शनिवार, 2 जनवरी 2021

“डायरी के पन्नों से”


               नमस्कार🙏 आप सभी का हमारे Blog पर स्वागत है। आज आप सभी के बीच प्रस्तुत हैं “डायरी के पन्नों से” का बारहवां (Twelve) अंक। इस श्रृंखला को पढ़कर आप मेरे और मेरे कार्य क्षेत्र को और भी बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं। प्रत्येक रविवार को उसी आत्मकथा के छोटे-छोटे अंश को मैं आप सभी के बीच प्रस्तुत करूंगा और मुझे आपकी प्रतिक्रिया (Comment) का इंतजार रहेगा ताकि मैं इसे और बेहतर तरीके से आप सभी के बीच प्रस्तुत करता रहूं।
         "डायरी के पन्नों से" के  दशवां एवं ग्यारहवां (Eleventh) अंक में मैंने आपको अपनी शुरुआती शिक्षा और दशहरा के बारे में बताया था। अब आगे की कहानी..... 
02/09/2016 दिन-शुक्रवार
           शाम के समय मां की डांट सुन कर पढ़ने बैठा करते थे वो भी मिट्टी तेल से लालटेन जलाकर। क्योंकि गांव पर बिजली तो थी लेकिन कभी-कभी आती थी और जब बिजली आ जाए तो सारे कार्य को भुलाकर बस एक ही कार्य याद रहता, वो था- टी०वी० देखना। उस समय मेरे घर पर एक ब्लैक एंड व्हाइट टी०वी० था। जो अब भी है लेकिन वह चलता नहीं है, बस यूं ही रखा पड़ा है। उस समय मेरे घर के आस-पास किसी के भी घर पर टीoवीo नहीं था सिर्फ मेरे ही घर पर था तो जैसे ही लाइट आती सारे बच्चे दौड़ कर मेरे घर आ जाते थे। जिससे मेरी दादी बहुत गुस्सा😡 करती और कहती इतने सारे बच्चों को घर में बुला लिए हो कोई सामान वगैरा चोरी हो गया तो? मैं इन सबसे बेखबर बस टी०वी० देखने और सब बच्चों के साथ खेलने में मग्न रहता। इन सब बातों की मुझे कोई चिंता नहीं रहती थी।
           उर्दू मकतब विद्यालय, करबला बाजार में मुझे पढ़ते साल भर भी नही हुआ था तब तक मेरा नामांकन राजकीय कन्या विद्यालय, कोइरी-गावां में हो गया। वहां की प्रिंसिपल श्रीमती फुल कुमारी जी थी जिन्हें सभी मैडम कहते एक और मैंम थी जिनको हम लोग दीदी जी बोला करते। चूंकि मेरा नामांकन फिर से तृतीय कक्षा में ही हुआ था क्योंकि उर्दू मकतब विद्यालय में मैं तृतीय कक्षा में ही पढ़ता था लेकिन यहां के मैडम ने मेरा और मेरी बहन का नामांकन 2 साल पीछे से लिया था और पूरा रजिस्टर सुधार की हुई थी। अब मैं उर्दू मकतब विद्यालय से राजकीय कन्या विद्यालय कोइरी-गावां में पढ़ने आ गया। साथ में मेरी बहन भी पढ़ती थी। हम लोग साथ ही स्कूल जाते और आते थे मुझे वहां पर एक चीज बहुत ही आश्चर्यजनक लगा वह यह था कि वहां पर एक से पांच तक के बच्चों के पढ़ने के लिए मात्र दो कमरों वाला एक स्कूल था। जिसमें 2 कमरे और एक बरांडा(ओसारा) था। पहली कक्षा के बच्चे एक कमरे में, द्वितीय कक्षा के बच्चे ओसारा में और तृतीय, चतुर्थ और पंचम कक्षा के बच्चे एक कमरे में बैठते थे। उस विद्यालय और उर्दू मकतब विद्यालय में भी बेंच की सुविधा नहीं थी हां उर्दू मकतब विद्यालय में कम से कम कक्षाएं अलग-अलग लगती थी लेकिन यहां पर ग्रुप कक्षाएं मैंने पहली बार देखी। हम लोग अपने साथ अपने थैले और झोले में एक-एक बोरा लेकर जाते थे एवं उसे बिछाकर उसी पर बैठकर पढ़ा करते थे और चप्पल बोरे के नीचे रखा करते। कई बार कई बच्चे शरारत करने के लिए बोरे के नीचे से चप्पल निकालकर कहीं और छुपा देते थे जिससे कि कई बार मुझे भी परेशान होना पड़ा था। 
         राजकीय कन्या विद्यालय को पूरी तरह से संभालने वाली केवल मैडम थी क्योंकि दीदी जी थोड़ी कम पढ़ी-लिखी थी। जिस कारण बच्चे भी कभी-कभी उनका मजाक उड़ाते रहते। कक्षा शिक्षण के दरम्यान कई-बार संस्कृत और अंग्रेजी की किताब उनको देकर उनसे प्रश्न पूछ लेते जिसके बाद उनका गुस्सा पूरे वर्ग को झेलना पड़ता क्योंकि वह छड़ी लेकर सभी को मारती थी इसलिए दीदी जी ज्यादातर प्रथम एवं द्वितीय कक्षा के बच्चों को ही पढ़ाती और मैडम तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम कक्षा के बच्चों को।
होली के दिन मैडम के साथ एक सेल्फी, ये फोटो १०/०३/२०२० का हैं

         कक्षा-संचालन का वहां का नियम भी अद्भुत था। प्रथम कक्षा के बच्चों को बोर्ड पर कुछ लिख दिया जाता था और वह दिन भर उसे ही अपनी कॉपी एवं स्लेट पर उतारते रहते। द्वितीय कक्षा के बच्चों को बस मौखिक ही क्लास मिलता क्योंकि वह ओसारा में बैठते थे और उनके पास बोर्ड नहीं था। हां कभी-कभी बोर्ड की आवश्यकता पड़ती तो उन्हें प्रथम कक्षा के बच्चों के साथ तालमेल करना पड़ता। तृतीय कक्षा जिसमें मैं था और चतुर्थ एवं पंचम कक्षा के बच्चों के पास एक कमरा तो जरूर था लेकिन हम लोग तीनों एक ही कक्षा में बैठते थे। बहुत ही अनोखे तरीके से कक्षाओ का विभाजन किया गया था। बोर्ड को भी मैडम तीन हिस्सों में विभाजित करके पढ़ाती थी। अभी यदि वर्तमान समय की बात करें तो प्रत्येक बच्चों के पास अपना अलग-अलग वर्ग(Class) है और प्रत्येक विषय को पढ़ाने के लिए अलग-अलग शिक्षक भी हैं, फिर भी सरकारी विद्यालयों में बच्चे पढ़ नहीं पाते और उस समय एक ही कक्षा में एक ही शिक्षक के द्वारा हम सभी विषय को पढ़ते थे।

क्रमशः

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