उक्त बाते 2003-04 की हैं, हमारे विद्यालय में कक्षा 01 से 05 तक थी लेकिन शिक्षक केवल 02 एवं वर्ग भी 02 ही थे। बाकी कक्षाएं इसी पीपल पेड़ के नीचे ही संचालित होती थी। जब कभी बरसात हो या ठंड ज्यादा हो तो हम सभी ग्रुप क्लास करते थे यानी वर्ग 01 एवं 02 एक साथ और 03, 04 & 05 एक साथ।
गाँव की चीजें बहुत जल्दी नहीं बदलती यहां विकास की गती थोड़ी धीमी होती हैं। 20 वर्ष उपरान्त आज भी वही ब्रह्म बाबा हैं यूँ ही सभी को आशीर्वाद देते हुये बदलाव बस यही हुआ है कि अब कक्षाओ का संचालन इनकी छांव में नहीं होता बल्कि दो मंजिले बने भवनो में होता हैं। जिसमे आधुनिक सभी चीजें उपलब्ध हैं शिक्षकों की भी कमी नहीं हैं, कमी है तो बस उस ईच्छा शक्ति की जिसे कभी केवल 02 मैदम मिलकर ही पूरा करती थी। हमारे समय का वो 02 कमरो वाला भवन भी विरान पड़ा हुआ हैं मालुम चला की अब उस में रसोईघर एवं भंडार गृह हैं।
आज पुन: इस जगह पर आकर अपनी पुरानी सारी यादो के समंदर में गोते लगाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ एवं वापस लौटते समय धनपाल भाटिया जी के शब्द कानो में गूंजते रहे।
"गांव के बच्चों की सफलता के पीछे
मां की चप्पल का अनुशासन, बाप के जूते की मेहनत,
और गुरु के गंगाराम (डंडे) का मार्गदर्शन होता है।"
मैं अपने आप को बहुत गौरवशाली मानता हूं कि इन तीनों का मार्गदर्शन मुझे हमेशा से प्राप्त होता रहा।
Spr🙏✌️✌️🙏🎉
जवाब देंहटाएंBahut hi sundar rachna
जवाब देंहटाएंसाधो 🙏😊🙏
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