तुम्हारी गैर मौजूदगी में अक्सर मैंने लिखें हैं।
तुम्हारी मौजूदगी की कविता।
तुम्हारे ना होने पर भी,
तुम्हारी उपस्थिती की कविता।
डायरी का हर एक पन्ना गवाह हैं,
मेरे दिल में उठे तुम्हारे दर्द की कविता।
अक्सर खो जाता हूँ,
तुम्हारे ख्यालों में।
मेरे लिये भी सही हैं, क्योंकि!!
उसी से बनती हैं मेरी भावनाओं की कविता।
देखो प्रिय!!!
कुछ भी असंभव नहीं है इस जहां में,
तुमसे प्रेम💖 करना भी हो तो
फिर से लिख लेता✍🏻 हूँ मैं कोई कविता।
कविता ही कविता,
मेरे जीवन का अब सार हैं कविता।
बिना इसके अब तो लगता हैं,
बेमानी है मेरे जीवन की गाथा।
कविता के अर्थ को भावार्थ देने,
तुम किसी दिन आओ।
शायद उसी दिन मुक़्क़मल होगी,
मेरी यह कविता।
तुम्हारी गैर मौजूदगी में अक्सर मैंने लिखें हैं।
तुम्हारी मौजूदगी की कविता।
तुम्हारे ना होने पर भी,
तुम्हारी उपस्थिती की कविता।
विश्वजीत कुमार ✍🏻
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