बहुत देर से फोन की घंटी बज रही थी लेकिन पुंकुल गहरी निंद्रा में था। जब उसकी निद्रा टूटी उसने अर्द्धनिद्रा में ही जैसे हेलो कहा उधर से अमन ने चौकते हुए कहा- अरे!!! अभी तक सोए हो? जल्दी उठो, तैयार हो जाओ, नहीं तो ट्रेन छूट जाएगी।
अमन और पुंकुल दोनों पक्के दोस्त थे और आज वह दोनों दिल्ली जाने वाले थे। जी हां!!! वही दिल्ली जिसके बारे में वह बचपन से सुनते आ रहे थे। लाल किला पर देश के प्रधानमंत्री को झंडा फहराते हुए दृश्य को उसने कई बार टेलीविजन पर देखा था। लेकिन आज उसी लाल-किला को देखने की इच्छा इन्हें दिल्ली जाने के लिए विवश कर दिया। कहां भी जाता है कि जब मन में प्रबल इच्छा हो तो वह पूरी भी होती है। लेकिन अमन के लिए दिल्ली जाना आसान नहीं था क्योंकि "दिल्ली दूर है" उक्त बातें बचपन से ही वह सुनते हुए बड़ा हुआ था। घरवालों को मनाना उसके लिए कठिन प्रतीत हो रहा था। घर से इतनी दूर अकेले भेजना उसके घरवालो को स्वीकार नहीं था।पुंकुल ने उसका भरपूर सहयोग किया एवं उसे ढांढस दिलाया कि वह दिल्ली में उसे साथ लेकर जाएगा और उसके एक दूर के रिश्तेदार दिल्ली में रहते हैं उनके रूम पर चलेंगे फिर वही हमें पूरा दिल्ली घुमाएंगे। परेशान होने की कोई बात नहीं है। उसके इस विश्वास पर अमन भी राजी हो गया और दिल्ली जाने की पूरी तैयारी उन दोनों ने लगभग कर ली।
श्रमजीवी एक्सप्रेस जो कि राजगीर से खुलती है और दिल्ली तक जाती है उसी ट्रेन में उन दोनों ने एक दलाल की मदद से ऑनलाइन टिकट बुक कराया था। अमन ने अपने घर पर सभी को बताया कि उसकी परीक्षा दिल्ली में है उसे ही देने वह दिल्ली जा रहा है परीक्षा के नाम पर उसे घर से अनुमति मिल गई उसके मन में यह डर भी सता रहा था कि किसी के द्वारा परीक्षा के प्रवेश पत्र की मांग ना हो जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उसने अपने घर यानी कि शेरपर से एक दिन पूर्व ही सिलाव चला गया ताकि वहां से ट्रेन पकड़ने में आसानी हो। पुंकुल और अमन थोड़ी देर बाद ट्रेन में थे। सीट पहले से ही बुक होने की वजह से उन्हें परेशानी नहीं हुई और आराम से ट्रेन की खिड़की से बाहर का नजारा देखते हुए वे चले जा रहे थे। दोनों के लिए इतनी लंबी यात्रा पहली बार हो रही थी। लंबी यात्रा को देखते हुए घरवालों ने उन दोनों को खाने-पीने की बहुत सी चीजें साथ में दे रखी थी जिसे वे धीरे-धीरे खत्म करते जा रहे थे, क्योंकि उन्हें पता था कि जैसे ही दिल्ली पहुंचेंगे तो वहां से पुनः सभी चीजें तो प्राप्त हो ही जाएगी।
अमन पुंकुल पर आश्रित था यानी दिल्ली में कहां जाना है? किसके पास जाना है? और कहां-कहां घूमना है? ये सभी उसने पुंकुल पर छोड़ दिया था और पुंकुल ने अपने एक दूर के रिश्तेदार पर। कुछ दिनों पूर्व पुंकुल दिल्ली आया था तो उसके एक रिश्तेदार ने उसे दिल्ली घुमाया था। अब वह स्वयं घूमने आ रहा था दिल्ली स्टेशन पर उतरने के बाद उसने मेट्रो से आगे की सफर तय की थी यह उसे याद था इसलिए उसने मेट्रो में जाने की सोची। जैसे ही वह टिकट काउंटर पर गया उसे यह याद ही नहीं रहा कि उसे कौन सी लाइन की टिकट लेनी है यानी रेड, येलो, या ब्लू और ना ही जगह का नाम स्पष्ट हो रहा था फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और मेट्रो से बाहर आकर अमन से बोला कि हम लोग ऑटो से चलते हैं। पूरा दिल्ली देखते चलेंगे। मेट्रो से जाने पर कुछ दिखता नहीं है वह धरती के अंदर-अंदर से चलती है। अमन के लिए तो यह और आश्चर्य था कि कोई ट्रेन धरती के अंदर कैसे चलती है उसे तो बस भारतीय रेल याद आ रहा था जिससे वह अभी कुछ देर पहले यात्रा करके आया था। उसने कहा- ठीक है यात्रा नहीं करेंगे लेकिन चलो कम से कम एक बार देख कर के तो आते हैं कि वह ट्रेन चलती कैसे हैं। पुंकुल बोला:- नहीं हम लोग अंदर नहीं जा सकते अमन बोला- क्यों? प्लेटफार्म टिकट लेकर चलते हैं ना!!! यह बात भी पुंकुल को अच्छी लगी वह लोग पुनः टिकट काउंटर के पास गए लेकिन पता चला कि मेट्रो का प्लेटफार्म टिकट नहीं मिलता है। थक हार कर वो ऑटो में बैठे और अपनी यात्रा शुरू की लगभग 1 घंटे घूमने के बाद ही पता चल नहीं पाया की आखिरकार जाना किधर है। एक पुल के पास ऑटो वाला उन्हें उतार दिया। इस पूरे यात्रा के लिए उसने ₹200/- लिया जिस पुल के पास वो उतरे थे वहाँ आसपास पता किया तो पता चला कि यह वही पूल एवं नाला है जहां रन (Run) फ़िल्म की शूटिंग हुई थी "छोटी गंगा बोल के नाले में कुदा दिया" यह फिल्म का डायलॉग उनके दिमाग में घूमने लगा। अमन सोचने लगा "दिल्ली घुमाऊंगा यह बोल कर लाया था और यहां नाला दिखा रहा है।" अब उन्हें भूख भी लगने लगी थी वहां से पुनः गए दिल्ली जंक्शन जैसे-तैसे आए। वहां उन्होंने देखा कि सामने मकई के बाल (भुट्टा) बिक रहा हैं वह भी बॉयल किया हुआ। आग में पके भुट्टे तो वह अपने गांव में बहुत खाए थे यहां पर पहली बार बॉयल दिखा। भूख तो लगी ही थी। उसका भी स्वाद उन्हें बहुत अच्छा लगा। पुनः वो जैसे-तैसे दिल्ली रेलवे स्टेशन गए और वापस से राजगीर के लिए श्रमजीवी ट्रेन का जनरल टिकट लिया। दिल्ली से तो ट्रेन ससमय ही खुली लेकिन रास्ते में कुछ परेशानी की वजह से दो-तीन घंटा विलंब से राजगीर पहुंची। अमन और पुंकुल वापस घर तो आ गए लेकिन उनकी दिल्ली की यात्रा अधूरी ही रह गई।
विश्वजीत कुमार
अबोध बालको की दृढ़ इच्छाशक्ति का सुंदर वर्णन किया गया हैं। इतना सुंदर वर्णन करने वाले लेखक को बहुत धन्यवाद।
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