मंगलवार, 4 मार्च 2025

तुमसे मुलाक़ात के मौके...


तुमसे मुलाक़ात के,

मौके तो बहुत आए।

कभी हम तो कभी तुम,

व्यस्त ही नज़र आए।


कभी पटना कभी छपरा,

बुलाते थे हमें लेकिन।

किसी दिन तुम नहीं आई,

किसी दिन हम नहीं आए।


राह भटकते रहे,

मंजिल पर पहुँच नही पाये।

कभी इस ओर कभी उस ओर

वो बंधन कभी ख़त्म ना हो पाये।


कभी बिहार कभी यू पी,

में बसें रहे हम।

 किसी दिन तुमने आवाज नहीं लगाई,

किसी दिन हम आवाज नहीं लगायें।


 शेखपुरा से याराना रहा, 

पटना से भी रहा।

 तुम मिलोगी किस ओर, 

हम यह भी समझ नहीं पाए।


तुम्हारे पास आने के, 

सुअवसर भी कम नहीं आए।

 अभी तक हम पावन गंगा के, 

तट पर नहीं आए।


 कभी गंगा कभी यमुना, 

बुलाती थी हमें लेकिन 

किसी दिन तुम नहीं आई,

किसी दिन हम नहीं आए।


विश्वजीत कुमार✍️

 


8 टिप्‍पणियां:

  1. और यू ही कारवा चलता रहा !
    या
    फिर आपलोग कभी मिल भी पाए !

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  2. वाह क्या बात गुरु जी यह कविता तो दिल को छू गया।
    कभी शेखपुरा आइएगा तो मिलेंगे.....

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  3. Wha wha ky bat h.. लेकिन der aaye दुरुस्त आए तो सही

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  4. राह भटकते रहे,

    मंजिल पर पहुँच नही पाये।

    कभी इस ओर कभी उस ओर !!

    वो बंधन कभी ख़त्म ना हो पाये।
    Sach me sir...ye bandhan kabhi khatm nahi hoga....
    Nice poem and Beautiful line....

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