवार, 30 अक्टूबर 2024

मेरे प्रिय स्वर्गीय मादा मच्छर 🦟,


 

सेवा में,

 मेरी प्रिय स्वर्गीय मादा मच्छर🦟, 

ना जाने कब तु मेरे प्यार❤️ में पड़ी।

मेरे करीब आई 💞

...और मुझे छूने की अपनी ख्वाहिश पूरी करते ही, 

तुम दुनिया को छोड़ कर चली गई।🥲


...और इस बात कि मुझे भनक तक नहीं पड़ी!!!

 पर तुम्हारे प्रेम😍 का असर💓 मुझ पर भी होने लगा था।

 सांसे तेज हो रही थी।

 तुम्हारे इश्क🥰 का बुखार 102 डिग्री🤒 वाला था।


 उल्टियों की बौछार🤑, 

रुकने का नाम नहीं ले रही थी।

 रातो को नींद नहीं था, 

बदन टूटने लगा था।


 पर तभी सभी सबूतों और गवाहों ने मुझे बताया,

 कि मेरा रोम-रोम तुम्हारा कर्जदार हो चुका है।

 काश!!! 

अब काश के अलावा, 

मेरे पास कुछ बचा नहीं है।😢


एक बार तो मुझसे बाते करती,

बैठती मैं समझाता।

तुम्हारा हाथ पकड़कर 👫

मैं रोक लेता।


पर ऐसे जाने ना देता,

 तुम तो चली गई पर मुझे...

...डेंगू... 🦟 दे गई।


साभार - सोशल मीडिया 

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024

किराए का घर (Rent House)



किराए का घर बदलने पर सिर्फ एक किराए का घर नहीं छूटता,

उसके साथ एक किराने की दुकान भी छूट जाती है।


कुछ भले पड़ोसी छूट जाते हैं कुछ पेड़ कुछ पखेरू एक सब्जी की दुकान छूट जाती है,

छूट जाते हैं चाय के अड्डे वहाँ की धूप हवा पानी कुछ ठेले और खोमचे।


जिन सड़कों पर सुबह शाम चलते थे अचानक उनका साथ छूट जाता है,

हमारे लिए एक साथ कितना कुछ छूट जाता है और उन सबके लिए बस एक अकेला मैं छूटता हूँ।


- संदीप तिवारी✍🏻

बुधवार, 23 अक्टूबर 2024

स्वास्थ्य के हिसाब से चाय ☕


नींबू वाली चाय पेट घटाए,

अदरक वाली चाय खराश मिटाए।

नीम्बु पत्ती की चाय माइग्रेन भगाये,

अमरुद पत्ती की चाय ताजगी लौटाये।


गुडहल पत्तियों की चाय ह्युम्निटी बढाये,

हरसिंगार पत्ती की चाय हड्डी दर्द बुखार भगाये।

लेमन ग्रास की चाय स्फुर्ती लौटाये,

मसाले वाली चाय इम्युनिटी बढ़ाए।


मलाई वाली चाय हैसियत दिखाए,

सुबह की चाय ताजगी लाए ।

शाम की चाय थकान मिटाए।

दुकान की चाय मजा आ जाए,

पड़ोसी की चाय व्यवहार बढ़ाए।


मित्रों की चाय संगत में रंगत लाए,

पुलिसिया चाय मुसीबत से बचाए। 

अधिकारियों की चाय फाइलें बढ़ाए,

नेताओं की चाय बिगड़े काम बनाए।


विद्वानों की चाय सुंदर विचार सजाए,

कवियों की चाय भावनाओं में बहाए। 

रिश्तेदारों की चाय संबंधों में मिठास लाए,

चाय, चाय, चाय, सबके मन भाय।


एक चाय भूखे की भूख मिटाए,

एक चाय आलस्य भगाए ।

एक चाय भाईचारा बढ़ाए,

एक चाय सम्मान दिलाए।


एक चाय हर काम बन जाए,

एक चाय हर गम दूर हो जाए।

एक चाय रिश्तो में मिठास लाए।

एक चाय खुशियाँ कई दिलाए।


एक चाय प्रधानमंत्री बनाए,

चाय पिए और चाय पिलाए।

जीवन को आनंदमय बनाए।

जीवन को आनंदमय बनाए।


 साभार - सोशल मीडिया 


रविवार, 13 अक्टूबर 2024

झिझिया मैथिली लोकगीत (Jhinjhiya Folk Dance)

Completed work on 𝐉𝐡𝐢𝐣𝐡𝐢𝐲𝐚 झिझिया।

 

Jhijhiya is a cultural dance from the Mithila region. Jhijhiya is mostly performed at time of Dashain, in dedication to Durga Bhairavi, the goddess of victory. While performing jhijhiya, women put lanterns made of clay on their head and they balance it while they dance.

साभार :- @mithilaartpaintings



मैथिली लोकगीत


तोहरे भरोसे ब्रहम बाबा झिझिया बनइलिअइ हो

तोहरे भरोसे ब्रहम बाबा झिझिया बनइलिअइ हो

ब्रहम बाबा झिझरी पर होईअऊ न असवार

अबोधवा बालक तोहर किछियो न जानय छौ हो

ब्रहम बाबा झिझरी पर होईअऊ न असवार


तोहरे अंगनमा ब्रहम बाबा जुड़वा बनइलिअइ हो

तोहरे अंगनमा ब्रहम बाबा जुड़वा बनइलिअइ हो

ब्रहम बाबा जुड़वा पर होईअऊ न असवार

अबोधवा बालक तोहर किछियो न जानय छौ हो


कंहवा से अईतय मईया हरिन सुगवा हो

मईया गे कंहवा से अयतई भैरो भाई

सड़क पर झिझरी खेल आयब हो


ससुरा से अईलय मईया हे हरिन सुगवा हो

मईया हे नईहर से अयलई भैरो भाई

सड़क पर झिझरी खेल आयब हो


किए पानी मईया हे देबई हरिन सुगवा हो

मईया हे किए पानी देबई भैरो भाई

सड़क पर झिझरी खेल आयब हो


झारी पानी देबई मईया हे हरिन सुगवा हो

मईया हे लोटे पानी देबई भैरो भाई

सड़क पर झिझरी खेल आयब हो


माछ मारs गेले डयनियाँ बाबा के पोखरिया

माछ मारs गेले डयनियाँ बाबा के पोखरिया

मारि लैले कतरी मछरिया गे

चल चल गे डयनियाँ ब्रहम तर

तोरा बेटा के खयबऊ ब्रहम तर


तोहरे भरोसे ब्रहम बाबा झिझिया बनइलिअइ हो

ब्रहम बाबा झिझरी पर होईअऊ न असवार...


       झिझिया मैथिली लोकगीत बिहार और नेपाल के मिथिला क्षेत्र में प्रसिद्ध एक पारंपरिक लोकगीत है। यह गीत विभिन्न अवसरों पर गाया जाता है, जैसे कि विवाह, त्योहार, और अन्य सामाजिक समारोह। झिझिया गीतों में समाजिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों को दर्शाया जाता है।


 झिझिया नृत्य की परिकल्पना करने पर हमें निम्न बिंदु परिलक्षित होते हैं।

1. पारंपरिक परिधान:- महिलाएँ साड़ी पहनकर और पुरुष धोती-कुर्ता पहने  नाच रहे है। 

2. संगीत वाद्य:- ढोल, बंजीरा और सारंगी जैसे वाद्य यंत्र बजाये जा रहे है।

3. सुरम्य पृष्ठभूमि:- खेतों, तालाबों और आम के बागों के बीच नृत्य का दृश्य मनोरम छवि का निर्माण कर रहा है।

4. उत्सव का माहौल:- रंग-बिरंगे कपड़े पहने सभी लोग उत्साह से आनंद ले रहे है।

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024

मुश्किल बा डगरिया, लेकिन कट जाई।

 

तनी मुश्किल बा डगरिया,

लेकिन कट जाई। 

भी बदरी बा दुख के तऽ का भईल,

आई समईया ईहो, छंट जाई।


चलत रहिहऽ तू रहिया, हार जन मनिहऽ,

जानें कब तोहार भगिया पलट जाई।


जब थाक जाए मनवां, याद करिहा तु घरवां, 

बाबू - माई के दुखवा, और उनकर कहनवां, 

सारा दुखवा थकनवा उचत जाई,


चलत रहिह तू रहिया हार जन मनिह, 

जानें कब तोहार भगिया पलट जाई।


कबो सोचिह तू गौवां ज्वार वाला बतिया,

गेहूं के कटनी में बितल ऊ खेत वाला रतिया, 

तोहर मुश्किल के घड़ी सब कट जाई।


चलत रहिह तू रहिया हार जन मनिह, 

जानें कब तोहार भगिया पलट जाई।


चाहें देशवा में रहिहऽ या विदेशवा में जईहा,

आपन माटी और बोली के कबो जन भुलइहऽ,

ईहे सिखवां से जीवन तोहार कट जाई।


चलत रहिह तू रहिया हार जन मनिह,

जानें कब तोहार भगिया पलट जाई।।


शिवा शशांक ओझा✍🏻

रविवार, 15 सितंबर 2024

ऐ शेखपुरा मेरी जान💗 हो तुम। Aye Sheikhpura meri jaan💗 ho tum.



 शेखपुरा मेरी जान💗 हो तुम।


मेरे गांव का वह कच्चा मकान हो तुम।

जहां खेल-कूद कर हम बड़े हुए,

उस बचपन से लेकर जवानी तक की पहचान हो तुम।


  शेखपुरा मेरी जान हो तुम।


कभी किसी की खौफ की कहानी,

तो वही राजो सिंह की कल्पना का आकार हो तुम।


 शेखपुरा मेरी जान हो तुम। 


गणेश होटल की कभी ना भूलने वाली समोसा हो,

तो वही निताई चौक के पास मिलने वाली तीखे गोलगप्पे का स्वाद हो तुम।


बंगाली चाय की सौंधी-सी महक हो।

चांदनी चौक के मोमो की दुकान पर लगी, 

भीड़ की चहक हो तुम।

खुद के चार्ट को एक दूसरे से बेहतर बताने वाली कटरा चौक की वह दुकान हो तुम।


ऐ शेखपुरा मेरी जान हो तुम। 


गिरीहिंदा पहाड़ पर स्थित, 

बाबा कामेश्वर नाथ का धाम हो तुम। 

बुधौली का वो कभी ना हटने वाला जाम हो तुम।


गिरीहिंदा माता के मंदिर में बजने वाला, 

वह रिमझिम-सी आवाज हो तुम।

वही श्यामा सरोवर पार्क में, 

टहलते लोगों के पैरों की पदचाप हो तुम।

अनुमंडल ग्राउंड में खेलते खिलाड़ियों की संतुष्टि भरी थकान हो तुम।


ऐ शेखपुरा मेरी जान हो तुम।


गिरीहिंदा बस स्टैंड पर आती-जाती बसों में, 

बैठी सवारियों का ब्यौरा हो तुम।

हॉस्पिटल रोड में घुसते ही एंबुलेंस की आवाज हो तुम।

पुलिस लाइन में खड़े उस सिपाही की वर्दी की गर्मी हो तुम।

नवोदय विद्यालय में नामांकन के लिए, 

पढ़ते एवं पढ़ाते छात्रों का मेला हो तुम।


  शेखपुरा मेरी जान हो तुम।


सब्जी मंडी में बिकती भाजियों का बाजार हो तुम। 

तो वहीं बैठ कर भीख मांगती, 

उस बुड्ढी मां के सर का छत हो तुम। 

लेबर चौक के पास बैठे कार्य की तलाश में, 

उन मजदूरों की आस हो तुम।


  शेखपुरा मेरी जान हो तुम।


दशहरा में घूमने आए लोगों का बलखाता रेला हो तुम।

शेखपुरा स्टेशन से गुजरती वह धर-धराती सी ट्रेन हो तुम।

तो वही पास सड़क से निकलता हुआ कोई राहगीर हो तुम।

 टाटी नदी का बहता कल-कल पानी हो तो

वही अरघवटी छठ घाट पर आई व्रतियों की आस्था की कहानी हो तुम।


  शेखपुरा मेरी जान हो तुम।


बड़ी दुर्गा जी के पास वह बड़ा वाला दुर्गा पंडाल हो तुम।

कच्ची रोड पर कोचिंग पढ़ने आए छात्रों के सपनों की सुनहरी मुस्कान हो तुम।

ए टू जेड मैथ क्लासेस की सेवा प्रणायता की, 

दर्शनाथ हो तुम।


  शेखपुरा मेरी जान हो तुम।


स्कूल से छुटे बच्चों की मौजूद किलकारी हो तुम। 

दल्लू मोड़ में बेफिक्र घूमते मस्त मौलो की, 

सीटी बजाती टिटकारी हो तुम।

हुसैनाबाद से आती वह अजान हो 

शिव मंदिर बंगाली पर की शंखनाद हो तुम। 


....और क्या बताएं कहां-कहां और क्या-क्या हो तुम।


बस इतना जान लो इस शहर में बसने वाले हर एक वाशिंदे के नस-नस में हो और सबके चेहरे की वह मीठी मुस्कान 😊 हो तुम। 


किसी और का तो पता नहीं लेकिन

  शेखपुरा मेरी जान हो तुम।


   शेखपुरा मेरी तो जान हो तुम।

   शेखपुरा मेरी तो जान हो तुम।


विश्वजीत कुमार ✍🏻

गुरुवार, 29 अगस्त 2024

वाल्मीकि रामायण भाग - 43 (Valmiki Ramayana Part - 43)



सीता को अपने वश में करने का उन राक्षसियों को आदेश देकर रावण वहाँ से चला गया। उसके जाते ही सब भयंकर राक्षसियां सीता को घेरकर बैठ गईं। हरिजटा, विकटा, दुर्मुखी आदि राक्षसियाँ एक-एक करके अत्यंत कठोर वाणी में सीता से कहने लगीं, “नीच नारी!!! तू महान राक्षसराज रावण की पत्नी बनना क्यों अस्वीकार कर रही है? जिन्होंने सभी तैंतीस देवताओं (बारह आदित्य, ग्यारह रूद्र, आठ वसु और दो अश्विनी कुमार) तथा देवराज इन्द्र को भी परास्त कर दिया, जिनका पराक्रम सर्वश्रेष्ठ है, उन महाबली राजा रावण को तू क्यों अप्रसन्न कर रही है? राक्षसराज ने नागों, गन्धर्वों और दानवों को युद्ध-भूमि में अनेक बार परास्त किया है। वे महापराक्रमी रावण स्वयं तेरे पास पधारे थे। तूने उनका ऐसा अपमान क्यों किया? राजाधिराज रावण के भय से सूर्य और वायु भी काँपते हैं। वे सबकी इच्छा पूर्ण करने में समर्थ हैं। उनकी पत्नी बनना इस संसार का सबसे बड़ा सुख है। तू उनकी बात मान ले, अन्यथा अपने प्राण गँवाएगी।”

उनकी बातें सुनकर सीता ने उत्तर दिया, “मेरे पति के पास राज्य अथवा धन हो या न हो, किन्तु मैं केवल उन्हीं में अनुरक्त रहूँगी। तुम सब लोग भले ही मुझे खा जाओ, पर मैं तुम्हारी पापपूर्ण बात कभी नहीं मानूँगी। यह सुनकर उन राक्षसियों के क्रोध की सीमा नहीं रही। उनके हाथों में फरसे चमक रहे थे। अपने लंबे व चमकीले होठों को बार-बार चाटती हुईं वे सीता को डाँटने-डपटने और धमकाने लगीं। उन भयानक राक्षसियों के प्रलाप से घबराई हुईं सीता जी वहाँ से उठकर संयोग से उसी अशोक वृक्ष के नीचे आकर बैठ गईं, जिस वृक्ष पर हनुमान जी बैठे हुए थे। लेकिन राक्षसियों ने वहाँ भी उनका पीछा नहीं छोड़ा। विनता, चण्डोदरी, विकटा, प्रघसा, अजामुखी आदि अनेक राक्षसियाँ वहाँ भी आकर सीता को समझाने लगीं कि ‘तुम रावण की बात मान लो। यह यौवन सदा नहीं टिकेगा, इसलिए रावण के साथ जीवन का आनंद लो’। उनमें से कुछ आपस में बातें कर रही थीं कि ‘इस सुन्दर स्त्री के एक-एक अंग को काटकर खाने में कितना आनंद आएगा’, तो कोई तय कर रही थी कि ‘इसका कौन-सा अंग किस राक्षसी को खाने के लिए दिया जाएगा’।

ऐसी भयावह बातें सुनकर सीता श्रीराम को याद करके फूट-फूटकर रोने लगीं। मन ही मन वे सोचने लगीं कि ‘इतनी अवधि बीत गई, पर मेरे पति श्रीराम अभी तक यहाँ आए क्यों नहीं? कहीं श्रीराम और लक्ष्मण दोनों ने अहिंसा का व्रत लेकर अपने शस्त्रों को तो नहीं त्याग दिया? कहीं रावण ने छल से दोनों भाइयों को मरवा तो नहीं डाला?’, पर अगले ही क्षण उन्हें लगा कि यह असंभव है। श्रीराम मेरे लिए यहाँ अवश्य आएँगे। तब उन्होंने सब राक्षसियों से पुनः दोहराया, “राक्षसियों! तुम चाहे मेरे टुकड़े-टुकड़े करके आग में भूनकर खा जाओ या मुझे जलाकर भस्म कर दो, किन्तु मैं रावण के पास कभी नहीं जा सकती। मेरे पति ने जनस्थान में अकेले ही चौदह हजार राक्षसों को मार डाला। वे अवश्य ही रावण का वध करने में भी समर्थ हैं। फिर भी यदि श्रीराम यहाँ नहीं आए, तो मैं अपने प्राण त्याग दूँगी, पर रावण की बात नहीं मानूँगी।” यह सुनकर उन सब राक्षसियों का क्रोध और बढ़ गया। वे सीता को डराने के लिए और अधिक कठोर बातें कहने लगीं। उसी बीच त्रिजटा नामक एक बूढ़ी राक्षसी वहाँ आई। वह अभी-अभी सोकर उठी थी। आते ही उसने उन राक्षसियों से कहा, “नीच निशाचरियों!!! आज मैंने राक्षसों के विनाश का संकेत देने वाला एक बड़ा भयंकर स्वप्न देखा है। अतः तुम लोग अब सीता के नहीं, अपने प्राण बचाने की चिंता करो। स्वप्न में मैंने हाथी-दाँत की बनी हुई एक सफेद पालकी देखी, जिसमें एक हजार घोड़े जुते हुए थे। सफेद फूलों की माला तथा सफेद वस्त्र धारण किए हुए श्रीराम और लक्ष्मण दोनों भाई उस पर चढ़कर यहाँ पधारे। समुद्र से घिरे एक पर्वत के शिखर पर सीता बैठी हुई थी। उसने भी सफेद वस्त्र पहने हुए थे। फिर श्रीराम चार दाँतों वाले एक विशाल गजराज पर लक्ष्मण के साथ बैठकर पर्वत-शिखर पर सीता के पास आए। श्रीराम का हाथ पकड़कर सीता भी उस हाथी पर बैठ गई। फिर वह गजराज लंका के ऊपर आकर खड़ा हो गया। इसके बाद वे तीनों दिव्य पुष्पक विमान पर आरूढ़ होकर उत्तर दिशा की ओर चले गए। स्वप्न में मैंने रावण को भी देखा था। वह सिर मुंडवाकर तेल से नहाया हुआ था। उसने लाल वस्त्र और करवीर (कनेर) के फूलों की माला पहनी थी। मदिरा पीकर वह मतवाला हो गया था और ऐसी अवस्था में ही वह पुष्पक विमान से नीचे धरती पर गिर पड़ा।”

“रावण ने काले कपड़े पहन रखे थे और वह गधों से जुते हुए रथ पर बैठकर कहीं जा रहा था। उसके गले में लाल फूलों की माला थी और उसने लाल चन्दन लगाया हुआ था। वह तेल पी रहा था और पागलों की भाँति हँसता हुआ नाच रहा था। फिर वह गधे से नीचे गिर गया। वह भय से घबरा रहा था और निर्वस्त्र होकर गालियाँ बकता हुआ कहीं जाने लगा। थोड़ा आगे जाकर वह मल से भरे एक बड़े तालाब में जा गिरा। कीचड़ में लिपटी एक काले रंग की स्त्री रावण का गला बाँधकर उसे दक्षिण दिशा की ओर खींचकर ले जाने लगी। मैंने महाबली कुंभकर्ण को भी इसी अवस्था में देखा। रावण के सभी पुत्र भी वैसी ही अवस्था में थे। रावण सूअर पर, इन्द्रजीत सूँस (डॉल्फिन) पर और कुंभकर्ण ऊँट पर बैठकर दक्षिण दिशा को गए। केवल विभीषण ही प्रसन्न दिखाई दे रहे थे। सफेद वस्त्र, सफेद माला, सफेद चन्दन लगाकर वे एक सफेद छत्र के नीचे खड़े थे। उनके पास शंखध्वनि हो रही थी, नगाड़े बजाए जा रहे थे। नृत्य एवं गीत भी हो रहा था। अपने चार मंत्रियों के साथ विभीषण आकाश में एक चार दाँतों वाले विशाल गजराज पर बैठे हुए थे। यह रमणीय लंकापुरी अपने हाथी, घोड़ों, रथों सहित समुद्र में जा गिरी थी। मैंने देखा कि श्रीराम का दूत बनकर आए एक वेगवान वानर ने इसे जलाकर भस्म कर दिया था।” “राक्षसियों! ये सब स्वप्न-संकेत बड़े स्पष्ट हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि श्रीराम अवश्य ही यहाँ आकर सीता को प्राप्त करेंगे। अपनी प्रिय पत्नी को इस प्रकार डराने-धमकाने वाली राक्षसियों को वे कदापि क्षमा नहीं करेंगे। हमें सीता को डराना-धमकाना बंद करके उससे क्षमा माँगनी चाहिए और मीठी बातें कहकर उसे प्रसन्न रखने का प्रयास करना चाहिए। देखो, उसकी बायीं आँख भी फड़फड़ा रही है, जो इस बात का सूचक है कि शीघ्र ही उसे कोई शुभ समाचार मिलने वाला है।”

ये सभी बातें हनुमान जी भी छिपकर सुन रहे थे। उन्होंने सोचा कि ‘मैंने सीता का पता तो लगा लिया है, किन्तु उनसे मिलकर श्रीराम का सन्देश उन्हें सुनाना भी आवश्यक है। यदि मैंने उन्हें सांत्वना न दी, तो वे दुःख में अवश्य ही यहाँ अपने प्राण त्याग देंगी और यदि मैं उनसे मिले बिना ही लौट गया, तो श्रीराम के पूछने पर सीता का क्या सन्देश सुनाऊँगा? अतः सीता से मिलना मेरे लिए अनिवार्य है। परन्तु इन राक्षसियों के सामने सीता से बात करना भी उचित नहीं है। अब इस कार्य को कैसे संपन्न किया जाए? मुझे इन राक्षसियों के बीच ही किसी प्रकार धीरे से अपनी बात सीता को सुनानी पड़ेगी। परन्तु यदि मैं संस्कृत भाषा में बोलूँगा, तो मुझे रावण समझकर सीता भयभीत हो जाएँगी। अतः अवश्य ही मुझे उस भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जिसे अयोध्या के आस-पास रहने वाले सामान्य जन बोलते हैं। अन्यथा सीता भयभीत होकर चिल्लाने लगेंगी और उनकी आवाज सुनकर राक्षसियाँ भी यहाँ पहुँच जाएँगी। उनकी सूचना पर यदि बहुत-से विकराल राक्षसों ने आकर मुझे पकड़ लिया या मार डाला, तो श्रीराम का कार्य पूर्ण नहीं हो सकेगा। यदि उन्होंने मुझे घायल कर दिया, तो मैं महासागर को पार करके वापस नहीं जा पाऊँगा। अतः कुछ ऐसा करना चाहिए कि यह कार्य सफल हो जाए। तब बहुत सोचने पर उन्होंने निश्चित किया कि ‘मैं सीताजी को उनके प्रियतम श्रीराम का ही गुणगान सुनाऊँगा। मीठी वाणी में मैं श्रीराम का सन्देश भी सीता जी को गाकर ही सुनाऊँगा, जिससे उनका मन शांत हो जाए, भय दूर हो जाए और उनका संदेह भी मिट जाए। यह निश्चय करके हनुमान जी उस वृक्ष की शाखाओं में छिपे रहकर ही मधुर-वाणी में सीता को सुनाते हुए गाने लगे। उन्होंने गाते हुए कहा कि “महान दशरथ जी के पराक्रमी पुत्र श्रीराम अपने पिता का वचन पूरा करने के लिए सीता व लक्ष्मण के साथ वन में गए। वहाँ रावण ने छल से सीता का अपहरण कर लिया। तब सीता की खोज करते हुए मतंग-वन में पहुँचे श्रीराम की मित्रता सुग्रीव नामक वानर से हो गई। वाली का वध करके श्रीराम ने सुग्रीव को वानरों का राज्य दे दिया। तब सुग्रीव की आज्ञा से हजारों वानर सीता देवी का पता लगाने के लिए चारों दिशाओं में निकले। उनमें से मैं भी एक हूँ और सौ योजन समुद्र को लाँघकर यहाँ तक आया हूँ। मैंने जानकी जी को ढूँढ निकाला है और श्रीराम ने उनका जैसा वर्णन किया है, वैसा ही मैंने उन्हें पाया है।

इतना कहकर हनुमान जी चुप हो गए।

ये बातें सुनकर सीता को बड़ा विस्मय हुआ। उन्होंने अपने सिर को ऊपर उठाकर वृक्ष की ओर देखा। वहाँ उन्हें पवनपुत्र हनुमान जी बैठे हुए दिखाई दिए। सीता जी ने देखा कि श्वेत वस्त्र पहना हुआ एक वानर वृक्ष की शाखा के बीच छिपा हुआ बैठा है। उसका रंग कुछ-कुछ पीला था और उसकी आँखों में तपे हुए सोने जैसी चमक थी। इस प्रकार सहसा प्रकट हुए उस वानर को देखकर वे भयभीत हो उठीं और ‘हा राम! हा लक्ष्मण!’ कहकर दुःख से विलाप करने लगीं। उतने में ही वह वानर वृक्ष से नीचे उतरा और बड़ी विनम्रता से आकर उनके पास बैठ गया। उस विशाल और टेढ़े मुख वाले वानर को इतने निकट देखकर वे और भी व्यथित हो गईं। तभी हनुमान जी ने उन्हें प्रणाम करके मधुर वाणी में कहा, “देवी! आप कौन हैं? किस शोक में हैं? रावण जिन्हें जनस्थान से बलपूर्वक उठा लाया था, क्या आप वही सीताजी हैं?” तब सीताजी ने उत्तर दिया, “कपिवर! मैं महाराज दशरथ की पुत्रवधू, विदेहराज जनक की पुत्री और परम बुद्धिमान श्रीराम की पत्नी हूँ। मेरा नाम सीता है। विवाह के बाद बारह वर्षों तक मैं सुख से अयोध्या में रही। फिर तेरहवें वर्ष में जब श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारी हो रही थी, तब दशरथ जी की भार्या कैकेयी ने अपने पति से वरदान माँगा कि श्रीराम को वन में भेज दिया जाए और भरत को राज्य मिले। तब श्रीराम के साथ मैं स्वयं भी वन में चली आई और उनके भाई लक्ष्मण ने भी उनका अनुसरण किया। वहाँ दण्डकारण्य में दुरात्मा रावण ने छल से मेरा अपहरण कर लिया था। उसने मेरे लिए एक वर्ष की अवधि निर्धारित की है, जिसमें से अब केवल दो मास शेष बचे हैं। उसके बाद मुझे अपने प्राणों का परित्याग करना पड़ेगा।” यह सुनकर हनुमान जी ने कहा, “देवी! मैं श्रीराम का ही दूत हूँ और आपके लिए उनका सन्देश लेकर आया हूँ। वे सकुशल हैं और उन्होंने आपका कुशल-क्षेम पूछा है। महातेजस्वी लक्ष्मण ने भी आपके चरणों में प्रणाम कहलाया है।” इन शब्दों से सीता को अत्यंत हर्ष हुआ और उन्हें प्रसन्न देखकर हनुमान जी को भी बड़ी प्रसन्नता हुई। तब हनुमान जी उनके थोड़ा और निकट चले गए। लेकिन इससे सीता को शंका हो गई कि ‘कहीं यह रावण ही तो नहीं है, जो रूप बदलकर आ गया है। जनस्थान में भी वह संन्यासी का रूप धारण करके आया था।’ यह सोचकर वे पुनः दुःख से कातर होकर भूमि पर बैठ गईं। भयभीत होकर उन्होंने हनुमान जी की ओर देखे बिना ही कहा, “तुम यदि रावण हो और इस प्रकार रूप बदलकर मुझे कष्ट दे रहे हो, तो यह अच्छी बात नहीं है। वैसे मेरी यह शंका झूठी भी हो सकती है क्योंकि तुम्हें देखने पर मुझे प्रसन्नता भी हुई थी। तुम यदि सचमुच ही श्रीराम के दूत हो, तो श्रीराम और लक्ष्मण के कुछ चिह्न मुझे बताओ। उनकी आकृति का वर्णन करके मेरा संशय दूर करो। मुझे बताओ कि उनसे तुम्हारा संपर्क कहाँ हुआ तथा वानरों व मनुष्यों का यह मेल कैसे हुआ?” तब हनुमान जी ने हाथ जोड़कर कहा, “देवी! मैंने जिन चिह्नों को देखा है, वह मैं आपको बताता हूँ। श्रीराम के नेत्र विशाल और सुन्दर हैं, मुख चन्द्रमा के समान मनोहर है। उनके कंधे मोटे-मोटे, भुजाएँ बड़ी-बड़ी और गला शंख के समान है। गले की हँसली मांस से ढकी हुई है और नेत्रों में कुछ लालिमा है। उनका स्वर गंभीर है। उनके मस्तक में तीन भँवरें हैं। पैरों के अँगूठे के नीचे तथा ललाट में चार-चार रेखाएँ हैं। वे चार हाथ ऊँचे हैं। उनके भाई लक्ष्मण भी श्रीराम के ही समान हैं। दोनों भाइयों में केवल इतना ही अंतर है कि लक्ष्मण के शरीर का रंग गोरा और श्रीराम का रंग श्याम है। वानरों के राजा सुग्रीव श्रीराम के मित्र हैं। उनके ही आदेश पर मैं श्रीराम का दूत बनकर यहाँ आया हूँ। मैं सुग्रीव का मंत्री हूँ और मेरा नाम हनुमान है। जब वे दोनों भाई आपको खोजते हुए ऋष्यमूक पर्वत के निकट आए, तब सुग्रीव ने उनका परिचय पाने के लिए मुझे भेजा था। तभी मेरा उन दोनों से संपर्क हुआ था। श्रीराम ने अपने पराक्रम से बाली को मारकर सुग्रीव को वानरों का राज्य दिलवाया। उसी से हम वानरों और मनुष्यों का यह मेल हुआ है। आपने अपहरण के बाद आकाश-मार्ग से लाए जाते समय वानरों को देखकर जो आभूषण फेंके, वे भूमि पर गिरकर बिखर गए थे। तब मैं ही उन्हें बटोरकर लाया था। जब वे हमने श्रीराम को दिखाए, तो उन्होंने तुरंत ही उन्हें पहचान लिया और आपका स्मरण करके वे दुःख से व्याकुल हो गए। फिर आपकी खोज में सुग्रीव ने वानरों को चारों दिशाओं में भेजा। बहुत दिनों तक विंध्याचल में खोजकर हम हार गए और दुःख से पीड़ित होकर समुद्रतट पर विलाप करने लगे। तब जटायु के भाई सम्पाती ने हमें बताया कि आप समुद्र के इस पार लंका में हैं। इसी कारण मैं सौ योजन के समुद्र को लाँघकर कल रात में ही लंका आया हूँ। मैं सत्य कह रहा हूँ। आप मेरी बात पर विश्वास कीजिए।”

इस प्रकार हनुमान जी ने सीता को बहुत-सी बातें बताईं और फिर श्रीराम की अंगूठी उन्हें दिखाई। उसे देखकर सीता जी का संदेह दूर हो गया और उन्हें विश्वास हो गया कि ये श्रीराम के ही दूत हैं, कोई मायावी राक्षस नहीं। तब सीताजी बोलीं, “कपिश्रेष्ठ! तुम निश्चित ही कोई असाधारण वानर हो क्योंकि तुम्हारे मन में रावण जैसे दुष्ट राक्षस का भी कोई भय नहीं है। स्वयं श्रीराम ने तुम्हें भेजा है, अतः तुम अवश्य ही इस योग्य हो कि मैं तुम पर विश्वास करूँ क्योंकि वे कभी किसी ऐसे पुरुष को नहीं भेजेंगे, जिसके पराक्रम तथा शील की उन्होंने परीक्षा न कर ली हो। तुम मुझे बताओ कि श्रीराम जी कैसे हैं? क्या वे मेरे लिए शोक संतप्त हैं? कहीं वे मुझे भूल तो नहीं गए? क्या वे मुझे इस संकट से उबारेंगे? वे अभी तक यहाँ आए क्यों नहीं हैं? यह सुनकर हनुमान जी ने कहा - देवी!!! श्रीराम को अभी यह पता ही नहीं है कि आप लंका में हैं। अब यहाँ से लौटकर मैं उन्हें यह जानकारी दूँगा और तब वे शीघ्र ही वानर-भालुओं की विशाल सेना साथ लेकर निकलेंगे तथा महासागर पर सेतु बाँधकर लंका में पहुँच जाएँगे। फिर वे राक्षसों का संहार कर देंगे और आप पुनः उनके पास पहुँच जाएँगी। तब सीता बोलीं - हनुमान!!! तुम उनसे जाकर कहना कि वे शीघ्रता करें। केवल एक वर्ष पूरा होने तक ही मेरा जीवन शेष है। अब उसमें केवल दो माह का ही समय बचा है। रावण के भाई विभीषण ने उसे बहुत बार समझाया है, किन्तु वह मुझे लौटाने की बात नहीं मानता। विभीषण की ज्येष्ठ पुत्री (बड़ी बेटी) का नाम कला है। उसकी माता ने एक बार उसे मेरे पास भेजा था। उसी ने मुझे ये सारी बातें बताई हैं। अविन्ध्य नामक एक और श्रेष्ठ राक्षस है, जो बड़ा बुद्धिमान, विद्वान तथा रावण का सम्मान पात्र है। उसने भी रावण को समझाया था किन्तु रावण किसी की बात नहीं मानता।

यह सुनकर हनुमान जी बोले, “देवी! आप धैर्य रखिये। श्रीराम शीघ्र ही यहाँ आएँगे अथवा आप आज्ञा दें, तो मैं आपको अभी अपनी पीठ पर बिठाकर यहाँ से ले जाऊँगा और आज ही श्रीराम के पास पहुँचा दूँगा। मैं जिस प्रकार यहाँ आया था, उसी प्रकार आकाशमार्ग से आपको ले जाऊँगा। तब सीता बोलीं, “कपिवर! तुम्हारे साथ जाना मेरे लिए उचित नहीं है क्योंकि तुम्हारा वेग वायु के समान तीव्र है। उस वेग के कारण आकाशमार्ग से जाते समय मैं नीचे समुद्र में गिर सकती हूँ। तुम जब यहाँ से मुझे लेकर निकलोगे, तो तुम्हारे साथ स्त्री को देखकर राक्षसों को अवश्य ही संशय होगा। तब तुम मेरी रक्षा और उनसे युद्ध एक साथ कैसे करोगे? यदि तुमने वह कर भी लिया, तब भी श्रीराम का अपयश होगा क्योंकि लोग कहेंगे कि वे स्वयं अपनी स्त्री की रक्षा के लिए कुछ भी न कर सके। एक और कारण यह भी है कि रावण ने तो बलपूर्वक मुझे स्पर्श किया था, किन्तु स्वेच्छा से मैं श्रीराम के सिवा किसी पुरुष को स्पर्श नहीं करना चाहती। अतः यही सर्वथा योग्य है कि श्रीराम यहाँ आकर रावण का वध करें और मुझे अपने साथ ले जाएँ।

यह सुनकर हनुमान जी ने कहा - देवी! महासागर को पार करके लंका में प्रवेश करना सेना के लिए बहुत कठिन है। इसी कारण तथा आपको आज ही श्रीराम से मिलवा देने के विचार से ही मैंने आपको पीठ पर ले जाने का प्रस्ताव दिया था। अब आपकी आज्ञानुसार मैं वापस लौटकर उन्हें आपका सन्देश सुनाऊँगा, किन्तु आप अपनी कोई पहचान ही मुझे दे दीजिए, जिससे उन्हें विश्वास हो जाए कि मैं सचमुच आप ही से मिला था। तब सीता ने ऐसे दो-तीन निजी प्रसंग बताए, जो केवल उन्हें और श्रीराम को ही ज्ञात थे। साथ ही उन्होंने कपड़े में बँधी हुई सुन्दर चूड़ामणि भी हनुमान जी को दी। फिर सीताजी उनसे बोलीं - हनुमान!!! अब तुम शीघ्र यहाँ से लौटकर श्रीराम को मेरा समाचार बताओ एवं मेरा दुःख दूर करो। इस पापी रावण ने मुझे यहाँ कैद कर रखा है व प्रतिदिन राक्षसियों द्वारा मुझे बहुत पीड़ा दी जाती है। यह पापी निशाचर बड़ा क्रूर है। मेरे प्रति कलुषित दृष्टि रखता है। फिर भी केवल श्रीराम से मिलने की आस में ही मैं किसी प्रकार जीवित हूँ। तुम श्रीराम से कहना कि वे शीघ्रता करें और यहाँ आकर मुझे ले जाएँ। उन्होंने तो मेरे लिए एक साधारण-से कौए पर भी ब्रह्मास्त्र चला दिया था, फिर वे इस नीच रावण द्वारा मेरा अपमान होने पर भी मौन क्यों हैं? अब मैं इन कष्टों को सहते हुए अधिक काल तक यहाँ जीवित नहीं रह सकती। यह सुनकर हनुमान जी ने पुनः उन्हें सांत्वना दी और उनसे विदा लेकर उत्तर-दिशा की ओर प्रस्थान किया।

आगे अगले भाग में…
स्रोत: वाल्मीकि रामायण। सुन्दरकाण्ड। गीताप्रेस

(नोट: वाल्मीकि रामायण में इन सब घटनाओं को बहुत विस्तार से बताया गया है। मैं केवल सारांश ही लिख रहा हूँ। मैं जो कुछ लिख रहा हूँ, वह वाल्मीकि रामायण में दिया हुआ है। जिन्हें आशंका या आपत्ति है, वे कृपया मूल ग्रन्थ को स्वयं पढ़ें।)

जय श्रीराम 🙏
रविकांत बैसान्दर✍️