उस दिन सोमवार था और हम अपने कॉलेज परिसर में 08:40 AM तक पहुंच गए थे उस समय तक कोई भी नहीं आया था, अमूमन लोगो को लॉन्ग वीकेंड के बाद आने में थोड़ी सी देर हो ही जाती है। आने के उपरांत कुछ जरूरी कार्यों को निपटाकर दोपहर में 01:00 बजे जब परिसर से निकलने लगे तो हमारे सहकर्मियों ने पूछा कि सर कहां जा रहे हैं ?
मैंने उन्हें बताया कि अपने एक प्रशिक्षु (छात्र) की शादी में बरबीघा जा रहे हैं।
उन्होंने थोड़ा हंसते हुए कहा कि - अब आपके स्टूडेंट भी शादी करने लगे हैं।
उनका इशारा कहीं और था जो कि हम बखूबी समझ रहे थे, मैंने उन्हें बताया कि सर B.Ed एवं D.El.Ed में हमसे बड़े-बड़े हमारे छात्र हुआ करते थे।
तब वह विषय वस्तु को बदलते हुए अपने अनुरोध को हमारे सामने रखते हुये कहां - सर, बरबीघा से कुछ लेते आइएगा।
मेरे मन में आया कि बोले कि - सर वहां तो बस गम😥 ही मिलता है, कहियेगा तो लेते आएंगे लेकिन पुन: यह सोचकर नहीं बोले कि वह तो बस मेरे ही हिस्से आया था। फिर सोचने लगे की बरबीघा में ऐसा क्या है जो लेकर जा सकते हैं। तभी अचानक मेरे स्वयं की रचित रचना ऐ बरबीघा मेरी पहचान हो तुम। यह पंक्तियां याद आने लगी।
रामस्वरूप के गर्मा गर्म,
रसगुल्ले का रसदार हो तुम।
तो वही थाना चौक के पास स्थित,
गोलगप्पे का स्वाद हो तुम।
ऐ बरबीघा मेरी पहचान हो तुम।। -२
मैंने कहां - सर, वहां पर रामस्वरूप का रसगुल्ला मिलता हैं जो की बहुत फेमस हैं। मै आप सभी के लिये उसे लेते आऊंगा। यहां पर भले ही कई लोगों को शुगर हो लेकिन रसगुल्ला के नाम पर सभी राजी हो गए।
ओला बाइक की मदद से हम पाटलिपुत्र बस स्टैंड चले गए, वहां पर बरबीघा, शेख़पुरा की बस में बैठने से पूर्व सेल्फी ले लिये और उसे इस कोट्स के साथ शेयर किये।
वर्तमान कार्यस्थल से भूतपूर्व कार्यस्थल की ओर...😊
जिन्दगी में यात्रायें🚆 इतना कीजिये की लोग...
"कैसे हो" से पहले "कहां हो" पूछे। 😀
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बस में बैठे - बैठे ही अपने कुछ प्रशिक्षुओ को Msg किये की हम बरबीघा आ रहे हैं, बरबीघा की खासियत यह रही हैं की वहां के कुछ लोगो का व्यवहार इतना अच्छा रहा और कुछ का इतना बुरा की किसी भी परिस्थिति में हम कभी भी बरबीघा को भूल नहीं पाए। कुछ प्रशिक्षु इतने उत्साहित हो गए की हमसे पूर्व ही वो हटिया मोड़ पर आ गए थे। हमने सभी को रामस्वरूप के रसगुल्ले की दुकान के पास रुकने को बोले। ऐसे भी बरबीघा में रहने के दरम्यान सबसे ज्यादा मुझे कोई चीज पसंद था तो वह डोवाडीह का पेड़ा के बाद रामस्वरूप का रसगुल्ला ही था। सभी से भेंट मुलाकात के बाद जब रसगुल्ले की पैकिंग कराने लगे तो दुकानदार ने पूछा कि - सर, पुरे बरबीघा में बांटना है क्या? मैंने कहां - पूरे बरबीघा में तो नहीं लेकिन कुछ में जरूर।☺️ उसके उपरांत जितने भी प्रशिक्षु आए थे सभी को एक-एक पैकेट दिया तो वह मना करने लगे। मैंने उनसे कहा कि रख लीजिए ऐसे भी 03 साल बाद बरबीघा में आए हैं अब पता नहीं, कब दोबारा आने का मौका मिले और आप सभी से मुलाकात हो और ऐसे भी आप में से कोई भी, कभी भी पटना आइयेगा तो हमारे यहां स्वागत💐 है उस समय हिसाब-चुकता कर दीजियेगा, इसमें क्या है। सभी को विदा करने के उपरांत फिर राकेश सर को कॉल किये। राकेश सर और सर्वेश सर भी बरबीघा में ही रहते है। दुबारा पुन: रामस्वरूप के रसगुल्ले की दूकान में गये, इस बार उसने पूछा - अब क्या हुआ सर ? मैंने मुस्कुराते हुए कहां - 02 पैकेट और पैक कर दीजिये। उसने पूछा - 500 - 500 ग्राम ही ना ?
मैंने कहां - हां, हां उतना ही जितना पहले किये थे।
अबकी बार उसने मुझे ऐसे देखा की जैसे पूछ रहा हो भाई !!! इतना स्वीट कौन पैक कराता है।
मैंने भी उसे जवाब दिया - बिक्री आप ही की बढ़ रही है ना!!!
हटिया मोड़ से फिर राकेश सर के यहां गए उन्होंने भी भव्य स्वागत💐 किया, आखिरकार सिवान के जो ठहरे!!! उन्हें पता है कि सिवान वालों का स्वागत कैसे किया जाता है। "काश !!! बरबीघा में भी कुछ लोगो को ये बात पता होती।" राकेश सर से घंटो बातचीत हुई, सीवान से शेखपुरा पर वार्तालाप हुई। तभी अचानक से ध्यान आया की शेखपुरा के ही एक प्रशिक्षु ने बस में ही Msg किया था की उन्हें Ph.D से रिलेटेड कुछ इनफार्मेशन चाहिए ? मैंने उन्हें तुरंत कॉल किया और बोला की - आप हटिया मोड़ से थोड़ा सा आगे राकेश सर के रूम पर आइये हम यही है। 20-25 मिनट में वो मेरे सामने थे, सबसे पहले तो हम उन्हें शिक्षक बनने के लिए बधाई💐 दिये और उसके उपरांत Ph.D, सेमीनार, पेपर प्रेजेंटेशन पर भी बाते हुई। चूँकि ये बाते और लम्बी चलती लेकिन मुझे सर्वेश सर के यहाँ भी जाना था इसीलिये मैंने ये कहते हुये विदा लिया की आप कभी पटना आइये या फिर हम अक्टूबर में आ रहे है तब इस विषय पर बात करेंगे। जैसे ही हम राकेश सर के रूम से निकले तो देखा की सर्वेश सर सामने से बाइक🏍️ से आ रहे है। सर्वेश सर के यहां भी एकाध घंटा रुके उस समय तक 07:00 बजने वाला था। हमने एवं राकेश सर ने प्लान बनाया था की 08:00 बजे के बाद ही तिलक फलदान में चलेंगे क्योंकि बरबीघा के रीती-रिवाजों से मेरे साथ-साथ वह भी वाफ़िफ थे। ऐसे भी हमने हमेशा से कोशिश यही की है की मगध के एरिया में होने वाले शादी समारोहों में सम्मिलित न हो क्योंकि अभी तक मैंने जितना भी फंक्शन अटेंड किया है सभी का अनुभव बहुत खराब😢 रहा है। अभी कुछ दिन पहले मुंगेर गए थे, अपने एक प्रशिक्षु के शादी में उसका अनुभव ऐसा रहा की उस पर पूरी एक लम्बी सी कहानी लिखी जा सकती है। मैंने वो अनुभव अपने एक मित्र जिनका ससुराल मुंगेर ही है जब उनसे साझा किया तो वो बोले की - सर, मुंगेर में वैसा ही होता है। आप को अजीब लगा होगा क्योंकि आप उसके अभ्य्यस्त नही है। खैर, हम अपने पुराने बरबीघा वाले अनुभव से डरे हुए थे अपने इस प्रशिक्षु का जब शादी का कार्ड प्राप्त हुआ तो संक्षेप में उसे मुंगेर वाली कहानी बताये तो उसने कहां की सर यहां ऐसा कुछ नही होगा। मैंने कहां - मुझे ऐसे कुछ दिक्कत नही है लेकिन कुछ समय के लिए लगता है हम क्यों ही आ गए।
खैर !!!
यहां का अनुभव कैसा रहा ये तो आप को आगे पता चल ही जायेगा लेकिन ऐसा समझिये की मेरा जो पूर्वानुमान था वो सही रहा।
यहां, मै एक चीज स्पष्ट करना चाहता हूँ की एक कलाकार होने के नाते मैं सभी की संस्कृती एवं उनके विश्वास की बहुत आदर करता हूँ लेकिन एक कलमकार होने के नाते मेरा फर्ज बनता है की उन सभी बातो को लिखूं जो की मानवता के नाते मुझे अच्छी नही लगी। ये हो सकता है की वो किसी के अपने रीती-रिवाज हो लेकिन फिर भी...
सर्वेश सर के रूम से 8:00 PM में निकले और पुन: रामस्वरूप के दुकान पर गए। वहां पर मेरा परिचय कराते हुए सर्वेश सर ने कहा - यह निफ़्ट के प्रोफेसर हैं, पटना से आये हैं और यें आपकी मिठाई निफ़्ट के प्रोफेसर लोग खाएंगे। पहले तो वो अपना कार्य बहुत आराम से कर रहा था लेकिन जैसे ही सुना "निफ़्ट के प्रोफेसर" उसके कान खड़े हो गए। वो दुकानदार जो शाम से मुझे मिठाई लेते देख रहा था उस समय ऐसे देखा कि जैसे उसे विश्वास ही ना हो और उसे विश्वास दिलाने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं थे। फिर उसने पूछा 500 ग्राम ही पैक कर दें ना? मैंने कहा - नहीं नहीं आधा किलो नहीं, कम से कम 02 किलो, क्योंकि पटना लेकर जाना है। वह मन-ही-मन सोचने लगा की काश ऐसे कस्टमर रोज मिलते। फिर मुझसे बोला - सर यदि आपको दुबारा आना हो ना तो पहले कॉल कर दीजियेगा हम पैक कर के रखेंगे। हमने कहां - हाँ, हाँ जरूर 👍🏻 और आगे कहां कि अच्छी चीजे बरबीघा को हमेशा प्राप्त नहीं होती है लेकिन आप अपना व्यवहार सही रखिए तो वक्त-बेवक प्राप्त होती रहेगी। वहां से पुन: हम राकेश सर के यहां गए।
08:30 में राकेश सर के साथ उनके स्कूटी से निकले मैंने किसी असुविधा से बचने के लिए पहले ही लोकेशन मंगा लिया था क्योंकि मुंगेर में मुझे बहुत परेशानी हुई थी, ट्रेन से उतरने के बाद कोई कॉल ही नही उठा रहा था और ना ही उसने मुझे किसी और का नम्बर दिया था बड़ी मुश्किल से पता पूछते-पूछते रात के 11:00 बजे पहुंचे थे। मेरे पास Mirror Less कैमरा, बैग, सबकुछ था और जमालपुर की वो सुनसान गालियां जिसमे ऑटो वाले ने भी जाने से मना कर दिया था। मुंगेर को City of Gun🔫कहते है ऐसा सूना था उस दिन अनुभव भी किया। खैर!!! यहां पहुँचने में दिक्कत नही हुई। मुझे लग रहा था की तिलक होगा तो बहुत भीड़-भाड़ होगी और बहुत से साईं कॉलेज के लोग एवं प्रशिक्षु होंगे लेकिन मैं गलत था, यहां तो उतने लोग भी नही थे जितना की हमारे यहां केवल रिश्तेदार हो जाते है। मुझे लगा की लोग कम है तो शायद व्यवस्था अच्छी होगी क्योंकि ज्यादा लोगो में आप अच्छी व्यवस्था नही कर पाते। हम जब द्वार पर पहुंचे तब तिलक चढ़ाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी थी। सामने कुर्सी पर कुछ लोग बैठे हुये थे संभवत: सभी लड़की पक्ष वाले थे उनके स्वागत की प्रक्रिया चल रही थी मुझे यह देख कर अजीब लग रहा था की एक व्यकित उन कुछ लोगो में भी कुछेक की पहचान कर रहा था जो की लड़की पक्ष वाले थे और उन्हें लड़के पक्ष की तरफ से आए लोग उन्हें नाश्ता करा रहे थे। चूँकि हमे और राकेश सर को तो कोई पहचान नही रहा था इसीलिये वो नाश्ते की टोकरी हमारी कुर्सी के पास आई तो सही लेकिन रुकी नही। मैंने राकेश सर को बोला - अजीब लोग है सर, इन्हें सोचना चाहिए कोई भी यहां आया है तो ऐसे थोड़े आया है। राकेश सर ने कहां - सर, आपको हम क्या बोल रहे थे ? वो किस्सा याद नही है जब हम लोग अपने एक स्टाफ के सिस्टर की शादी में गये हुए थे ये तो फिर भी प्रशिक्षु है और ऊपर से वो यहां नही है।
मैंने कहां - बात तो सही हैं।
राकेश सर ने कहां - सर चलते है।
मैंने कहां - उतनी दूर से आए है तो एक बार चेहरा दिखा कर और गिफ्ट🎁 जो लाये है उसे देकर के चलते है। फिर मैंने मंच के पास जा कर के उस प्रशिक्षु से मिले तो उसने कहां की - सर कुछ देर रुकिये ना!!!
फिर हम एवं राकेश सर उसके गाँव का परिभ्रमण किये। मुझे गाँव घूमना बहुत पसंद है बरबीघा का यह गाँव भी अच्छा लगा। एकाध घंटे बाद पुन: हम वापस पहुंचे क्योंकि गिफ्ट🎁 मेरे पास ही था वो उस समय लिया नही था। जैसे ही हम दुबारा वहां पहुंचे एक छात्र ने आकर बोला - आप विश्वजीत सर है ???
मैंने कहां - हां
तब उसने पहले उत्साह से हाथ मिलाया फिर सॉरी-सॉरी बोलते हुए पैर छूने की कोशिश की तो मैंने मना किया और बोला की सॉरी मै आप को पहचान नही पाया। तब उसने कहां की, सर हम आप से ऑनलाइन पढ़े थे, कोविड के समय जब क्लास ऑनलाइन चलता था। उसने आगे बताया की वो अभी बिहार सरकार में शिक्षक है। मैंने उसे बधाई 💐 एवं शुभकामनाएं दी। मालुम चला की वो भी इसी तिलक में आया है। मुझे अच्छा लगा की चलो कोई तो मिला। मैंने सामने देखा की सभी लोग निचे जमीन पर बैठ कर खाना खा रहे हैं। ये मेरे लिये अजीब नही था, अजीब इस बात के लिए लगा की वो लोग ऐसे ही बैठे थे यानी की कुछ बिछाया नही गया था कुछ लोग अपना चप्पल उतार कर उस पर बैठे तो कुछ चुका-मुका बैठे थे। मुझे लगा की भाई किसी को खाना तो अच्छे से खिलाते। तभी वो प्रशिक्षु जिसका तिलक था वो दिखा मैंने उसे रोककर वो गिफ्ट🎁 दिया जिसे 02 घंटे से लेकर घुम रहे थे। एक फोटो क्लिक करवाई और बोले की ठीक है हम निकल रहे है। वो फिर बोला - सर कुछ देर रुकिये ना!!! मैंने कहां - आरे!!! दो घंटे से रुके हुये है, तुम्हारा पूरा गाँव घुम लिए, अब कितना रुके। तब वह बोला - आप नाश्ता भी नही किये। मैंने मुस्कुराते हुये कहां - कोई बात नही, आप के तिलक में शामिल हो गए, ये काफ़ी है मेरे लिए। फिर वो किसी को बुलाया और उसे कुछ समझा कर फिर हमें बोला - सर आप खाना खा लीजिये। मैंने सामने देखा अभी भी लोग उसी तरह खा रहे थे। लेकिन वो मुझे दूसरी तरफ ले गए जहां दो जगह अलग-अलग व्यवस्था की गई थी। एक उनके लिए जो तिलक ले कर के आए थे और दुसरा संभवतः हमारे जैसे लोगो के लिये। और मेरा ये अनुमान बिल्कुल सही था। पत्तल में पुड़ी, एक सब्जी और रसगुल्ला आया। मुझे लगा और कुछ होगा या आ रहा होगा लेकिन लोगो ने खाना शुरू कर दिया, बाकियों को देखकर मैंने भी। चूँकि पूड़ी बहुत हार्ड हो गया था तो मैंने पूछा की चावल भी हैं ? किसी ने कोई जवाब नही दिया और फिर पुड़ी ही लेकर के आया। मैंने बोला की भाई पूड़ी नही चाहिए तब वो पुन: रसगुल्ला लाया। मुझे ये माजरा समझ में नहीं आ रहा था। फिर राजेश सर ने मुझे इशारों में बताया की यहां के लोग शादीयों में रसगुल्ला खाने ही आते है आरे!!! शादी छोड़ दीजिये किसी के यहां यदि दाह-संस्कार में भी जाते है तो सब रसगुल्ला ही खाते है। ये बात तो मुझे मालुम थी क्योंकि जब साईं कॉलेज के उप निदेशक के पिता जी की मृत्यु हुई थी तो उन्होंने बहुत ज्यादा रसगुल्ला ले कर के गये थे। ये वहां के कल्चर में शामिल है लेकिन मुझे उस समय अजीब लगा था और आज भी लगता हैं। तभी अचानक वह प्रशिक्षु वहां आ गया जिसके तिलक में हम आयें थे वो भी निफ्ट से छुट्टी लेकर के। हम सोच रहे थे अपना कोई कार्य रहता है तो हम जल्दी छुट्टी नही लेते खैर!!! यहां आ गए तो आ गए। जब उसने देखा की मेरी थाली खाली है वो माजरा समझ गया फिर आस पास खड़े लोग जो हमे खाना खिला रहे थे उनसे बात किया और चला गया। कुछ देर उपरांत दो लोग पुलाव और दाल ले कर के आए उस समय तक सभी लोग लगभग खाना समाप्त कर चुके थे मेरे मना करने के वावजूद भी उसने मेरी थाली में रख दिया फिर बाकियों के भी जो मेरे टेबल पर थे उन्हें दिया और वापस चला गया। मेरे आस-पास के टेबल को उसने देखा तक नही। अब मुझे पूरी कहानी समझ में आ चुकी थी। दरअसल बात यह था की वहां तीन लेवल की व्यवस्था थी और हम दुसरे लेवल में थें। (इस बात को हम कन्फर्म नहीं कर रहे हैं लेकिन हमें ऐसा महसूस हुआ, शायद हम गलत भी हो सकते हैं।)
उसके उपरांत, अब हमें वहां रुकना अच्छा नही लगा और राकेश सर के साथ निकल गए तभी उसी प्रशिक्षु का कॉल आया। मैंने कॉल उठाया और उनका नाम लेते हुए बोला - जी बोलिए ? उधर से आवाज आई - हैल्लो हम ना, उनके भगीना बोल रहे है मामा बोले है पूछने के लिए की आप कहां है ?
मैंने उससे कहां - अपने मामा को बोल दीजियेगा की हम बरबीघा जा रहे है टेंशन ना ले, सुबह में मेरी बस हैं। बरबीघा रात के 11:30 तक आ चुके थे। फ्रेश होने के उपरांत राकेश जी ने बेड वगैरा सेट कर दिया और बोले की सर आप आराम कीजिये तब तक हम मच्छरदानी ले कर के आ रहे है। उस समय मौसम एकदम सदाबहार था और राकेश जी के रूम में उपलब्ध खिडकियों से बहुत अच्छी हवा आ रही थी। मेरा मन तो ये गाना गुनगुनाने लगा -
आज मौसम बड़ा बेईमान है
बड़ा बेईमान है आज मौसम
आने वाला कोई तुफान है
तूफान है आज मौसम
मेरा यह गीत सुन के तुफान🌊 तो बाद में आया उससे पूर्व मच्छरो🦟 का झुण्ड आ पहुंचा मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था की बरबीघा में किसी ने हमारा पूरे दिल💝 से स्वागत किया तो वह थे वहां के मच्छर 🦟. पंखा के चलने के बावजूद भी वह हमसे आ-आ कर ऐसे चिपक रहे थे जैसे की मानो कोई वर्षो पुराना कुम्भ में बिछड़ा मित्र उन्हें मिल गया हो। ऐसे राकेश जी ने सेवा सत्कार में कोई कमी नहीं की। हम बस यूं ही सोच रहे थे यह सब तो उसे करना चाहिए जिसके बुलावे पर हम आज बरबीघा आए हुये हैं। खैर!!! बरबीघा मेरी कर्म भूमि तो अवश्य रही है लेकिन इसने जितना हो सके उससे भी ज्यादा परेशान करने की कोशिश की हैं। लेकिन मुझे लगता है कि हम बहुत बड़े सौभाग्यशाली हैं कि मुझे ऐसा कर्म भूमि मिला ताकि जिंदगी में आने वाले किसी भी मुसीबत या बुरे समय को हम यह सोचकर बिता सके की जो भी हो बरबीघा से तो अच्छा ही है।
राकेश जी ने उन मच्छरों के हमलों से बचने के लिए मच्छरदानी लगा दिया था लेकिन फिर भी कुछ मच्छर अवैध रूप से प्रवेश कर ही गए थे। और रह-रह करके अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे। मैं ने भी सर्जिकल स्ट्राइक कर कर के सभी को खत्म किया। लेकिन कहानी अभी यहां खत्म नहीं हुई थी हमारे गाने का जो दूसरा अंतरा था यानी कि आने वाला कोई तूफान है वह तो अभी बाकी था। उस रात बरबीघा में रात के लगभग लगभग 12:00 बजे बहुत तेज हवाएं चलने लगी और बारिश भी हुई। मुझे अपनी कविता की एक पंक्ति याद आने लगी।
तुम्हारी ये जुल्फें👰🏻♀ अगर खुल गईं तो।
गिरेगी कहीं बर्फ☃️ तो कही बरसात🌧️ होगी।।
चुराओ न मुझसे नज़र इस तरह से।
मुहब्बत💗 की बदनाम ये जात होगी।।
कटती रही जवानी बस इंतजार में,
तेरी इस ख़ुबी को आज तक मैंने किसी को बताई नाहीं।
शेखपुरा से ही वह पूरी बस भर करके आई थी, यानी बरबीघा जाने का सफर जितना रोमांचकारी और आनंदपूर्वक रहा आने का उतना ही कष्टदायक। ऐसे भी यें मेरा पुराना अनुभव हैं तो मुझे इसका बुरा नहीं लगा। ...और बस में सबसे अंतिम सीट पर बैठे उछलते-कुदते, गिरते-पड़ते आख़िरकार पटना पहुंचे। रूम पहुंचने के उपरांत 09:00 बजे तक अपने कॉलेज भी चले गए थे। नींद तो बहुत आ रही थी लेकिन उसे त्याग कर इस आर्टिकल को पूरा✍🏻 करते रहे।