सोमवार, 11 मार्च 2024

बीणा का आविष्कार (Invention of Harp)


 भारतीय शास्त्रीय संगीत में सात स्वरों का मूलाधार वैदिक काल से है। इन स्वरों का महत्व उनके ध्वनिक और आध्यात्मिक परिणामों में है और यह सनातन परंपरा में भगवान शिव के साथ गहरा संबंध रखता है। भगवान शिव को नादब्रह्म (संगीत का दिव्य स्वरूप) के रूप में भी जाना जाता है। उनके ध्वनि का महत्वपूर्ण स्थान है और सात स्वर उनकी महिमा को दर्शाते हैं।

माता पार्वती के साथ भगवान शिव का संबंध स्त्री-पुरुष संबंध की सर्वाधिक मानक स्वरूप है। एक-दूसरे के संग उनके कोमल प्रणय समय बिताने की अनेक कथाएं हैं, जिसमें संगीत का आनंद भी शामिल है। इन कथाओं में, भगवान शिव कई बार संगीत वादन करते हुए दिखाए गए हैं। भगवान शिव अपने संगीत को समयानुसार माता का मनोरंजन और ध्यान साधना दोनों का जरिया बनाते थे।

इस पेंटिंग में मैंने भगवान शिव को बीणा बजाते हुए माता पार्वती के साथ मग्न दिखाया है। वाद्य यंत्रों में से इस तस्वीर के लिए मैंने बीणा को इसलिए चुना क्योंकि बीणा का आविष्कार महादेव द्वारा बताया जाता है। डॉ अशोक कुमार अमन अपनी पुस्तक भारतीय संगीत का इतिहास-भाग एक के पृष्ठ संख्या-१५४ में वीणा के आविष्कार पर लिखते हैं - "एक बार देवी पार्वती को श्री महादेव ने इस प्रकार शयन करते हुए देखा कि उनके दोनों हाथ दोनों छातियों पर रखे हैं और वे सीधी सो रही हैं, महादेव ने पार्वती की दोनों छातियों के रूप में दो तुम्बे और हाथों को डांड के रूप में बनाकर बीणा तैयार की और चूड़ियों के स्थान पर तरबें लगा दी। इस प्रकार बीणा का आविष्कार हुआ।"

इस तस्वीर में महादेव और माता के संबंध के कोमल संगीतमय ध्यान मुद्रा के माध्यम से मैंने दांपत्य जीवन के मधुर रस को प्रस्तुत करने की कोशिश किया है।

आप सबों की आशीर्वाद, सलाह और समीक्षा की कामना के साथ।


रीतिका (०८-०३-२०२४)✍️


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें