बुधवार, 29 जनवरी 2020

मुखौटा (Mukhouta)

So far my best poem which is very close to my life.




इस धरा पर नित्य चेहरे बदले जाते हैं ।
थोड़ी सी शोहरत के लिए,
रोज नये मुखौटे गढ़े जाते हैं।
इस धरा पर नित्य चेहरे बदले जाते हैं ।


एक मुखोटा यदि ना भाये चित्त को,
तो न जाने कई और परखे जाते हैं ।
कभी अंबर कभी दिगंबर वो
अभिनय भी खूब दिखाते हैं ।
इस धरा पर नित्य चेहरे बदले जाते हैं ।
उनकी चुक जरा सी ना दिखती,
किस रंगरसिया से वो रंग लगवाते हैं ।
मेरे जैसे वर्णकार तो बस,
उनकी कैद में फंसते चले जाते हैं।
इस धरा पर नित्य चेहरे बदले जाते हैं ।


उम्मीदो के दीपक भी यहां
नित्य बुझाये जाते हैं ।

थोड़ी सी शोहरत के लिए,

रोज नये मुखौटे गढ़े जाते हैं।

इस धरा पर नित्य चेहरे बदले जाते हैं ।

विश्वजीत कुमार✍️



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