रविवार, 25 मई 2025

तुम्हारे बिना...




गीत-गजलें लिखूंगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!

दिल के हाल को व्यक्त करूँगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!

छोड़ कर जाते हुए तुमने सोचा नही...

गुनगुनाऊंगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!


वो बचपन की बाते वो मस्तीयों के दिन,

याद आते रहेंगे अब, तुम्हारे बिना!!!

एक बार मुड़ कर देख भी लेते...

उसी के सहारे मैं जी लेता, तुम्हारे बिना!!!


कहते थे तुम साथ हमेशा रहोगे।

बताओं अब मैं कैसे रहूँ, तुम्हारे बिना!!!

चाँद भी मुझसे अब पूछता है...

अकेले छत पर क्या कर रहे हो, उसके बिना!!!


नदियां विरान है, बगीचे गुमनाम है।

फूलों में अब वो खुश्बू नही हैं, तुम्हारे बिना!!!

चाहता तो मैं तुम्हे रोक सकता था।

लेकिन जिस्म का करता भी क्या, तुम्हारे रूह के बिना!!!


  गीत-गजलें लिखूंगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!

दिल के हाल को व्यक्त करूँगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!

छोड़ कर जाते हुए तुमने सोचा नही...

गुनगुनाऊंगा मैं कैसे, तुम्हारे बिना!!!


विश्वजीत कुमार✍️

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