जो पढ़ना जानती थी,
वे प्रेम-पत्रों💌 से ठगी गई।
जो नहीं जानती थी,
वे एक जोड़ी झुमकों से।
चटोरपन की मारी,
एक प्लेट चाऊमिन से।
तेरे हाथों में स्वाद है,
सुनकर ठगी गई वे सारी।
जो पढ़कर भी पकड़ नहीं पाई,
इतिहास का सबसे बड़ा झूठ।
प्रेम में केवल ईश्वर को,
साक्षी मानने वाली।
एक चुराई अलसाई दोपहरी में मिले,
एक चुटकी सिंदूर से ठगी गई।
घर-बाहर दोनों संभालने वाली,
चाभियों के एक अदद गुच्छे से...
ठगी की मारी ये सारी की सारी,
तब-तक खिली रही जब-तक...
प्रेम का वृक्ष ठूंठ हो,
उनकी देह के साथ नहीं जला।
-सुजाता✍️
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