बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

People's Thoughts About Me!!!



       बिहार के सीवान जिले के अन्तर्गत कोइरीगांवा में 14-06-1993 को जन्में विश्वजीत कुमार की रूची कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में बचपन से ही रही हैं। इन्होंने अपनी शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय एवं बड़हड़िया से प्राप्त कर अंबिका दादा हाई स्कूल छित्रवलिया सारण से मैट्रिक एवं के० सी० महाविद्यालय रिविलगंज, सारण से इंटरमीडिएट करने के उपरांत पटना विश्वविद्यालय, पटना से बी०एफ०ए० एवं काशी विद्यापीठ वाराणसी से एम०एफ०ए० पूर्ण कर वर्तमान में मणिपुर इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से Ph.D. कर रहे है। इनका APPLICATION NO.- MIU/PHD/2022/S031C हैं। इसके अलावा मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर के अधीन स्वं वित्तपोषित साई कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग, ओनामा, जिला- शेश्वपुरा में सहायक प्राध्यापक के पद पर 01 DEC. 2017 से 23-08-2021 तक कार्यरत रहे। वर्तमान में यह पाटलीपुत्रा विश्वविद्यालय, पटना के अधीन स्वं वित्तपोषित इस्लामिया टी० टी० (बी०एड०) कॉलेज फुलवारी शरीफ पटना में कार्यरत हैं। इन्होंने अपनी इस छोटी उम्र में ही बहुत सी ख्यातियां प्राप्त की है। जैसे- चित्रकला में राज्यस्तरीय तक पुरस्कार पाना एवं छायांकन में राज्यस्तरीय से राष्ट्रीय स्तर तक पुरस्कार के अलावा और भी कई पुरस्कार सम्मिलित हैं। इन दिनों वे साहित्य के क्षेत्र में भी कार्य कर रहे हैं।

अवधेश कुमार वर्मा 
वैज्ञानिक सहायक - एफ़ 
भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, 
तारापुर महाराष्ट्र


      साई कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिग के सभी संकायों में से आपकी छवि सर्वाधिक उत्कृष्ट है। जैसा कि आपका नाम 'विश्वजीत' है जिसे आपने वास्तव में चरित्रार्थ किया है, क्योकि आप महाविद्यालय के प्रत्येक छात्र- छात्राओं के 'मन को जीतने' में भली प्रकार से सफलता प्राप्त की है।

       'विषय' से संबंधित ज्ञान में आप पूर्ण है तथा आपकी शिक्षण विधि उत्तम हैं। आपका व्यक्तित्व सभी को आकर्षित करती है क्योंकि आपके द्वारा बनाया गया चित्र आकर्षक होती है।

      आपकी सबसे बड़ी विशेषता आपकी 'मुस्कान' (😊) है जो आपको आकर्षक बनाती है और सभी को अपनी ओर मोहित कर लेती है। आप अपने कार्यों के प्रति पूर्ण निष्ठा भाव से समर्पित है जो आपको सफलता के शिखर तक अवश्य रूप से पहुँचाएगी।

आपका प्रिय छात्र एवं शुभचिंतक

Binit kumar 
17B 118 B.Ed. 2017-19



आदरणीय गुरुदेव,
                             प्रणाम 🙏🏻

       मैं, कुन्दन कुमार वर्मा, पिता - श्री विजय कुमार वर्मा, घर - महादेव नगर शेखपुरा, बिहार, वर्ग- B.Ed., सत्र-2018-20, क्रमांक - 18B222 उत्तीर्ण वर्ष - 2021, प्राप्तांक - 77%.

    मेरी इस शैक्षणिक क्रिया का शुभारंभ साई कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग, ओनामा, बरबीधा, शेखपुरा से हुआ। जिसमें मैने जब नियमित कॉलेज जाना शुरू किया, तथा पठन-पाठन की प्रक्रिया में शामिल हुआ, तो मैने अपनी कोर्स एवं विषय से संबंधित बारिकियों, शिक्षण क्रिया, शिक्षणविधि, कक्षा-कक्ष, यहाँ के प्राचार्य महोदय, प्रशासन, छात्र-छात्राएँ, तथा मुख्य रूप से यहाँ के शिक्षकों को जानने तथा उनसे सीखने का सौगाज्य प्राप्त हुआ। जिसमें मैंने अपने जीवन, अपनी शिक्षण की अवधि, तथा अपनी पुरी शैक्षणिक प्रक्रिया में बहुत कम ही विशेष शिक्षको से सीखने तथा पढ़ने का मौका मिला, जो अपने आप में ही सर्वश्रेष्ठ  है, और वो कोई और नही वो है, "विश्वजीत सर" यानि आप महाशय!

      जैसा कि आपका नाम "विश्वजीत" है, वैसी ही आपके पास पुरे विश्व को जीतने की अद्‌भूत क्षमता है।

महाशय,
     आप एक शिक्षक के साथ एक प्रतिभाशाली कलाकार, चित्रकार, मूर्तिकार, तकनीशियन, पेंटर, दार्शनिक, लेखक, अभिप्रेरक तथा एक कुशल मार्गदर्शक व्यक्ति है जिसे हम एक "पेशवर शिक्षक" के रूप में संबोधित कर सकते है। आपके पास ज्ञान, कला, कौशल, तकनीक, विषय संबधी ज्ञान आदि इतना है की इसे शब्दों में बयाँ नही कर सकता

      आपकी इन सारी कला कौशलो को तथा तथा शिक्षण क्रिया को मैनें आपके सानिध्य में रहकर शिक्षण प्रक्रिया के माध्यम से सीखा एवं जानकारी प्राप्त की, जिसके फलस्वरूप ही मैंने अपनी B.Ed. कोर्स की पठन अवधि में अच्छा प्राप्तांक लाकर सफल हुआ

      आपके द्वारा पढ़ाया गया तथा दिखाया गया मार्ग आज भी मेरे जीवन में बहुत बड़ा महत्व रखता है। मैं आपको अपना आदर्श मानता हूँ। मैं जब भी कभी अपने जीवन में किसी कार्य में निराशा को पाता है, आज भी आपके द्वारा दिखाया गया मार्ग तथा शिक्षा का उपयोग कर उसका सामना करता हूँ।
मुझे आज भी आपका निर्देशन तथा मार्गदर्शन मिलता है, जिसे पाकर मैं भी अपने जीवन में सफलता पाने की ओर अग्रसर हूँ

महाशय,
    आपके द्वारा बनाया गया चित्र, स्केच, कोलाज, कला से संबधित बारिकियाँ, पठनशैली, अनुशासन, पाठ्‌यक्रम से संबधित ज्ञान, कला शिक्षा का उपागम, शिक्षण विधि, नेतृत्व क्षमता, अपने आप में श्रेष्ठ है, जिसे आपकी मुस्कान और भी आकर्षक रूप से प्रस्तुत करके किसी को भी सीखने, जानने तथा समझने के लिए प्रेरित करती है।

     आप अपने कार्यो के प्रति पूर्णरुपेण समर्पित, अनुशाषित, कुशल, जिम्मेदार एवं पेशेवर है, जिससे कोई भी व्यक्ति आपको समझकर तथा जानकर आपकी प्रतिभा से सीख सकता है, यही कला, आपको हमेशा सफलता के मार्ग पर, बिना किसी बाधा के, आपको अग्रसर रखेगा।

इसी कामना के साथ

आपका आज्ञाकारी एवं प्रिय छात्र 
Kundan Kr. Verma 
B.Ed. Roll - 188222.
सत्र-2018-20


        साई कॉलेज ऑफ टीजर्स ट्रेंनिग ओनामा, शेखपुरा (बिहार) में सहायक प्राध्यापक तो बहुत हैं पर मेरे लिए आपकी छवि सर्वश्रेष्ठ रही। महाविद्यालय में आने से पूर्व मेरे जीवन में कुछ ही शिक्षकों के व्यवहार का गहरा प्रभाव पड़ा था और जब महाविद्यालय में मैंने D.El.Ed. में नामांकन, लिया तो आपका व्यक्तित्व को अपने आप में समाहित करने का प्रयास किया। मेरी इच्छा है कि मेरे भावी जीवन पर आपके चरित्र निर्माण की प्रक्रिया, संघर्ष, सहयोग आदि का प्रभाव पड़े जिससे की मैं भी अपने लक्ष्य प्राप्ति की और अग्रसर रह सकूँ ।

       आप सिर्फ कला के ही शिक्षक नही है, बल्कि आप छात्रों के जीवन में प्रगति एवं उन्नति देने के भी कलाकार है। छात्रों की समस्या को बताने से पूर्व ही आप उनकी समस्या को जान लेते थे तथा उन समस्या को अपनी मुस्कान के साथ आसानी से हल कर देते थे।

       आप अपने ज्ञान में पूर्ण है तथा अपने शिक्षण विधि से कई विद्यार्थियों के जीवन को भी बदल दिए हैं। आप अपने कार्यों के प्रति निष्ठाभाव से समर्पित है जो आपको सफलता के शिखर तक निश्चित रूप से पहुंचाएगी।

आपका प्रिय छात्र एवं शुभचिंतक
सुमित कुमार 
D.El.Ed. 2020-2022


         शिक्षक विद्यार्थीयो को ज्ञान देते हैं, उनको पढ़ाते है। बच्चों को पढ़ाकर उनको एक अच्छा नागरिक बनाते हैं। मेरे विश्वविद्यालय में कई शिक्षक है, और सभी मुझे पसंद है। लेकिन उन सब में मेरे सबसे प्रिय शिक्षक "विश्वजीत सर" है।

    आपका व्यक्तित्व बहुत प्रभावी है, साथ ही आपके पढाने का ढंग बाकी शिक्षको से अलग है। आपका पढाया हुआ पाठ्‌यक्रम मैं कभी नहीं भूलता। आपका बाहरी व्यक्तित्व  जितना सुंदर और आकर्षक है, उतना ही आपका स्वभाव मिलनसार है।

       आप सभी विद्यार्थीयो के साथ समान व्यवहार करते है, और उनकी हर परेशानी दूर करते है। छात्र जो भी सवाल पूछते है, आप उनका मुस्कराकर जबाव देते है। आपका कला और फोटोग्राफी सभी बच्चो को सबसे ज्यादा आकर्षित करती है।

    मैं बहुत भाग्यशाली हूं की मुझे आप जैसे शिक्षक मिले। मैं आपका बहुत आदर करता हूँ।

आपका प्रिय छात्र एवं शुभचिंतक

Name - Balkrishna Kumar
Roll no 194340013
Sec - 2019 - 2021.


       साई कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिग में पहली बार जब आपको देखा, तब आप मंच संचालन कर रहे थे। आप एक प्रखर वक्ता की भाँति अपनी बातों को रख रहे थे , उसके बाद जब हम कॉलेज के कला-कक्ष में गये और आपके चित्रों तथा कलाकृतियों को देखा तो हम आपसे काफी प्रभावित हुए। उससे भी ज्यादा तब जब आप हमें मधुबनी चित्रकला शैली का चित्र बनाना सिखा रहे थे। हमारे गलतियों के बार-बार दुहराने के बाद भी आप हमें शालीनता से सिखाए जा रहे थे, यह शालीनता हमें बहुत अच्छा लगा। आप कभी भी वर्ग में किसी भी छात्र को डाँटते नहीं है। आप हमेशा सभी को मुस्कुरा कर जवाब देते हैं। आपका शिक्षण विधि काफी प्रभावशाली है। जिन चीजों को आपने पढ़ा दिया वह कभी कोई भूल नहीं सकता है। उसकी सबसे बड़ी खास बात है आप चित्र की सहायता लेते हैं, जो लोगो के मस्तिष्क में काफी दिनों तक स्मृत रहती है।

      आपके व्यक्तित्व और विलक्षणता को चंद शब्दों में पिरोया नहीं जा सकता है। आप एक अच्छे चित्रकार, लेखक, फोटोग्राफर और बेहतरीन शिक्षक हैं या चंद शब्दों में अगर कहें कि आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। आप अपने कार्यों के प्रति इतने लगनशील हैं कि कोई भी आपको सफलता के शिखर पर पहुँचने से नहीं रोक सकता।

आपका प्रिय छात्र

सुमन्त कुमार 
बी०. एड. 2020-22 
साई कॉलेज ऑफ़ टीचर्स ट्रेनिंग, 
ओनामा (मुंगेर विश्वविद्यालय)


        आज मैं एक ऐसे शिक्षक के बारे में आप सभी को बता रहा हूँ, जो  हमारे दिल 💌 के बेहद करीब रहे हैं। उनका नाम विश्वजीत सर है। जब मैंने साई कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग में बी.एड. में नामांकन करवाया और कॉलेज का वो हमारा पहला दिन आज भी मुझे याद है, जब सभी प्रशिक्षुओ के साथ-साथ सभी शिक्षणगण भी अपना-अपना परिचय दिए थे। सभी शिक्षकों में से एक ऐसे भी शिक्षक है, जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति है वे और कोई नहीं वे हमारे विश्वजीत सर ही है।

        विश्वजीत सर का जैसा नाम वैसा उनका काम भी है। उनका स्वभाव बहुत ही नम्र और दयालु हैं। उनके पढ़ाने का अद्वितीय ढंग मुझे आज भी याद हैं, उन्होंने जो कुछ भी मुझे सीखाया यह सब कुछ मुझे आज भी याद है,  उन्होंने मेरी कला की अवधारणा को स्पष्ट किया। जब भी मुझे कला क्षेत्र से संबंधित कुछ भी कठिनाइया आती तो मै तुरंत उनके पास जाता हूँ। मै उन्हें अच्छे व्यकितत्व और नम्र स्वभाव के कारण बहुत अधिक पसंद करता हूँ।

      वह हमेशा मुस्कुराते😊 हुए हमारी कक्षा में प्रवेश करते हैं और सबसे पहले हमारे स्वास्थ्य के बारे में पूछते हैं कि - "आप लोग कैसे है ?" इनका यह बात मुझे सबसे अच्छा लगता है, जिससे अपनापन का अनुभूति होता है। उनका मुस्कुराता हुआ चेहरा में ही हमारे सवालों के जवाब छुपे हुए होते हैं। वह शिक्षण की अच्छी तकनीकियों के साथ दोस्ताना स्वभाव, हास्य, धैर्यवान और आसानी से सभी परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने वाले शिक्षक हैं। सर, हमेशा हमलोगों को पढ़ाई में सबसे अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं।

        विश्वजीत सर एक बहुत ही अच्छे चित्रकार, फोटोग्राफर, मंच संचालक कर्ता के साथ-साथ एक बहुत ही अच्छे लेखक भी हैं। ये अच्छे शिक्षक के साथ-साथ ईमानदार व्यकित भी हैं।
    
        सर से मैंने बहुत कुछ सीखा है, और आगे भी उनसे बहुत कुछ सीखना हैं। ये हमारे प्रेरणा स्रोत हैं। उनके उत्साही तथा विनम्र व्यक्तित्व के कारण 'विश्वजीत सर' सभी के चहेते हैं।

आपका प्रिय छात्र
राजकिशन
बी०. एड. 2020-22 
साई कॉलेज ऑफ़ टीचर्स ट्रेनिंग, 
ओनामा (मुंगेर विश्वविद्यालय)



 
       साई कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिग के सभी संकायों में से आपकी छवि सबसे उत्कृष्ट है। आपकी मेहनत और लगन सभी छात्र-छात्राओं के साथ-साथ सभी शिक्षकों के लिए प्रशंशा का विषय हैं।

      पाठक्रम के अलावा Extra activity मैं भी आपका विशेष योगदान रहा है। मैं अपने दो वर्षों में जो आप से सीखा हैं ऐसा अनुभुति होता हैं की पिछले 08-10 वर्षों का योग हैं।

     आपका चरित्र कृतार्थ है। आपका व्यक्तित्व आकर्षक है एवं बहुत मेहनती है। आप ने कॉलेज के सभी छात्राओं तथा शिक्षकों का सही मार्गदर्शन किया है। आप अपने कार्यों को पूरी ईमानदारी पूर्वक निर्वाह किया है।

        अत: हम, सभी छात्र-छात्राओ की तरफ से आपको आपकी मंजील तक पहुँचने की मनोकामना करता हूँ।

आपका विश्वासी छात्र एवं शुभ चिंतक
Anish Kumar
18 D 242 D. El. Ed. 2018-20


      साई कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिग में अध्यापक के रूप में आपका छवि प्रशिक्षुओं  के लिए अत्यंत प्रभावशाली रहा है। आप सबके प्रिये, सबके दिल में बसने वाले, चित्रकला जैसे कठिन subject को भी सरल और Intressing बनाने वाले Story के माध्यम से हर चीज समझाने वाले तथा कितने भी व्यस्त क्यों न हो हर Problems को तुरंत सुलझा देते रहे। हर सांस्कृतिक क्रार्यक्रम में हमे प्रोत्साहित करते रहें।

     आप हमारे जीवन में Painting,
Photography तथा INTERNET जैसे कई विषयों मे रूचि उत्पन्न करते रहे जो कि इससे पहले मुझे उसमे कोई Intrest नहीं था। आप अपने Subject में बहुत ही अनुभवी तथा मेहनती भी हैं। आपका मुस्कुराता चेहरा और नम्र स्वभाव हमारे दिल में आज भी बसता है। महाविद्यालय से निकलने के बाद भी हम आपके द्वारा बताये हुए रास्ते पर चलने का प्रयास निरंतर करते रहेगें। आपके लिए कुछ पंक्तियां -

"ज्योत से ज्योत सजी, सज गया प्रागंण है,
झिलमिल सितारे करते आपका वंदन है।

ज्ञान की अलख जगाने वाले को मेरा,
सत - सत अभिनंदन है!!
 [विश्वजीत सर]

Nisha Bharti
Sai college of Teacher's Training
Roll No. 20B2124 (2020-2022)


Thank You




सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

वाल्मीकि रामायण भाग - 29 (Valmiki Ramayana Part - 29)



पंचवटी में जब शूर्पणखा ने देखा कि श्रीराम ने उन चौदह हजार राक्षसों के साथ-साथ खर, दूषण और त्रिशिरा को भी युद्ध में मार डाला है, तो वह बड़े शोक के साथ चीत्कार करने लगी। श्रीराम ने असंभव लगने वाला कार्य कर दिखाया था। अत्यंत शोक से उद्विग्न शूर्पणखा भी तब वहाँ से निकलकर लंका की ओर भागी।
लंका में पहुँचकर उसने देखा कि रावण सूर्य के समान जगमगाते एक सोने के सिंहासन पर विराजमान है। उसके सभी मंत्री उसके आस-पास बैठे हुए थे। रावण की बीस भुजाएँ और दस मस्तक थे। उसका सीना विशाल था। वह अपने शरीर पर वैदूर्यमणि (नीलम) का एक आभूषण पहना हुआ था और उसके शरीर की कान्ति भी वैसी ही थी। उसने दिव्य वस्त्र, सोने के आभूषण और दिव्य पुष्पों की मालाएँ पहन रखी थीं। उसकी भुजाएँ सुन्दर, दाँत सफेद, मुँह बहुत बड़ा और शरीर पर्वत जैसा विशाल था। देवताओं के साथ युद्ध करते समय उसके शरीर पर सैकड़ों बार भगवान विष्णु के चक्र का प्रहार लगा था। कई अन्य बड़े युद्धों में भी उसे कई शस्त्रों से चोट लगी थी। उन सबके चिह्न उसके शरीर पर दिखाई दे रहे थे। रावण सभी कार्य बड़ी शीघ्रता से करता था। वह देवताओं को रौंद डालता था, परायी स्त्रियों का शील नष्ट कर देता था और धर्म की तो वह जड़ें ही काट देता था। वह हर प्रकार के दिव्यास्त्रों का प्रयोग जानता था, सदा यज्ञों में विघ्न डालता था और ब्राह्मणों की हत्या कर देता था। वह बड़े रूखे स्वभाव का था और बहुत निर्दयी था। वह सज्जनों का सदा अहित ही करता था। एक बार वह पाताल लोक में जाकर नागराज वासुकी को परास्त करके और तक्षक को भी हराकर उसकी प्रिय पत्नी का अपहरण करके ले आया था। इसी प्रकार कैलास पर्वत पर कुबेर को परास्त करके वह उसका भी पुष्पक विमान छीन लाया था। कुबेर के चैत्ररथ वन को, इन्द्र के नन्दनवन को और अन्य देवताओं के दिव्य उद्यानों को भी वह नष्ट करता रहता था। उसने घोर तपस्या करके ब्रह्माजी को अपने मस्तकों की बलि दी थी। उस तपस्या के प्रभाव से उसे देवता, दानव, गंधर्व, पिशाच, पक्षी और सर्पों से भी संग्राम में सुरक्षा का वरदान मिल गया था। मनुष्यों के सिवा किसी के हाथों मृत्यु का उसे भय नहीं था।

निर्भय होकर जनस्थान में विचरने वाली शूर्पणखा युद्ध में खर-दूषण आदि के संहार को देखकर भयभीत होती हुई लंका में पहुँची और मंत्रियों से घिरे अपने उस भाई के पास जाकर उसने शोक से विह्वल होकर अपनी दुर्दशा रावण को सुनाना आरंभ किया। श्रीराम से तिरस्कृत होने के कारण शूर्पणखा बहुत दुःखी थी। लंका पहुँचने पर उसने मंत्रियों के बीच बैठे रावण से अत्यंत कुपित होकर कठोर वाणी में कहा, “राक्षसराज! तुम स्वेच्छाचारी और निरंकुश होकर विषय-भोगों में मतवाले हो रहे हो। तुम्हारे ऊपर घोर संकट आ गया है, पर तुम्हें इसकी कोई जानकारी ही नहीं है।” जो राजा उचित समय पर अपने कार्य पूरे नहीं करता है, जो राज्य की देखभाल के लिए गुप्तचरों को नियुक्त नहीं करता है, उसका राज्य शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और प्रजा भी उसे त्याग देती है। अपनी असावधानी से जो राजा अपने राज्य का कोई भाग शत्रु के हाथों गँवा देता है और उसे पुनः अपने अधिकार में नहीं लाता, उसका पूरा राज्य ही धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। तुमने देवताओं, गन्धर्वों तथा दानवों के साथ पहले ही झगड़ा मोल ले लिया है, ऊपर से तुमने अपने राज्य की देखभाल के लिए गुप्तचर भी नियुक्त नहीं किए हैं। तुम इतने मूर्ख हो कि तुम्हें ऐसी महत्वपूर्ण बातों का भी ज्ञान नहीं है। फिर तुम कब तक राजा बने रह सकोगे? जो राजा अपने गुप्तचर, अपना कोष (खजाना) और अपनी नीति अपने नियंत्रण में नहीं रख सकता, उसका राज्य अवश्य ही नष्ट हो जाता है। मुझे लगता है कि तुमने सब मूर्खों को ही अपना मंत्री नियुक्त कर रखा है, इसीलिए तुमने अपने राज्य में कहीं कोई गुप्तचर नियुक्त नहीं किए हैं। तभी तो तुम्हें पता ही नहीं है कि पूरा जनस्थान उजड़ गया है और वहाँ रहने वाले तुम्हारे सारे स्वजन मारे गए हैं। उस राम ने अकेले ही खर-दूषण सहित चौदह हजार राक्षसों की सेना को यमलोक पहुँचा दिया और दण्डकारण्य के ऋषियों को राक्षसों के भय से पूर्णतः मुक्त कर दिया, पर तुम्हें इसकी कोई जानकारी ही नहीं है। राक्षसों की शक्ति समाप्ति हो गई और तुम्हें इसका पता तक नहीं है। तुम अपने राज्य की ही रक्षा नहीं कर सकते, तो तुम क्यों स्वयं को राक्षसराज कहलवाते हो?
शूर्पणखा की इन सब बातों को सुनकर रावण चिन्ता में पड़ गया और अपने दोषों के बारे में बहुत देर तक विचार करता रहा। फिर उसने अत्यंत कुपित होकर शूर्पणखा से पूछा, “राम कौन है? उसका बल, रूप और पराक्रम कैसा है? उस दुर्गम दण्डकारण्य में वह क्यों आया है? उसके पास ऐसा कौन-सा शस्त्र है, जिससे उसने उन सब राक्षसों का संहार कर डाला? किसने तुम्हारे नाक-कान काटकर तुम्हें इस प्रकार कुरूप बना दिया?” तब शूर्पणखा ने श्रीराम का परिचय इस प्रकार दिया, “भैया! राम राजा दशरथ का पुत्र है। उसकी भुजाएँ लंबी, आँखें बड़ी-बड़ी और रूप कामदेव के समान है। वह चीर और मृगचर्म धारण करता है। उसके विशाल धनुष में सोने के छल्ले लगे हुए हैं और उस धनुष से वह महाविषैले सर्पों जैसे तेजस्वी नाराचों की वर्षा करता है। वह युद्ध-स्थल में कब भयंकर बाण हाथ में लेता है, कब धनुष खींचता है और कब बाण छोड़ देता है, यह मैं देख ही नहीं पाई। मुझे इतना ही दिखाई दे रहा था कि उसके बाणों की मार से राक्षसों की पूरी सेना का संहार हो गया। अकेला होकर भी राम ने केवल डेढ़ मुहूर्त में ही पूरी राक्षस सेना को समाप्त कर डाला। वह स्त्री का वध नहीं करता, केवल इसी कारण से उसने मुझे जीवित छोड़ दिया। उसका एक तेजस्वी भाई लक्ष्मण है, जो गुण और पराक्रम में उसी के समान है। वह भाई का बड़ा भक्त है और उसकी बुद्धि भी बड़ी तीक्ष्ण है। राम की सुन्दर पत्नी सीता भी उसके साथ है। वह राम को बड़ी प्रिय है। उसकी आँखें विशाल और रूप बड़ा मनोहर है। उसके सभी अंग बड़े सुडौल हैं। उसके शरीर का गठन और उसका सौंदर्य दोनों ही अनुपम हैं। उसके जैसी रूपवती स्त्री मैंने कोई और नहीं देखी। देवताओं, गन्धर्वों, यक्षों और किन्नरों की स्त्रियों में से भी कोई उसकी बराबरी नहीं कर सकती। वह पत्नी बनकर जिसका आलिंगन करे, उससे अधिक भाग्यशाली पुरुष इस संसार में कोई नहीं हो सकता। मुझे तो लगता है कि वह तुम्हारी ही भार्या बनने के योग्य है और तुम ही उसके श्रेष्ठ पति बन सकते हो। लंकापति!!! जब मैं उस सुन्दरी स्त्री को तुम्हारी भार्या बनाने के लिए अपने साथ लाने के लिए आगे बढ़ी, ठीक उसी समय उस क्रूर लक्ष्मण ने मुझे इस प्रकार कुरूप बना दिया। तुम तो उस स्त्री को देखते ही कामासक्त हो जाओगे। यदि तुम उसे अपनी पत्नी बनाने की इच्छा रखते हो, तो तुरंत ही राम को परास्त करने के लिए आगे बढ़ो। उस सर्वांग-सुन्दरी सीता का किसी भी प्रकार से हरण कर लो और जनस्थान में राम ने तुम्हारे जिन निशाचरों को मार डाला, उनके प्रति तुम्हारे कर्तव्य का भी तो कुछ विचार करो

शूर्पणखा की यह सब बातें सुनकर रावण ने सीता-हरण के कार्य पर मन ही मन विचार करना आरंभ किया। फिर उस सुझाव के गुण-दोषों पर विचार करके उसने अपनी शक्ति का विचार किया। अंत में उसने निश्चय किया कि यह काम उसे करना ही चाहिए। तब वह गुप्तरूप से अपनी रथशाला में गया। रथशाला में उसने अपने सारथी को रथ तैयार करने की आज्ञा दी। सारथी ने तुरंत रथ तैयार कर दिया और दस सिरों व बीस भुजाओं वाला रावण उस पर आरूढ़ होकर समुद्र तट की ओर बढ़ा। रावण के उस रथ में गधे जुते हुए थे, जिनका मुँह पिशाचों जैसा था। वह चलता था, तो ऐसी भारी घरघराहट होती थी मानो बादल गरज रहे हों। वह रथ इच्छानुसार चलने वाला तथा सुवर्णमय था। उसे रत्नों से सजाया गया था। समुद्र तट पर पहुँचकर रावण वहाँ की शोभा देखता हुआ आगे बढ़ता रहा। सागर का वह किनारा अनेक प्रकार के फल-फूलों के वृक्षों से व्याप्त था। कहीं केले तो कहीं नारियल के वृक्ष दिखाई दे रहे थे। कहीं साल, ताल, तमाल तथा अन्य सुन्दर फूलों के वृक्ष थे। चारों ओर शीतल जल से भरी पुष्करिणियाँ (बावड़ियाँ) और वेदिकाओं से युक्त विशाल आश्रम थे। बड़े-बड़े महर्षि, नाग, सुपर्ण (गरुड़), गन्धर्व और किन्नर वहाँ उपस्थित थे। अनेक सिद्ध, चारण, वानप्रस्थी व माष गोत्र वाले मुनि-महात्मा और अन्य तपस्वी भी वहाँ दिखाई दे रहे थे। सहस्त्रों सुन्दर अप्सराएँ व देवांगनाएँ वहाँ बैठी हुई थीं और अनेक देवता तथा दानव भी वहाँ विचरण कर रहे थे। चारों ओर अनेक हंस, सारस और मेंढक भी दिखाई दे रहे थे। आकाश-मार्ग से जाते हुए रावण को मार्ग में अन्य बहुत-से विमान भी दिखाई दिए। वे सब दिव्य पुष्पों से सजे हुए थे और उनके भीतर से गीत-वाद्यों की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ रही थी। आगे बढ़ने पर उसने चंदन के सहस्त्रों वृक्षों वाले वन देखे, जिनकी जड़ों से गोंद निकली हुई थी। कहीं श्रेष्ठ अगरु के वन थे, कहीं तमाल के फूल खिले हुए थे, तो कहीं गोल मिर्च की झाड़ियाँ थीं। कहीं समुद्रतट पर ढेरों मोती सूख रहे थे, कहीं मार्ग में ऊँचे-ऊँचे पर्वत थे, तो कहीं स्वच्छ पानी के बहुत-से झरने दिखाई दे रहे थे। सुन्दर स्त्रियों, हाथी, घोड़ों, रथों आदि से व्याप्त अनेक नगर भी उसे मार्ग में दिखाई दिए। बहुत दूर जाने पर समुद्र तट के उस पार पहुँचकर उसे एक ऐसा स्थान दिखा जो स्वर्ग के समान सुन्दर और चारों ओर से समतल था। वहाँ उसे बरगद का एक विशाल वृक्ष दिखाई दिया, जिसके नीचे चारों ओर अनेक मुनि निवास करते थे। उस बरगद की शाखाएँ कई योजन तक फैली हुई थीं।

उस रमणीय वन के भीतर एकांत स्थान में एक आश्रम था। वहाँ राक्षस मारीच निवास करता था। उसके सिर पर जटाएँ थीं और वह शरीर पर काला मृगचर्म धारण करता था। रावण उस आश्रम में जाकर मारीच से मिला। उसका स्वागत-सत्कार करके मारीच ने पूछा, “राजन्! तुम्हारी लंका में सब सकुशल तो है? तुम इतनी जल्दी किस कारण यहाँ पुनः वापस आए हो?” मारीच का यह प्रश्न सुनकर रावण ने उसे अपने आने का प्रयोजन बताना आरंभ किया।
आगे अगले भाग में…


स्रोत: वाल्मीकि रामायण। अरण्यकाण्ड। गीताप्रेस

जय श्रीराम🙏
पं रविकांत बैसान्दर ✍️

गुरुवार, 15 फ़रवरी 2024

🔴Vocabulary (🔴शब्दावली)

 Vocabulary - शब्दावली 


  • Conducted – आयोजन किया
  • Examines – जाँच
  • Preliminary – प्रारंभिक
  • Qualitative – गुणवत्ता
  • Heartfelt – हार्दिक
  • Embrace – आलिंगन
  • Efficient – कुशल
  • Coefficients – गुणांक
  • Whim – भावना
  • Whim – रंग
  • Arbitrary – मनमाने ढंग से
  • Heuristic – अनुमानी
  • Comply – पालन करना
  • Solicit – मांगना
  • Domineering – तानाशाही
  • Gullible – भोला, आसानी से धोखा खानेवाला
  • Chatty – बातूनी
  • Nosy – सुगंधित
  • Cynical – सनकी
  • Conservative – रूढ़िवादी
  • Oblivious – बेखबर
  • Ignorant – अनजान
  • Obsessed – ग्रस्त, पागल, जुनून सवार
  • Bossy – शासक
  • Immature – अपरिपक्व
  • Mature – परिपक्व
  • Authoritative – आधिकारिक
  • Naive – अनुभवहीन
  • Naivete – भोलेपन
  • Narrative – वर्णनात्मक
  • Orphan – अनाथ
  • Isolate – अलग-थलग
  • Realm – क्षेत्र
  • Preoccupation – अति व्यस्तता
  • Affluent – धनी
  • Redundancy – फालतूपन
  • In lieu, lieu – एवज में
  • Initiative – पहल
  • Nimble – तेज़
  • Impedance – विरोध
  • Phrase – वाक्यांश
  • Phrasebook – शब्दकोश
  • Persuade – राज़ी करना
  • Underlay – बुनियाद
  • Cause – कारण
  • Extended – विस्तृत
  • Exhaustive – संपूर्ण
  • Thorough – संपूर्ण
  • Rigorous – कठिन
  • Unto – तक
  • Global – वैश्विक
  • Suicidal – आत्मघात
  • Despondent – हताश
  • Reservoir – जलाशय
  • Convey – सूचित करना
  • Demise – मृत्यु
  • Insanity – पागलपन
  • Irony – व्यंग्य
  • Prejudice – पक्षपात
  • Typically – आमतौर पर
  • Determine – निर्धारित
  • Etiquette – शिष्टाचार
  • Aggression – आक्रमण
  • Unceasing – अटूट
  • Heartless – बेरहम
  • Heartlessness – निर्दयता
  • Truculence – निर्दयता
  • Provocation – उत्तेजना
  • Violent – हिंसा करनेवाला
  • Confront – सामना करना
  • Readiness – तत्परता
  • Hostile – शत्रुतापूर्ण
  • Antipathy – घृणा
  • Interpretation – व्याख्या
  • Contented – संतुष्ट
  • Nevertheless – फिर भी
  • Gem – मणि
  • Profound – गहन
  • Alchemy – रसायन विज्ञान
  • Chaotic – अराजक
  • Reverence – श्रद्धा
  • Stupor – अचेतनता
  • Enrollment – नामांकन
  • Rave – बड़बड़ाना
  • Raving – पागल
  • Intent – इरादा
  • Wit – बुद्धि
  • Wits – दिमाग
  • Oblivion – विस्मृति
  • Lad, laddie – बालक
  • Barley – जौ
  • Oat – जई
  • Muffin – टिकिया
  • Bran – भूसी, चोकर
  • Flakes – लच्छे
  • Lurk – घात में रहना
  • Sinister – भयावह
  • Feverish – डांवांडोल
  • Retract – वापस लेना
  • Skeptical – उलझन में
  • Abbreviation – संक्षिप्त नाम
  • Stringent – कड़ी से कड़ी
  • Peregrine – परदेशी
  • Foreigner – विदेशी
  • Expatriate – परदेशी
  • Expat – प्रवासी
  • Exile – निर्वासन
  • Assertive – दृढ़ निश्चय वाला
  • Empathize – सहानुभूति
  • Gratify – कृतार्थ करना
  • Tardy – धीमी
  • Funky – कायरता
  • Sedentary – गतिहीन जीवन
  • Proprietor – मालिक
  • Competent – सक्षम
  • Contingent – आकस्मिक
  • Superfluous – ज़रूरत से ज़्यादा
  • Closeout – नीलाम
  • Bring into notice – ध्यान में लाना
  • Take cognizance of – ध्यान में लाना
  • Rejig – बदलाव
  • Retort – करारा जवाब
  • Pass the buck – उत्तरदायित्व मढ़ना
  • Precarious – अनिश्चित
  • Defer – टालना
  • Disseminate – प्रसारित करना
  • Provocation – उकसावा
  • Iconic – प्रतिष्ठित
  • Lunatic – पागल मनुष्य
  • Placard – दीवार पर विज्ञापन चिपकाना
  • Placard – इश्तहार
  • Humanitarian – मानवीय
  • Hypertension – उच्च रक्तचाप
  • Vigorous – जोरदार
  • Epilepsy – मिरगी
  • Belly – पेट
  • Taut – तना हुआ
  • Adores – प्यार करते हैं
  • Adoration – आराधना
  • PRECISE – सटीक
  • Vital – महत्वपूर्ण
  • Grasp – समझ
  • Reimbursement – भरपाई
  • Coveted – प्रतिष्ठित
  • Squeeze – निचोड़
  • Feasible – संभव
  • Liaise – संबंध स्थापित करना
  • Pertaining – संबंधित
  • Fistula – नासूर
  • Infertility – बांझपन
  • Naturopathy – प्राकृतिक चिकित्सा
  • Venereal – कामी
  • Convalescence – स्वास्थ लाभ
  • Anomaly – विसंगति
  • Genital – यौन
  • Congenital – जन्मजात
  • Circumcision – खतना
  • Attributable – कारण
  • Exclusion – बहिष्कार
  • Indemnity – हानि से सुरक्षा
  • Admissible – स्वीकार्य
  • Prudent – विवेकी
  • Transcends – अतिक्रमण
  • Transcend – पार
  • Wobble – लडखडाना
  • Condemnation – निंदा
  • Prevalent – प्रचलित
  • Immense – अत्यधिक
  • Certain – निश्चित
  • Certain – कुछ
  • Redeemed – छुड़ाया
  • Whiskers – मूंछ
  • Tentacle – मूंछ
  • Mustache – मूंछ
  • Miser – कंजूस
  • Commencement – प्रारंभ
  • Serene – निर्मल
  • Perseverance – दृढ़ता
  • Toxin – विष
  • Stale – बासी
  • Abundant – प्रचुर
  • Strained – तनावपूर्ण
  • Erratic – अनियमित
  • Vanish – गायब
  • Diminishes – घटता
  • Rung – छड़
  • Veil – परदा
  • Prerequisite – शर्त
  • Criterion – मापदंड
  • Satiated – तृप्त
  • lineage – वंशावली
  • Plunk – खनखनाहट
  • Rapport – घनिष्ठता
  • Enshrined – प्रतिष्ठापित
  • Persuaded – राजी
  • Estranged – पराया
  • Spacious – विशाल
  • Confectionery – हलवाई की दुकान
  • Riddle – पहेली
  • Conscientious – ईमानदार
  • Dedication – निष्ठा
  • Introspection – आत्मनिरीक्षण


वाल्मीकि रामायण भाग - 28 (Valmiki Ramayana Part - 28)



राम के हाथों खर के उन चौदह राक्षसों के वध को देखकर शूर्पणखा घबरा गई। भयभीत होकर वह पुनः खर के पास भागी। पुनः उसे रोता देख खर ने उससे पूछा, बहन!!! तुम्हारी इच्छा पूरी करने के लिए मैंने चौदह शूरवीर राक्षसों को तुम्हारे साथ भेजा था। वे इतने वीर हैं कि किसी के हाथों मर नहीं सकते और यह भी असंभव है कि वे मेरी आज्ञा का पालन न करें। फिर किस कारण तुम इस प्रकार दुःखी होकर धरती पर लोट रही हो? मेरे होते हुए तुम क्यों विलाप करती हो? घबराओ मत।

यह सांत्वना सुनकर शूर्पणखा बोली, - “भैया!!! तुमने जो वे चौदह राक्षस भेजे थे, उस राम ने उन सबको अपने मर्मभेदी बाणों से मार डाला है। उसके पराक्रम को देखकर मेरे मन में बड़ा भय उत्पन्न हो गया है। इसलिए मैं पुनः तुम्हारी शरण में आई हूँ। राक्षसराज! यदि मुझ पर और उन मृत राक्षसों पर तुम्हें कोई दया आती हो, यदि राम से लोहा लेने की शक्ति तुम में हो, तो तुम किसी भी प्रकार से राम का वध कर डालो क्योंकि दण्डकारण्य में घर बनाकर रहने वाला राम हम सब राक्षसों के लिए संकट है। यदि तुमने आज ही राम का वध नहीं किया, तो मैं तुम्हारे सामने ही अपने प्राण त्याग दूँगी क्योंकि मैं अब और अपमान नहीं सह सकती। मुझे तो लगता है कि तुम युद्ध में राम के सामने नहीं टिक सकोगे। तुम स्वयं को बड़ा शूरवीर मानते हो, किन्तु तुम में शौर्य है ही नहीं। राम और लक्ष्मण तुच्छ मनुष्य हैं, पर उन्हें मारने की भी शक्ति तुम में नहीं है, तो फिर तुम अपने कुल को कलंकित करके तुरंत ही इस जनस्थान से भाग जाओ। तुम जैसे निर्बल राक्षस का यहाँ क्या काम है? ऐसी बातें कहकर वह खर को युद्ध के लिए उकसाने लगी।

इस प्रकार तिरस्कृत होकर खर ने कहा, “बहन! तुम्हारे अपमान से मुझे अत्यंत क्रोध आ गया है, जिसे दबाना असंभव है। राम का पराक्रम मेरे आगे कुछ भी नहीं है। तुम अपने आँसुओं को अब रोक लो और घबराना छोड़ो क्योंकि मैं आज ही राम और उसके भाई लक्ष्मण को यमलोक पहुँचा दूँगा और तुम्हें उन रक्त पीने को मिलेगा। यह सुनकर शूर्पणखा को बड़ी प्रसन्नता हुई और उसने खर के साहस व पराक्रम की खूब प्रशंसा की। तब खर ने अपने सेनापति दूषण से कहा, “प्रिय सेनापति! युद्ध के मैदान में न घबराने वाले और हिंसा को ही खेल समझने वाले चौदह सहस्त्र राक्षसों को युद्ध में भेजने की तैयारी करवाओ और शीघ्र ही धनुष, बाण, खड्ग आदि रखवाकर मेरा रथ भी यहाँ मँगवा लो। उस उद्दंड राम का वध करने के लिए मैं स्वयं ही सेना का नेतृत्व करना चाहता हूँ।

यह आज्ञा मिलते ही दूषण ने सूर्य के समान प्रकाशमान और चितकबरे रंग के अच्छे घोड़ों से जुता हुआ एक रथ खर के लिए मँगवाया। वह रथ मेरु पर्वत के शिखर की भांति ऊँचा था, उसे सोने से सजाया गया था और उसके पहियों में भी सोना जड़ा हुआ था। उस पर अनेक मणि जड़े हुए थे और सोने के बने मत्स्य, फूल, वृक्ष, पर्वत, चन्द्रमा, सूर्य, तारों आदि की सजावट से वह सुशोभित हो रहा था। उस पर ध्वजा फहरा रही थी और अनेक अस्त्र-शस्त्र रखे हुए थे। अपनी बहन के अपमान को याद करके राक्षसराज खर उस रथ पर आरूढ़ हुआ और सेना को कूच करने की आज्ञा दी। आज्ञा मिलते ही वह विशाल राक्षस सेना घोर गर्जना करती हुई जनस्थान से बड़े वेग के साथ निकली। उन राक्षस सैनिकों के हाथों में मुद्गर, पट्टिश, शूल, फरसे, खड्ग, चक्र, तोमर, परिघ, धनुष, गदा, तलवार, मूसल और वज्र आदि अनेक भीषण हथियार थे। उस सेना के प्रस्थान करते समय आकाश में बादलों की महाभयंकर घटा घिर आई और सैनिकों के ऊपर रक्तमय जल की वर्षा होने लगी, जो भारी अमंगल की सूचक थी। सूर्य के चारों ओर एक गोलाकार घेरा दिखाई देने लगा, जिसका रंग काला और किनारे का रंग लाल था। उसके कारण दिन में ही गहन अंधकार छा गया। गीदड़ और अन्य मांसभक्षी पशु-पक्षी भीषण चीत्कार करने लगे। भारी आवाज के साथ आकाश से भीषण उल्काएँ पृथ्वी पर गिरने लगीं। धरती अचानक डोलने लगी। उसी समय खर की बायीं भुजा भी सहसा काँप उठी। उसका कंठ अवरुद्ध हो गया, सिर में दर्द होने लगा और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। फिर भी उस अहंकारी ने कहा, "मैं अपने बल के कारण इन सब उत्पातों की कोई चिंता नहीं करता हूं। मैं चाहूँ तो मृत्यु को भी मार सकता हूँ। उस अहंकारी राम और उसके भाई लक्ष्मण को मारे बिना आज मैं पीछे नहीं हट सकता। आज से पहले किसी युद्ध में मेरी पराजय नहीं हुई, फिर उन दो क्षुद्र मनुष्यों को मारना कौन-सी बड़ी बात है।"

ऐसा कहकर खर ने अपनी सेना का उत्साह बढ़ाया और बड़े वेग से वह आगे निकला। बारह महापराक्रमी राक्षस उसे दोनों ओर से घेरकर उसके साथ चलने लगे। अन्य चार राक्षस अपने सेनापति दूषण के पीछे-पीछे चले। शेष सेना उनके पीछे चल रही थी। आकाश में जो उत्पात-सूचक लक्षण खर की सेना ने देखे थे, उन्हें पंचवटी में श्रीराम और लक्ष्मण ने भी देखा। उन्हें देखकर श्रीराम ने कहा, “भाई लक्ष्मण! ये सब लक्षण राक्षसों के संहार का सूचक बनकर आए हैं। मेरी दाहिनी भुजा बार-बार फड़क रही है, अतः मुझे कोई संदेह नहीं है कि कुछ ही देर में एक बड़ा युद्ध होगा। लेकिन तुम्हारा मुख बहुत कांतिमान व प्रसन्न दिखाई दे रहा है, जो इस बात का संकेत है कि इस युद्ध में हमारी ही विजय होगी।” “लक्ष्मण! गरजते हुए राक्षसों का घोर नाद सुनाई दे रहा है। उनकी भेरियों की महाभयंकर ध्वनि कानों में पड़ रही है। समझदार व्यक्ति को आपत्ति की आशंका होते ही उससे बचने का उपाय कर लेना चाहिए। अतः तुम धनुष-बाण धारण करके तुरंत ही सीता को लेकर पर्वत की उस गुफा में चले जाओ, जो वृक्षों की आड़ में छिपी हुई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि तुम शूरवीर हो और इन राक्षसों का वध कर सकते हो, किन्तु तुम्हें मेरे चरणों की सौगंध है कि तुम सीता की रक्षा पर ध्यान दो और उसे लेकर शीघ्र यहाँ से चले जाओ। मैं स्वयं इन राक्षसों का संहार करूँगा।” श्रीराम का आदेश मानकर सीता और लक्ष्मण वहाँ से चले गए। श्रीराम ने अब युद्ध के लिए कवच धारण किया और अपना धनुष-बाण लेकर वहाँ डटकर खड़े हो गए। राक्षसों की वह सेना बड़े वेग से श्रीराम की ओर बढ़ी। श्रीराम ने भी सेना को ध्यानपूर्वक देखा और तरकस से अनेक बाण निकालकर अपने धनुष पर चढ़ा लिए। फिर उन्होंने अपने भयंकर धनुष को खींचा और राक्षसों का वध करने के लिए तीव्र क्रोध के साथ उस सेना की ओर बढ़े। आश्रम के पास पहुँचकर खर ने क्रोध में भरे हुए श्रीराम को देखा। उन्हें देखते ही उसने अपना धनुष उठाकर सारथी को आज्ञा दी कि “मेरा रथ राम के सामने ले चलो।” खर को श्रीराम की ओर बढ़ता देख उसके कुछ निशाचर मंत्री भी हुंकार भरते हुए उसे चारों ओर से घेरकर चलने लगे। वे सब मिलकर अपने लोहे के मुद्गरों, शूलों, प्रासों, खड्गों, फरसों और बाणों से श्रीराम पर एक साथ टूट पड़े। उनके प्रहार से श्रीराम का शरीर क्षत-विक्षत हो गया और वे लहूलुहान हो गए। फिर भी वे व्यथित या विचलित नहीं हुए। तब अत्यंत कुपित होकर उन्होंने अपने को धनुष को इतना खींचा कि वह गोलाकार दिखाई देने लगा। अब वे उस धनुष से बड़े तीव्र वेग से हजारों पैने बाण छोड़ने लगे, जिन्हें रोकना राक्षसों के लिए असंभव हो गया। देखते ही देखते श्रीराम ने अपने बाणों से सैकड़ों की संख्या में घोड़ों, सारथियों, हाथियों, सवारों और सैनिकों के प्राण ले लिए। राक्षसों की पूरी सेना छिन्न-भिन्न हो गई। श्रीराम के नालीक, नाराच और विकर्णी आदि बाणों की मार से घबराकर बची-खुची राक्षस सेना इधर-उधर भागने लगी। तब दूषण ने किसी प्रकार उन्हें रोककर उनका साहस बढ़ाया। उसकी बातों में आकर वे राक्षस पुनः युद्धभूमि की ओर लौटे और अब वे साखू, ताड़ आदि के वृक्ष तथा पत्थर लेकर श्रीराम पर टूट पड़े। अन्य राक्षस अपने शूल, मुद्गर, पाश आदि से प्रहार करने लगे। चारों ओर से राक्षसों से घिर जाने पर श्रीराम ने अब गान्धर्व नामक एक तेजस्वी अस्त्र का प्रयोग किया। चारों ओर घूमकर उन्होंने इतनी तेजी से बाण चलाए कि राक्षस यह देख ही नहीं पा रहे थे कि श्रीराम कब बाण को हाथ में लेते हैं और कब धनुष पर चढ़ाकर उसे छोड़ भी देते हैं। वे केवल धनुष को खींचता हुआ ही देख पा रहे थे। अब बचे-खुचे राक्षसों में से भी अधिकांश को मरा हुआ देखकर शेष राक्षसों का साहस भी समाप्त हो गया और वे युद्ध से भाग खड़े हुए। सारी युद्धभूमि राक्षसों के शवों से पट गई। जहाँ तक दृष्टि जाती थी, वहाँ तक केवल मृतक या घायल राक्षसों के कटे-पिटे, विदीर्ण शरीर ही दिखाई दे रहे थे। उन राक्षसों के टूटे हुए शस्त्रों, आभूषणों, रथों, ध्वजाओं, बिखरे हुए धनुष-बाणों और मरे हुए हाथी-घोड़ों से भरी हुई वह समरभूमि अत्यंत भयंकर दिखाई दे रही थी।

जब सेनापति दूषण ने देखा कि उसकी सेना बहुत बुरी तरह मारी जा रही है, तो उसने अपने पाँच हजार भयंकर राक्षसों की नई टुकड़ी को आगे बढ़ने की आज्ञा दी। अब वे लोग चारों ओर से श्रीराम पर आक्रमण करने लगे। तब अविचल खड़े श्रीराम ने भी पुनः एक बार महान क्रोध धारण किया और अपने तीव्र बाणों की वर्षा से उन सब राक्षसों के प्राण ले लिए। इसके बाद श्रीराम ने क्षुर नामक बाण से दूषण के विशाल धनुष को काट डाला और चार तीखे सायकों से उसके घोड़ों को भी मार गिराया। फिर उन्होंने एक अर्धचन्द्राकार बाण से उसके सारथी के प्राण ले लिए और तीन बाणों से उस राक्षस के सीने को भी बींध दिया। धनुष कट जाने और सारथी व घोड़ों के भी मारे जाने पर उस क्रूरकर्मा निशाचर ने एक परिघ अपने हाथों में ले लिया। उस पर सोने का पतरा मढ़ा हुआ था और चारों ओर से लोहे की तीखी कीलें लगी हुई थीं। उसका स्पर्श भी हीरे तथा वज्र के समान कठोर और असहनीय था। उस राक्षस को परिघ लेकर अपनी ओर आता देखकर श्रीराम ने दो बाणों से उसकी दोनों भुजाएँ ही काट डालीं। उसका वह विशाल परिघ भी एक झटके से अलग होकर भूमि पर गिर गया और उसके साथ ही वह राक्षस दूषण भी गिरकर धराशायी हो गया।

दूषण को मरा हुआ देखकर अब महाकपाल, स्थूलाक्ष और प्रमाथी ये तीनों विकराल राक्षस श्रीराम पर संगठित रूप से टूट पड़े। तब श्रीराम ने युद्धभूमि में उनका यथोचित स्वागत किया। अपने तीखे सायकों ने उन्होंने महाकपाल का सिर उड़ा दिया, प्रमाथी को असंख्य बाणों से भेद डाला और स्थूलाक्ष की आँखों को सायकों से भर दिया। उन तीनों का संहार करके कुपित श्रीराम ने दूषण के शेष बचे पाँच हजार राक्षसों को भी यमलोक पहुँचा दिया। दूषण और उसके सैनिकों की मृत्यु का समाचार सुनकर खर क्रोध से छटपटा उठा। अब उसने श्रीराम पर धावा बोल दिया। साथ में उसके बारह महापराक्रमी सेनापति और हजारों राक्षस सैनिक भी थे। लेकिन श्रीराम ने इस बार कर्णी नामक सौ बाणों से सौ राक्षसों का व अन्य हजार बाणों से एक हजार राक्षसों का एक साथ ही संहार कर डाला। उन राक्षसों के रक्त और माँस से लथपथ वह पूरी भूमि ही नरक के समान भयंकर प्रतीत होने लगी। अब त्रिशिरा और खर ये दो ही राक्षस जीवित बचे थे। तब खर एक विशाल रथ लेकर श्रीराम से युद्ध के लिए आगे आया। उसे आगे बढ़ता देख त्रिशिरा ने उसे रोककर इस प्रकार निवेदन किया, “राक्षराज! मुझ पराक्रमी को इस युद्ध में आगे जाने दीजिए। मैं अभी इस राम को मार गिराऊँगा। यदि राम मेरे द्वारा मारा गया, तो आप प्रसन्न होकर जनस्थान को लौट जाइये या अगर इसने मुझे मार गिराया, तो फिर आप इस पर धावा बोल दीजिए।” यह सुनकर खर ने उसे लड़ने की आज्ञा दे दी।

...आज्ञा मिलते ही त्रिशिरा ने अपने रथ को आगे बढ़ाया और बाणों की वर्षा कर दी। श्रीराम ने भी तीव्र गति से अनेक पैने बाण छोड़ते हुए उसे आगे बढ़ने से रोक दिया। तब अपने तीन बाणों से उसने श्रीराम के माथे को बींध डाला। इससे कुपित होकर श्रीराम ने रोष में भरकर चौदह बाण उसकी छाती में चला दिए। झुकी गाँठ वाले चार बाणों से उन्होंने उसके चारों घोड़ों को मार डाला और उस फिर आठ सायकों से उसके सारथी को भी रथ में ही मौत की नींद सुला दिया। फिर तीन और बाण मारकर उन्होंने उस राक्षस के तीनों मस्तक काट गिराये। त्रिशिरा और दूषण सहित अपने चौदह हजार राक्षसों को युद्ध-भूमि में मरा हुआ देखकर खर को भारी भय हुआ। उसने अपने धनुष को खींचकर श्रीराम पर कई नाराच चलाए। श्रीराम ने भी अपने बाणों से उनका उत्तर दिया। उन दोनों के पैने बाणों से सारा आकाश व्याप्त हो गया। अब श्रीराम का वध करने के लिए खर ने नालीक, नाराच और तीखी नोक वाले विकर्णी बाण चलाए। फिर वह बड़ी तेजी से अपना रथ लेकर उनके पास पहुँचा और फुर्ती से उसने श्रीराम के धनुष को काट डाला। इसके बाद उसने सात बाण चलाकर श्रीराम के मर्मस्थल पर आक्रमण कर दिया, जिससे उनका तेजस्वी कवच टूटकर भूमि पर गिर पड़ा।

अपना पहला धनुष टूट जाने पर अब श्रीराम ने महर्षि अगस्त्य का दिया हुआ वैष्णव धनुष उठाकर उस प्रत्यञ्चा चढ़ाई और अपने बाणों से खर के रथ की ध्वजा काट डाली। खर को मर्मस्थानों का ज्ञान था। उसने श्रीराम के कई अंगों में प्रहार किया और विशेष रूप से उनके सीने में चार बाण मारे। उन बाणों के प्रहार से श्रीराम का सारा शरीर लहूलुहान हो गया। तब क्रोधित श्रीराम ने अपने धनुष को पकड़कर खर की ओर छः बाण छोड़े। उनमें से एक बाण उसके माथे पर, दो उसकी दोनों भुजाओं में और तीन अर्धचन्द्राकार बाण जाकर उसकी छाती में लगे। फिर तुरंत ही उन्होंने तेरह बाण और छोड़े, जिनसे उसके चारों घोड़े और सारथी मारा गया व उसका रथ भी पूरी तरह ध्वस्त हो गया। अंतिम बाण से खर भी घायल हो गया। लेकिन अब वह गदा लेकर रथ से कूद पड़ा। अत्यंत क्रोधित होकर उसने वज्र के समान भयंकर वह गदा श्रीराम की ओर फेंकी। उस गदा को अपनी ओर आता देख श्रीराम ने अनेक बाण मारकर आकाश में ही उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। अब खर ने अपने होठों को दाँतों में भींचकर पूरी शक्ति लगाई और साखू के एक विशाल वृक्ष को उखाड़कर श्रीराम की ओर फेंका। श्रीराम ने उस वृक्ष को भी अपने पैने बाणों से काट दिया।

इतनी देर के युद्ध से श्रीराम के शरीर में पसीना आ गया था और उनकी आँखें भी क्रोध से लाल हो गई थीं। तभी उन्होंने देखा कि खून से लथपथ होकर भी वह निशाचर तेजी से उनकी ओर बढ़ता हुआ आ रहा है। तब वे दो-तीन पग पीछे हटे और उन्होंने अग्नि के समान एक तेजस्वी बाण अपने हाथों में ले लिया। वह बाण देवराज इन्द्र का दिया हुआ था। श्रीराम ने उस बाण को धनुष पर रखकर अपना धनुष कान तक खींचा और निशाना लगाकर वह बाण खर की ओर छोड़ दिया। वज्रपात के समान भयंकर नाद करता हुआ वह बाण सीधा जाकर खर की छाती में धँस गया और एक क्षण में ही उस निशाचर के प्राण निकल गए। उसका मृत शरीर भूमि पर गिर पड़ा और इस प्रकार वह युद्ध समाप्त हो गया। डेढ़ मुहूर्त में ही श्रीराम ने खर-दूषण जैसे विकराल राक्षसों सहित चौदह हजार राक्षसों की पूरी सेना का संहार कर डाला था।

श्रीराम को विजयी देखकर लक्ष्मण और सीता भी पर्वत कन्दरा से बाहर निकल आए। श्रीराम को सकुशल देखकर उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। उन दोनों को साथ लेकर विजयी श्रीराम ने अपने आश्रम में प्रवेश किया। इधर युद्ध में राक्षस-सेना की दुर्गति देखकर घबराया हुआ अकम्पन नामक राक्षस बड़ी उतावली के साथ जनस्थान से लंका की ओर भागा, उसे शीघ्र लंका पहुँचकर रावण को इसकी सूचना देनी थी।

आगे अगले भाग में…
स्रोत: वाल्मीकि रामायण। अरण्यकाण्ड। गीताप्रेस)

जय श्रीराम 🙏
पं रविकांत बैसान्दर✍️

बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

देखा न फिर खुशी से, मैने कभी खुशी को।



देखा न फिर खुशी से,

मैने कभी खुशी को।

दिल जबसे तुमसे बिछड़ा,

फिर ना मिला किसी को।।


खुशियों के काफ़िले की,

हमको नहीं जरूरत।

काफी है दर्द ही इक,

होंठों की इन हँसी को।।


दुनियां जहान के सारे ग़म,

लाके मुझको दे दो।

जो भी मिलेगा वो कम ही होगा,

इस मेरी ज़िंदगी को।।


माना कि हम हैं प्यासे,

पर दरिया🌊 क्या करेंगे।

वो एक बूंद💧 ही बहुत है,

इस मेरी तिश्नगी को।।


जलता रहे दिया🪔 इक,

ईमान का जो दिल💝 में।

फिर और चाहिए क्या,

इस बन्दगी को।।

शनिवार, 10 फ़रवरी 2024

ये वक्त भी खूब सयाना निकला।

ये वक्त भी खूब सयाना निकला,

है साल तो नया लेकिन दर्द पुराना निकला।


दिल से दिल को 💞 मिलने की फुरसत नहीं,

तहखाने में पड़ा रहा नहीं वो बाहर निकला।


वो जमाना भी खूब था जब मिलते थे हम रोज़,

उस जमाने को निकले हुए भी जमाना हुआ।


हम आ गए हैं उस दौड़ में,

अब ये मौसम बेसुहाना निकला।


जख़्मों के मुंह सिले नज़्म बुनी,

जख़्म जो खुले तराना निकला।


दिल के करीब सही ठिकाने पे,

क्या खूब!!! वो निशाना निकला।


सपनों ने है सब्ज़ बाग दिखाए,

आँखों के आगे विराना निकला।


गरीबों के घर में भूख पलती रही,

तस्करो के घरों में खजाना निकला।


हम हकीकत बयां करें तो कैसे करें,

जब फसाने में, फसाना निकला।

***


विनोद प्रसाद✍️

सोमवार, 5 फ़रवरी 2024

मेरे प्यार को ठुकराने वाला एक दिन पछताएगा।



मेरे प्यार को ठुकराने वाला,

एक दिन पछताएगा।

दूर-दूर तक ढूंढेगा,

पर मुझको कहीं न पाएगा।


मेरे प्यार को ठुकराने वाला...


आज उसे कितना गुरूर है,

बात तक नहीं करता है।

वर्षों गुजरे मुझे कभी,

वो याद तक नहीं करता है।


वो भी क्या दिन थे,

 जब दिन की शुरुआत नहीं होती थी।

 उसका एक मैसेज देखे बिना।


अब तो सदियाँ सी बीती जा रही हैं,

मेरी ज़िन्दगी।

 तुम्हारी एक मधुर मुस्कान के बिना।


लेकिन, मेरे दिल का पागलपन भी छुपा नहीं है,

इस दुनिया से।

आवारा बना बैठा हूँ मैं,

उसके एक दर्शन के बिना।


 मेरे दिल की गजब कलाकारी तो देखो,

हर तेरा दर्द छुपा लेता है आह तक नहीं करता है।

जहन में इसके क्या हैं,

मुझे बताये बिना।


गीतों से मेरे एक दिन,

वो भी अपना मन बहलाएगा।

दिल से उसको रिहा कर दिया हैं,

शायद!!! लौट के एक दिन तो आएगा।


मेरे प्यार को ठुकराने वाला…


किसको सदियों तक रहना है दो पल का यह मेला है,

लोगों से जो गिरा हुआ है हर वह शक्स अकेला है।


जोर चला किसका किस्मत पर,

होना है सो होता है।

तुमसे क्या मैं करूं शिकायत,

वक्त ने मुझसे खेला है।


उस पर लिखे गीत मेरे,

जब सारा जमाना गायेगा।

तब वो मुझको अपना कह कर,

किस्मत पर इतरायेगा।


मेरे प्यार को ठुकराने वाला एक…


    विश्वजीत कुमार✍️

 सभार - सोशल मीडिया