कन्या एक कुंवारी थी, |
छू लो तो चिंगारी थी।
वैसे तो तेज कटारी थी,
लेकिन मन की प्यारी🤗 थी।
सखियों से बतियाती थी,
लड़को से घबराती थी।
मुझसे कुछ शर्माती थी,
बस से कॉलेज आती थी।
अंतर्मन डिस्क्लोज😍 किया,
एक दिन उसे प्रपोज🥰 किया।
पहले वह नाराज हुई तबीयत सी ना-साज हुई,
फिर बोली - अभी यह ठीक नहीं!!! अपनी ऐसी रीत नहीं।
लिखने-पढ़ने के दिन है,
आगे बढ़ने के दिन है।
यह बातें फिर कर लेंगे,
इश्क-मोहब्बत👩🏻❤️👨🏼 फिर कर लेंगे।
अभी ना मन को हिट करो,
पहले एम.एफ.ए (M. F.A.) तो कंप्लीट करो।
उसने यू रिस्पांस किया,
प्रपोजल को पोस्टपोन किया।
हमने भी हिम्मत नहीं हारी,
मन में ऊर्जा नई भरी।
रात-रात भर पढ़-पढ़ कर,
नई इबादत गढ़-गढ़ कर।
ऐसा सबको शॉक्ड दिया,
मैंने कॉलेज टॉप🏆 किया।
अब तो मूड🤩 सुहाना था,
उसने मन भी जाना था।
लेकिन उसका राग पुराना था,
फिर एक नया बहाना था।
जॉब करो कोई ढंग की,
फिर स्टेटस की नौटंकी।
कभी कास्ट का पेंच फंसा,
कभी बाप को नहीं जंचा।
थक कर रोज झमेले में,
सोनपुर के मेले में।
एक दिन जोश में आकर के,
कहां उसे जाकर के।
जो कह दोगी कर लूंगा,
कहो हिमालय चढ़ लूंगा।
लेकिन क्लियर बात करो,
ऐसे ना जज्बात हरो।
या तुम हां कह दो,
या साफ मना कर दो।
सुन कर कन्या मौन हुई,
हर चालाकी गौण हुई।
तभी नया छल कर लाई,
आँख में आशु😢 भर लाई।
हिम्मत को कर ढेर गई,
प्रण पर आशु फेर गई।
पुन: प्रपोजल बिट हुआ,
नखड़ा नया रिपीट हुआ।
थोड़ा सा तो वेट करो,
पहले पतला पेट🫄🏻 करो।
ज्वाइन कोई जिम💪🏻 कर लो,
तोंद ज़रा सी डीम कर लो।
खुश्बू🏵️ सी खिल जाउंगी,
मै तुमको मिल जाउंगी।
तीन साल का वादा कर,
निज क्षमता से ज्यादा कर।
हीरो जैसी बॉडी से,
देंसिंग वाले रौडी से।
बेहतर फिजिक्स बना ना लूँ,
छह:(06), छह:(06)🏋️♂️ पैक बना ना लूँ।
सूरत नहीं दिखाउंगा,
तुझको नहीं सताउंगा।
रात-रात भर श्रम कर के,
खाना-पीना कम कर के।
रुखी सुखी खा कर के,
सरपट दौड़🏃🏻 लगा कर के।
सोने सी काया कर ली,
फिर मन में नई उर्जा भर ली।
उसे ढूढ़ने निकल पड़ा,
किन्तु फिर प्रेम में खलल💔 पड़ा।
चुन्नी बांध के छल्ले में,
किसी और के गले में।
वह जूही की कली गई,
किसी और की गली गई।
शादी कर के चली गई,
हाय रे!!! किस्मत छली गई।
थका-थका, हारा-हारा,
हाय!!! मै बदकिस्मत बेचारा।
पल में दुनिया घुम लिया,
हर फंदे पर झूल गया।
अपने आशु 😢 पोछूँगा,
कभी मिलेगी तो पूछूँगा।
क्यों मेरा दिल💔 तोड़ गई,
प्यार जता कर छोड़ गई।
कुछ दिन बाद दिखाई दी,
वो आवाज़🌬️ सुनाई दी।
छोड़ा था नवचंडी में
पाई सब्जी मंडी में।
वो जो एक छड़हरी थी,
कंचन देह सुनहरी थी।
वो कितनी लिजी-लिजी मिली,
बार्गेनिग में बिजी मिली।
वो जो चहका करती थी,
हरदम महका करती थी।
अब दो की महतारी थी,
तीजे की तैयारी थी।
उलझे-उलझे बाल हुए,
बिखड़े-बिखड़े गाल हुए।
दिल के फूटे छालो ने,
इन बेढंगे हालो ने।
सपनो में विष घोला था,
एक हाथ में झोला था।
एक हाथ में मुली थी,
खुद भी फूली-फूली थी।
सब सुंदरता लूली थी,
आशा फाँसी झूली थी।
विधना के ये खेल कड़े,
देख रहा था खड़े-खड़े।
तभी अचानक सधे हुये,
दो बच्चों से लदे हुये।
चिक-चिक से कुछ थके हुये,
बाल वाल सब पक्के हुये।
एक अंकल जी प्रकट हुये,
दर्शन कितने विकट हुये।
बावन इंची (52") कमरा था,
इसी कली का भंवरा था।
बावन इंची (52") कमरा था,
इसी कली का भंवरा था।
तुफानों ने पाला था,
मुझसे ज्यादा काला🌚 था।
मुझसे अधिक उदास😕 था वो,
केवल दशवी पास था वो।
रानी साथ मदारी के,
फूटे भाग्य बेचारी के।
घूरे मेला लूट गये,
तितली के पर टूट गये।
रचा स्वयंवर वीरो का,
मंडप मांडा जीरो का।
आमलेट तवा पर फैल गई,
किस ख़ुशत के गैल गई।
बिना मिले वापस आया,
कई दिनों तक पछताया।
अब भी अक्सर रातों में,
कुछ गहरे जज्बातो में।
पिछली यादें ढोता हूँ,
सब से छिपकर रोता😭 हूँ।
मुझमें क्या कम था ईश्वर,
किस्मत में गम था ईश्वर।
अब भी आशू😢 बहते हैं,
शायद!!! भाग्य इसी को कहते हैं।
शायद!!! भाग्य इसी को कहते हैं।
शायद!!! भाग्य इसी को कहते हैं।
सभार - सोशल मीडिया।
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