पत्थर की चमक है,
न नगीने की चमक है।
चेहरे पे सीना तान के,
जीने की चमक है।
पुरखों से विरासत में,
हमें कुछ न मिला था।
जो दिख रही है,
खून पसीने की चमक है।
........यह घर से निकले हुए लडके है साहब, यह कभी रोते😭 नहीं हैं बस कमाते💰 हैं, रुकते नहीं है बस दौड़ते🏃♂️ हैं....
.....इ सब ना ससुरा!!! इतना दौड़ते हैं, इतना कमाते हैं कि साला इनके पास कुछ बचता😌 ही नहीं है, 20₹ के हवाई चप्पल से लेकर 4000₹ के बाटा के जूते तक का सफर तय करने के बाद भी जब ये अपने गांव/अपने वतन/अपने घर लौटने के उपरांत गमछा और लुंगी पर ही ज़िंदा रहने वाले होते हैं ये लड़के।
काश!!! आपको हम समझा पाते कि घर🏘️ से दूर रहना क्या होता है🥲
हम तो अपनी गलियों के नवाब होते हैं लेकिन परदेश में आते ही मजदूर बन कर रह जाते है।
हीरो वाली 25इंच की साइकिल से चलने वाले ये लड़के पल्सर 150 पर भी तन्हा हो जाते है।
पर्व और त्योहारों में जब घर पर तरह-तरह के पकवान बनते हैं तो दाल, भात और चोखा खाकर, मां से झूठ बोल कर उसे पूरी-सब्जी का नाम देकर रह जाते है। उम्र के इस मोड़ पर अचानक से लड़के बड़े हो जाते है, छोटी बहनों से लड़ना छोड़ उनकी शादी के लिए पैसे इक्कठा करने लगते है।
लड़का से बड़ा बनना इतना भी आसान कहा होता है, घर के चिराग परदेश में रूम नंबर के आधार पर पहचाने जाते है। चार तरह की सब्जी खाने वाले ये लड़के परदेश आते ही मैग्गी एवं चावल पर ज़िंदा रहना सीख जाते है।
घर से दूर अक्सर ये अपने गांव का घर बनाने का सपना देखते रहते हैं। उस पुराने घर की ईट, उस घर का सीमेंट, उस घर का छड़, एकड़ में फैली ज़मीन की चिंता इन्हे होने लगती है। धीरे-धीरे ये गांव से दूर होते जाते है। धीरे-धीरे एकड़ से जमीन बीघा में और बीघा से डिसमिल में। साला!!! पता ही नही चलता है कि किलोमिटर तक चलने वाले ये लड़के कब 10x10 के कमरे में सिमट कर रह जाते है। एक एकड़ में कितने बीघे होते है एक बीघा में कितने कट्ठे होते हैं एक कट्ठा में कितने डिसमिल होते हैं एक डिसमिल में कितना स्क्वायर फिट होता है और एक एक स्क्वायर फीट में हजारों सपने जोड़ने वाले वह लड़के परदेश में 10x10 में के रूम में सिगरेट के धुए🚭 के तले अपना त्यौहार मना लेते हैं।
गांव का वह आम का पेड़, त्रिलोकी चाचा का दलान, सुमारू का चौपाल, कलावती चाची के हाथ का चटनी, माई का खाना, बाबू जी का चप्पल, नुक्कड़ की चाय की दुकान को ये लड़के परदेश में आजकल बड़े-बड़े मॉलों में खोजते हुए नजर आते हैं। वह लड़के आज-कल मॉल में जाकर भी तंहा रह जाते हैं। कुछ कर गुजरने की चाहत आंखों में न जाने कितने सपने कितने अरमान जगाती हैं। इनकी आंखे अचानक से परिवार की जरूरत बन जाती है। 24 घंटे बहनों और छोटे भाइयों से लड़ने वाले ये लड़के अचानक से संजीदा हो जाते हैं। छोटे भाई-बहनों के लिए महंगे-महंगे फोन खरीदने वाले लड़के खुद के लिए सादा मोबाइल सेट पर खुश हो जाया करते हैं यह कहकर इस का बैटरी बैकअप अच्छा है।
खुद के लिए बुलेट🏍️खरीदने से पहले बाबू जी के ज़मीन पर लिया हुआ कर्जा याद करने लगते है। मां-बाप, बहन-भाई के लिए महंगा कपड़ा खरीदने के बाद अपने लिए फुट-पाथ का रास्ता अपना लेते है।
हजारों किलोमीटर दूर, अपनों के लिए रहने वाले ये लड़के हमेशा त्योहारों में तन्हा हो जाते हैं। कभी-कभी जी चाहता है इनका कि बंद कमरे में बहुत तेज रो😢😭 लेे, लेकिन बचपन कि वो नसीयत की लड़कियां रोती है, जो मां ने दी थी इन लड़को को चुप करा देती है और फिर वो वह घुटन, वह दर्द न जाने कितने सालों तक इन्हें रुलाता रहता है।😥
ये लड़के👨💼 है ये रोते😢 नहीं है बस महसूस करते है कि शायद अगला छठ, अगला दिवाली, अगला राखी, अगला होली, घर पर हो..... 😌
अंत में कहना चाहूंगा.... 🗣️
मुश्किल थी संभलना ही पड़ा घर के वास्ते,
फिर घर से निकलना ही पड़ा घर के वास्ते।
मजबूरियों का नाम हमने शौक रख दिया,
हर शौक बदलना ही पड़ा घर के वास्ते।
........अभी कोई पर्व-त्योहार नही है। बस गांव की याद आ रही थी, इसलिए यह सब लिख लिये।
ठीक हैं.......
अब चलते है, ऑफिस में आज बहुत काम था, लेट भी हो गये.....
साभार - सोशल मीडिया
Time ka impatance
जवाब देंहटाएंBahut hi sundar rachana hai
जवाब देंहटाएं💕❣️
जवाब देंहटाएंमंत्रमुग्ध 🤭कर दिया बड़े भईया!
जवाब देंहटाएंकहने को कुछ बाकी कहां रहा अब
पर फिर भी कहना चाहता हूं
किसी शायर ने क्या खूब कहा है..
कि
ये लड़के है जनाब जो
आंखों में आए आंसुओ को
मुसकुराहट की हवा में उड़ाते हैं।।
परेशानियां चाहे हो तमाम
पर सबकी खुशी के लिए
बत्तीशी हर वक्त दिखाते हैं।।😁😊😁
आज की आपकी लेखनी ..
बस
क्या कहूं घर कर गई🤭🤭🤭
बहुत-बहुत धन्यवाद सर 🙏🏻आप बस युहीं मेरे प्रेरणा के स्रोत बने रहें 😌
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