शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

सरेआम हमें यूँ ईशारा न कीजिए।



सरेआम हमें यूँ, 

ईशारा न कीजिए 

नजरें झुका के हमको, 

निहारा न कीजिए।


हर बार मुकम्मल, 

कहां किसी का ख्याल हुआ है। 

हर जगह तीर-ए-तुक्के, 

यूँ मारा न कीजिए।


बचपन के तसव्वुर से है, 

बिल्कुल अलग ये जहां।

जीवन की हकीकत से, 

यूँ किनारा न कीजिए 


पैदा हुए, पले बढ़े हो, 

इस जमीन में।

पा कर बुलन्दियों को, 

हमें यूँ भूलाया न कीजिए ।


शायर हो ठीक-ठाक, 

परन्तु इंसान बुरे हो।

इस बात को आप, 

नकारा न कीजिए।


चलो मान लिया,

वक्त नहीं है आपके पास

लेकिन गैरो को तो,

यूँ  निहारा न कीजिये


दुःख होता है,

आपको मौन देख के

कभी तो मेरे लिए,

मुस्कुराया☺️ तो कीजिये 


सरेआम हमें यूँ, 

ईशारा न कीजिए 

नजरें झुका के हमको, 

निहारा न कीजिए।

विश्वजीत कुमार


कविता में प्रयुक्त कुछ शब्दों के अर्थ -

तसव्वुर (पुल्लिंग) - कल्पना।

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