बुधवार, 13 मार्च 2024

Heritage walk (हेरिटेज वॉक)

    08 मार्च 2024 को शाम 04:33 में Nift Patna के ऑफिशियल व्हाट्सएप ग्रुप में हिंदी में एक मैसेज आता है - "अमूमन इस ग्रुप में सारे मैसेज इंग्लिश में ही आते हैं, संभवत: पहली बार कोई मैसेज हिंदी में आया था।" मैसेज में यह लिखा था कि 10 मार्च को दिन के 10:00 बजे से हेरिटेज वॉक का आयोजन किया जा रहा है। मेरे जन्म की तिथि 10 हैं और 10 का मूलांक 01 होता है, इस 10 अंक के साथ अब घनिष्ठता (Closeness) सी हो गई है। मैंने बिना 10 Min. विचार किये, 10 सेकंड में ही इस हेरिटेज वॉक में सम्मिलित होने के लिए सहमति दे दी लेकिन 10 घंटे बितने के बाद भी जब कोई जवाब नहीं आया तो मैंने जयंत सर पूछा कि - कल आयोजित होनेवाले हेरिटेज वॉक का क्या हुआ???

 सर ने बोला कि वह मेरा नंबर उन्हें शेयर कर दिए हैं, उनके द्वारा मुझे कॉल किया जाएगा।

 तय समय सीमा के अनुसार रविवार को 10:00 बजे से हेरिटेज वॉक शुरू होने को था इसलिए शनिवार को रात के 10:00 बजे ही सो गए ताकि सुबह में जल्दी उठ सके।

रविवार की सुबह जब 08:00 बजे तक कोई कॉल नहीं आया तो हम समझ गए कि लगता है कोई हेरिटेज वॉक नहीं होने वाला है और हम किचन में जाकर अपना पसंदीदा कार्य "कुकिंग" स्टार्ट कर दिए। सब्जी लगभग बन चुका था और पहली रोटी बनने ही वाली थी कि तभी व्हाट्सएप पर कॉल आता है। उस समय 08:41 हो रहा था। वह कॉल, भैरव दास सर का था। सर ने अपना परिचय देने के बाद कहां कि हम 09:15 से 09:30 तक चिरैयाटाड़ पुल को पार करेंगे, आप राजेंद्र नगर साइड में आ जाइए। हम आपको वही से पिक-अप कर लेंगे।

बिना नाश्ता किये ही 09:30 AM तक, हम चिरैयाटाड़ पुल के पास पहुंच गये थे। 10:01 मे सर का पुन: कॉल आता है कि 30 सेकंड में हम आपके पास पहुंच रहे हैं। बस में 10 से ज्यादा लोग थे। बस जैसे-जैसे आगे बढ़ते रही, लोगों की संख्या भी बढ़ती रही। कुछ दूर आगे जाने के उपरांत एक जगह बस रुकी और हमलोगो से कहां गया कि "अrunodaya एक उड़ान" की कुछ बच्चियों भी कादंबिनी सिन्हा मैम के साथ हमारे इस यात्रा में सम्मिलित होगी। भैरव सर ने हम सभी से अनुरोध किया कि तब तक वह सभी यहां पर आते हैं तब तक आप सभी अपना-अपना परिचय दे दीजिये। एक-एक करके हम सभी ने अपना परिचय दिया। उसके उपरांत भैरव सर ने नेपाली मंदिर की विशेषता और उसकी ऐतिहासिक महत्ता को समझाया।

  सबसे पहले हम सभी कौनहारा घाट पहुंचे, कौनहारा घाट गंडक नदी (जिसे नारायणी की भी संज्ञा दी गई है।)  के तट पर हाजीपुर वैशाली की तरफ स्थित है।


 गज एवं ग्राह के युद्ध की कहानी हम कई बार पढ़ चुके हैं यहां आने के बाद मुझे ज्ञात हुआ कि इन दोनों की लड़ाई में हारा कौन? और जीता कौन ? इसी जिज्ञासावश इस घाट का नाम कौनहारा घाट हो गया। चूंकि हमलोगो की यात्रा यहां से शुरू हो चुकी थी इसलिए एक ग्रुप फोटोग्राफ लेने के बाद हम नेपाली मंदिर की ओर अग्रसर हुये।


 नेपाली मंदिर के बाहर एक बोर्ड था जो की बहुत मुश्किल से अपने आप को एक दीवार के सहारे संभाला हुआ था। उस बोर्ड के ऊपर वैधानिक सूचना - पट्ट को ही हम अच्छे से पढ़ पा रहे थे उसके बाद के लिखे शब्द समय के साथ धुंधले पड़ गए थे, जैसे कि हमारी हेरिटेज इमारतें।

 नेपाली मंदिर जिसे स्थानीय भाषा में नेपालीयां मंदिर भी कहा जाता है, नागर शैली में ईंटों से बना एक मंदिर है। इसे नेपाल के महाराजा ने लगभग 250 साल पहले सैनिक छावनी के तौर पर निर्माण कराया था। 2014 में मुझे मध्य प्रदेश के खजुराहो के मंदिरों को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। आज इस नेपाली मंदिर को देखकर खजुराहो की सारी स्मृतियां पुन: ताजा हो गई। खजुराहो में मंदिरों के ऊपर जो भी आकृतियां बनाई गई है उसका आधार शैल (Stone) हैं जबकि नेपाली मंदिर में आकृतियों का आधार काष्ठ (Wood) है। यहां आने के उपरांत मुझे यह भी ज्ञात हुआ कि इस मंदिर को उत्तर का खजुराहो भी कहा जाता है।

 आज के इस डिजिटल युग में भी हमारे यहां के प्रेमी जोड़ों को अपने दिल💌 का हाल बयां करने के लिए शायद सोशल मीडिया भी कम पड़ जाता है तभी तो वह, यहां स्थित हेरिटेज इमारते को अपना निशाना बनाते हैं। और दीवारों को कुरेद कर अपना एवं अपने महबूबा का नाम लिखकर यह समझते हैं कि मैंने अपने प्यार को सर्वोच्च स्थान पर पहुंचा दिया लेकिन उनके इस कार्य से कितनी क्षति होती है शायद इससे वो अनभिज्ञ रहते हैं। नेपाली मंदिर की दीवारों पर भी मुझे ऐसा ही कुछ प्रसंग दिखा। अचानक से मेरी नज़र एक टाइपोग्राफी पर रुक गई, वहां लिखा था - MOM & DAD LOVE 03/03/2024. इसने तो बकायदा तिथी भी बता दी थी। इस पर क्या लिखे,......✍️

 ......हम मंदिर के अंदर प्रवेश किये। अंदर का दृश्य ऐसा था कि एक के ऊपर दूसरा नाम अधिव्यापन (Overlap) हो रहा था। हम सुने एवं देखे थे कि शिव मंदिर में पूजा करने के उपरांत भक्तगण नंदी जी के कान में अपनी इच्छाओं (wishes) को कहते हैं, ताकि वह शिवजी के पास तुरंत पहुंच जाए। लेकिन यहां तो उनके भक्तगण सीधे दीवार पर ही अपनी इच्छाएं व्यक्त कर दिए हैं ताकि दिन-रात शिवजी इसे पढ़ते रहे एवं उन्हें जब समय मिले तत्काल पूरा कर दे।

 नेपाली मंदिर के पास में ही श्री विशालनाथ महादेव मंदिर था उसका भी दर्शन करते हुए हम लोग कबीर आश्रम की ओर बढ़े। यहां पर हमें श्री श्री १०८ बाबा निर्मल दास जी साहेब की जिंदा समाधि स्थल दिखी। सबसे आश्चर्य हमारे लिये यह रहा की यहां पर नौ ग्रहो को समर्पित 1640 ई० मे निर्मित एक नवग्रह कुआं दिखाई दिया। दावा यह था की ग्रहों के हिसाब से ही जल का सेवन किया जाता है। ग्रहों का तो नहीं पता लेकिन जल का टेस्ट हमने भी ले लिया।😊

 पुनः हम सभी बस में बैठे और 16वी शताब्दी में निर्मित पत्थर की मस्जिद देखने पहुंचे। सफेद रंग की चादर ओढ़े वह मस्जिद बहुत ही अलौकिक लग रहा था। पटना सिटी में स्थित पत्थर की मस्जिद मैंने सुना था आज पता चला कि हाजीपुर में भी पत्थर की मस्जिद है और इन दोनों का निर्माण एक ही कालखंड यानी कि मुगल काल में किया गया है। एक और बाद मुझे पता चली जिसकी सत्यता पर मुझे भी एवं बताने वाले को भी थोड़ी शंका थी। वह यह थी कि "इस पत्थर की मस्जिद से लेकर पटना सिटी में स्थित पत्थर की मस्जिद तक एक सुरंग का निर्माण किया गया था ताकि नमाजी एक मस्जिद से दूसरे मस्जिद तक आसानी से आ जा सके।"

 वहां से निकलने के बाद हम सभी सीधे सोनपुर पहुंचे। हमारे लंच की व्यवस्था वही पर की गई थी। सोनपुर के घाटों का सौन्दर्यकरण बहुत ही बेहतरीन किया गया था। इस हेरिटेज यात्रा में जय भास्कर जी से परिचय हुआ। उनसे यूट्यूब, वेबसाइट एवं ब्लॉगस्पॉट पर लंबी बातचीत हुई। सोनपुर के घाटों पर हमने बहुत सारी तस्वीर भी खिंचवाई। घाट पर घूमते हुए मेरी नजर एक दुकान पर गई जिसका नाम था - बेवफा चाय वाला I ❤️ Sonpur "प्रेमी जोड़ो के लिए ₹15 की चाय" "प्यार में धोखा खाये लोगो के लिए ₹10 की चाय" क्योंकि यह दोनों ऑफर मेरे ऊपर फिट नहीं हो रहे थे इसीलिए हम आगे बढ़ते रहे। रास्ते में हमें नौका स्टेशन, पौराणिक एवं ऐतिहासिक कष्टहरिया घाट, एवं आपरूपी गौरी शंकर मंदिर दिखाई दिया। सबके दर्शन कर हम आगे बढ़ते रहे।

 उस समय तक दो बज चुका था, और हमारे सामने CHAUPATI RESTURENT दिखा। अचानक से मुझे ध्यान आया कि सुबह से तो कुछ खाये ही नहीं है। खैर!!! रेस्टोरेंट के अंदर पहुंचे। इत्तेफाक कहिए या फिर संयोग मेरे टेबल का नंबर 05 था जो की मेरा लकी नंबर भी हैं।


 लंच करने के उपरांत फिर हम बाबा हरिहर नाथ के दर्शन करने गए। हमारी आज की यह यात्रा मेरे लिए एवं संभवत: सभी लोगो के लिए भी एक अविस्मरणीय पलों में से एक रही। इसी आशा एवं उम्मीद के साथ वापस पटना की ओर लौट चले की हम सभी एक बार फिर से ऐसे ही किसी और यात्रा में सम्मिलित होंगे।

धन्यवाद 🙏🏻


नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर आप इस हेरिटेज वॉक के सभी फोटोग्राफ आप प्राप्त कर सकते हैं।👇🏻

Photograph Link


1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुंदर लिखा है आपने, यात्रा की वो स्मृतियां आपके इस पोस्ट को पढ़ कर पुनः ताज़ी हो गईं.

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