सरेआम हमें यूँ,
ईशारा न कीजिए।
नजरें झुका के हमको,
निहारा न कीजिए।
हर बार मुकम्मल,
कहां किसी का ख्याल हुआ है।
हर जगह तीर-ए-तुक्के,
यूँ मारा न कीजिए।
बचपन के तसव्वुर से है,
बिल्कुल अलग ये जहां।
जीवन की हकीकत से,
यूँ किनारा न कीजिए ।
पैदा हुए, पले बढ़े हो,
इस जमीन में।
पा कर बुलन्दियों को,
हमें यूँ भूलाया न कीजिए ।
शायर हो ठीक-ठाक,
परन्तु इंसान बुरे हो।
इस बात को आप,
नकारा न कीजिए।
चलो मान लिया,
वक्त नहीं है आपके पास।
लेकिन गैरो को तो,
यूँ निहारा न कीजिये।
दुःख होता है,
आपको मौन देख के।
कभी तो मेरे लिए,
मुस्कुराया☺️ तो कीजिये।
सरेआम हमें यूँ,
ईशारा न कीजिए।
नजरें झुका के हमको,
निहारा न कीजिए।
विश्वजीत कुमार
Bahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंअति सुंदर गुरुदेव ❤️
जवाब देंहटाएंGreat 💐💐💐
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट
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