शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

तुम थी या था कोई ख़्वाब!!!



तुम थी या था कोई ख़्वाब,

बस इतना बता दो....

ओ मेरे सपनो के हमराज।

तुम थी या था कोई ख़्वाब


छठ की छुट्टियां थी,

घर जाने को मैं बस में था सवार।

सफर में तुम बन कर आये

मेरे लिये एक दर्शनाथ।


वो सफेदी की लालिमा लिये

चेहरे पर थी एक मुस्कान 😊

पता नहीं तूने मेरे ही दाएं बैठना क्यों चुना,

शायद बाएं बैठने का मन में हो ख़्याल।


छठ के गीतों से पूरा बस था गुलज़ार,

मेरे मन में तो एक ही गीत चल रहे थे।

किसी तरह तुम्हारा,

नाम पता कर लूं मैं ज्ञात।


उसकी ख़ामोशी को देखकर

समझ गया मैं यह बात।

विश्वजीत यूं दिल फ़ेंक ना बन,

करने दे उसे सफर में थोड़ा विश्राम।


यदि वो बनी होगी तेरे लिये,

एक दिन आयेगी जरूर तेरे पास।

अभी कविता तक ही रहने दो,

उसके बारे में मत सोचो बारम्बार।


तुम थी या था कोई ख़्वाब

बस इतना बता दो

ओ मेरे सपनो के हमराज

तुम थी या था कोई ख़्वाब।


विश्वजीत कुमार ✍️

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