सोमवार, 31 मार्च 2025

शहर से गाँव (देहात) की यात्रा।🚉

       पटना शहर से देहात यानी अपने गांव की यात्रा आज हमें सम्पन्न करनी थी। 02 दिन पूर्व ही हम रांची की यात्रा से पटना वापस लौटे थे लेकिन यात्राएं तो जीवन का हिस्सा हैं उसे हमें जीना ही होता हैं और ऐसे भी यात्रा जब भारतीय रेल के जनरल डब्बे की हो तो रोमांस और भी बढ़ जाता है। पटना से हमारी ट्रैन का समय दोपहर 12:10 था और हम 11:30 तक पटना जंक्शन आ चुके थे। टिकट काउंटर पर बहुत लंबी कतारे थी मैंने भारतीय रेल का मोबाइल एप्प UTS का प्रयोग करते हुए समान्य टिकट कटाया। पटना से घर जाने के लिये अक्सर हम रात्रि के समय का चयन करते थे लेकिन इस बार दिन का किये हैं और पहली बार पटना थावे स्पेशल ट्रैन का भी। ऐसे इस ट्रेन का रनिंग स्टेटस बहुत बढ़िया था जैसे मैंने कल तक का पता किये थे और इसी वजह से इसका चयन भी किये। ट्रैन के सफर में अक्सर मेरे सहयात्री मेरे मित्र बन ही जाते हैं फिर भी रास्ते के लिये मैंने श्री लाल शुक्ल का उपन्यास राग दरबारी ले लिए थे ताकि उसके सहारे एवं ब्लॉग्स लेखन✍🏻 के द्वारा यात्रा के समय को आनंद पूर्वक बिताया जा सके। ट्रैन मैं बैठने के साथ ही मैंने राग दरबारी का अध्ययन शुरू कर दिये।

शहर से गाँव (देहात) की यात्रा।

     चुंकि यह उपन्यास हम 2019 में पढ़ चुके हैं फिर से दोबारा पढ़ने का मौका मिला। उपन्यास में एक प्रसंग है कि "भारतीय रेल ने उसे धोखा दिया था रोज़ की तरह वो घर से 03 घंटे विलम्ब से निकला लेकिन ट्रैन आज मात्र 02 घंटे विलम्ब से ही आकर के चली गई थी" लेकिन हमारी इस रेल ने ज्यादा धोखा नहीं दिया 12:10 के बदले 12:50 में खुली। हमारे कुछ सहयात्री यह सोच कर या देख कर खुश हो रहे थे की यह ट्रेन 01:00 से पहले खुली क्योंकि अक्सर यह ट्रैन 01:00 के बाद ही पटना जंक्शन से खुलती हैं आज इसके 40 मिनट के ही लेट को ही एन्जॉय कर रहे थे। जब ट्रैन फूलवारी शरीफ़ पहुंची उस समय 01:20 हो रहा था, हम लगभग एक घंटे से नॉवेल को पढ़ रहे थे। अचानक से मुझे नींद आने लगी और नॉवेल को अपनी सीट के बगल में रखकर सो😴 गये। नींद भी बहुत गहरी आ गई और हम सपनो के समंदर में गोते लगाने लगे नींद में उस समय व्याधान आया जब मोबाइल की घंटी बजी। उस समय लगभग 04:00 बज रहा था फ़ोन देखा तो पता चला की शुभम का कॉल हैं। उसने पहला प्रश्न यही किया की - भैया कहां जा रहे हैं ? क्योंकि मैंने सोशल मीडिया में "शहर से गाँव (देहात) की यात्रा।🚉" का एक पोस्ट डाल दिया था जिसपर शुभम ने like 💚 भी किया था। मैंने भी पोस्ट के हिसाब से ही जवाब दिया कि - देहात की ओर.... पहले तो वह नहीं समझा फिर मैंने बताया अपने गाँव जा रहे हैं। उसके उपरान्त जिस कार्य से उन्होंने कॉल किया था उसपर वार्तालाप हुई। फ़ोन रखने के उपरांत मैंने महसूस किया की ट्रेन के सभी लोग कुछ अजीब से परेशान थे और ट्रैन रुकी हुई थी। क्योंकि 04:00 बज चुका था तो मेरे अनुमान से एवं ट्रेन के समयानुसार ट्रैन रतनसराय पहुंचने वाली थी लेकिन मुझे अचंभा उस समय लगा जब मालूम चला की अभी तो ट्रैन पाटलिपुत्र ही हैं जब हम सोये थे उस समय 01:30 हो रहा था और अभी 04:20 हो रहा हैं अभी तक ट्रैन पाटलिपुत्र ही हैं। अब मुझे ट्रैन एवं राग दरबारी का वो व्यग्य कि "भारतीय रेल ने उसे धोखा दिया था" स्मरण होने लगा। वहां से ट्रैन 05:00 बजे खुली और हम अपने गंत्वय पर 05 घंटे विलम्ब से पहुंचे। उससे पूर्व अपने सभी सहयात्रीओ से बाते करते एवं उनके अनुभवो को आत्मसात करते रहे। जिंदगी में दूसरे के अनुभव हमें बहुत काम आते हैं इसीलिए मेरी कोशिश रहती हैं की दूसरे के अनुभवो से हमें बहुत कुछ सीखना चाहिए।

        उस ट्रैन में भी मेरे कई सहयात्री थे उसमे से एक का नाम दीपक था जो की पटना से चले थे और उन्हें मांझा उतरना था। चुंकि ट्रेन तो मांझा रूकती नहीं है तो वह पूरी ट्रेन यात्रा में हमसे चेन पुलिंग करने की प्लानिंग करते आ रहे थे। पहले उनमे डर था कि शायद चेन पुलिंग करेंगे तो पुलिस की मार या फाइन देना पड़ सकता है लेकिन जैसे ट्रैन खैरा स्टेशन से पार की लोगो के द्वारा चेन पुलिंग की घटनाएं बढ़ती गई और दीपक का मोटिवेशन भी बढ़ता जा रहा था। उन्होंने मुझसे कहा कि आदमी दूसरे को देखकर के ही सीखता है। मेरी एक बार ईच्छा हुआ कि उन्हें नीति-शास्त्र का पाठ पढ़ाये क्योंकि बातचीत से मालूम चला कि वह BPSC की तैयारी कर रहे हैं और पटना में ही रह कर के क्लास करते हैं। लेकिन मैंने पुन: छोड़ दिया क्योंकि दोपहर से हर कोई ट्रैन में बैठे-बैठे परेशान हो गया था और इस समय कोई भी उपदेश सुनने वाला नहीं था। फिर भी हम कुछ बोलते उससे पूर्व उनका कॉल आ गया और वो कोई जमीन की खरीद बिक्री की बातो में व्यस्त हो गए। उनके फोन वार्तालाप से यह भी मालूम चला की वह कोई जमीन की रजिस्ट्री के लिये स्पेशल पटना से आ रहे हैं। 

     हमारे सीट के ठीक सामने दूसरे सहयात्री के रूप में एक आंटी जी बैठी हुई थी जो की 02 आदमी की बैठने की जगह को घेरे हुये थी उनके ठीक सामने एक दुबले-पतले अंकल जी बैठे हुये थे जो की अपने सामने आंटी जी के बैठे होने की वजह से थोड़े असहज से महसूस कर रहे थे। अचानक से मुझे आंटी जी की क्रकश आवाज़ सुनाई पड़ी। दरअसल मामला यह था कि अंकल जी ने बस आंटी जी को इतना बोल दिया कि - "आप अपना पैर मेरे सीट पर मत रखिये", दरअसल बात इतना रहता तो कोई और बात रहती लेकिन उसके बाद अंकल जी ने जो शब्द बोला वह आंटी जी को सीधे जाकर लगा था और वह यह था की आपका पैर साफ नहीं हैं, उसमें धूल लगा हैं इससे मेरे कपड़े गंदे हो गये। मुझे उस समय महसूस हुआ की कोई भी औरत अपनी शारीरिक सुंदरता को लेकर कभी भी बुराई नहीं सुन सकती चाहे वो उसके पैर ही क्यों नहीं हो। आंटी जी ने जो बोलना शुरू किया तब पूरी बोगी ख़ामोश हो गई। आंटी जी ने बोलते - बोलते कहां - हमरा गोड़ (पैर) में माटी लागल बाs आ तोरा में का क्रीम लागल बाs कुछ यात्रियों ने उन्हें समझाया की आरे!!! आंटी जी, क्यों गुस्सा हो रहे हैं। एक तो ट्रेन इतनी लेट है कृपया शांत रहिए। तो आंटी जी ने उसी धुन में कहां की हम काहे शांत रहे, ई हमरा काहे बोला!!! फिर उसी अंकल की ओर मुख़ातिफ़ होकर पुन: बोलना शुरू की "हमरा गोड़ में गुह लागल बा आ तहरा में का मोती"। अंकल जी कुछ बोलने को उत्सुक हुये लेकिन फिर पता नहीं क्या सोचकर शांत हो गए। आंटी जी भी धीरे-धीरे बोलते बोलते थक गई थी उन्होंने बोतल से पानी निकाला और पानी पी करके फिर अपने आसपास बैठे लोगों से बात करने लगी। कुछ देर बाद फिर उसी आंटी जी का मुझे जोर से ठठाकर हंसने की आवाज सुनाई दी। मुझे महसूस हुआ की इंसान अपने गम एवं दुःखो को कितना जल्दी भूल जाता हैं लेकिन जब मैंने अंकल जी को देखा तो अभी भी वह उसी मुद्रा में सर को झुकाए हुए बैठे थे। इस घटनाक्रम से मुझे एक चीज समझ में आया कि हमें या तो आंटी जी की तरह गम को भुलाते हुये ठहाका😂 लगाना है या फिर अंकल जी की तरह उसे पास में रखकर सर को झुकाये😔 बैठना हैं। यह निर्णय हम पर निर्भर करता हैं।


   हमारे सहयात्रीयों में एक बड़ी सी मुस्लिम फैमिली भी थी जो ये सोच कर पटना से ट्रैन में बैठे थे की शाम को घर पर रोजा तोड़गे लेकिन यह कार्य उन्हें ट्रैन में ही करना पड़ा क्योंकि ट्रैन 04-05 घंटे विलम्ब से चल रही थी और भारतीय रेल को यात्रियों को हुई इस असुविधा के लिये खेद था।

       दीपक जी उस समय तक अपनी फ़ोन कॉल से बाते कर के फ्री हो गए थे और हम से बोले की - दलाल का भी कार्य अच्छा हैं आराम से एक महीने में 40 से 50 हजार की आमदनी हो जाती हैं और कई बार उससे भी ज्यादा। मैने उन से कहां की यह भी तो हो सकता है कि किसी महीने में आमदनी ना भी हो।

उन्होंने कहां - हां, पॉसिबिलिटी तो यह भी हैं।

फिर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा कि - देखिए यह कार्य जो है ना वह बरसात की तरह हैं कभी इतना पानी आ जायेगा की आप उस में डूब भी सकते हैं और कभी इतना कम की आप प्यास से मर सकते हैं। जबकी सरकारी नौकरी या कोई पेशा जिसमे एक निश्चित रकम हमें हर महीने प्राप्त होती हैं वह एक कुएँ की तरह हैं। आपको जब कभी भी जितनी पानी की आवश्यकता हो उतना आराम से निकाल सकते हैं। मेरी यह भारी-भरकम बातें उसे समझ में आई कि नहीं यह तो मुझे नहीं पता लेकिन उसने Hmmm में सर हिला दिया।

उस समय रात का 09:30 हो रहा था रतन सराय स्टेशन पर मैंने भैया को घर से बाइक लेकर आने को बोल चुके थे। मैंने उन्हें 30 मिनट पहले ही कॉल कर दिया था क्योंकि घर से भी आने में उन्हें लगभग 40 मिनट का समय लगता। लेकिन ट्रेन में हो रही चेन पुलिंग की घटनाओं की वजह से हम स्टेशन और 01 घंटे लेट पहुंचे। उन्हें स्टेशन पर ही लम्बा इंतजार करना पड़ा। रतन सराय स्टेशन जैसे ही हम ट्रेन से उतरे वैसे ही दीपक ने मुझसे अपना मोबाइल नम्बर शेयर करने का अनुरोध किया। मैंने उसको दो बार अपना मोबाईल नम्बर बोला - 79035*****.  लेकिन उसने दोनो बार गलत टाइप किया। फिर मैंने उसका मोबाइल लेकर अपना नंबर डायल किये और कॉल भी कर दिये ताकि उसका भी नंबर मेरे पास आ जाए। जाते - जाते मैंने Good Night एवं आगे की यात्रा के लिये Happy जर्नी भी बोला लेकिन मुझे क्या पता था की उसकी ये आगे की यात्रा आसान नहीं होने वाली हैं।

    "दरअसल हुआ ये की मांझा में उसने चेन पुलिंग करने की कोशिश की और उसकी यह कोशिश बेअसर रही उसे CRPF वालों ने पकड़ लिया और थावे तक ले कर के गये जबकी वह नियमत: या तो मेरे साथ रतन सराय में उतर जाता या फिर गोपालगंज क्योंकि यहां से मांझा नजदीक पड़ता है। लेकिन उसका या तो नसीब ही खराब था या फिर कोई सिख की आगे से कभी गलत कार्य नहीं करना हैं। इस पुरे प्रक्रिया में उसके समय के साथ-साथ धन की भी हानि हुई।" 

उक्त सारी बाते मुझे ऐसे पता चली की रात के 11:00 बजे जब हम घर पहुंच गए तो उसे व्हाट्सएप पर मैसेज किये -


I hope you reached home safely.


उसने सुबह 06:00 बजे रिप्लाई दिया।


Yes.


मेरा अगला प्रश्न था -


👍🏻

मांझा में चेन पुलिंग 😊


अबकी बार उसने रिप्लाई नहीं दिया बल्कि कॉल करके अपनी पूरी घटना का विस्तार पूर्वक वर्णन किया जिसे संक्षेप में मैंने आपको ऊपर 👆🏻 बताया हैं।

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